देश में स्टार्टअप की शुरुआत ने नए कीर्तिमान बनाए हैं. माना जा रहा है कि अगले 3-4 वर्ष में हजारों नए स्टार्टअप ऐसे होंगे जहां अरबों रुपए का कारोबार हो रहा होगा. स्टार्टअप इसलिए महत्त्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि अब आईआईटी और आईआईएम से निकलने वाले युवा कोई नौकरी पकड़ने के बजाय स्टार्टअप शुरू करने को तरजीह देने लगे हैं.

कई प्रतिष्ठित कंपनियों के नियोक्ता यह देख कर परेशान हैं कि जब वे किसी नामी आईआईटी या आईआईएम संस्थान में लगने वाले जौब मेले में नौकरी के लिए युवाओं का चयन करने जाते हैं, तो उन में से 15-20 फीसदी युवा लाखों रुपए महीने का वेतन ठुकरा देते हैं. पहले ऐसा नहीं था. आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि युवा नौकरी के बड़े औफर्स ठुकराने लगे हैं?

इस सवाल का एक जवाब है स्टार्टअप. अब काबिल नौजवान किसी नामी संस्थान से ऊंची डिग्री लेने के बाद नौकरी करने के बजाय अपना स्टार्टअप शुरू करने के बारे में सोचने लगे हैं. वे किसी कंपनी में लाखों रुपए की नौकरी करने के स्थान पर अपना स्टार्टअप शुरू कर खुद मालिक बनने और अपने जैसे योग्य युवाओं को शानदार पैकेज वाली नौकरी देने का सपना देखने लगे हैं. इसी सोच का असर है कि पिछले कुछ वर्षों में देश में सैकड़ों स्टार्टअप खुल गए हैं और बेमिसाल कामयाबी के आधार पर वे दूसरों को भी स्टार्टअप खोलने की प्ररेणा देने लगे हैं.

क्या है स्टार्टअप

प्राय: स्टार्टअप ऐसी कंपनी को कहा जाता है, जो अभी अपने शुरुआती दौर में है यानी किसी उद्यमी ने अपने किसी विचार को मूर्त रूप देना शुरू किया है. एक तरह से यह प्रायोगिक तौर पर किसी व्यवसाय की शुरुआत करना हुआ. ऐसी कंपनियां छोटे स्तर पर शुरू की जाती हैं और आगे बाजार में टिके रहने के लिए इन्हें अकसर किसी पूंजीपति से अतिरिक्त धन (फंडिंग) की जरूरत होती है. 90 के दशक में अनेक डौटकौम (इंटरनैट) कंपनियों की स्थापना के दौर में यह शब्द चलन में आया था, पर 21वीं सदी के पहले दशक में ऐसी दर्जनों स्टार्टअप कंपनियां अस्तित्व में आईं. आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों से डिग्री हासिल करने के बाद युवाओं ने फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, शादी डौटकौम जैसे स्टार्टअप न सिर्फ शुरू किए बल्कि उन की सफलता ने साबित कर दिया कि कैसे देश में हजारों नए रोजगार और बेशुमार पूंजी पैदा की जा सकती है.

मिसाल के तौर पर वर्ष 2007 में महज 40 हजार रुपए से शुरू किए गए स्टार्टअप ‘फ्लिपकार्ट’ ने यह उदाहरण पेश किया है कि करोड़ों रुपए का कारोबार करने के लिए सब से ज्यादा जरूरी चीज है जज्बा. नई सोच के साथ शुरू किए गए अन्य स्टार्टअप ने फ्लिपकार्ट जैसी ही सफलताएं दोहराई हैं.

भारत एक नया स्टार्टअप मुल्क

स्टार्टअप कंपनियों की मौजूदगी बढ़ने से हमारा देश दुनिया में सब से युवा स्टार्टअप मुल्क बन गया है. आंकड़ों के मुताबिक देश में 72 फीसदी स्टार्टअप कंपनियों के संस्थापक 35 साल से कम उम्र के युवा हैं. इसे एक शानदार उपलब्धि माना जा सकता है. यही नहीं, रोजगार तलाश करने वाले प्रतिभाशाली युवा बड़ी कंपनियों के बजाय इन से काम कराना पसंद कर रहे हैं. खुद सरकार को स्टार्टअप कंपनियों में देश का बेहतर भविष्य दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री कार्यालय भी उन्हें प्रोत्साहित करने की योजना पर काम कर रहा है.

आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों की सरकारों ने स्टार्टअप कंपनियों को वित्तीय मदद देने और जरू री इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने की योजना पर काम शुरू कर दिया है. इस प्रोत्साहन के पीछे यह विचार काम कर रहा है कि इस से बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन होगा जो बेरोजगार युवाओं के लिए सब से ज्यादा जरूरी चीज है.

नौकर नहीं, मालिक बनें

हमारे देश में एक दौर ऐसा भी था जब सरकारी नौकरी को सब से सुरक्षित माना जाता था. इस के बाद प्राइवेट सैक्टर में ऊंची नौकरी को प्रतिष्ठा की नजर से देखने का दौर भी आया, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आमद के साथ थोड़ा फीका पड़ गया लेकिन जैसी सनसनी पिछले एक दशक के भीतर स्टार्टअप कंपनियों ने अपनी कामयाबी से फैलाई है, उस से एक नई उम्मीद की किरण देश में जगी है. अब ज्यादातर युवा अपना स्टार्टअप शुरू करने को एक रुतबे की बात मानते हैं, इसी सोच का नतीजा है कि देश में पिछले 5 वर्ष में कई बेहतरीन स्टार्टअप शुरू हुए हैं जिन्होंने बाजार का रुख ही बदल कर रख दिया है.

नौसकौम 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 3,100 स्टार्टअप थे, जिन की संख्या 2020 तक बढ़ कर 11,500 होने का अनुमान है. टैक्सी बुकिंग, भोजन का और्डर, औनलाइन शौपिंग, फ्लाइट, होटल आदि की बुकिंग से ले कर कई ऐसे काम हैं, जिन में पहले कई झंझट थे, पर स्टार्टअप कंपनियों ने ईकौमर्स का सहारा ले कर ये सारे काम इतने आसान कर दिए हैं कि अब वे चुटकी बजाते ही हो जाते हैं. यही नहीं अब कई बड़ी पुरानी कंपनियों में भी स्टार्टअप कंपनियों को ले कर दिलचस्पी जग रही है और वे इस में या तो निवेश कर रही हैं या फिर अपना कामकाज इन्हें सौंप रही हैं.

जैसे 2015 में दिग्गज आईटी कंपनी इन्फोसिस ने घोषणा की है कि वह करीब ढाई करोड़ डौलर का निवेश भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में करेगी. टाटा की सहयोगी इलैक्ट्रौनिक कंपनी क्रोमा अपने कामकाज का कुछ हिस्सा स्टार्टअप कंपनियों को सौंप चुकी है.

ये उदाहरण साबित करते हैं कि देश में स्टार्टअप में निवेश के लिए कितना उत्साही माहौल है. इस उत्साह का कारण यह है कि यहां उपभोग का एक बड़ा बाजार उपलब्ध है. ऐसे ग्राहकों की भारी संख्या मौजूद है जो इंटरनैट से जुड़ कर खरीदबिक्री का दायरा बढ़ा रहे हैं. बड़े शहरों में ही नहीं, गांवकसबों में भी तकनीक के सहारे व्यवसायी अपना सामान बेचने में सफल हो रहे हैं. ग्राहकों को औनलाइन शौपिंग के जरिए वह सुविधा मिल रही है कि वे देश के किसी भी कोने में बैठ कर अपनी इच्छानुसार कोई सामान खरीद सकते हैं.

स्टार्टअप सफल क्यों हुए

अगर इस सवाल का जवाब खोजा जाए कि देश में सैकड़ों बड़ी कंपनियों के रहते स्टार्टअप सफल क्यों हुए, तो इस का उत्तर आसानी से मिल जाता है. कुछ साल पहले फिल्म का टिकट खरीदने के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता था, पिज्जा मंगाने के लिए फोन करने या खुद रेस्तरां जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.

औनलाइन शौपिंग से ले कर होटल या फ्लाइट की बुकिंग के लिए दुकान पर जाना या एजेंट की मदद लेना ही एकमात्र चारा था. पर मोबाइल इंटरनैट के प्रचलन में आते ही इंटरनैट पर इन सारी चीजों को मुहैया कराने वाले स्टार्टअप सामने आए, जिन से घंटों का काम चुटकियों में करना मुमकिन हो गया.

स्टार्टअप कंपनियों की सफलता का आलम यह है कि अब ज्यादातर मांबाप चाहते हैं कि उन की संतानें या तो अपना स्टार्टअप बनाएं या फिर किसी अच्छे स्टार्टअप के साथ जुड़ कर काम करें.

