अभी तक एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए देश में यातायात का प्रमुख साधन सामान्य ट्रेनें थीं, लेकिन अब सेमी हाईस्पीड और हाईस्पीड ट्रेनें चलाने की चर्चा चल रही है. सिर्फ इतना ही नहीं, अब हम बुलेट ट्रेन पर चढ़ने की तैयारी में भी जुट गए हैं. चीन, जापान, फ्रांस जैसे अनेक देशों में ऐसी ट्रेनें पहले से ही चल रही हैं, फिर हम क्यों पीछे रहें  आज अनेक देश अपने यहां हाईस्पीड ट्रेनें चला रहे हैं. अब वह दिन दूर नहीं जब हम बुलेट ट्रेन में बुलेट की तरह सैर करेंगे.

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की 3 दिवसीय भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने हाईस्पीड रेलवे पर करार किया है, जिसे आमतौर पर बुलेट ट्रेन कहा जाता है. प्रधानमंत्री शिंजो अबे 11 दिसंबर, 2015 को भारत आए थे. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने करीब 980 अरब रुपए लागत की रेल परियोजनाओं पर सहमति का ऐलान किया है. दरअसल, बुलेट ट्रेन शुरू करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रमुख चुनावी वादा रहा है. भारत की पहली बुलेट ट्रेन मुंबई और अहमदाबाद के बीच दौड़ेगी. यह 505 किलोमीटर की दूरी 7 घंटे के बजाय 2 घंटे में पूरी करेगी. इस की अनुमानित लागत 98,805 करोड़ रुपए है. इस के निर्माण में करीब 7 साल लगेंगे. इस दौरान जापान रेल, ट्रेन और संचालन प्रणाली के सभी उपकरण उपलब्ध कराएगा. इस में एक तरफ का संभावित किराया करीब 2,800 रुपए होगा. मुंबईअहमदाबाद के बीच फिलहाल सर्वाधिक भाड़ा मुंबई शताब्दी ऐक्सप्रैस प्रथम श्रेणी का 1,920 रुपए और हवाई किराया करीब 1,720 रुपए प्रति व्यक्ति है. इस में हवाई यात्रा से मात्र 70 मिनट ज्यादा लगते हैं.

मुंबईअहमदाबाद रूट पर 162 किलोमीटर पुल तथा 27.01 किलोमीटर की 11 सुरंगें भी बनेंगी. इस लाइन पर कुल 12 स्टेशन होंगे, जिन में सूरत और वडोदरा में 2-2 मिनट का ठहराव होगा. इस योजना में डिजाइन और बोली की प्रक्रिया 2017 तक पूरी कर ली जाएगी. इस बुलेट ट्रेन का व्यावसायिक संचालन 2024 से शुरू हो जाएगा. अभी बेल्जियम, फ्रांस, जरमनी, इटली, नीदरलैंड, स्पेन, इंगलैंड, चीन, जापान, कोरिया और ताइवान में हाईस्पीड बुलेट ट्रेनें चल रही हैं. साथ ही ब्राजील, भारत, मोरक्को, रूस, सऊदी अरब समेत अमेरिका में हाईस्पीड लाइनों के निर्माण का काम चल रहा है. हाईस्पीड लाइनों के विकास और उस की तकनीक मुहैया कराने वाली प्रमुख कंपनियों में शामिल एबीबी के मुताबिक 2020 तक दुनिया में हाईस्पीड लाइनों का नैटवर्क 42 हजार किलोमीटर तक पहुंच जाएगा.

अभी दुनिया में हाईस्पीड ट्रेनों का संचालन विकास के दौर में है. इस के परिचालन में अलगअलग देशों में अलगअलग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस की सब से पुख्ता तकनीक मैग्नेटिक लेविटेशन होती है, लेकिन इस के लिए पूरा का पूरा ढांचा अलग से तैयार करना होता है. इस कारण ज्यादातर देशों में मौजूदा ढांचे को विकसित करते हुए उसी ट्रैक पर हाईस्पीड ट्रेनें चलाई जा रही हैं.

