फिल्म ‘‘थ्री इडियट्स’’ में एक छोटा सा कैमियो करके अपने करियर की शुरुआत करने वाले अली फजल ने जूडी डेंच के संग फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ में मेन लीड करके अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में अपनी एक मजबूत पकड़ बना ली है. इसी के चलते उन्हे ‘आस्कर अवार्ड’’ यानी कि अकादमी का सदस्य भी चुना गया है. फिलहाल वह बालीवुड में अपनी फिल्म ‘‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’’ को लेकर चर्चा में हैं. आनंद एल राय निर्मित और मुदस्सर अजीज निर्देशित यह फिल्म ‘हैप्पी भाग जाएगी’ की सिक्वअल फिल्म है.

फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ को लेकर अब क्या कहना चाहेंगे?

इस फिल्म को करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. हालीवुड के अति मशहूर निर्देशक के साथ काम करने का अवसर मिला. इस तरह की फिल्म का हिस्सा बनना किसी भी कलाकार के लिए गौरव की बात होती है. अब हालात यह हैं कि एक तरफ मैं बालीवुड में व्यस्त हूं, तो दूसरी तरफ अमेरिका में काम कर रहा हूं. अक्टूबर या नवंबर माह में हालीवुड की एक फिल्म की शूटिंग शुरू करूंगा. बालीवुड में किसी भी कलाकार को अब तक हालीवुड में इतना बड़ा काम करने का मौका नहीं मिला है. अब तक हालीवुड में किसी भी भारतीय कलाकार ने लीड रोल नहीं किया है. मैंने पहली बार ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ में लीड किरदार निभाया है.

आप पहली बार आस्कर फिल्म फेस्टिवल में ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ की वजह से गए थे. क्या अनुभव रहे?

हमारी यह फिल्म आस्कर के अलावा ग्लोब सहित कई फिल्म समारोहों में गयी थी. इन फेस्टिवल का हिस्सा बनने का मेरा अनुभव ‘वंस इन ए लाइफ टाइम’ रहा. हमारी फिल्म कास्ट्यूम और मेकअप के लिए नामीनेटेड थी. अभी मुझे इसी फिल्म के लिए रशिया के सोची फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है. 25 मिलियन की लागत से बनी इस फिल्म ने 100 मिलियन से ज्यादा कमा लिया है.

आस्कर में हमारी फिल्म कास्ट्यूम व मेकअप के लिए नामीनेटेड थी. पर हम सभी टीम के लोगों ने वहां जाकर अपनी फिल्म को प्रमोट किया. हमें विश्व के कई दिग्गज कलाकारों व निर्देशकों के साथ बात करने का मौका मिला. गैरी ओल्डमैन से तो मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी है. उनके साथ तो हम आस्कर के अलावा टोरंटो व वैनिस भी गए थे. हम लोग पूरे छह माह तक एक साथ घूमते रहे. उम्मीद है कि एक दिन मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिलेगा. एंजिला जाली, मेरिल स्ट्रिप सहित सभी ने मेरे काम की तारीफ की है.

विश्व की सर्वाधिक सफल और स्टेज से लेकर फिल्म तक सारे पुरस्कार जीत चुकी अदाकारा जुडी डेंच ने मुझसे कहा था कि,‘तुम्हारे अंदर ऐसा इन्नोसेंस है और जो ग्रेस है, वह बहुत कम कलाकारों में नजर आता है. तुम इसे संभाल कर रखना.’ उनकी यह बात मेरे लिए बहुत बड़े अवार्ड की तरह है.

अब आपकी जिंदगी में क्या बदलाव आया?

अब मेरी सोच काफी विकसित हो गयी है. अब मैं कुएं का मेढक नहीं रहा. अब मेरी समझ में आ गया है कि मेरे लिए कलाकार होने का अर्थ सिर्फ परदे पर जाकर अभिनय करना नहीं है. अब मेरी कुछ समाजिक जिम्मेदारियां भी हैं. इसी के साथ एक कलाकार को लिखना, पढ़ना, गायन, संगीत की समझ, नृत्य व निर्देशन करने सहित सब कुछ करना आना चाहिए. मुझे अच्छी तरह पता है कि एक दिन वह आएगा, जब मैं एक फिल्म निर्देशित करूंगा. फिलहाल तो मैं अभिनय से खेल रहा हूं. पर सही समय पर निर्देशन में भी कदम रखूंगा. कुछ पटकथाएं भी लिख रहा हूं. हमारे यहां सोच है कि आपने पढ़ाई नहीं की, तो आप अभिनेता बन जाओ. इस सोच को बदलने की बहुत ज्यादा जरूरत है. क्योंकि एक कलाकार को फिल्म विधा से जुड़े हर विभाग की जानकारी होनी चाहिए.

मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मैं फिल्म ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ के अपने किरदार अब्दुल के लिए तैयारी कर रहा था, तब हमें कोई रिफ्रेंस मटेरियल नहीं मिला. उस वक्त का कोई वीडियो वगैरह भी मौजूद नहीं है. तब मैंने इतिहास पर कम से कम 11 किताबें पढ़ीं. उसके बाद मैंने इस किरदार की कल्पना की थी.

फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ के बाद आपको लेकर बालीवुड के फिल्मकारों की सोच बदली या नही?

अब लोग मुझे इज्जत देने लगे हैं. अब मुझे भी आस्कर अवार्ड अकादमी का सदस्य बनाया गया है. इस सम्मान को पाने वाला मैं सबसे कम उम्र का कलाकार हूं. यह सम्मान मेरे साथ दस भारतीयों को मिला है, जिसमें शाहरुख खान व माधुरी दीक्षित भी हैं. तो चीजें काफी बदली हैं. अब लोग मुझे याद करने लगे हैं.

‘हैप्पी भाग जाएगी’ और ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ में क्या फर्क है?

केवल फिर का अंतर है. यह मजेदार फ्रेंचाइजी है. पहली फ्रेंचाइजी में भी लोगों ने मुझे बहुत पसंद किया था. और इसमें भी पसंद करेंगे. इस बार ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ में तो सोनाक्षी सिन्हा और जस्सी गिल भी आ गए हैं. इस फिल्म के लिए मैंने और डायना पेंटी ने सिर्फ 15 दिन काम किया होगा. पर किरदार जबरदस्त है. निर्देशक मुदस्सर अजीज ने बड़े अच्छे ढंग से मुझे फिल्म में पेश किया है. यह फन फिल्म है. पिछली बार पाकिस्तान में हंगामा मचा था, इस बार चीन में मचा है. मगर बिना दिमाग वाली फिल्म नहीं है.

इसके जोक्स अच्छे हैं. मेरा किरदार गुड्डू का ही है, पर थोड़ा सा बदला गया है. वास्तव में जब मैं वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ की शूटिंग कर रहा था, तो मेरा हुलिया थोड़ा बदला हुआ था. उसी समय इस फिल्म के लिए शूटिंग करनी पड़ी, इसीलिए इस फिल्म में हुलिया थोड़ा बदला हुआ नजर आएगा.

अब अंतरराष्ट्रीय सिनेमा को लेकर आपकी समझ क्या हुई? हमारा बालीवुड अंतरराष्ट्रीय सिनेमा से पीछे क्यों है?

बालीवुड कभी अंतरराष्ट्रीय या हालीवुड सिनेमा से पीछे था, पर अब पीछे नहीं है. वैसे भी हालीवुड सिनेमा हमसे 30 साल पहले शुरू हुआ था. तो हमें उनसे सीखने को मिला है. तकनीकी स्तर पर हम उनसे थोड़ा पीछे चल रहे हैं. अब तो हमारा वीएफएक्स बहुत अच्छा हो गया है. आनंद एल राय ने फिल्म ‘जीरो’ में शाहरुख खान को बौने के किरदार में पेश किया है. इसका स्पेशल स्फेक्ट्स बहुत जबरदस्त है. हां! हम लोग दौर में फंस जाते हैं कि यह चला तो फिर यही चलेगा. कभी रोमांस का दौर, तो कभी एक्शन न का तो कभी कामेडी का दौर. पर अब दर्शकों को मूर्ख नहीं बना सकते. दर्शक हालीवुड फिल्में भी देख रहा है. अब दर्शक सलीके वाली फिल्म मांगता है.

आपसे पहले किसी भारतीय कलाकार को हालीवुड में बड़े किरदार क्यों नहीं मिल पाए. इसकी वजह आपकी समझ में आयी?

