टीवी अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी की आत्महत्या की जांच जैसे जैसे आगे बढ रही है, कई चौंकाने वाले राज खुल रहे है. डाक्टरी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि प्रत्यूषा 3 माह की गर्भवती थी. गर्भपात के लिये डाक्टर की सलाह पर प्रत्यूषा ने गर्भपात का फैसला किया था. नेशनल सैंपल सर्वे आफिस से मिले आंकडे भी बताते है कि प्रत्यूषा जैसी बहुत सारी लडकियां गर्भपात का सहारा लेने लगी है. सर्वे के आंकडों को देखें तो पता चलता है कि गांव की लडकियों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में रहने वाली लडकियां गर्भपात का ज्यादा सहारा लेती है. नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) ने देश भर के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सर्वे कर जो आंकडे सामने रखे उनसे पता चलता है कि शहरी किशोरियों में गर्भपात का चलन अधिक है. 20 साल से कम आयु वर्ग की 0.7 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लडकियां ही गर्भपात की दवाओं का सेवन करती है.
शहरी क्षेत्रों में रहने वाली लडकियों में यही आंकडा पूरी तरह से बदल जाता है. 20 साल से कम आयु वर्ग की शहरी लडकियों में 13.6 प्रतिशत लडकियां गर्भपात की गोलियों का सेवन करती है. 20 से 24 आयु वर्ग में भी शहरी लडकियों में गर्भपात अधिक होता है. इस आयु वर्ग में ग्रामीण क्षेत्र की 1.3 फीसदी गर्भपात का सहारा लेती हैं. जबकि शहरी इलाकों में यह प्रतिशत बढकर 1.6 हो जाता है.
जनवरी से जून 2014 के बीच हुये सर्वे के आधार पर ‘हेल्थ इन इंडिया’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में बढ रही गर्भपात की घटनाओं को समझने के लिये अध्ययन करने की जरूरत है. सामान्य तौर पर एकत्र की गई जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि शहरी क्षेत्रों में करियर और रोजगार की तलाश में ज्यादा लडकियां घरों से बाहर रहती हैं, ऐसे में इस तरह के हालात बन जाते है. गांव के मुकाबले शहरों में गर्भपात के ज्यादा साधन मौजूद होने से भी यह तादाद बढी दिखती है.
गर्भपात यौनशिक्षा से जुडा मसला है. हमारे देश में यौन शिक्षा या सेक्स एजुकेशन को सही नहीं माना जाता है. नैतिकता के आधार पर इसका विरोध बडे पैमाने पर होता है. सेक्स को रोकना संभव नहीं है. शहरी क्षेत्रों में लडकियां कम उम्र में ही सेक्स संबंधों की ओर आकर्षित होने लगी हैं. ऐसे में वह असुरक्षित सेक्स का शिकार हो जाती हैं. केवल लडकियां ही नहीं लडको को भी सुरक्षित सेक्स का पता नही होता है. गर्भ ठहरने के बाद भी तब तक लडकियां घर वालों को नहीं बताती जब तक पेट दर्द या दूसरी परेशानी न खडी हो जाये.
ऐसे में अगर समाज में सेक्स एजूकेशन को बढावा मिले तो इस तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है. शादी से पहले गर्भवती लडकी को समाज में गिरी नजरों से ही देखा जाता है ऐसे में उसके सामने आत्महत्या जैसे ही हालात उत्पन्न हो जाते है. जिससे वह ऐसे खतरनाक कदम उठाने को मजबूर हो जाती है.