हाईस्पीड ट्रेन खास क्यों

सब से पहले तो हम हाईस्पीड ट्रेन के बारे में जान लें. 250 किलोमीटर प्रतिघंटे या उस से अधिक स्पीड से दौड़ने वाली ट्रेन को हाईस्पीड ट्रेन कहा जाता है. कई अर्थों में यह पारंपरिक ट्रेनों से अलग है. इस टे्रन का पूरा रैक सामान्य ट्रेनों से अलग होता है और इस में आधुनिक इंजन लगाए जाते हैं. इस के इंजन का आकार एयरोडायनैमिक टाइप का होता है, जो हवा को चीरते हुए तेजी से आगे बढ़ता है. यह ट्रेन खासतौर से बनाई गई हाईस्पीड लाइन पर चलाई जाती है. बेहतर पावर सप्लाई और गुणवत्तायुक्त ट्रैक के साथ इस रेलमार्ग के घुमावदार स्थानों को खास तरीके से डिजाइन किया जाता है. साथ ही इस में उन्नत सिगनल सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. अधिकतर हाईस्पीड ट्रेनें स्टील के बने ट्रैक और स्टील के ही बने पहियों पर चलती हैं, जिन की स्पीड 200 किलोमीटर प्रतिघंटे से ज्यादा होती है. इन गाडि़यों का ठहराव कम होने के साथ इन्हें सुरक्षित सिगनल सिस्टम से चलाया जाता है.

जापानी बुलेट ट्रेन की तकनीक

–       जापानी बुलेट ट्रेन की तकनीक कुछ अलग है, बेहद तेज रफ्तार से ट्रेनों को चलाने के लिए इस का ढांचा मजबूत व सुव्यवस्थित बनाया जाता है. इस के लिए एयरोडायनैमिक ढांचा सर्वाधिक उपयुक्त है. इसलिए बुलेट ट्रेन का आगे का हिस्सा पूरी तरह से हवाईजहाज के आगे वाले हिस्से की तरह डिजाइन किया जाता है.

–       ट्रेन जब अधिक रफ्तार में होती है, तो पहिए वाइब्रेट करते हैं. यदि यह वाइब्रेशन कंपार्टमैंट में बैठे यात्रियों तक पहुंचता है, तो उन्हें झटका महसूस होता है. यात्रियों को झटकों से बचाने के लिए बोगियों को सपाट बनाया जाता है साथ ही एयरस्प्रिंग का इस्तेमाल भी किया जाता है, जो वायु के दाब से पहियों से पैदा हुए झटकों से बचाता है.

–       जापान में बुलेट ट्रेन के लिए अलग से पटरियां बिछाई गई हैं. इस रेल मार्ग पर ज्यादा घुमावदार मोड़ नहीं बनाए गए हैं. साथ ही समान लेवल पर कोई दूसरी रेल लाइन इसे क्रौस न करे, इस का भी खयाल रखा गया है, ताकि न तो इन ट्रेनों को कहीं रुकना पड़े और न ही किसी अन्य ट्रेन को पास देने का इंतजार करना पड़े.

–       सामान्य ट्रेनों के संचालन के समय उस का चालक सिगनल के मुताबिक ट्रैक पर ट्रेन को नियंत्रित रखता है, लेकिन बुलेट ट्रेन के चालक के लिए यह बेहद मुश्किल होता है कि वह 250 किलोमीटर प्रतिघंटे से ज्यादा की स्पीड पर ट्रेन चलाते समय सिगनल को समझ सके. इसलिए इन ट्रेनों में एक अलग तरह के स्पीड कंट्रोल सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे एटीसी कहा जाता है. इस सिस्टम के तहत ट्रैक के माध्यम से स्पीड की सूचना लगातार चालक की सीट के पास जुड़े हुए सिगनल तक भेजी जाती है. एटीसी स्वत: टे्रन को निर्दिष्ट रफ्तार पर चलाता है. साथ ही यह सैंट्रलाइज्ड ट्रैफिक कंट्रोल पर भी निर्भर है, जो यह सुनिश्चित करता है कि 2 ट्रेनों के बीच पर्याप्त दूरी और समय का अंतराल है, ताकि उच्चगति वाली इन ट्रेनों का संचालन सुरक्षित तरीके से हो.

