शुक्रवार 20 जुलाई को पहले अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस और विपक्ष के मुख्य वक्ता राहुल गांधी ने कुछ मिनटों तक नरेंद्र मोदी की जम कर खिंचाई की और जीएसटी, काले धन, रफाल लड़ाकू विमानों, चौकीदारी,नोटबंदी, बढ़ती बेरोजगारी, खुलेआम निर्दोषों के साथ भगवा भीड़ों का हमला और प्रधानमंत्री की चुप्पी पर भरपूर कटाक्ष किए. अचानक उन्होंने अपने को भाजपाइयों द्वारा पप्पू कहे जाने की बात खुले में कह कर 20-25 कदम चल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झप्पी भी ले ली.
अपनी सीट पर लौट कर उन्होंने अपने साथियों को आंख भी मारी जो लोकसभा टीवी के कैमरों ने कैद कर ली और पूरे जोरशोर से झप्पी और आंख मारना विवाद का विषय बन गया.
अब यह निर्भर करता है कि कौन मोदी बनाम विपक्ष के किस पाले में है. जो मोदी समर्थक हैं वे इसे नाटक समझते हैं और प्रधानमंत्री के नजरिया के खिलाफ मानते हैं. जो विपक्ष में हैं वे इसे मास्टर स्ट्रोक मानते हैं.
राहुल गांधी ने 50 मिनट में जो नरेंद्र मोदी की आलोचना की उस के बाद झप्पी लेना नरेंद्र मोदी की कार्यशैली का हिस्सा ही है. नरेंद्र मोदी नवाज शरीफ और शी जिनपिंग की झप्पियां लेने में मशहूर हैं जबकि चीन और पाकिस्तान दोनों से संबंध इन झप्पियों के बावजूद सुधरे नहीं हैं. नवाज शरीफ तो अब पाकिस्तान की जेल में हैं और झप्पी लेने वाला राजनीतिक या व्यक्तिगत रूप से उन्हें सांत्वना तक नहीं दे रहा. झप्पी तो सिर्फ एक पौलीटिक्स पौस्चर है जो डोनाल्ड ट्रंप उत्तरी कोरिया के किम जोंग उन तक के साथ इस्तेमाल करते हैं.
राहुल गांधी ने यह साफ कह दिया है कि अब वे नरेंद्र मोदी से भयभीत नहीं हैं. वे बराबरी की हैसियत रखते हैं और प्रधानमंत्री के क्रिया कलापों पर खराखरा बोल सकते हैं. वे विपक्ष के दमदार नेता हैं. नरेंद्र मोदी को उकसा सकते हैं. तभी अविश्वास प्रस्ताव के उत्तर में नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की असफलताओं का जवाब इतिहास में खोजते रहे. उन्हें सरदार पटेल, चरणसिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, गुजराल याद आ रहे थे, जबकि पहली गैर कांग्रेस सरकार को 1979 में भारतीय जनता पार्टी के कारण ही जनता पार्टी में विभाजन हुआ सरकार गिरी थी. लेकिन उन्होंने सरकार की उपलब्धियों को तो जल्दीजल्दी आंकड़ों से रिकार्ड के लिए पढ़ डाला पर तीखे बाण केवल जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी पर चलाए. मानो आज देश पर वे राज कर रहे हैं.
राहुल गांधी के तीखे सवालों और झप्पी का असर यह हुआ कि सरकार के कामकाज तो बट्टे खाते में चले गए और नरेंद्र मोदी के भाषण से लगने लगा मानो कि राज तो नेहरू परिवार ही कर रहा है और नरेंद्र मोदी एक विपक्षी नेता की तरह उस परिवार के गड़ेमुर्दे उखाड़ कर उसे सत्ता से हटाने की कोशिश में लगे हैं.
राहुल गांधी के व्यंग्य बांणों और झप्पी ने नरेंद्र मोदी को सरकार की सफाई देने की जगह भागीदार की अपनी परिभाषा देने पर मजबूर कर दिया. नरेंद्र मोदी यह साबित करने में लगे रहे कि राहुल गांधी को विरासत में जो राजगद्दी मिली है वह उस के लायक नहीं है और वे खुद एक गरीब घर के नेता की हैसियत से शायद राजघराने का विरोध करने में लगे हैं.
अविश्वास प्रस्ताव में भारी जीत के कारण भाजपा पर कोई आंच तो नहीं पर जिस तरह अगले ही दिन जीएसटी में बीसियों चीजों पर टैक्स कम हुआ और 5 करोड़ तक की टर्नओवर वाले व्यापारियों को मासिक की जगह त्रैमासिक रिटर्न भरने की छूट मिली. इस से साफ है कि राहुल के बाण मर्म पर लगे हैं. और भाजपा सरकार की जिद और हम ही सही हैं, हमेशा ही सही हैं का भाव टूट रहा है. शायद अब हर फैसला अब कांग्रेसी बाणों की नजर में लिया जाएगा. अगले दिन राजस्थान में एक भगवा भीड़ द्वारा पीटपीट कर हत्या करने पर गृहमंत्री और मुख्यमंत्री ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. पहले वे इस पिटाई का खुला समर्थन करते थे.