देश के 2 केन्द्रीय सामाजिक संगठनों यानी एम्प्लाइज प्रोविडेंट फण्ड ओर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) और एम्प्लाइज स्टेट इन्श्योरेन्स कार्पोरेशन (ईएसआईसी) से तकरीबन 10 करोड़ सदस्यों की सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी ले ली जाएगी.  केंद्र सरकार यह जिम्मेदारी राज्यों को दे देगी. वहीं, सरकार सामाजिक सुरक्षा कवरेज को पांच गुना बढ़ाकर 50 करोड़ वर्कर्स को कवर देगी.

सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रस्तावित लेबर कोड के तहत, श्रम मंत्रालय 50 करोड़ वर्कर्स तक पहुंच बनाने के लिए सामाजिक सुरक्षा की बाबत व्यापक बदलाव पर जोर दे रहा है. मंत्रालय का मानना है कि इतनी बड़ी तादाद में वर्कर्स को केवल एक केन्द्रीय संगठन के जरिए सेवा नहीं दी जा सकती.

केंद्र सरकार की सोच यह है कि हर राज्य में सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था की जाए, जिसके तहत राज्यों के सामाजिक सुरक्षा बोर्ड्स पेंशन, प्रोविडेंट फण्ड, मेडिकल इंश्योरेंस, मेटरनिटी, डिसेबिलिटी, डेथ आदि सभी तरह के मामलों में सामाजिक सुरक्षा के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की तरह काम करेंगे.

सरकार की योजना है कि इस सम्बन्ध में कुछ जिलों में पायलट प्रोजेक्ट चलाया जाएगा और उस की कामयाबी के मद्देनजर सामाजिक सुरक्षा कोड पर संसद से प्रस्तावित कानून पास हो जाने के बाद इस योजना को कुछ वर्षों में देशभर में लागू किया जाएगा.

कानून के तहत, राज्य अपने सामाजिक सुरक्षा बोर्ड बनाएंगे. ये बोर्ड स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय होंगे, जिन में राज्य सरकार, केंद्र सरकार, नियोक्ताओं (एम्प्लोयर्स) और कर्मचारी संघों के प्रतिनिधि होंगे.

बड़े स्तर पर इस बदलाव की योजना के मद्देनजर, सरकार ईपीएफओ को 50 करोड़ वर्कर्स के फण्ड मैनेजर में बदलने पर विचार कर रही है. चूंकि योजना के तहत ईपीएफओ के मुख्य काम राज्यों के बोर्ड के हवाले किये जायेंगे, ऐसे में ईपीएफओ फण्ड मैनेजर का काम करेगा जो इन्वेस्टमेंट के रिटर्न के हिसाब से प्रोविडेंट फण्ड डिपाजिट के लिए वार्षिक ब्याज दर का एलान भी करेगा.

योजना का मकसद ईपीएफओ के 6 करोड़ सदस्यों की सामाजिक सुरक्षा के कई दशकों के प्रबंधन अनुभव का लाभ उठाना है. सरकार की योजना के मुताबिक, आने वाले समय में ईपीएफओ सभी राज्यों के सामाजिक सुरक्षा फण्ड को मैनेज करने वाला केन्द्रीय बोर्ड बनेगा.

ईपीएफओ के फण्ड को अभी 5 फण्ड मेनेजर – एसबीआई, आईसीआईसीआई, सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप, रिलायंस कैपिटल एचएसबीसी एएमसी और यूटीआई एएमसी मैनज करते हैं जबकि ईपीएफओ का पूरा फोकस पूरी तरह सामाजिक सुरक्षा फण्ड के कलेक्शन और डिस्बर्समेंट पर है.

अभी जो मौजूदा पैटर्न है, उस के मुताबिक, प्रोविडेंट फण्ड का 50 फीसदी तक निवेश सरकारी सिक्योरिटीज जबकि 45 फीसदी तक निवेश डेट इंस्ट्रूमेंट्स और 15  फीसदी तक निवेश इक्विटी में किया जा सकता है.

नए सिस्टम में मेडिकल इंश्योरंस, मैटरनिटी बेनिफिट और डिसएबिलिटी कवर सहित सभी सामाजिक सुरक्षा कवर के लिए राज्यों में सिंगल विंडो सिस्टम बनेगा.

बहरहाल. सामाजिक सुरक्षा फण्ड के लिए इन्वेस्टमेंट पैटर्न का नोटिफिकेशन केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ही जारी करेगा.  ईपीएफओ के फण्ड मैनजेर यह सुनिश्चित करेंगे कि इन्वेस्टमेंट इस पैटर्न में हो कि इन्वेस्टमेंट पर ज्यादा से ज्यादा रिटर्न मिले. इन्वेस्टमेंट पर रेट औन रिटर्न का फैसला और उस का एलान ईपीएफओ करेगा. उसे लागू करने या ज्यादा रिटर्न की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी.

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