पहले हालीवुड में भी एक ही ढर्रे की फिल्में बन रहीं थी. विविधता की कमी थी. 1971 में जब मार्लन ब्रांडो को आस्कर में सर्वश्रेष्ठ कलाकार का पुरस्कार मिला, तो उन्होंने एक भारतीय लड़की को पुरस्कार लेने के लिए भेजकर एक मुद्दा उठाया था. तब मार्लन ब्रांडो को काफी गालियां मिली थी. उन दिनों हालीवुड फिल्मों में रेड इंडियन की धज्जियां उड़ायी जा रही थीं. पर अब चीजें बदली हैं. पहले हालीवुड रंगभेद का शिकार था. तो उन्हें बदलने में वक्त लगा है. देखिए, बालीवुड में भी पहले टाइप कास्ट हुआ करते थे. पहले हालीवुड में माना जाता था कि यदि बालीवुड का कलाकार होगा, तो वह फिल्म में पढ़ाकू होगा. पर अब हालीवुड के स्टूडियो मानने लगे हैं कि भारतीय कलाकार भी सिनेमा में सुपर स्टार हो सकता है.

‘‘3 इडियट्स’’ से अब तक के आपके करियर के टर्निंग प्वाइंट क्या रहे?

मैंने तो काम करते हुए सब कुछ सीखा है. फिल्म के असफल होने पर लोग गायब हो जाते हैं. पर मैंने ऐसे मौके पर भी खुद को खड़ा रखना सीखा. ‘3 इडियट्स’ में मैंने एक छोटा सा कैमियो किया था. तो मेरा मानना है कि आप मुझे उससे तो नीचे गिरा नहीं सकते. उसके बाद मैंने शाहरुख खान प्रोडक्शंस की फिल्म ‘‘आलवेस कभी कभी’’ में लीड रोल किया था. पर बाक्स आफिस पर फिल्म एकदम गिर गयी थी. तब मुझे लगा था कि यहां ऐसा भी हो सकता है. हम कभी भी धड़ाम से नीचे गिर सकते हैं.

उस वक्त आमिर खान ने मुझे एक अच्छी सलाह दी थी कि फिल्म में निर्माता से लेखक निर्देशक कलाकार सभी लोग जुड़े रहते हैं और एक टीम वर्क होता है. अब उस टीम में कहां क्या गड़बड़ हो जाए, कह नहीं सकते. इसलिए फिल्म के असफल होने पर निराश नहीं होना चाहिए. उसके बाद मेरा करियर धीरे धीरे आगे बढ़ा. हां! कुछ लोगों के फिल्म इंडस्ट्री में अपने ताल्लुकात हैं, तो उन्हें जल्दी काम मिल गया. पर जो भी मेरे करियर में हो रहा है, उससे मैं खुशू हूं.

देखिए, यदि टैलेंट नहीं है, तो आप फिल्मी परिवार से होंगे, तो भी आपका कुछ नहीं हो सकता. आज की तारीख में बालीवुड में एक मात्र बेहतरीन कलाकार  रणबीर कपूर हैं. मैं तो उनका बहुत बड़ा फैन हूं. पर उनकी भी फिल्में नहीं चली. उनकी कुछ फिल्में समय से आगे थी, जो लोगों की समझ में नहीं आयी. उनकी फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ एक संगीत प्रधान फिल्म थी. हमारे यहां इस तरह की फिल्मों का कांसेप्ट विकसित नहीं हुआ है. अब देखिए, ‘जग्गा जासूस’ के फ्लाप होने के एक साल बाद संगीत प्रधान फिल्म ‘लाला लैंड” को आस्कर अवार्ड मिला. पर हमारे यहां अभी भी गाना बैकग्राउंड में ही चलेगा.

‘फुकरे’ की सिक्वअल ‘फुकरे 2’ भी बाक्स आफिस पर नहीं चली?

ऐसा होता है. पहली फिल्म की सफलता के साथ मैच करना बड़ा मुश्किल काम होता है. पहले भाग में जो इन्नोसेंस था, वह दूसरे भाग में मौजूद नहीं था. जबकि यह ऐसी फिल्म थी कि दर्शक हमें हमारे किरदारों के नाम से जानती थी. मैंने उनसे कहा कि पार्ट 3 मत बनाओ.

