खाने में शमिल पोषक कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन और खनिज इनसानों के विकास के लिए बहुत जरूरी?हैं.
ये शरीर के ऊतकों की देखभाल व मरम्मत, जीवन प्रक्रिया को बनाए रखने और शरीर को ताकत देने के लिए जरूरी हैं. लिहाजा अच्छी सेहत के लिए हमारे खाने में इन का होना बहुत जरूरी है. ताजे फलों व सब्जियों को रक्षा करने वाला खाना माना गया है. सब्जियां और फल हमारे शरीर में विटामिनों व खनिज तत्त्वों की कमी पूरी करते?हैं. तोड़ने के बाद भी फल व सब्जियां जीवित रहते हैं और उन में सांस लेने की क्रिया होती रहती है. रासायनिक कारणों से फल व सब्जियों में सड़नगलन हो सकती?है. इसलिए इन्हें खराब होने से बचाने के लिए सावधानी से तोड़ना व संभाल कर रखना जरूरी?है. तोड़ाई के समय ध्यान रखना चाहिए कि फल और सब्जी को किसी प्रकार का नुकसान न होने पाए.
तोड़ाई व कटाई के बाद से इस्तेमाल में लाने तक हर साल तकरीबन 25-40 फीसदी तक फलों व सब्जियों का नुकसान हो जाता है. लिहाजा सब्जियों और फलों की कीमत बढ़ जाती?है, जिस का असर खरीदार पर पड़ता है. मौसम में कई सब्जियां और फल काफी मात्रा में पैदा होते?हैं, जिस से किसानों को मजबूरन उन्हें सस्ता बेचना पड़ता है, क्योंकि उन के पास उन्हें रखने के सही साधन नहीं होते.
मौसम की सस्ती सब्जियों व फलों और घर के बगीचे के ताजे फलों व सब्जियों को तमाम उपायों द्वारा सुरक्षित रखा जा सकता है. ये उपाय हैं डब्बाबंदी, बर्फ में जमा कर रखना, पानी निकालना, मशीनों द्वारा सुखाना, ठंडे गोदामों में रखना वगैरह. लेकिन ये सब उपाय महंगे पड़ते हैं. लिहाजा जरूरत इस बात की है कि फलों व सब्जियों का रखरखाव करने के लिए आसान व सस्ते तरीके अपनाए जाएं. फलों व सब्जियों को रासायनिक घोल में रखना, रसायनों द्वारा देखभाल, धूप में सुखाना, अचार, चटनी, जैम, रस व शर्बत बनाना, फर्मेंटेशन आदि रखरखाव के सब से सरल और सस्ते तरीके हैं, जिन से फलों और सब्जियों को कुछ समय तक टिकाऊ बनाया जा सकता है. इन उपायों द्वारा रखरखाव के फायदे निम्नलिखित हैं:
* इस से सब्जियों व फलों के पौष्टिक तत्त्वों को नुकसान से बचाया जा सकता?है.
* सरल व सस्ते तरीकों से रखरखाव करने से किसानों को मौसम के दौरान अपने उत्पादों को सस्ता नहीं बेचना पड़ेगा.
* रखरखाव लागत कम आने से ग्राहक को भी सस्ते दामों पर सब्जी व फल मुहैया होंगे.
* मौसम की सब्जियों व फलों को साधारण रखरखाव द्वारा स्टोर कर के मौसम न होने पर भी इस्तेमाल किया जा सकता?है.
सब्जियों और फलों का रासायनिक रखरखाव
सब्जियों और फलों की देखभाल करने के लिए तमाम खाद्य रसायनों और रासायनिक घोलों का इस्तेमाल किया जाता?है. साधारण रसायन जैसे नमक, ग्लेशियल ऐसेटिक एसिड, पोटेशियम मेटाबाइसल्फाइट और सोडियम बेंजोएट आसानी से बाजार में मिल जाते?हैं और महंगे भी नहीं होते हैं. इन का प्रयोग फलों और सब्जियों की देखभाल करने के लिए किया जाता है. सब्जियों और फलों को कांच या चीनीमिट्टी के जार में सुरक्षित रखा जा सकता?है.
रासायनिक घोल द्वारा रखरखाव के लाभ
* यह विधि बहुत सरल व सस्ती है.
* इस तरीके से डब्बाबंदी या बोतलबंदी करने से सब्जियां व फल गलते व सड़ते नहीं हैं,?क्योंकि डब्बाबंदी व बोतलबंदी में ज्यादा तापमान दे कर रखे गए पदार्थों को जीवाणुरहित किया जाता है. इस से कभीकभी उन के रंगरूप में थोड़ा बदलाव हो जाता?है.
