`वैसे तो आजकल ‘बर्थ डे’, ‘मदर्स डे’, ‘फादर्स डे’, ‘रिब्बन डे’, ‘रोज डे’, ‘वैलेंटाइन डे’ आदि की भरमार है पर इन में सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है ‘वैलेंटाइन डे’ को. क्यों? पता नहीं, पर एक बुखार सा चढ़ जाता है. सारा माहौल गुलाबी हो जाता है, प्यारमोहब्बत की अनदेखी रोमांचक तरंगें तनमन को छू कर उत्तेजित कर देती हैं. महीना भर पहले जो हर किसी की जबान पर यह एक बार चढ़ जाता है तो फिर कई दिनों तक उतरने का नाम ही नहीं लेता. मुझे सुबह की पहली चाय पीते हुए अखबार पढ़ने की आदत है. आज मेरे सामने अखबार तो है पर चाय नहीं. देर तक इंतजार करता रहा पर चाय नहीं आई. दिमाग में एक भी शब्द नहीं जा रहा था. गरमगरम चाय के बिना अखबार की गरमगरम खबरें भी बिलकुल भावशून्य लगने लगीं. जब दिमाग ने बिलकुल ही साथ देने से मना कर दिया तो मैं ने अखबार वहीं पटक दिया और किचन की ओर चला.

देखा, चूल्हा ठंडा पड़ा है. माथा ठनका, कहीं पत्नी बीमार तो नहीं. मैं शयनकक्ष की ओर भागा. मैं इसलिए चिंतित नहीं था कि पत्नी बीमार होगी बल्कि इसलिए परेशान था कि सच में अगर श्रीमतीजी की तबीयत नासाज हो तो उन का हालचाल न पूछने के कारण उन के दिमाग के साथ यह नाचीज भी आउट हो जाएगा. कहीं होतेहोते बात तलाक तक न पहुंच जाए. अजी, नहीं, आप फिर गलतफहमी में हैं. तलाक से डरता कौन है? तलाक मिल जाए तो अपनी तो चांदी ही चांदी हो जाएगी. मगर तलाक के साथ मुझे एक ऐसी गवर्नेस भी मिल जाए जो हर तरह से मेरे घर को संभाल सके. यानी सुबह मुझे चाय देने से ले कर, दफ्तर जाते वक्त खाना, कपड़ा, मोजे देना, बच्चों की देखभाल करना, उन की सेहत, पढ़ाई- लिखाई आदि पर ध्यान रखना, फिर घर की साफसफाई आदि…चौबीस घंटे काम करने वाली (बिना खर्चे के), एक मशीन या रोबोट मिल जाए. फिर मैं तो क्या दुनिया में कोई भी किसी का मोहताज न होगा. मैं ने शयनकक्ष में जा कर क्या देखा कि मेरी पत्नी तो सच में ही बिस्तर में पड़ी है. मैं ने घबरा कर पूछा, ‘‘अरे, यह तुम्हें क्या हो गया? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

पत्नी ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे क्या हुआ है? मैं तो अच्छीभली हूं.’’ ‘‘फिर मुझे चाय…’’ उस का तमतमाया चेहरा देख कर मैं चुप हो गया.

‘‘क्यों? क्या मैं कोई नौकरानी हूं कि सुबह उठ कर सब की जरूरतें पूरी करती रहूं. आज मेरा चाय बनाने का मूड नहीं है.’’ मैं भौचक्का रह गया. यह क्या कह रही है? मैं कुछ समझ नहीं पाया. इतने में बबलू आ गया.

‘‘मम्मी, मेरा टिफिन बाक्स तैयार है? तुम ने वादा किया था, याद है कि आज मेरे टिफिन में केक रखोगी?’’ ‘‘मैं ने कुछ नहीं रखा.’’

