महज 15 साल की उम्र में वास्तविक जीवन का ओरो यानि निहाल वितला ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. निहाल का तेलेंगना के एक अस्पताल में प्रोजेरिया का इलाज चल रहा था. अपने आखिरी सांस के दौरान महज पंद्रह साल की उम्र में वह अस्सी साल का नजर आने लगा था. यही है प्रोजेरिया. गौरतलब है कि इसी निहाल वितला के जीवन और उसकी बीमारी को आधार बना कर ‘पा’ फिल्म बनायी गयी थी, जिसमें अमिताभ बच्चन ने प्रोजेरिया के मरीज ओरो की भूमिका निभाया था.

जन्मजात रूप से जिन (लैमिन ए/सी) में गड़बड़ी के होनेवाली इस बीमारी के प्रति जागरूकता और प्रचार अभियान का भारत में निहाल एक चेहरा बन चुके थे. हालांकि निहाल के पिता का कहना है कि निहाल के चले जाने के बावजूद उनका और उनके परिवार का प्रोजेरिया के लिए प्रचार अभियान जारी रहेगा.

दुनिया में पहली बार इस बीमारी का पहला मामला जौनाथल हचिनसन द्वारा 1886 में खोजा गया था. बाद में 1897 में हेस्टिंग गिलफोर्ड ने इसके लक्ष्ण को दुनिया को बताया. इसीलिए प्रोजेरिया का वैज्ञानिक नाम हचिनसन गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम (संक्षेप में एचजीपीएस) कहलाता है. भारत में कोलकाता इंस्टीट्यूट औफ चाइल्ड हेल्थ, एसबी देवी चैरिटी होम और स्वीट्जरलैंड के युनिवर्सिटी चिल्ड्रेन’स होस्पिटल बासेल सांझे तौर पर रिसर्च करता है. इनके द्वारा किए गए रिसर्च से प्रोजेरिया के जिम्मेदार जिन पता चल चुका है, यह जिन लैमिन ए/सी है. यह जिन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को भी प्रभावित करता है.

एसबी देवी चैरिटी होम के डॉ. शेखर चटर्जी का कहना है कि पूरे देश में अब तक कुल 60 प्रोजेरिया के मरीजों की पहचान हो चुकी है. वहीं पूरी ‍दुनिया में इस बीमारी के कुल 124 मरीज हैं. जाहिर है अपने आपमें यह विरल किस्म की बीमारियों में भी विरलतम है. कहते हैं 80 लाख बच्चों में से एक इसके मरीज पाए जाते हैं. आमतौर पर इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की औसत उम्र 13-15 साल तक ही होती है. हालांकि कुछ मामलों में 20-22 साल भी हो सकती है.

ज्यादातर मामलों में  ऊपरी लक्ष्णों में पूरे शरीर की तुलना में सिर बड़ा होता है, सिर के बाल लगभग न के बरारबर होते हैं, शुरू में त्वचा झुर्रीदार और खुरदुरापन लिये होती है और बाद में त्वचा सख्त होने लगती है. आंखें बड़ी-बड़ी और बाहर की ओर निकल आती है, पलके और भौंहें तक झर जाते हैं. बहुत छोटी-सी उम्र ये सभी लक्ष्ण दिखाई देने लगते हैं. कुल मिला कर बचपन में ही बूढ़ापे का आगाज होने लगता है. लेकिन अंदरुनी तौर पर जो बदलाव आते हैं, उनमें प्रमुख नसों में चर्बी जमा होने लगती है, जिसके कारण आमतौर पर दिल का दौरा पड़ने या स्ट्रोक होने से इनकी मौत होती है. जलपाईगुड़ी के आनंद भक्त भी प्रोजेरिया का मरीज है. जन्म से समय वह सामान्य बच्चा था, लेकिन तीन साल की उम्र में चेचक निकलने के बाद उसमें अस्वाभाविक बदलाव आने शुरू होते गए. उम्र बढ़ने के साथ उसकी लंबाई नहीं बढ़ी, सिर कुछ ज्यादा ही बड़ा होने लगा. फिलहाल इसका इलाज उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में चल रहा है. अमेरिका की प्रोजेरिया रिसर्च फाउंडेशन भारत में पीडि़त बच्चों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बना रही है. यह संस्था भारत में प्रोजेरिया के लिए काम करनेवाली संस्थाओं के साथ मिल कर काम करेगी.

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