अब किस तरह के किरदार निभाना चाहते हैं?

इस वक्त तो मैं दो महत्वपूर्ण फिल्मों ‘मिलन टाकीज’ और ‘प्रस्थानम’ में व्यस्त हूं. दोनों में लीड रोल हैं. फिल्म ‘‘प्रस्थानम’’ में पिता पुत्र की कहानी है. यह दक्षिण भारत की इसी नाम की फिल्म का हिंदी रीमेक है. इसमें मेरे साथ संजय दत्त हैं. राजनीति की पृष्ठभूमि है. मेरे पास रोमांस व एक्शन वाली फिल्में ही आ रही हैं. वेबसीरीज ‘मिर्जापुर’ में सिर्फ एक्शन ही है. मिर्जापुर में कुछ सत्य घटनाक्रम भी है. इसमें अभिनय करना मेरे लिए जीवन बदलने जैसा रहा. जब मुझे कुछ चुनौतीपूर्ण काम करने का मौका मिलता है, तो मैं तुरंत लपक लेता हूं. आगे भी ऐसा ही कुछ करने का इरादा है.

हालीवुड को लेकर आपकी समझ क्या विकसित हुई?

हम सोचते हैं कि हालीवुड की सभी फिल्में सफल हैं. पर हकीकत यह है कि हालीवुड में भी सिर्फ दो कलाकार ही ऐसे हैं, जो अपनी फिल्मों को सफल बना रहे हैं. टाम क्रूज जैसे कलाकार भी असफल हैं. इसीलिए अब टाम क्रूज सिर्फ फ्रेंचाइजी वाली फिल्में ही कर रहे हैं. अपने बलबूते पर सिर्फ डेंजिल वाशिंगटन और मैथ्यू पैज डमान उर्फ मैट डमानमैग डेमिन ही फिल्में चला रहे है. बाकी हौलीवुड में भी सुपर हीरो वाली फिल्में ही चल रही हैं. इसकी वजह यह है कि हालीवुड में नेटफ्लिक्स व अमैजान छाए हुए हैं. अगले तीन साल में नेटफ्लिक्स व अमैजान की वजह से भारतीय सिनेमा का भी नक्शा बदलने वाला है.

रिचा चड्ढा के साथ अपने रिष्तों को लेकर क्या कुछ कहना चाहेंगे?

बहुत निजी मसला है. मैं हर रिश्ते को सम्मान देना चाहता हूं. मैं बहुत शर्मीला हूं. रिचा में खूबी बहुत है. वह बहुत अच्छी कलाकार हैं. मैं तो उनका फैन था. मैंने उनकी सारी फिल्में देखी हैं. परदे पर जितनी वह कड़क नजर आती हैं, निजी जिंदगी में उतनी ही कोमल हैं. उन्हें इंसानों के साथ साथ जानवरों से भी प्यार है.

प्यार को लेकर क्या सोच है?

प्यार पर तो शेरो शायरी लिखी जा चुकी हैं. मैं तो नौसीखिया हूं. मेरे लिए प्यार एक शिद्दत है.

आप क्या लिखते हैं?

मैं जो कुछ देखता हूं,उसे कागज पर उतारता हूं. कविताएं बहुत लिखी हैं. पर मैं कविताएं छपवाना नहीं चाहता. दो फिल्मों की पटकथाए लिख रहा हूं. दो तीन माह में एक लघु फिल्म निर्देशित करने वाला हूं, जिसका निर्माण हालीवुड प्रोडक्शन के साथ करुंगा.

सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग बहुत होती है. उसको लेकर क्या कहेंगे?

यह वह लोग हैं, जिन्हें ट्रोलिंग के लिए पैसे मिलते हैं, अब कौन उन्हें पैसे देता है, पता नहीं. यह ट्रोलिंग इतनी घटिया स्तर पर होती हैं कि घिन्न आती है. जरूरत है कि सोशल मीडिया यानी कि ट्वीटर आदि के जो कर्ताधर्ता हैं, वह कुछ तो सेंसरशिप लागू करें. यदि वाट्सअप ग्रुप में आप अफवाह फैला रहे हैं, तो कितनी गलत बात है? गलत अफवाह के चलते लोग मर रहे हैं.

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