‘‘क्यों, मम्मी? आज सभी बच्चे अपनेअपने घर से अच्छीअच्छी चीजें लाएंगे. मैं ने भी उन को प्रौमिस किया था कि मैं केक लाऊंगा.’’ मैं बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘अरे, बबलू, आज क्या खास बात है? आप की बर्थ डे है क्या?’’

बबलू ने अपना माथा ठोक लिया. ‘‘पापा आप भी न…अभी पिछले महीने ही तो मनाया था मेरा बर्थ डे.’’

‘‘यू आर राइट,’’ मैं खिसियाते हुए बोला. कैसे भूल गया मैं बबलू का बर्थ डे जबकि मेरी जेब में उस दिन इतना बड़ा होल हो गया था कि टूटे मटके के पानी की तरह सारा पैसा बह गया था. ‘‘फिर आज क्या बात है जो आप सारे बच्चे इतने खुश हो?’’

बबलू ने फिर माथा ठोक लिया. यह आदत उसे अपनी मम्मी से विरासत में मिली थी. दोनों मांबेटे बारबार मेरी नालायकी पर इसी तरह माथा ठोकते हैं. ‘‘पापा, आप को इतना भी नहीं मालूम कि आज सारी दुनिया ‘वैलेंटाइन डे’ मनाती है. जानते हैं दुनिया में इस दिन की कितनी इंपोर्टेंस है? आज के दिन लोग अपने बिलव्ड को अच्छा सा गिफ्ट देते हैं.’’

चौथी कक्षा में पढ़ रहे बेटे के सामान्य ज्ञान को देखसुन कर मेरा मुंह खुला का खुला और आंखें फटी की फटी रह गईं. वाह, क्या बात है. फिर उस की आवाज आई, ‘‘पापा, आप ने मम्मी को क्या गिफ्ट दिया?’’

मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई. तो यह राज है श्रीमती के मुंह लपेट कर पडे़ रहने का. मैं यह सोच कर अंदर से परेशान हो रहा था कि अब मुझे इस कहर से कौन बचाएगा? मैं ने अपने बेटे के बहाने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटे, वैलेंटाइन का अर्थ भी जानते हो? वैलेंटाइन किसी संत का नाम है जिस ने हमारे प्रसिद्ध संत कबीर की तरह दुनिया को पे्रम का संदेश दिया था. यह पे्रम या प्यार किसी के लिए भी हो सकता है. मातापिता, भाईबहन, गुरु, दोस्त आदि. मीरा कृष्ण की दीवानी थी, राधा कृष्ण की पे्ररणा. यह सब प्यार नहीं तो और क्या है? आज का विकृत रूप प्यार…खैर, जाने दो, तुम नहीं समझोगे.’’ ‘‘क्या अंकल, बबलू क्या नहीं समझेगा? आप ने जो कहा वह मैं समझ गया. बबलू ने ठीक ही तो कहा था, आप ने आंटी को क्या तोहफा दिया?’’

‘‘हूं,’’ सांप की फुफकार सुनाई दी. मैं ने पलट कर देखा. मेरी पत्नी मुझे घूर रही थी. मैं ने उधर ध्यान न देते हुए टिंकू से पूछा, ‘‘तुम कब आए, टिंकू?’’ ‘‘अभीअभी, अंकल. आप बात को टाल रहे हैं. खैर, आंटी से ही पूछ लेता हूं. आंटी, अंकल ने आप को क्या तोहफा दिया? कुछ नहीं न?’’ टिंकू को जैसे अपनी आंटी को उकसाने में मजा आ रहा था.

‘‘हुंह, ये क्या देंगे मुझे तोहफा, कंजूस मक्खीचूस. जेब से पैसे निकालने में नानी मरती है,’’ उस ने मुंह बिचकाया. ‘‘जानेमन, मैं तुम्हें क्या तोहफा दूंगा. हम तो जनमों के साथी हैं जिन्हें ऐसी औपचारिकताओं की जरूरत नहीं पड़ती.’’