* इस विधि में मटर वगैरह को सुरक्षित रखने के लिए बनावटी रंग डालने की जरूरत नहीं पड़ती, जबकि डब्बाबंदी के लिए मटर में हरा रंग डाला जाता?है.
* सल्फर डाईआक्साइड (जो पोटेशियम मेटाइबाइसल्फाइट से मिलती है) सब्जियों के विटामिनों और अन्य पौष्टिक तत्त्वों को सुरक्षित रखने में सहायता करती है.
* रासायनिक घोल द्वारा सब्जियों को तकरीबन 6 महीने तक सुरक्षित रख सकते?हैं. कम तापमान (1.3 डिगरी सेंटीग्रेड) पर फलसब्जियां 1 साल से भी ज्यादा समय तक सुरक्षित रह सकती?हैं.
इस प्रकार इस विधि द्वारा मौसम न होने पर भी जब भी चाहें फल या सब्जी का स्वाद ले सकते?हैं.
सब्जियों और फलों का किण्वन द्वारा रखरखाव
किण्वन विधि से भी सब्जियों को काफी समय तक सुरक्षित रख सकते?हैं. इस विधि से न केवल सब्जियों को नष्ट होने से बचा सकते?हैं, बल्कि इस से उन के पौष्टिक और खनिज तत्त्व भी नष्ट नहीं होते हैं.
किण्वन के दौरान सब्जियों में लैक्टिक अम्ल बनाने वाले जीवाणुओं द्वारा सब्जियों की प्राकृतिक शक्कर लैक्टिक अम्ल में बदल जाती?है. यह लैक्टिक अम्ल सब्जियों की सुरक्षा करने में सहायक होता है.
किण्वन के लिए सब्जियों का चुनाव करते समय यह ध्यान रखें कि सब्जियां ताजी हों और सड़ीगली व ज्यादा पकी हुई न हों. सब से पहले सब्जियों को साफ पानी से धो लें. काटने के लिए केवल स्टील के चाकू का ही इस्तेमाल करें.
पत्तागोभी के बाहर के पत्ते व अंदर का डंठल हटा कर बारीक काट लें. मटर को छील कर दाने निकाल लें. मूली, गाजर, शलजम को छील कर छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. फूलगोभी, अधपके टमाटर और सेम को भी छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. फलों में अधपके पपीते का किण्वन किया जा सकता?है. किण्वन के लिए 2-3 फीसदी नमक और 1.0 से 1.5 फीसदी राई का प्रयोग किया जाता है.
चूंकि पत्तागोभी, मूली व गाजर में किण्वन करने वाले जीवाणु अधिक संख्या में पाए जाते?हैं, इसलिए ये सब किण्वीकरण के लिए ज्यादा उपयोगी?हैं. इन में से पत्तागोभी सब से बढि़या है. लिहाजा अन्य सब्जियों, अधपके पपीतों व टमाटरों को पत्तागोभी के साथ किण्वित किया जा सकता है. अन्य सब्जियों को पत्तागोभी के साथ किण्वित करने के लिए इन की मात्रा पत्तागोभी के बराबर या कम होनी चाहिए. उपरोक्त सामग्री को अच्छी प्रकार मिला कर कांच के जार में गरदन तक भर दें. जार में सब्जियां भरने से पहले जार को अच्छी तरह धो कर सुखा लें व पोंछ लें. रोज एक बार जार को अच्छी तरह हिलाते रहना चाहिए ताकि सब्जियों का किण्वन ठीक प्रकार से हो सके और वे खराब न हों. किण्वित पदार्थों को?छायादार स्थान पर रखें. जहां तक हो सके इन्हें कम तापमान वाले?ठंडे स्थान पर रखें. किण्वित पदार्थ डेढ़ से 2 महीने तक सामान्य तापमान पर बिना किसी रसायन के रखे जा सकते?हैं. कम तापमान पर (4 से 5 डिगरी सेंटीगे्रड) इन को 4-5 महीनों तक रख सकते?हैं.
फलों के गूदे व रस का रखरखाव
सब्जियों की तरह फल भी हमारे दैनिक संतुलित आहार का आवश्यक अंग हैं. ये हमारे खाने में विटामिनों व खनिज लवणों की कमी पूरी करते?हैं. फल हमारी पाचनशक्ति ठीक रखते हैं और भूख बढ़ाते हैं. मौसमी फलों का रखरखाव कई प्रकार से किया जा सकता है. सब से सरल व सस्ता तरीका है, उन के गूदे व रस को रसायनों के इस्तेमाल द्वारा सुरक्षित रखना ताकि जब भी चाहें इन का इस्तेमाल तरहतरह के ठंडे पेय जैसे जूस, स्क्वैश, शर्बत आदि बनाने में किया जा सके. इस से जैम और चटनी भी तैयार की जा सकती?है.