भारतीय बुलेट ट्रेन की खास बातें

–       यह बुलेट ट्रेन भारत के वित्तीय केंद्र मुंबई से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहराज्य गुजरात की राजधानी अहमदाबाद को जोड़ेगी. दोनों शहरों के बीच 505 किलोमीटर की दूरी है, जिसे अभी ट्रेन से तय करने में करीब 7 घंटे लगते हैं. बुलेट ट्रेन आने के बाद यह दूरी सिर्फ 2 घंटे की रह जाएगी.

–       इस परियोजना की अनुमानित लागत 98.805 करोड़ रुपए है, जिस में 2017 से 2023 के बीच 7 साल के निर्माणकाल के दौरान मूल्य और ब्याज वृद्धि भी शामिल है. इस दौरान पटरियों, ट्रेनों और संचालन प्रणाली तक सभी तरह के उपकरण जापान ही उपलब्ध कराएगा.

–       जापान इंटरनैशनल कौर्पोरेशन एजेंसी (जेआईसीए) और भारत के रेल मंत्रालय ने 2 साल पहले ही हाईस्पीड रेल बनाने और चलाने संबंधी पहलुओं का अध्ययन शुरू किया था. इस बुलेट ट्रेन का व्यावसायिक संचालन 2024 से शुरू हो जाएगा.

क्यों खास है जापान की बुलेट ट्रेन

कुछ खास तो जरूर है जापानी बुलेट ट्रेन में, जिस की वजह से पूरी दुनिया में इस की चर्चा होती है. सब से खास बात यह है कि यह ट्रेन अपने नाम की तरह ही बुलेट की गति से चलती है. 1 घंटे में यह रेलगाड़ी 200 से 250 किलोमीटर का सफर तय करती है. इस को भले ही भारत और दुनिया बुलेट ट्रेन कहती हो, लेकिन इस का असली नाम है शिन्कासेन. इस रेलगाड़ी की एक अन्य खासीयत यह है कि इस की सफाई भी बहुत तेज गति से ही होती है. इस गाड़ी की सफाई में 5 मिनट भी नहीं लगते हैं. यह रेलगाड़ी कभी लेट नहीं होती है. अगर विशेष परिस्थितियों में यह गाड़ी लेट भी हो जाती है तो यह अधिकतम 36 सैकंड ही लेट होती है. अगर इस की सफाई की बात करें तो इस के कर्मचारी इस रेलगाड़ी के टोक्यो पहुंचने से पहले ही इस में सवार हो जाते हैं और ट्रेन में आनेजाने वालों का अभिवादन करने के साथ ही उन्हें खुश करने के लिए अपने कपड़ों पर कोई न कोई फूल लगाते हैं.

अगर शिन्कासेन ट्रेन की बात करें तो टोक्यो स्टेशन पर दिन भर में करीब 210 बार बुलेट ट्रेन आतीजाती हैं. हर रेलगाड़ी का ठहराव करीब 12 मिनट होता है. यह पूरी तरह कंप्यूटरीकृत प्रणाली से नियंत्रित होता है. यूपीए-2 के शासनकाल में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जापान गए थे तो उन्होंने भी इस रेलगाड़ी का प्रस्तुतिकरण देखा था. अब भारत में भी बुलेट ट्रेन चलेगी. लेकिन देखना यह है कि क्या सुविधा और सफाई में शिन्कासेन का मुकाबला कर पाएगी भारतीय रेल.

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