कानून हों या धर्म, सब के निशाने पर महिलाएं ही होती हैं. उन्हें कमजोर मान कर जहां धार्मिक गुरुओं व पंडितों द्वारा बंदिशों व नियमों की दीवारें खड़ी की जाती हैं, तो वहीं कानून भी कहीं न कहीं महिलाओं के साथ नाइंसाफी करने से बाज नहीं आता और यह स्थिति सिर्फ भारत नहीं, विदेशों में भी है.

यमन

यमन में एक कानून यह है कि महिलाओं को कोर्ट के आगे पूर्ण व्यक्ति का दरजा नहीं मिलता. एक अकेली महिला की गवाही को गंभीरता से नहीं लिया जाता जब तक कि एक पुरुष अपनी गवाही से उस तथ्य की पुष्टि नहीं करता. वह पुरुष उस जगह, उस समय मौजूद न हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. व्यभिचार, मानहानि, चोरी वगैरह में महिलाएं गवाही नहीं दे सकतीं.

यमन में एक कानून  ये भी  है कि यहां महिलाएं अपने पति की अनुमति के बिना घर से नहीं निकल सकतीं. कुछ आपातकालीन परिस्थितियों में ही उन्हें छूट दी जाती है, जैसे कि अपने बीमार अभिभावक की देखभाल या अस्पताल ले जाने की जरूरत.

इक्वैडोर

यहां अबौर्शन गैरकानूनी है. सिर्फ मानसिक तौर पर अस्वस्थ महिलाओं को ही इस से अलग रखा गया है. अफसोस की बात तो यह है कि इस नियम का सहारा ले कर अक्सर मिस कैरिज को भी अपराध बना दिया जाता है.

सऊदी अरब एंड मोरक्को

ऐसे बहुत से देश हैं, जहां बलात्कार पीडि़ता को न्याय नहीं मिल पाता. मगर और भी अफसोसजनक यह है कि कुछ देश इस से भी 4 कदम आगे हैं. वे बलातकार पीडि़ता को ही दंड देते हैं. उदाहरण के लिए सऊदी अरब व मोरक्को में ऐसा ही होता है. तर्क यह दिए जाते हैं कि वह महिला, पुरुषसाथी के बगैर घर से क्यों निकली? किसी ऐसे व्यक्ति के साथ अकेली क्यों थी जो उस का रिश्तेदार नहीं.

सऊदी अरब

यहां महिलाएं ड्राइव नहीं कर सकतीं. तर्क दिया जाता है कि ड्राइविंग से महिला के गर्भाशय पर असर पड़ता है. मगर इस तथ्य का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

वेटिकन सिटी

दुनिया का यह एकमात्र ऐसा देश है जहां महिलाओं को वोट डालने का हक कानून नहीं देता. अब तक सऊदी अरब भी इसी श्रेणी में शुमार था, पर 2015 के चुनाव में उस ने इस परंपरा पर विराम लगाते हुए महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया.

भारत

भारत में भी ऐसे बहुत से कानून हैं जो पक्षपातपूर्ण हैं.

एडवोकेट एंड सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि भले ही ससुराल में महिला के साथ बुरा व्यवहार होता रहा हो, पर उस की मौत के बाद यदि महिला के पति या बच्चे जीवित न हों तो ऐसी स्थिति में हिंदु लौ औफ इनहैरिटेंस के अंतर्गत उस की संपत्ति स्वतः ही उस के अपने मांबाप के बजाए उस के सासससुर के नाम हो जाएगी.

18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ संबंध कायम करना रेप माना जाता है मगर एक पुरुष अपनी नाबालिग पत्नी के साथ कुछ भी कर सकता है. भारत में मैरिटल रेप से भी जुड़ा कोई कठोर कानून नहीं.

एक पुरुष के लिए शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और स्त्री के लिए 18 वर्ष है. यह एक तरह से पितृसत्तात्मक सोच का कानूनी विस्तार है, जिस के अंतर्गत माना जाता है कि एक पत्नी को सदैव पुरुष के देखे कम उम्र का होना चाहिए.

गोवा में एक हिंदू दूसरी शादी कर सकता है, यदि उस की पहली पत्नी 30 साल की उम्र तक उसे वारिस न दे पाए.

भले ही एक महिला को बच्चे के जन्म और पालनपोषण में, पुरुष के देखे ज्यादा तकलीफ सहनी होती है, फिर भी अभिभावक तौर पर महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं हैं. एक पिता को ही बच्चे का स्वाभाविक अभिभावक माना जाता है.

हिन्दू लौ ऑफ़ एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस 1956 के अनुसार कोई भी पुरुष बच्चा  अडॉप्ट कर सकता है उसे सिर्फ पत्नी  की सहमति की जरुरत परती है मगर महिला अपने नाम  से तभी बच्चे को अडॉप्ट कर सकती है जब वह विधवा हो, अविवाहिता  हो या उसका पति पागल हो, नपुंसक हो या साधु बन गया हो. सवाल यह है कि इतने सारे क्लौजेज सिर्फ महिला के साथ ही क्यों ? जबकि पुरुष के लिए सिर्फ पत्नी की सहमति ही काफी है.

अनुजा कपूर कहती हैं कि कुछ कानून महिलाओं के हित में भी बनाए गए हैं, मगर ये कमजोर पड़ जाते हैं क्योकि इन का प्रौपर इम्प्लीमेंटेशन नहीं होता. कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो महिलाओं के फेवर में बने कानूनों का गलत प्रयोग कर इस की सार्थकता को संदेह के घेरे में खड़ा कर देती है.

जरूरी है कि कानून ऐसे हों जो स्त्रियों के बढ़ते क़दमों को हौसला दें  न कि उनके साथ पक्षपात का रवैया कायम रखें.

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