रखरखाव (परिरक्षण) के निम्नलिखित लाभ हैं
* मौसमी फलों के गूदे व रस को स्टोर करना ज्यादा उपयोगी है,?क्योंकि 1 बोतल गूदे या रस से 3 बोतल स्क्वैश बनाया जा सकता?है. इस तरह से बोतलें भी कम खर्च होंगी और स्टोर करने के लिए जगह भी कम लगेगी.
* रासायनिक विधि द्वारा परिरक्षित करने से लागत भी कम आती?है (25-30 पैसे प्रति किलोग्राम) और फलों के गूदे व रस का रंग, स्वाद व पौष्टिकता भी बनी रहती?है.
* ताजे फल तोड़ने के बाद जल्दी ही खराब हो जाते?हैं. इसलिए इस विधि से इन्हें गूदे व रस के रूप में टिकाऊ बना कर नष्ट होने से बचा सकते?हैं. इच्छानुसार या आवश्यकता पड़ने पर इन का इस्तेमाल स्क्वैश, शर्बत, जैम, चटनी आदि बनाने में कर सकते हैं. इस प्रकार हम पूरे साल विभिन्न फलों के स्वाद का आनंद उठा सकते हैं.
अचार व चटनी को टिकाऊ बनाने के तरीके
भारतीय भोजन में अचार व चटनी का विशेष स्थान है. देश के अलगअलग भागों में अचार व चटनी बनाने के अलगअलग तरीके हैं. फलों जैसे आम, नीबू, कटहल व करौंदा और सब्जियों जैसे गाजर, फूलगोभी, शलजम, टमाटर व मिर्च आदि में नमक, मिर्च, चीनी, मसाले व तेल आदि डाल कर अचार व चटनी बनाई जा सकती?है. अमूमन सभी घरों में अचार व चटनी बनाए जाते हैं, लेकिन कई बार बहुत सावधानी बरतने के बाद भी ये पदार्थ खराब हो जाते?हैं. इन का रंग बदल जाता है या फफूंदी आदि लग जाती है. इन को खराब होने से बचाने और अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते?हैं:
* अचार या चटनी बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि फल या सब्जी का चुनाव ठीक से किया जाए. कोई भी खराब फल या सब्जी नहीं लेनी चाहिए और काटने से पहले उन्हें साफ पानी से अच्छी तरह धो लेना चाहिए.
* अमूमन नमक कम मात्रा में डालने से अचार खराब हो जाता?है, लिहाजा अचार में नमक की मात्रा ठीक होनी चाहिए. खट्टे फलों के लिए 15-20 फीसदी और सब्जियों के लिए 8-10 फीसदी नमक डालना चाहिए.
* कुछ रसायनों का प्रयोग कर के अचार व चटनी को टिकाऊ बनाया जा सकता?है. ऐसा ही एक रसायन ग्लेशियल ऐसेटिक एसिड है, जो फफूंदी व कीटाणुनाशक है. अचार तैयार हो जाने पर इसे तेल डालने से पहले अचार में 0.5 फीसदी तक मिलादें. नीबू के अचार में इस की जरूरत नहीं?है, क्योंकि नीबू में कुदरती रूप से ही अम्ल की मात्रा ज्यादा होती है. सौस या चटनी में?ग्लेशियल ऐसेटिक एसिड (0.5 फीसदी) डाल कर 5 मिनट तक उबालना चाहिए.
* अचार व चटनी वगैरह में 200 मिलीलीटर पोटेशियम मेटाबाइसल्फाइट या 300 मिलीलीटर सोडियम बेंजोएट प्रति किलोग्राम के हिसाब से थोड़े से पानी में घोल कर मिलाने से भी इन्हें खराब होने से बचाया जा सकता?है.
* अचार में तेल को गरम कर के?ठंडा करने के बाद ही मिलाएं.
* अचार व चटनी में पिसे हुए मसालों को हलका सूखा भून कर डालें. इस से?भी अचार व चटनी जल्दी खराब नहीं होते. अचार में मसालों को गरम तेल में?भून कर भी डाल सकते हैं. इस से इन पदार्थों का रंग व स्वाद ठीक रहेगा और ये जल्दी खराब भी नहीं होंगे
– अनिता यादव, डा. अनंत कुमार, डा. बीना यादव
(कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद)