जमाखोरी पर केंद्र सरकार सख्त दालों की भंडारण सीमा तय होगी
नई दिल्ली : कभी प्याजलहसुन तो कभी चीनी और अकसर दाल को ले कर देश में बवाल मचता ही रहता है. अभी कुछ अरसा पहले ही दाल के दाम 200 रुपए प्रति किलोग्राम का दायरा पार कर गए थे. मौजूदा वक्त में भी दाल के हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं, लिहाजा केंद्र सरकार का परेशान हो कर चौकन्ना होना लाजिम है. इन दिनों आपूर्ति की कमी के कारण दालों के दामों में एक बार फिर से तेजी का रुख है. इसी वजह से केंद्र ने सूबों से दालों की जमाखोरी रोकने के लिए कड़े कदम उठाने को कहा है. सूबों से कहा गया है कि वे व्यापारियों के लिए तमाम तरह की दालों की भंडारण सीमा तय करें, ताकि बेहिसाब भंडारण पर लगाम लग सके. खाद्य मंत्रालय के एक बड़े अफसर ने बताया कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश सूबों ने कुछ दालों के लिए भंडारण सीमा तय की है. तमाम सूबों से जमाखोरी और मूल्यों पर काबू पाने के लिए भंडारण की सीमा सभी दालों के लिए तय करने को कहा गया है. अफसर के मुताबिक पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के सूबों ने अभी तक इस तरह की कोई सीमा तय नहीं की है. वैसे वक्त का तकाजा तो यही है कि दाल पैदा करने वाले सभी सूबों में यह सीमा जल्दी से जल्दी तय हो जानी चाहिए.
आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत व्यापारियों के लिए दालों के भंडारण की सीमा करीब 1 साल से लागू है. मध्य प्रदेश वैसे तो चने का खास उत्पादक है, मगर सूबे की सरकार ने चना व्यापारियों पर इस की खुदरा कीमतों में इजाफे के बावजूद भंडारण की कोई सीमा नहीं लगाई है.
भारत के कुल चना उत्पादन में मध्य प्रदेश सूबे का हिस्सा 30 फीसदी है. सूबे ने महज अरहर, उड़द और मसूरदालों के व्यापारियों के लिए भंडारण की सीमा मुकर्रर की है. दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सूबों ने भंडारण की सीमा महज चने के लिए तय की है, मगर दूसरी दालों के लिए भंडारण की कोई सीमा तय नहीं की गई. सरकारी सूत्रों के मुताबिक दामों के मामले में फिलहाल उड़द सब से आगे है. यह दाल फिलहाल 185 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. दूसरी दालों में अरहर 165 रुपए, मूंग 124 रुपए, मसूर 105 रुपए और चनादाल 85 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. मांग और आपूर्ति की बदतर हालत के बीच पूरे भारत में दालों के खुदरा दाम एक बार फिर से चढ़ने शुरू हो गए हैं. सरकार ने दालों के हालात बेहतर बनाने की गरज से अपने बफर स्टाक से 50,000 टन दालें जारी करने की कार्यवाही शुरू कर दी है.
देश में दालों के हालात सुधारने की दिशा में सरकार हमेशा चौकन्नी रहती है, मगर फिर भी अकसर छीछालेदर मच ही जाती है. बहरहाल दालों के मामले में केंद्र सरकार का चौकन्नापन काबिले तारीफ कहा जा सकता है. वैसे भी यह हर सरकार का फर्ज होता है कि वह अपने नागरिकों को तमाम जरूरी चीजें सही तरीके से मुहैया कराए.
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कृषि विज्ञान केंद्रों में किसान मेले
फैजाबाद : नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज फैजाबाद द्वारा पूर्वी उत्तर प्रदेश में संचालित 17 कृषि विज्ञान केंद्रों के समन्वयकों की विश्वविद्यालय में आकस्मिक बैठक बुलाई गई. बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा निर्देशित की गई भारत सरकार की फसलबीमा योजना के प्रचारप्रसार के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों पर किसान मेलों के आयोजन की जानकारी दी गई. कुलपति अख्तर हसीब ने सभी कार्यक्रम समन्वयकों से कहा कि साल 2016-17 में कृषि विज्ञान केंद्रों पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों का सालाना कैलेंडर जल्दी से जल्दी पेश कर दिया जाए. अख्तर हसीब ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा या निर्देश दिया गया हे कि संबंधित जिलों के लोकसभा सदस्यों से मेलों में उन की मौजूदगी पक्की करने के लिए कार्यक्रम समन्वयक उन से बात करें.
इस अवसर पर कुलपति ने निदेशक प्रसार डा. एसपी सिंह से कहा कि वे सभी कृषि विज्ञान केंद्रों में मेले आयोजित करने की स्थानीय सांसदों द्वारा सुझाई गई तारीखों की सूचना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कानपुर स्थित जोन 4 कार्यालय तक भेजें. कुलपति अख्तर हसीब ने यह भी कहा कि कृषि विज्ञान केंद्रों में बोई जाने वाली फसलों व उन पर किए जाने वाले खर्च का ब्योरा भी कैलेंडर के साथ मुहैया कराएं. कुलपति ने कृषि विज्ञान केंद्रों के मकसदों के मुताबिक अपने जिलों में कृषि व ग्रामीण विकास में पूरे मनोयोग से योगदान देने की बात कही. बैठक में प्रसार निदेशालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आरए सिंह समेत विश्वविद्यालय द्वारा संचालित पूर्वी उत्तर प्रदेश के 7 मंडलों के 17 कृषि विज्ञान केंद्रों के कार्यक्रम समन्वयक व प्रभारी मौजूद थे.
तबाही
20 करोड़ का गेहूं बरबाद
भोजपुर : बिहार राज्य खाद्य निगम की लापरवाही की वजह से 20 करोड़ रुपए का गेहूं बरबाद हो गया. मामले की जांच के बाद यही खुलासा हुआ है कि निगम के अफसरों द्वारा गेहूं के रखरखाव के मामले में ढिलाई बरतने की
वजह से सरकार को नुकसान उठाना पड़ा है. साल 2012 में गेहूं के खराब रखरखाव और सप्लाई में देरी करने से 20 करोड़ रुपए का गेहूं सड़ गया था.
गौरतलब है कि साल 2012-13 में राज्य सरकार ने राज्य खाद्य निगम और पैक्सों को गेहूं की खरीद की जिम्मेदारी सौंपी थी. सरकारी खरीद के बाद जमा किए गए अनाज को भारतीय खाद्य निगम के गोदाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी राज्य खाद्य निगम की थी. इस पर होने वाले खर्च के लिए 1426 रुपए 4 पैसे प्रति क्विंटल तय किया गया था. निर्धारित मानकों के तहत गेहूं की खरीद के लिए 15 अप्रैल 2012 से 31 जुलाई 2012 तक का समय तय किया गया था. इस दौरान खरीदे गए गेहूं की 31 दिसंबर 2012 तक आपूर्ति कर दी जानी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
भोजपुर, बक्सर, पटना और भभुआ में राज्य खाद्य निगम द्वारा कुल 87230 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई थी और इस में से 50123 मीट्रिक टन गेहूं ही भारतीय खाद्य निगम के गोदामों तक पहुंचाया जा सका. बाकी 37106 मीट्रिक टन गेहूं राज्य खाद्य निगम में पड़ापड़ा खराब होने लगा, जिसे औनेपौने भाव पर 20 करोड़ रुपए का नुकसान उठा कर बेच दिया गया.
तकनीक
बिना बिजली दूध रहेगा चिल्ड
गुड़गांव : यह दुनिया की इकलौती ऐसी तकनीक है, जिस में दूध को ठंडा रखने के लिए गोबर के उपले के साथसाथ सूखा गोबर, लकड़ी, बांस, भूसी व घास का इस्तेमाल होता है. इस तकनीक को नाम दिया गया है ग्रीन चिल. इस में 500 से 1000 लीटर दूध, फलसब्जी, मछली या दूसरी बागबानी की चीजों को महफूज रखा जा सकता है. यह एक गैरकंप्रेशर फ्रिज है. ग्रीन चिल को चलाने के लिए न तो बिजली की जरूरत होती है और न ही डीजलपैट्रोल की. यह फ्रिज किसी प्रकार का ध्वनि प्रदूषण या वायु प्रदूषण नहीं करता और इस का रखरखाव भी बेहद आसान है. इस में किसी प्रकार की गैस नहीं निकलती और यह बहुत कम जगह घेरता है.
इस तकनीक से स्टोर किए हुए दूध को वी2सी बाजार, जेएमडी गलेरिया मार्केट में लगे आजीविका एक्सपीरियंस स्टोर पर मुहैया कराया जाएगा. इस से दूध में चल रही मिलावट से भी लोगों को राहत मिल सकेगी. यह तकनीक न्यू लीफ डायनामिक टेक्नोलाजी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा तैयार की गई है. इस तकनीक को शुरुआती तौर पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया जा रहा है. इस तकनीक की शुरुआत गुड़गांव के मांकड़ौला गांव से की जाएगी. बाद में इसे जिले के सौ दूसरे गांवों में लागू किए जाने की योजना है. दूध आमतौर पर बहुत जल्दी खराब होने वाली चीज है. जरा ज्यादा गरमी पड़ने पर यह फट जाता हे. जरा सी भी लापरवाही दूध के लिए खतरनाक साबित होती है. ऐसे आलम में बिना बिजली वाली यह तकनीक काफी कारगर रहने की उम्मीद है.
सुविधा
पंजाब में गेहूं खरीदने के लिए बैंकों से मिलेगा कर्ज
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने पिछले दिनों आंखें तरेरीं कि पंजाब के किसानों को सरकारी गेहूं खरीद के लिए कर्ज नहीं मिलेगा. किसानों की परेशानी को देखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और उन्हें अपनी समस्या बताई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझाने के बाद आखिरकार उन्हें कामयाबी मिल ही गई. भारतीय स्टेट बैंक को कर्ज मुहैया कराने का निर्देश दिया गया है. पंजाब में गेहूं की सरकारी खरीद के लिए बैंकों के कर्ज देने से हाथ खड़ा कर लेने का मामला अब सुलझा लिया गया है. पिछले दिनों कुछ बैंकों के कर्ज देने से मना क रने के बाद स्थिति खराब होने लगी थी. पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार से गेहूं खरीद के लिए 20 हजार करोड़ रुपए की मांग की थी, लेकिन बैंकों के मना कर देने से गंभीर विवाद पैदा हो गया था.बता दें कि राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. पंजाब के भाजपाअकाली दल के लिए यह समस्या परेशानी का सबब बन सकती थी. मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. नतीजतन मामला फौरन सुलझ गया.
भारतीय स्टेट बैंक की अध्यक्षता वाले बैंकों के समूह को रिजर्व बैंक ने पंजाब को खाद्यान्न खरीद के लिए पैसा मुहैया कराने को कहा है. साथ ही राज्य में गेहूं की सरकारी खरीद का रास्ता साफ हो गया है, जबकि बैंक चालू सीजन में विवाद के सुलझने तक कर्ज देने से मना कर चुके थे. उधर सरकार ने इस मामले को सुलझाने के लिए वित्त व खाद्य मंत्रालय, भारतीय स्टेट बैंक समेत दूसरे बैंकों के अधिकारियों व भारतीय खाद्य निगम के अधिकारियों की एक समिति बनाई है. रामविलास पासवान ने कहा कि किसानों के हित में सरकार गेहूं की खरीद करेगी.
तरक्की
दूध में आत्मनिर्भर बनेगा बिहार
पटना : बिहार को दूध और दूध से बने उत्पादों के मामले में अपने पैरों पर खड़ा करने की मुहिम शुरू की गई है. इस के लिए राज्य के हर जिले में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए योजना बनाई गई है. इस लाभकारी योजना के तहत पशुपालकों को हर पशु की खरीद पर कम से कम 50 फीसदी अनुदान का लाभ मिल सकेगा.
अनुसूचित जाति और जनजाति के पशुपालकों को 75 फीसदी तक का अनुदान मिलेगा. स्वयं सहायता समूह के लोग, स्वरोजगार और बेरोजगारों को भी इस योजना का लाभ मिलेगा.
पशुबीमा कराने और पशुशाला बनाने वगैरह के लिए कुल 1 लाख 30 हजार रुपए दिए जाएंगे. सामान्य वर्ग के किसानों को 65 हजार रुपए का और दलितों को 97 हजार रुपए का अनुदान मिल सकेगा. 5 दुधारू मवेशियों के लिए 3 लाख 26 हजार रुपए अनुदान के रूप में मिलेंगे. इस में से 2 लाख 25 हजार रुपए केवल पशुओं के लिए होंगे. अलगअलग इकाइयों के लिए भी अनुदान देने की व्यवस्था की गई है. इस के तहत दलितों को 2 लाख 44 हजार रुपए और सामान्य वर्ग के लोगों को 1 लाख 63 हजार रुपए के अनुदान का लाभ मिलेगा. खास बात यह है कि एक ही परिवार के एक से ज्यादा लोग भी इस योजना का फायदा उठा सकत हैं. इस के लिए शर्त है कि वे अलगअलग जगहों पर दूध उत्पादन की इकाइयां लगाएं.
पशुपालन मंत्री अवधेश कुमार सिंह ने बताया कि लाभुकों को चुनने के लिए हर जिले में स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया गया है. कमेटी हर हफ्ते बैठक बुला कर लाभुकों को चुनेगी. इस योजना से राज्य में दूध उत्पादन बढ़ने के साथसाथ बेरोजगारी में भी अच्छीखासी कमी आ सकेगी.
लगाम
पशुओं के लिए कान्हा पशुआश्रय
संतकबीरनगर : पशु कू्ररता रोकने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा कान्हा पशुआश्रय योजना की शुरुआत की जा रही है. यह योजना उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शुरू की जा रही है. अदालत के आदेश के तहत सचिव शासन प्रकाश ने इस मामले में दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं.अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे प्रदेश के महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती, लखीमपुर खीरी व पीलीभीत जिलों में इस योजना के जरीए शेल्टर हाउस खुलेंगे.
योजना के मुताबिक नगर निकायों द्वारा मुहैया कराई गई जमीन में कान्हा पशुआश्रय बनाए जाएंगे. अगर इस तरह की जमीन नहीं मिली तो जिलों के जिलाधिकारी इस योजना के लिए मुफ्त में जमीन मुहैया कराएंगे. इन आश्रयगृहों में अलगअलग शेड बनाए जाएंगे. इस के अलावा बायोगैस प्लांट भी लगाए जाएंगे. शेडों के ऊपर सौर ऊर्जा पावर प्लांट लगा कर पशुओं के लिए पीने के साफ पानी का इंतजाम भी किया जाएगा. कर्मचारियों के लिए कमरों व आफिस का इंतजाम चहारदीवारी के अंदर ही अलग से किया जाएगा. इन आश्रयों का निर्माण कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज सी एंड डी एस जल निगम द्वारा कराया जाएगा. पशुओं के लिए भूसे व चारे के इंतजाम में सोसायटी फार प्रीवेशन अगेंस्ट एनिमल कु्रएलिटी यानी एसपीसीए मदद करेगी. इन आश्रयों का संचालन एनजीओ, सरकारी उपक्रम प्रतिष्ठित फर्म नगर निकायों द्वारा जिलाधिकारियों की देखरेख में किया जाएगा. इन आश्रयों से दुधारू पशुओं को छोड़ कर खेती के कामों के लिए 100 रुपए का शपथपत्र दे कर किसान पशु ले सकेंगे. ये पशु उन्हीं को दिए जाएंगे, जिन के खिलाफ पशुक्रूरता से संबंधित कोई केस दर्ज नहीं होगा.
कामयाबी
सोनालीका के बढ़ते कदम
नई दिल्ली : भारत की तीसरी सब से बड़ी ट्रैक्टर कंपनी, सोनालीका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड के चेयरमैन लच्छमन दास मित्तल भारतीय अरबपतियों की सूची में 46वें स्थान पर हैं.उन्होंने अपने पेशेवर कैरियर की शुरुआत भारतीय जीवन बीमा निगम के साथ की थी और फिर उस के बाद उन्होंने साल 1969 में किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लि उपकरण निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा. उन्होंने अपने 2 बेटों के साथ मिल कर साल 1996 में सोनालीका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड की शुरुआत की. आज सोनालीका भारत की तीसरी सब से बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी है. इस के उत्पाद दुनियाके 100 से भी अधिक देशों में बिकते हैं और यह घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में एक प्रसिद्ध ब्रांड बन गया है. सोनालीका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड देश की हैवी ड्यूटी ट्रैक्टर्स रेंज है, जो 20 एचपी से ले कर 110 एचपी तक की श्रेणी में प्रौद्योगिकी के लिहाज से बेहतरीन ट्रैक्टरों का निर्माण करती है. सोनालीका आईटीएल के पास पंजाब के होशियारपुर में एक अत्याधुनिक एकीकृत ट्रैक्टर निर्माण संयत्र सोनालीका वर्ल्ड प्लांट है. इस संयंत्र की वार्षिक उत्पादन क्षमता करीब 2 लाख ट्रैक्टर है और रोल आउट टाइम करीब 2 मिनट है.
योजना
3 जिलों में यूनिफाइड इंश्योरेंस योजना
जयपुर : राजस्थान के 3 जिलों में खरीफ सीजन 2016 से यूनिफाइड पैकेज फार इंश्योरेंस स्कीम शुरू होगी. कृषि विभाग ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश के सीकर, धौलपुर व राजसमंद जिलों का चयन किया है. कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी ने बताया कि देश में पहली बार फसल के साथ किसानों के लिए देश के प्रधानमंत्री ने यह योजना लागू की है. गौरतलब है कि देशभर के 45 जिलों में केंद्र सरकार यह पायलट प्रोजेक्ट चलाएगी. प्रोजेक्ट के नतीजे ठीकठाक रहने की स्थिति में प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जाएगा. इस योजना में किसानों के साथसाथ कृषि यंत्रों, प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना में विकलांगता और पढ़ाई कर रहे किसानों के बच्चों को भी शामिल किया गया है. प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना के साथसाथ किसानों को संयुक्त रूप से इस योजना के तहत बीमित किया जाएगा. जानकारी के अनुसार पायलट प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना के अलावा 6 अन्य योजनाओं के फायदे को मिला कर किसानों के लिए यह पैकेज तैयार किया है. इन योजनाओं में प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमायोजना के तहत 2 लाख रुपए का व्यक्तिगत दुर्घटना कवरेज, कृषि पंपसेट बीमा, कृषि ट्रैक्टर बीमा, प्रधानमंत्री जीवनज्योति बीमा योजना के माध्यम से जीवन बीमा और छात्र सुरक्षा बीमा योजना शामिल हैं. विभागीय अफसरों से मिली जानकारी के मुताबिक, इन में से कोई भी 2 योजनाओं का चयन किसानों को करना होगा, जिस का वे फायदा लेना चाहते हैं. योजना के तहत किसान को कितना प्रीमियम देना होगा, यह गाइडलाइन आने के बाद ही पता चल सकेगा. ठ्ठ
हालात
सस्ता प्याज किसान की टूटी आस
नीमच : महंगे प्याज से कुछ महीने पहले तक हर कोई परेशान था. यहां तक कि प्याज ने सरकार की आंखों में भी आंसू ला दिए थे. हर नेता सस्ते दामों पर प्याज बेचता नजर आता था. ऐसा मंजर देख कर हर किसी की आंखों में कई दफा आंसू आए, पर प्याज बेचने वाले खुश थे कि उन की आंखों में पैसों की चमक थी.?
अब प्याज इतना सस्ता हो गया है कि किसान परेशान हैं. मध्य प्रदेश में प्याज की कीमतें काफी नीचे पहुंच गई हैं. नीमच जिले में प्याज की थोक कीमत महज 30 पैसे प्रति किलोग्राम है. इस गिरावट की वजह यही है कि प्याज का बंपर उत्पादन हुआ हैऔर मांग में बेहद कमी है. बता दें कि नीमच मध्य प्रदेश में प्याज का थोक बाजार है. बंपर फसल होने की वजह से प्याज 30 से 35 पैसे प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है. एक किसान ने रोते हुए बताया कि हमें अपनी फसल को कूड़े में फेंकने को मजबूर किया जा रहा है. किसानों को खेत से मंडी तक फसल लाने का खर्च भी नहीं मिल पा रहा है. नीमच की मंडी में रोजाना तकरीबन 5 हजार बोरी प्याज पहुंच रहा है, लेकिन उन का कोई खरीदार नहीं है.
वहीं एक प्याज कारोबारी ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि कम से कम 20 से 30 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से प्याज बिक जाएगा, लेकिन अब ऐसा नहीं लगता, क्योंकि प्याज की थोक कीमतें इतनी नीचे चली गई हैं कि किसानी का खर्च निकालना महंगा पड़ रहा है.
अकसर 100 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकने वाला प्याज इस हद तक सस्ता हो सकता है, यह बात गले से उतरना मुश्किल है, पर दुनिया में कभी भी कुछ भी हो मुमकिन है. किसानों को ऐसे हालात अकसर झेलने पड़ते हैं. \
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दिक्कत
हजारों मक्का किसान परेशान
भागलपुर : मक्का किसान फसल की कीमत गिरने से काफी परेशान हैं. पिछले दिनों मक्के की कीमत 5 सौ रुपए तक नीचे चली गई. लिहाजा, हजारों किसान बहुत ज्यादा निराश हैं. कर्ज ले कर खेती करने वाले किसानों को सब से ज्यादा परेशानी है. उन्हें अपना पैसा डूबने का डर सता रहा है. मक्के की खेती में ज्यादा पैसा और मेहनत लगती है, पर उस हिसाब से कीमत नहीं मिल पा रही. यहां माफियागर्दी शुरू हो गई है. हर साल जब मक्के की तैयारी शुरू होती है, तो इसी तरह से कीमत कम कर दी जाती है. बीते 5 सालों में कई चीजों की कीमतें बढ़ी हैं, पर मक्के की नहीं. पिछले दिनों मक्का 1400 से 1500 रुपए प्रति क्विंटल था, जबकि अभी 900 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल है. जिस तेजी से कीमत कम हुई है, इस से तमाम छोटे कारोबारियों को भी बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. चूंकि मक्के की उपज ज्यादा है, इसीलिए कम कीमत मिल रही है. दूसरी वजह यह है कि मक्का दूसरे देशों को कम भेजा जाता है.
बहरहाल, जीतोड़ मेहनत और ज्यादा लागत से उपजाई जाने वाली इस फसल की अगर वाजिब कीमत मिले, तो किसानों की जिंदगी बदल सकती है. भागलपुर, शिवनारायणपुर व आसपास के जिलों में मक्के की सब से ज्यादा पैदावार होती है. ठ्ठ
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मुहिम
जयगोपाल प्रजाति से खेती
बस्ती : इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बरेली के वैज्ञानिक डा. रनवीर सिंह ने केंचुए की देशी प्रजाति जयगोपाल नाम से विकसित की है. इस पर 46 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा, जबकि परंपरागत रूप से वर्मी कंपोस्ट बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली केंचुए की विदेशी प्रजातियां ज्यादा तापमान सहने के प्रति संवेदनशील होती हैं.
इस समय केंद्र सरकार परंपरागत खेती विकास योजना के तहत जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है, जिस के लिए आम बजट में 412 करोड़ रुपए रखे गए हैं. इस के लिए उत्तर प्रदेश में गोरखपुर, बुलंदशहर, महोबा, कन्नौज, हमीरपुर, बांदा, मिर्जापुर, ललितपुर व गाजियाबाद जिले चुने गए.
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तकनीक
ग्रीन चिल से दूध चिल्ड
गुड़गांव : यह दुनिया की इकलौती ऐसी तकनीक है, जिस में दूध को ठंडा रखने के लिए गोबर के उपले के साथसाथ सूखा गोबर, लकड़ी, बांस, भूसी व घास का इस्तेमाल होता है. इस तकनीक को नाम दिया गया है ग्रीन चिल. इस में 500 से 1000 लीटर दूध, फलसब्जी, मछली या दूसरी बागबानी की चीजों को महफूज रखा जा सकता है. यह एक गैरकंप्रेशर फ्रिज है. ग्रीन चिल को चलाने के लिए न तो बिजली की जरूरत होती है और न ही डीजलपैट्रोल की. यह फ्रिज किसी प्रकार का ध्वनि प्रदूषण या वायु प्रदूषण नहीं करता और इस का रखरखाव काफी आसान है. इस में किसी प्रकार की गैस नहीं निकलती और यह कम जगह लेता है.
इस तकनीक से कोल्ड स्टोरेज किए हुए दूध को वी2सी बाजार, जेएमडी गलेरिया मार्केट में लगे आजीविका एक्सपीरियंस स्टोर पर मुहैया कराया जाएगा. इस से दूध में चल रही मिलावट से भी लोगों को राहत मिल सकेगी.
यह तकनीक न्यू लीफ डायनामिक टेक्नोलाजी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा तैयार की गई है.
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लापता
कोई तो मेरा सांड़ ढूंढ़ कर लाए
वाराणसी : बनारस के बरईपुर के मनोज पांडेय ने बादशाह नामक सांड़ के लापता होने के बाद उस की तलाश के लिए 50 हजार रुपए का इनाम रखा है. कालेसफेद रंग का वह सांड़ 2 अप्रैल को लापता हो गया. काफी खोजने के बाद मनोज ने सारनाथ थाने में उस के खोने की रिपोर्ट दर्ज कराई और शहरभर में उस की खोज के लिए पोस्टर भी लगवा दिए.मनोज का कहना है कि वह कोई जानवर नहीं, बल्कि उन के परिवार का एक सदस्य है. अगर जल्द ही वह सांड़ नहीं मिला, तो वे सारनाथ थाने के सामने धरना देंगे. काशी में सांड़ों को पालने की परंपरा सदियों पुरानी है.
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हालात
सूखे पड़े हैं जलाशय
नई दिल्ली : देश के 91 बड़े जलाशयों में से महज 24 फीसदी जलाशयों में ही पानी बचा है, जबकि इन 91 जलाशयों की कूवत 157 बिलियन क्यूबिक मीटर है. यह जानकारी केंद्रीय जल आयोग ने दी. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन जलाशयों में जितना पानी है, वह पिछले साल के मुकाबले काफी कम है. इस साल इन जलाशयों में पानी की कमी की वजह है कम बारिश होना. इन जलाशयों का पानी सिंचाई के लिए होता है, ऐसे में आंकड़ों को देखते हुए लगता है कि इस का असर तमाम फसलों पर भी पड़ेगा. जिन राज्यों में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले कम पानी है, उन में हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल शामिल हैं. आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा केवल 2 ही ऐसे राज्य हैं, जहां पिछले साल से ज्यादा पानी इकट्ठा है बता दें कि 91 जलाशयों में से महज 37 जलाशय ऐसे हैं, जिन में हाइड्रोपावर प्लांट हैं. इन पावर प्लांटों की कूवत 60 मेगावाट से ज्यादा बिजली बनाने की है.
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रिकार्ड
ज्यादा पौधे उगा कर गिनीज बुक में दर्ज
बरेली : उत्तर प्रदेश के इंटर कालेजों और परिषदीय स्कूलों के प्रिंसिपलों का सारा ध्यान इन दिनों गड्ढे खुदवाने पर लगा हुआ है. गड्ढे नहीं खुदवाने वाले प्रिंसिपलों को आला अधिकारियों के नोटिस का सामना करना पड़़ रहा है. बरेली में तो 3 दिनों के अंदर ही 14 हजार से ज्यादा गड्ढे खुदवाने का फरमान जारी किया गया है. यह सारी कवायद जुलाई महीने में होने वाले वृहद पौधारोपण अभियान के लिए की जा रही है. दरअसल, प्रदेश सरकार ने जुलाई में किसी एक दिन वृहद पौधारोपण अभियान चलाने का फैसला किया है. इस दिन एकसाथ 6 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे. पौधे लगवाने की बड़ी जिम्मेदारी स्कूलों को भी दी गई है. बरेली में बेसिक और माध्यमिक स्कूलों को तकरीबन 14 हजार पौधे लगवाने हैं. तमाम स्कूलों में पौधे लगाने के लिए मुनासिब जगह ही नहीं हैं, इसीलिए तमाम स्कूलों के प्रिंसिपलों को पौधों के लिए जगह खोज कर अभी से गड्ढे खुदवाने को कहा गया है, ताकि सही समय पर इन गड्ढों में पौधे लगाए जा सकें.
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मदद
पौष्टिक चारे के लिए अनुदान
मऊ : पशुपालन विभाग द्वारा पशुपालकों को पौष्टिक चारा बनाने के लिए अनुदान दिया जाएगा. इस के लिए पशुपालकों को 1300 रुपए की सामग्री मुहैया कराई जाएगी. इस के लिए जिले की हर ग्राम पंचायत से 1 पशुपालक चुना जाएगा. इस साल सूखे की वजह से धान की फसल बरबाद होने के कारण पशुओं के लिए चारे का संकट खड़ा हो गया है. यह देखते हुए पशुपालन विभाग द्वारा पशुओं की सेहत ठीक रखने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए अपौष्टिक चारे से पौष्टिक चारा बनाने की योजना बनाई गई है. इस योजना के तहत अपौष्टिक चारे को उपचारित कर के पौष्टिक चारा बनाया जाएगा. इस के लिए पशुपालक को भूसे और यूरिया का इंतजाम करना होगा. वर्तमान में जिले में 684 ग्राम पंचायतें हैं और हर गांव से इस योजना के तहत 1 पशुपालक को लाभ दिया जाएगा. इस योजना के तहत 1 लघु सीमांत पशुपालक का चयन किया जा रहा है, जिस में अल्पसंख्यक पशुपालकों का भी खयाल रखा गया है.इस योजना के लिए चुने गए पशुपालकों को नकद धनराशि न दे कर पौष्टिक चारा बनाने के लिए 1300 रुपए की सामग्री दी जाएगी. मुख्य पशुचिकित्साधिकारी यूपी सिंह ने बताया कि चारा संकट को देखते हुए पशु पालकों को अनुदान दे कर पौष्टिक चारा बनाना बताया जा रहा है. इस योजना पर कुल 8 लाख 89 हजार 200 रुपए खर्च होंगे.
आगाज
राजस्थान में भी ड्रैगन फ्रूट की खेती
जयपुर : देश में ड्रैगन फ्रूट की खेती के मामले में राजस्थान का भी नाम शामिल हो गया है. 7 अप्रैल को जयपुर जिले की बस्ती तहसील के गांव ढिंढोल में प्रायोगिक तौर पर इस की खेती की शुरुआत प्रदेश के खेतीबारी मंत्री प्रभुलाल सैनी की मौजूदगी में की गई. नतीजे कामयाब रहे तो महाराष्ट्र, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के बाद राजस्थान भी इस में शामिल हो जाएगा. प्रदेश में पहली बार ड्रैगन फू्रट की खेती की शुरुआत खेतीबारी मंत्री प्रभुलाल सैनी ने सेंटर आफ एक्सीलेंस ढिंढोल फार्म बस्ती में किसानों की माली हालत को जबूत करने व कई तरह की बीमारियों से पीडि़तों को राहत पहुंचाने के मकसद से की है.इस अवसर पर मंत्री ने बताया कि प्रदेश में जैतून व पिंडखजूर के बाद ड्रैगन फू्रट की खेती किसानों की हालत सुधारने में मदद करेगी. श्रीलंका, वियतनाम, इजरायल, थाईलैंड वगैरह देशों में इस की खेती अच्छे स्तर पर होती है. ढिंढोल के बाद प्रदेश के कोटा, टोंक, थडोला व झुंझुनूं जिलों में भी इस खेती की शुरुआत की जाएगी. प्रयोग सफल रहा तो किसानों को अनुदान दे कर इस खेती के लिए उकसाया जाएगा.मंत्री ने बताया कि ढिंढोल कृषि फार्म में 3 किस्मों के ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए गए हैं. इन में 18 महीने में फल आने शुरू होते हैं. 1 पौधा 20 और 30 किलोग्राम तक फल देता है. बाजार में 1 किलोग्राम फल की कीमत 150 से 250 रुपए तक है. इस खेती में पौधों को पिलरों के सहारे लगाया जाता है. इन्हीं पिलरों के सहारे ही पौधे बढ़ते हैं. पौधों की ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की जाती है.
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नया प्रभात डेरी का घर जैसा दही
मुंबई : प्रभात डेरी लिमिटेड कंपनी ने हाल ही में ‘घर जैसा दही’ बाजार में पेश किया है. गाय के ताजे दूध से बनाया गया यह दही गुणों से भरपूर है. इसे बहद सफाई से तैयार किया गया है. आजकल बाजार में मौजूद 99 फीसदी दही को गाढ़ा बनाने के लिए पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है, मगर इस में ऐसा नहीं है. कंपनी इस बात का पूरा खयाल रखती है कि बनाने से पैक करने के दौरान किसी भी मौके पर दही को इनसानी हाथों द्वारा न छुआ जाए. इस बात का भी पूरा खयाल रखा जाता है कि दही में गाय के दूध की सभी कुदरती खूबियां मौजूद रहें. कंपनी ने रफ्तार योजना के तहत ताजे दही को ठंडी वैनों के जरीए सप्लाई करने का बंदोबस्त किया है.
अनोखा
देशी फ्रिज : ठंडक का एहसास
जामताड़ा : झारखंड के जामताड़ा जिले के कृषि विज्ञान केंद्र ने महज 3 सौ रुपए का देशी फ्रिज तैयार किया है. इस में 1 हफ्ते तक हरी सब्जियां व दूसरी खाने की चीजों को ताजा रखा जा सकता है. लेकिन खास बात यह है कि आप इसे अपने हाथों से तैयार कर सकते हैं. इस में बिजली का कोई झंझट नहीं है.
जामताड़ा कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक डाक्टर करुणा ने यह देशी फ्रिज तैयार किया है. यह फ्रिज बिजली वाले फ्रिज की तरह सामान को ठंडा रखता है.इस फ्रिज को बनाने में मिट्टी की 2 हांडि़यों और बालू का इस्तेमाल किया गया है. हांडि़यों में रखे सामान को ढकने के लिए विशेष आकार का ढक्कन बनाया जाता है, ताकि अंदर हवा न जा सके. फ्रिज के अंदर रखी बालू को दिन में 1 बार भिगोया जाता है, ताकि वह देशी फ्रिज के अंदर के भाग को ठंडा रख सके. इस फ्रिज के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से 10 डिगरी कम रहता है, इसलिए सामान ठंडा और महफूज रहता है. डाक्टर करुणा ने बताया कि इस की ट्रेनिंग उन्हें राजस्थान से मिली है. जामताड़ा कृषि विज्ञान केंद्र की टीम पिछले दिनों राजस्थान गई थी. वहां पानी कम है और बिजली भी कम मिलती है. ऐसे में वहां के लोग देशी फ्रिज का इस्तेमाल कर के सब्जियों और खाने की चीजों को ताजा रखते हैं.
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दहशत
आर्मी अस्पताल में घुसा तेंदुआ
मेरठ : कई दिनों तक मेरठ में दहशत बना रहा तेंदुआ आखिरकार पकड़ लिया गया. दुधवा नेशनल पार्क से आई टीम, वन विभाग और दूसरे अधिकारियों ने उसे पकड़ने में कामयाबी हासिल की.
उसे ट्रेंकुलाइज करने के लिए साढ़े 9 बजे 2 शाट मारे गए और तीसरा शाट मारते समय उग्र तेंदुए ने एक डाक्टर पर हमला कर दिया. इस बीच ट्रेंकुलाइजर ने असर किया और तेंदुआ बेहोश हो गया. उसे ट्रक में डाल कर सेना के इलाके से दूर ले जाया गया. पकडे़ जाने से 3 दिन पहले आधी रात को मिलिट्री अस्पताल से भागने के बाद तेंदुए ने सुबह के वक्त फाजलपुर के पास सेना के बन रहे मकानों में 5 मजदूरों को घायल कर दिया था. सुबह से आधी रात तक वन विभाग, पुलिस और सेना की टीमों ने उसे पकड़ने के लिए जाल लगाए. उसे पिंजरे में फंसाने के लिए 2 मुरगे भी डाल दिए, लेकिन रात 2 बजे तक तेंदुआ पकड़ में नहीं आ सका था. आर्मी अस्पताल में घुसे तेंदुए ने एक डाक्टर पर हमला कर दिया. शोर मचने पर तेंदुआ तकरीबन 8 फुट ऊंची दीवार फांद कर भाग गया. भागने के दौरान जाली लगने से तेंदुआ घायल हो गया. अस्पताल के स्पेशल हेल्थ अफसर जब सवेरे साढ़े 7 बजे अपना दफ्तर खोल रहे थे, तभी उन की नजर गैलरी के कोने में बैठे तेंदुए पर पड़ी. निगाह पड़ते ही तेंदुए ने उन पर छलांग लगा दी. उन्होंने झटके से नीचे बैठ कर हमले से खुद को बचा लिया और जोर से हल्ला मचा दिया.
इसी बीच परिसर में स्थित आशा सेंटर के मुलाजिम की निगाह तेंदुए पर पड़ी, तो उस नेशोर मचा कर महिला और बच्चा वार्ड के दरवाजे बंद करा दिए. तेंदुआ तकरीबन 20 मिनट तक इधरउधर भटकता रहा. इस बीच एक टूटी जाली से तेंदुए के पंजे में चोट लग गई. इस के बाद भी वह तकरीबन 8 फुट ऊंची दीवार आसानी से फांद गया. घटना की जानकारी मिलने पर पहुंचे सेना और वन विभाग के कर्मचारियों ने सर्च अभियान कर के आखिरकार तेंदुए को पकड़ ही लिया. इस प्रकार लंबे समय तक चली दहशत का अंत हुआ.
योजना
लोहिया गांवों के लिए योजनाएं
बस्ती : उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गांवों के विकास के लिए चलाई जा रही लोहिया ग्राम्य योजना के तहत छोटे गांवों के लिए अलग से कृषि योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन योजनाओं से जुड़े काम शुरू कर दिए गए हैं. यह जानकारी उप कृषि निदेशक डा. एसके दूबे द्वारा दी गई. एसके दूबे ने बताया कि साल 2016-17 में फसलवार बीजों को मुहैया कराया जाएगा और बीजों को बढ़ावा दिया जाएगा. आने वाले खरीफ सीजन में धान के 33 फीसदी बीज नई प्रजाति के होंगे. अन्य फसलों में 25 फीसदी नए बीज इस्तेमाल करने होंगे, जबकि खरीफ मौसम की तिलहन फसल में 40 फीसदी नए बीजों को इस्तेमाल करना जरूरी होगा. रबी मौसम की गेहूं की फसल में 40 फीसदी नए बीजों का इस्तेमाल करना होगा. इसी तरह रबी मौसम की दलहन में 24 फीसदी नए बीजों के इस्तेमाल के लिए किसानों को समझाया जाएगा.
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मामला
संतरा प्रोसेसिंग यूनिट की आस अधूरी
जयपुर : प्रदेशभर में औरेंज सिटी के रूप में पहचान बना चुके झालावाड़ जिले के किसानों को संतरा प्रोसेसिंग यूनिट की कमी खल रही है. जिले के किसानों को उम्मीद थी कि सेंटर आफ एक्सीलेंस संतरा की स्थापना के बाद सरकार प्रोसेसिंग यूनिट की सौगात भी जिले के किसानों को देगी, लेकिन किसानों की यह मांग हालिया बजट में भी अधूरी ही रह गई.
गौरतलब है कि साल 2006-07 के बाद से ही जिले में संतरे की खेती का रकबा सालदरसाल बढ़ा है. ऐसे में संतरे की खेती से जुड़े किसानों को अपनी उपज का सही दाम मिलता रहे, इस के लिए संतरा प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना किसानों की खास जरूरत बन गई है. संतरा उत्पादक किसानों ने बताया कि पहले इलाके में काले सोने यानी अफीम की ज्यादा खेती होती थी. जिले का भवानीमंडी इलाका अफीम की तस्करी के लिए पूरे देश में बदनाम था. लेकिन यह बदनामी अब संतरे की वजह से लोग भूलने लगे हैं. भवानीमंडी कसबा अब संतरे का सब से बड़ा केंद्र बन गया है. इस कसबे की फल मंडी में कोटा व बांरा जिलों के अलावा मध्य प्रदेश के कई इलाकों से भी संतरा बिकने के लिए आता है. किसानों और खेती के माहिरों की मेहनत के चलते जिले में उपजने वाला संतरा मशहूर नागपुरी संतरे को भी मात दे रहा है. ऐसे में संतरा प्रोसेसिंग यूनिट का यहां लगना बहुत जरूरी हो गया है. किसानों का कहना है कि संतरे की खेती मौसम और बरसात पर निर्भर है. जिस साल दोनों का साथ किसानों को मिल जाता है, उस साल पौधे फलों से लद जाते हैं. फलों में गुणवत्ता भी अच्छी आती है. इस स्थिति में संतरा खेत में ही बिक जाता है. लेकिन जिस साल बारिश कम होती है, उस साल किसानों को उत्पादन के साथसाथ भाव की मार भी झेलनी पड़ती है. हालात ऐसे हो जाते हैं कि किसानों को संतरे सड़क पर फेंकने पर मजबूर होना पड़ता है. ऐसी सूरत में सरकार संतरे की प्रोसेसिंग यूनिट इलाके में स्थापित करें तो किसानों को अच्छे भाव आसानी से मिल सकते हैं.
वापसी
पराग डेरी फिर दस्तक देगी घरों में
अलीगढ़ : सासनी में पिछले 5 सालों से बंद पड़ी पराग डेरी फिर से शुरू होने वाली है. पराग डेरी शुरू करने के लिए अलीगढ़ के नुमाइश ग्राउंड में बाकायदा भूमि पूजन किया गया. इस मौके पर प्रभारी मंत्री लघु सिंचाई, पशुधन और पंचायती राज मंत्री राज किशोर सिंह शामिल हुए.
सासनी में स्थित यह पराग डेरी साल 2010 में किसी खास वजह से बंद कर दी गई थी, जिस वजह से इलाके के हजारों लोगों का रोजगार छिन गया था.पराग डेरी के एक बार फिर से शुरू होने से हाथरस और अलीगढ़ के तमाम लोगों को रोजगार का फायदा मिलेगा.
मधुप सहाय, भानु प्रकाश राणा, अक्षय कुलश्रेष्ठ, बीरेंद्र बरियार, मदन कोथुनियां व बृहस्पति कुमार
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सवाल किसानों के
सवाल : दाल निकालने की मशीन के बारे में जानकारी दें?
-राजू चौबे, लखनऊ, उत्तर प्रदेशजवाब : बाजार में दाल निकालने की कई तरह की मशीनें मौजूद हैं. सीआईएई दाल मिल, पंतनगर दाल मिल व अकोला दाल मिल के अलावा तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय की अपनी दाल मिल है. इन मिलों में तकनीकें भी अलगअलग हैं और दाल की रिकवरी भी अलगअलग है. इन को जरूरत के मुताबिक खरीदा जा सकता है.
सवाल : मुझे अरवी काफी पसंद है, पर अकसर महंगी होने के बावजूद अरवी सख्त व खराब निकलती है. सही अरवी की क्या पहचान है?-सोनिया, करोलबाग, नई दिल्ली
जवाब : सानियाजी, बाजार में अरवी खरीदते समय यह ध्यान रखें कि अरवी के आगे वाले भाग (कंद) को ही सब्जी के लिए चुनना चाहिए, क्योंकि पीछे वाला भाग सख्त हो जाता है और आसानी से गलता नहीं है.
सवाल : हमारे घर में सहजन की फलियों को चिकन की टांग के अंदाज में चाव से खाया जाता है. क्या यह सब्जी फायदेमंद होती है.?
-सुमित सेठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश
जवाब : सहजन एक औषधीय पौधा है जिस में कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जोकि हड्डियों के लिए अच्छा होता है. लिहाजा आप लोग जी भर कर सहजन का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस की तमाम तरह की डिशें बनती हैं, जिन्हें चाव से खाया जाता है.
सवाल : यह तो सभी जानते हैं कि बादाम बेहद फायदेमंद मेवा है, इसे अगर 24 घंटे तक पानी में भिगो कर खाया जाए, तो क्या इस का असर गरम रहेगा? वैसे बादाम की तासीर गरम होती है या ठंडी?
-कोनू, अहमदाबाद, गुजरात
जवाब : बादाम ठंडे प्रदेशों का फल है, उस की तासीर गरम होती है. बादादम को पानी में 24 घंटे तक भिगोने के बाद अगर उस का छिलका उतार देते हैं और उस पानी को फेंक देते हैं, तो उस की तासीर कम गरम हो जाती है. बादाम ऐसा उपयोगी मेवा है, जो नुकसानदायक नहीं होता है. स्वस्थ लोग तो रोजाना 1 मुट्ठी भर कर बादाम खा सकते हैं. बादाम का हलवा भी लाजवाब होता है. मिल्कबादाम को भी ज्यादातर लोग बहुत चाव से पीते हैं.
सवाल : कभीकभी ऊंटनी के दूध का जिक्र सुनने को मिलता है. क्या ऊंटनी का दूध वाकई खानेपीने लायक होता है?
-उत्सुक, बांदरा, मुंबई
जवाब : ऊंटनी का दूध कैल्शियम व विटामिन बी1 से भरपूर होता है. इस दूध में 50 फीसदी से कम चर्बी होती है. ऊंटनी के दूध में प्रोबायोटिक जीवांश ज्यादा संख्या में होने की वजह से यह पाचनतंत्र के लिए बेहद फायदेमंद होता है. ऊंटनी का दूध कम ब्लेडप्रेशर के मरीज को दिया जाता है. ऊंटनी का दूध निकालने के बाद उसे फौरन इस्तेमाल करना चाहिए.
डा. अनंत कुमार, डा. प्रमोद कुमार मडके व डा. प्रभा शंकर तिवारी कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद
दिक्कत आप की दवा फार्म एन फूड की
खेतीकिसानी से जुड़ी अपनी समस्याएं हमें लिख कर भेजें. आप की समस्याओं का समाधान एक्सपर्ट करेंगे. समस्या के साथ अपना नाम व पता जरूर लिखें. आप हमें स्रूस् भी कर सकते हैं.
सवाल जवाब विभाग, फार्म एन फूड
ई-3, झंडेवालान एस्टेट, रानी झ्झांसी मार्ग, नई दिल्ली-55
नंबर : 08447177778