न जाने क्यों रेनू दीदी ने 40 साल की आयु होने के बाद भी शादी नहीं की जबकि उन की छोटी बहन मीनू ने उम्र होते ही शादी कर ली थी और उस की एक बेटी भी थी. रेनू, मीनू और मीनू के पति सब एक ही स्कूल में पढ़ाते थे और इन्हीं के स्टाफ में मोहन भी था. स्वभाव से शर्मीले मोहन ने अपने से 15 वर्ष बड़ी लेकिन नाजुक सी रेनू में न जाने क्या देखा कि वे उन्हें बेइंतहा पसंद करने लगे. पूरे स्कूल में यह बात बच्चेबच्चे को पता चल गई थी. लेकिन कभी किसी ने मोहन को कोई अनुचित हरकत करते नहीं देखा.
बड़ा ही रूमानी प्यार था मोहन का. रेनू ने हमेशा मोहन को समझाया, अपनी उम्र का वास्ता दिया, समाज का नजरिया दिखाया. हर तरह से उन्होंने मोहन सर को इस मोहजाल से निकालने की कोशिश की. मोहन नहीं माना. उस पर तो उस नाजुक सी परी का जादू चल गया था, जो बोलती थी तो लगता था फूल झड़ रहे हैं, बहुत धीरे से मुसकराते हुए हलकेहलके, जैसे खुशबुओं से भरी हवा हलके से छू जाए. सारे बच्चे रेनू दीदी के फैन थे. वे हर वक्त बच्चों से घिरी रहतीं.
ये भी पढ़ें- फूलप्रूफ फारमूला-भाग 3 : आखिर क्यों अपूर्वा का इंतजार रजत कर रहे थें
मोहन सर की चाहत थी या पत्थर की लकीर, वे टस से मस नहीं हुए. 3-4 साल तक तो रेनू उन को नकारती रहीं लेकिन कब तक, आखिर उन को मोहन सर के प्यार के आगे झुकना ही पड़ा. सारे स्टाफ की मौजूदगी में दोनों ने बहुत ही साधारण तरीके से शादी कर ली. न कोई दिखावा, न ही कोई ढकोसला. लेकिन मोहन सर की मां इस शादी से खुश नहीं थीं. उन्होंने तो अपने बेटे के लिए छोटी उम्र की मिलतीजुलती लड़की देख रखी थी. लेकिन मां की एक न चल सकी. आखिर मोहन सर रेनू को ब्याह कर घर ले ही आए. मां ने इस से पहले रेनू को कभी नहीं देखा था.
जब दूल्हादुलहन की आरती के लिए मां दरवाजे पर आईं तो दुलहन को देख कर बेहोश हो गईं. लोगों ने खूब बातें बनाईं. रेनू को बहुत दुख हुआ. वे जिस बात से अब तक बचना चाह रही थीं, आखिर वह ही पल उन के जीवन में उन की आंखों के सामने था. खैर, मां उन दोनों से नाराज ही रहीं. समय बीतता गया और अब उन दोनों का प्यार दोतरफा हो गया था. मोहन सर रेनू को अपनी जिंदगी बना कर बहुत खुश थे. न उन्हें मां कि परवा थी और न ही जमाने की. सुबह दोनों स्कूल चले जाते और स्कूल के बाद एकदूसरे को जीभर कर खुशियां देते. रेनू दीदी अब तक मेनोपौज से गुजर चुकी थीं, इसलिए उन की संतान होने की कोई संभावना ही नहीं थी. मगर, मजाल है जो मोहन सर को किसी भी चीज का कोई मलाल हो.
ये भी पढ़ें- गलती : आखिर कविता से क्या गलती हुई
वे तो रेनू को पा कर इतना खुश थे कि मानो उन्हें पूरी दुनिया मिल गई हो. और उन का प्यार देख कर रेनू दीदी निहाल थीं. उन्हें जीवन के इस दौर में जीवनसाथी मिलेगा, इस की तो उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी क्योंकि वे तो शादी करना ही नहीं चाहती थीं. कितने ही रिश्ते ठुकरा कर वे इस उम्र तक कुंआरी ही थीं. मगर ये मोहन सर के प्यार का असर था जो रेनू दीदी को उन के लिए हां कहना ही पड़ा. बहुत हंसीखुशी से वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था कि अचानक रेनू दीदी को ब्रेन हेमरेज हो गया. उन का शरीर पत्थर का हो गया, वे जड़ हो चुकी थीं. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी उन का शरीर हरकत में नहीं आया. वे एकटक मोहन सर को देखती रहतीं और आंखों से आंसू बहातीं.
मोहन सर ने भी उन को ठीक करने में अपनी जीजान लगा दी, मगर वे ठीक नहीं हुईं. डाक्टरों ने अब जवाब दे दिया था. थकहार कर मोहन सर को उन्हें घर वापस लाना पड़ा. मगर उन का प्यार एक रत्ती भी कम नहीं हुआ. वे उन का चौबीसों घंटे खयाल रखते, अपने हाथों से उन्हें नहलाते, खाना खिलाते, उन के बाल संवारते और तरहतरह की बातें कर उन का दिल बहलाते. रेनू दीदी चाह कर भी मोहन सर के आगे कभी रोती नहीं थीं, क्योंकि वे जानती थीं कि उन के लिए उन का प्यार अनमोल था. मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था. उस से उन दोनों का प्यार शायद देखा नहीं गया. एक दिन मोहन सर को रोतेबिलखते छोड़ कर रेनू दीदी इस दुनिया से चल बसीं. मोहन सर की तो दुनिया ही उजड़ गईर् थी.
ये भी पढ़ें- कुछ तो हुआ है : आखिर क्यों डूबा जा रहा था उस मां का दिल
वे ही जानते होंगे कि उन्होंने कैसे इस मुश्किल घड़ी में खुद को संभाला होगा. यह प्रेम कहानी मेरे दिलोदिमाग से कभी नहीं उतरती. रेनू दीदी मोहन सर का प्यार पा कर अमर हो गईं. उन्हें कुछ ही सालों में जिंदगी का वह सुख मिला जो हर स्त्री की चाहत होती है. मुझे लगता है रेनू दीदी पूर्ण और तृप्त हो कर गई हैं इस दुनिया से. कुछ सालों तक मोहन सर रेनू दीदी के गम में डूबे रहे, लेकिन फिर उन्हें अपनी मां की मरजी से शादी करनी पड़ी. पता नहीं आज वे खुश हैं या नहीं.
ये भी पढ़ें- जिंदगी जीने का हक : केशव के मन में उठी थी कैसी ललक
और हैं भी तो कहां हैं, आज किसी को उन के बारे में कुछ नहीं पता. लेकिन याद है तो, बस, यही कि समाज के खिलाफ जा कर उन्होंने अपने से 15 साल बड़ी लड़की से शादी की थी. आजकल एक नया फैशन चला हुआ है अपने से बड़ी उम्र की महिलाओं को प्रेम प्रस्ताव रखना, वह भी अविवाहित नहीं, विवाहित महिलाओं से. पता नहीं यह कहां तक सही है, और सही है भी या नहीं. मगर जब भी ऐसा कुछ देखती या सुनती हूं तो रेनू दीदी की यादें ताजा हो जाती हैं और दिल कहता है, एक थीं रेनू दीदी.