‘‘रहने दो, ज्यादा मत बनो. अगले जनम में भी इसी कंजूस पति को झेलना पडे़गा. इस से तो मैं कुंआरी भली,’’ मेरी पत्नी बोल पड़ी. बच्चों के सामने कबाड़ा हो गया न. ‘‘सुनो भी यार, मेरा सबकुछ तुम्हारा ही तो है. अपनी सारी तनख्वाह महीने की पहली तारीख को तुम्हें ला कर दे देता हूं और घर तो तुम्हीं चलाती हो. मेरे पास दोस्तों को चाय पिलाने के भी पैसे नहीं बचते. मैं तुम्हें कोई ऐसावैसा तोहफा नहीं दे सकता न? जिस दिन मैं इतना अमीर हो जाऊं कि दुनिया का सब से खूबसूरत और अनमोल तोहफा तुम्हें दे सकूं, उसी दिन मैं तुम्हें तोहफा दूंगा.’’

मैं ने अपने बचाव में पासा फेंका तो वह सही निशाने पर जा कर लगा. श्रीमतीजी के चेहरे पर गुस्से का स्थान शरम ने ले लिया. छूटते ही मैं ने एक और तीर छोड़ा, ‘‘दूसरी बात यह है डार्लिंग, विदेशों में लड़की और लड़के के बीच की केमिस्ट्री कब अपना इक्वेलिब्रियम खो दे कुछ ठिकाना नहीं रहता. इस साल पत्नी की सीट पर कोई है पर अगले साल कौन होगा कुछ पता नहीं. इसलिए उन्होंने एक भी साल का पड़ाव पार कर लिया तो अपने को बहुत भाग्यशाली मानते हैं. और इतना भी झेलने के लिए एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं,’’ मेरे इतने लंबे भाषण का उस पर कुछ तो असर होना चाहिए. ‘‘अंकल, मैं एक और उदाहरण दूं?’’ टिंकू ने बड़े उत्साह से पूछा.

‘‘मैं मना कर दूं तो रुक जाओगे?’’ मैं ने बड़़ी आशा से पूछा. ‘‘न, रुकूंगा तो नहीं. आप की इज्जत रखने के लिए यों ही पूछ लिया था. चूंकि टिंकू की मम्मी टीचर हैं इसीलिए बेटे को भी बातबात पर उदाहरण देने की आदत है.’’

‘‘सुनिए, अंकल, विदेशी अपने मांबाप को ‘ओल्ड एज होम’ में रखते हैं और ‘मदर्स डे’ या ‘फादर्स डे’ के दिन फूलों का गुलदस्ता दे कर उन्हें विश करते हैं.’’ टिंकू की बात मुझे बहुत जंची.

‘‘चल, जा, अपनी पढ़ाई कर. छोटा मुंह बड़ी बात,’’ श्रीमतीजी ने उसे डांट दिया. शायद उन्हें याद नहीं था कि टिंकू मेरे बेटे से 4 साल बड़ा था. श्रीमतीजी का यह तेवर शायद इसलिए बना कि वह भी अपने सासससुर को अपने घर में फटकने नहीं देती थीं. दोपहर के करीब 2 बजे सुमित का फोन आया :

‘‘यार, घर में महाभारत छिड़ा हुआ है. खाना तो क्या चाय तक नसीब नहीं हुई. बड़ी भूख लगी है.’’ ‘‘यहां भी वही हाल है,’’ मैं ने रोंआसे स्वर में कहा.

‘‘तू जल्दी से घर से बाहर आ जा,’’ वह मेरा बचपन का दोस्त था और इत्तफाक से हमें एक ही विभाग में नौकरी भी मिल गई थी. पहले हमारे मकान बहुत दूर थे पर बाद में हम ने पासपास में मकान किराए पर ले लिए. बाहर सड़क पर वह मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘क्या बात है?’’ मैं जानता था पर यों ही पूछ लिया जो आम बात है. ‘‘चल, चलतेचलते बात करते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘सब से पहले किसी होटल में चलते हैं,’’ सुमित बोला तो मैं जान गया कि वह अधिक देर तक भूखा नहीं रह सकता. खाना खाने के बाद हमारी जान में जान आई. ‘‘हम लोगों ने तो खा लिया पर बाकी बीवीबच्चों का क्या होगा?’’ मैं ने सुमित से पूछा.

‘‘मेरे बच्चों ने तो कुछ बना कर खा लिया है. उन्होंने उसे भी खिला दिया होगा. हां, तू बबलू के लिए कुछ ले ले. वह बेचारा छोटा है.’’ मुझे याद आया कि बेटे को मैगी बना कर खिला दी गई थी. फिर भी मन न माना तो मैं ने दोनों के लिए खाना पैक करवा दिया.

अब सुमित ने भी कुछ खाने की चीजें बंधवा लीं. पेट में आग ठंडी पड़ी तो उस ने कहा, ‘‘अरे, यार, कुछ खरीदना ही पडे़गा वरना मेरी तो खैर नहीं. बच्चे भी मेरे ही पीछे पड़ गए हैं. उन सब ने मुझे जंगली और गंवार करार दे दिया है़.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो. सुबह माधव का बेटा टिंकू आया था. वह जले पर और नमक छिड़क गया.’’ ‘‘तो ऐसा करते हैं कि पहले यह खाना घर में दे कर हम दोनों बाजार का एक चक्कर लगा आते हैं. देखते हैं कि बाजार में औरतों के लिए क्याक्या चीजें मिलती हैं.’’

‘‘मगर हम खरीदेंगे क्या. मैं ने तो जिंदगी में कभी औरतों का कोई सामान नहीं खरीदा,’’ मैं ने दीनहीन बन कर कहा. ‘‘तो क्या हुआ? अब सीखेंगे,’’ सुमित हेकड़ी बघार कर बोला, ‘‘हम हमेशा उन्हें अपना पर्स सौंप देते हैं. इस से 2 नुकसान होते हैं. पहला हमारा बजट बिगड़ता है. दूसरा नुकसान यह है कि हमारे ही पैसों से चीजें खरीद कर हम को धत्ता बताती हैं.’’

‘‘मगर मेरे पास तो 500-600 से अधिक रुपए नहीं हैं. सारे पैसे वह पहले सप्ताह में ही उड़ा देती है,’’ मैं ने मायूसी से कहा. ‘‘वही हाल मेरा भी है और उस पर पूरा महीना आगे पड़ा है. खैर, फिलहाल घर जा कर पैसे ले कर आओ. बाद की बाद में सोचते हैं.’’

दोनों अपनेअपने घरों में खाना रख कर पैसे ले कर वापस आए.

हमारे पास अब भी इतने पैसे नहीं थे कि हम सोनेचांदी की कोई चीज खरीद सकें. सो इधरउधर देखते हुए आगे बढे़ जा रहे थे. मैं ने कहा ‘‘चलो, कोई अच्छी सी साड़ी ले लेते हैं,’’ इस पर सुमित बोला, ‘‘नहीं, यार, साड़ी तो उसे तोहफा भी नहीं लगेगी. उसे ऐसे रख लेगी जैसे सब्जियों का थैला रख लिया हो.’’

हम ने तरहतरह के तोहफों के बारे में सोचा मगर कुछ भी नहीं जंचा. कुछ देर बाद मुझे लगा कि मैं अकेला चला जा रहा हूं. मेरे साथ सुमित नहीं है. चारों ओर देखा मगर वह कहीं नजर न आया. मैं पलट कर वापस चल पड़ा. थोड़ी दूर चलने के बाद वह नजर आया. वह भी शायद मुझे ही ढूंढ़ रहा था. ‘‘कहां चला गया था यार? कब से तुझे ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने डांटा.

‘‘वाह, उलटा चोर कोतवाल को डांटे. एक तो मुझे छोड़ कर खुद आगे निकल गया, ऊपर से अब मुझे ही डांट रहा है.’’ ‘‘यार, मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. यहीं सामने मैं ने एक आर्टीफिशियल ज्वेलरी की दुकान देखी. 1 ग्राम सोने की कोटिंग वाली. हम कह देंगे असली है.’’

‘‘पागल हो गया है? सुबह उठ कर औरतें इन्हीं गहनों और साडि़यों की दुकानों पर मंडराती रहती हैं. झट पहचान जाएंगी. उन के सामान्य ज्ञान का इतना कम अंदाजा मत लगा,’’ डांटने की बारी सुमित की थी, ‘‘पकडे़ गए तो बीवी से ऐसी धुनाई होगी कि जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाओगे,’’ उस ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘शाम तक हम दोनों यों ही भटकते रहे. कुछ भी खरीद नहीं पाए. हार कर घर लौटने ही वाले थे कि मेरी नजर एक इत्र की दुकान पर पड़ी. ‘‘यार, सुमित, चल, परफ्यूम ही खरीद लेते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मेरे वाली तो कभी परफ्यूम लगाती ही नहीं.’’ ‘‘मेरे वाली भी कहां खरीदती है? मेरे खयाल से खरीदे हुए परफ्यूम के बजाय तोहफे में मिले हुए को इस्तेमाल करना औरतें ज्यादा पसंद करती हैं, ‘‘मैं ने ज्ञान बघारा.

‘‘ऐसा क्यों?’’ सुमित ने भोलेपन से पूछा. ‘‘क्योंकि इन की कीमत उन की नजर में ज्यादा होती है और किसी को दिखती भी नहीं.’’

‘‘वाह यार, तू तो गुरु हो गया है. मेरी बीवी परफ्यूम का प्रयोग तब करती है जब उसे किसी अच्छे फंक्शन में जाना हो और जाने से पहले मुझ पर भी 2-4 छींटे मार देती है.’’ हम दोनों परफ्यूम की दुकान में घुस गए. वहां विविध रंगों और आकृतियों की छोटीबड़ी सुदर कांच की बोतलें इस प्रकार सजी हुई थीं कि जिस ने जिंदगी में कभी परफ्यूम का प्रयोग न किया हो उस का मन भी उन्हें खरीदने को बेचैन हो उठे.

हम दोनों थोड़ी देर तक दुकान में मोलभाव कर यह समझ गए कि 150-200 रुपए में बढि़या परफ्यूम मिल जाता है. हम ने जांचपरख कर एकएक परफ्यूम की बोतल खरीद ली. बाहर निकलने के बाद सुमित के दिमाग में एक संदेह उठा. ‘‘यार, इन लोगों को तो कीमती तोहफे चाहिए. भला ये 200 रुपए वाली छोटी सी शीशी उन की नजर में क्या चढ़ेगी. मुझे तो लगता है इसे हमारे ही सिर पर दे मारेंगी.’’

‘‘तू फिकर क्यों करता है? मैं ने उस का भी उपाय सोच लिया है. कह देंगे हमारे दफ्तर का कोई दोस्त दुबई से लौट कर आया है या हम ने उसी से यह परफ्यूम 1,500 रुपए दे कर खरीदा है.’’ ‘‘अरे वाह, तेरा दिमाग तो उपायों से भरा पड़ा है. इन लोगों को तो यह भी पता नहीं होगा कि विदेशी परफ्यूम क्या होता है.’’

‘‘हां, मगर आज इसे कहीं छिपा कर रखना होगा. कल शाम को आफिस से आने के बाद ही तो दे पाएंगे.’’ यही तय हुआ. हम ने अच्छे से गिफ्ट पैक करा कर उसे अपनेअपने स्कूटर की डिक्की में छिपा दिया. हम खुशीखुशी घर वापस लौटे. पत्नी ने चुपचाप खाना लगा दिया. हम खाने के कार्यक्रम के बाद चुपचाप मुंह ढांप कर पड़ गए.

अगली शाम कुछ समय यहांवहां बिता कर शाम ढलतेढलते घर पहुंचे. सुमित सीधे अपने घर चला गया. मेरा घर थोड़ा आगे था. गाड़ी से उतर कर मैं ने देखा कि दरवाजे पर ताला लटक रहा है. सारे खिड़कीदरवाजे बंद. मैं सिर पकड़ कर वहीं सीढि़यों पर बैठ गया. हो गई हमारी खटिया खड़ी. हमारी धर्मपत्नी हम से बहुत नाराज है. हमें निकम्मा करार देते हुए घर छोड़ कर मायके चली गई. हम गलीमहल्ले में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.

हमारी आधी घरवाली, जिस की हम चुपकेचुपके आराधना करते हैं (आजकल पुरानी वस्तु दे कर नई लेने की बहुत सी स्कीमें चल रही हैं. काश, ऐसी कोई स्कीम होती) उस की नजरों में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी? सुमित हमेशा कहता है कि यार तू बहुत लकी है जो तुझे खूबसूरत साली मिली. मुझे तुझ से जलन होती है, क्योंकि मेरी कोई साली नहीं है. तू अपनी साली को हमेशा अच्छे से पटा कर रख क्योंकि बीवी अगर केक है तो साली क्रीम है. तू तो जानता है कि लोग केक से ज्यादा क्रीम के ही दीवाने होते हैं. हम वहां अंधेरे में बैठे बिसूरते रहे कि हमें किसी की आवाज सुनाई दी. हम ने आंखें खोलीं तो पाया कि सामने सुमित का बेटा समीर खड़ा था. उस ने मुझे घूरते हुए दोबारा आवाज दी, ‘‘अंकल, घर चलिए, पापा बुला रहे हैं.’’

इस से पहले कि मैं उस से कुछ पूछता वह वहां से हवा हो गया. मैं 2 मिनट तक यों ही बैठा रहा, फिर धीरे से उठा और अपने पांव को घसीटते हुए सुमित के घर पहुंचा. दरवाजे पर ही मुझे सुमित की पत्नी ने दबोच लिया, ‘‘क्यों भाई साहब, कहां रह गए थे? आप लोगों को समय पर घर की याद भी नहीं आती.’’ ‘‘नहीं भाभी, ऐसी बात नहीं है…’’

‘‘बसबस, कहानियां मत सुनाओ, चलो अंदर.’’ मैं सिर झुकाए भाभी के पीछेपीछे अंदर चला आया.

भाभी सोफे की ओर बैठने का संकेत कर के अंदर चली गईं. शायद आवाज सुन कर सुमित बाहर निकल आया और उस के साथ में भाभी भी. हाथ में टे्र पकड़ रखी थी. उन्होंने नमकीन की प्लेट मेरी ओर बढ़ा दी.

‘‘भाभी, आप जानती हैं…’’ मैं अभी इतना ही बोल पाया था कि हाथ की प्लेट मेरी ओर सरका कर वह फिर अंदर चली गईं और जब वापस आईं तो उन के पीछेपीछे बबलू भी था. वह वीडियो गेम खेल रहा था. मैं अपनी जगह से उठ कर उस की ओर जा ही रहा था कि द्वार पर मेरी पत्नी दिखी. उस के हाथ में चाय की टे्र थी.

‘‘चलिए, आप दोनों जल्दी से हाथमुंह धो लीजिए. चाय ठंडी हो रही है. फिर बैठ कर बातें करते हैं,’’ भाभी ने हुक्म दिया.

मैं और सुमित आज्ञाकारी बच्चों की तरह चुपचाप हाथमुंह धो कर फटाफट आ गए. चाय पीतेपीते ज्यादा बातें दोनों महिलाएं ही कर रही थीं, बच्चों और टीवी का शोर अलग चल रहा था. 9 बज रहे थे. ‘‘अच्छा, अब चलते हैं,’’ मैं ने उठने का उपक्रम करते हुए कहा.

‘‘कहां जाते हैं? बैठिए भी. लगता है भाई साहब को भूख लगी है.’’ वह उठीं और अंदर चली गईं. उन के पीछेपीछे मेरी पत्नी भी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. अंदर से भाभी की आवाज आई तो सुमित अंदर चला गया.

सुमित कमरे से बाहर आते हुए बोला, ‘‘चल यार.’’ उस ने केवल इतना कहा और मैं उस के पीछेपीछे बाहर निकल आया और गहरी सांस ली.

‘‘सुमित, बात क्या है? मुझे तो डर लग रहा है.’’ ‘‘मुझे क्या पता यार. मैं तो अभी- अभी तेरे साथ ही घर लौटा हूं.’’

‘‘मगर हम जा कहां रहे हैं?’’ ‘‘तेरी भाभी ने पान मंगाए हैं.’’

पान ले कर जब हम घर पहुंचे तो देखा कि खाने की मेज तरहतरह के पकवानों से भरी थी. हमारे सिर चकराने लगे…जैसे हम कोई मायावी दुनिया में पहुंच गए हों. ‘‘चलिए, खाना लग गया है, बस, आप लोगों का इंतजार था.’’

आज्ञाकारी बच्चों की तरह हम ने उस आदेश का पालन किया. खाना परोसने से पहले भाभी ने एक फरमान जारी किया, ‘‘चलिए, निकालिए हमारा गिफ्ट. फिर हम खाना शुरू करते हैं. बच्चे भी भूखे हैं.’’

हम ने चुपके से अपनाअपना गिफ्ट उन दोनों के हाथों में थमा दिया. बच्चों ने जोरजोर से तालियां पीटीं और खाने की मेज पर टूट पडे़. दोनों ने मिल कर तीनों बच्चों के लिए प्लेटें लगा दीं. जब हम भी खाने बैठ गए और लगने लगा कि वातावरण कुछ सामान्य हो चला है तब मैं ने हिम्मत कर के पूछ लिया, ‘‘भाभी, एक बात पूछूं?’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप क्या पूछने वाले हैं. अब इन लोगों को ज्यादा सस्पेंस में रखना ठीक नहीं है. क्यों? बता दें न?’’ उन्होंने मेरी पत्नी की ओर देखा. उस ने कहा, ‘‘मैं बताती हूं. जबजब हम सुनते थे कि कोई पति अपनी पत्नी को किसी न किसी अवसर पर गिफ्ट देता है तो हमारे दिलों में जलन होती थी, क्योंकि हमें कभी कुछ नहीं मिलता. हम ऐसे अवसरों पर एकदूसरे के सामने कुढ़ लेती थीं और कर ही क्या सकती थीं, लेकिन कल हम दोनों ने तय कर लिया कि तुम दोनों को सबक सिखाना चाहिए. इसलिए हम ने खाना नहीं बनाया. यह हमारा पहला कदम था. ‘‘चूंकि यह बात पहले से तय थी इसलिए हम ने ज्यादा खाना बना कर रख दिया था और वही अगले दिन बच्चों को खिला दिया. हम ने अपने लिए भी बनाया था मगर विश्वास करो, हमारा खाने का मन नहीं हुआ. हां, इतना अवश्य मानती हूं कि मैं ने डब्बों में रखे सूखे नाश्ते खा कर, चाय पी कर काम चलाया, भूख जो नहीं सह पा रही थी.’’

भाभी ने अपनी तरफ से जोड़ा, ‘‘मैं ने भी, लेकिन जब हम ने देखा कि तुम दोनों खाने का समय निकल जाने के बाद भी हमें बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गए तो हम ने सोचा कि तुम लोग खापी कर आ जाओगे. मगर तुम लोगों की यह बात हमारे दिलों को छू गई कि हमारे ऐसे कठोर व्यवहार के बावजूद तुम ने हमारे लिए खाना पैक करवाया. हमारे दिलों में ग्लानि हुई. हमारा क्रोध शांत हुआ तो दिमाग विचारशील हो गया. फिर पिंकू ने बताया कि तुम लोग किसी गिफ्ट के बारे में बात कर रहे थे, वह भी चौक पर खडे़ हो कर.’’ ‘‘पिंकू कहां था?’’ सुमित ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘वह वहीं से गुजर रहा था. अपने दोस्त के घर कोई सीडी देखने जा रहा था,’’ भाभी ने कहना जारी रखा, ‘‘मैं ने देखा कि तुम अंदर से पैसे ले कर कहीं चले गए. आज जब छोटू भाई ने फोन किया कि तुम ने 2 गिफ्ट पैक कराए और बचा पैसा वापस लेना भूल गए तो सारी बात हमारी समझ में आ गई.’’ ‘‘मगर वह दुकान वाला तुम्हें कैसे जानता है?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘याद नहीं हम ने किशोर भाई की बेटी की शादी के लिए वहीं से गिफ्ट लिया था. उस समय उस के पास गिफ्ट रैपर खत्म हो गया था, तब उस ने बाहर से तुरंत रैपर मंगवा कर पैक कर के दिया था. तुम ने उस की इस तत्परता की तारीफ की थी. यही नहीं जब भी कोई तोहफा लेने का अवसर आता है, हम दोनों उसी दुकान पर जाते हैं. इसलिए दुकानदार ऐसे ग्राहकों का बहुत खयाल रखता है.’’ ‘‘अच्छा, तो हमें भी अपनी गलती को मान लेना चाहिए, क्यों यार?’’ सुमित की आंखों की भाषा को मैं ने पढ़ लिया और स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया.

सुमित ने पहले अपना गला साफ किया फिर गिलास उठा कर पूरा पानी पी गया. इस के बाद हिम्मत जुटा कर उस ने सारी घटना उन दोनों के सामने बयां कर दी. ‘‘यह विदेशी परफ्यूम नहीं है. सोलह आने देशी, वह भी अपने ही गोलबाजार से खरीदा हुआ है. हमें माफ कर दो. वादा करते हैं कि अगली बार कोशिश करेंगे कि कुछ अच्छा सा तोहफा आप लोगों को दे सकें…वह भी आप के बिना मांगे,’’ हम दोनों ने सिर झुका लिया.

मैं ने सुना, मेरी बीवी कह रही थी, ‘‘नहींनहीं, आप ऐसा न कहिए. हम पहले ही अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं. आप लोग हमें माफ कर दीजिए. कल इन्होंने मजाक में ही सही, बिलकुल ठीक कहा था कि जहां रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती वहां तोहफे दे कर या शारीरिक हावभावों के प्रदर्शन द्वारा बारबार रिश्तों को साबित करना पड़ता है. हमारे यहां ऐसे दिखावे की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि ये रिश्ते दिलों के हैं और इन की जड़ें मजबूत हैं.’’ वातावरण को गंभीर होता देख उसे फिर से हलका बनाने के उद्देश्य से मैं ने कहा, ‘‘सोच लो. अभी भी अपना वक्तव्य बदल सकती हो. जनमजनम के चक्कर में न पड़ो वरना इसी कंजूस मक्खीचूस को झेलना पडे़गा. इस से तुम कुंआरी भली,’’ मैं ने पत्नी को छेड़ते हुए कहा.

सब ठठा कर हंस पडे़. उसे भी मजबूर हो कर हंसना पड़ा.

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