शादी जैसे मामलों में भी स्टार्टअप से जुड़े युवाओं को प्राथमिकता दी जाने लगी है. स्टार्टअप की सफलता का एक मुख्य आधार मोबाइल इंटरनैट का तेज प्रसार भी है. हमारे देश में आज 35 से 40 करोड़ लोग इंटरनैट से जुड़े हुए हैं. वे इंटरनैट का इस्तेमाल ईमेल भेजने से ले कर फेसबुक, व्हाट्सऐप का प्रयोग करने के अलावा औनलाइन शौपिंग करने में कर रहे हैं.

यही नहीं, देश में मोबाइल इंटरनैट काफी तेजी से बढ़ रहा है, इस कारण यह अनुमान लगाया जा रहा है कि स्टार्टअप के मामले में अमेरिका ने जो मुकाम 20 वर्ष में और चीन ने जिस जगह को 10 साल में हासिल किया है, भारत के युवा वह लक्ष्य अगले 5 वर्ष में ही हासिल कर लेंगे. आज करीब 4 करोड़ लोग रोजाना मोबाइल इंटरनैट पर सक्रिय रहते हैं, इस के आधार पर कहा जा सकता है कि वे ऐसे संभावित ग्राहक हैं जिन की तलाश सैकड़ों स्टार्टअप को हो सकती है.

कैसे करें शुरुआत

ध्यान रहे कि कोई भी नया स्टार्टअप व्यवसाय शुरू करने जैसा ही कठिन है. लेकिन जिस तरह सरकारें और कई बड़ी कंपनियां स्टार्टअप को मदद मुहैया करा रही हैं, उस में स्टार्टअप शुरू करना अक्लमंदी का काम कहलाएगा. फिर भी स्टार्टअप के लिए एक रूपरेखा बना लेना समझदारी होगी और इस के लिए इन बातों पर विचार करना जरूरी है :

–       क्या हम कोई ऐसा सामान या सेवा देने जा रहे हैं जिस की लोगों को जरूरत है?

–       अगर दूसरी कंपनियां हमारे स्टार्टअप जैसे काम कर रही हैं, तो उन से अलग और बेहतर होने की कितनी गुंजाइश है?

–       क्या मेरा स्टार्टअप मुझे व मेरे स्टार्टअप में काम करने वाले अन्य युवाओं के लिए आर्थिक तौर पर फायदेमंद होगा?

–       अगर स्टार्टअप सफल नहीं रहा तो प्लान बी क्या है यानी नुकसान की स्थिति में खुद के लिए व अन्य कर्मचारियों के भविष्य के लिए कोई योजना है या नहीं?

–       क्या यह स्टार्टअप पेटेंट नियमों और देश के कानूनों का ध्यान रख पाएगा? कोई सेवा या सामान ग्राहकों तक कैसे पहुंचेगा और उत्पादन के लिए कच्चा माल आदि कहां से मिलेगा? क्या जिन लोगों को स्टार्टअप में काम करने के लिए भरती किया जा रहा है, वे वास्तव में योग्य व समर्थ हैं?

–       क्या निवेश के लिए बैंकों और बड़ी कंपनियों से बात की गई है? निवेश या तो खुद किया जा सकता है या फिर बैंक से लोन ले कर, किसी को स्टार्टअप में हिस्सेदारी दे कर या इस काम के लिए बड़ी पूंजी मुहैया कराने वाले लोगों के जरिए. जो सामान या सेवा दी जाने वाली है, उस के बारे में पहले से कोई फीडबैक उपलब्ध है या नहीं?

इन गलतियों से बचें

अकेले शुरुआत ल्ल अगर किसी व्यवसाय का खुद को या परिवार में किसी सदस्य को कोई पूर्व अनुभव नहीं है, तो स्टार्टअप के लिए अकेले शुरुआत करने से बचना चाहिए. अच्छा होगा कि इस में किसी योग्य व्यक्ति को साझीदार बनाया जाए.

गलत स्थान का चयन ल्ल जिस सामान या सेवा की जहां जरूरत है, उसी से जुड़ा स्टार्टअप वहां खोला जाए. अगर स्थान चयन में गलती कर दी गई, तो नुकसान की भरपाई करना मुश्किल हो सकता है.

प्रतिस्पर्धा से भय ल्ल अगर यह डर सता रहा है कि जिस सामान या सेवा को ले कर आप का स्टार्टअप आ रहा है, वह तो बाजार में पहले से मौजूद है, तो इस डर को मन से निकाल देना चाहिए. ध्यान रहे कि बाजार में वही टिकता है, जो बेहतर होता है. हमेशा दूसरों से बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए.

बदलाव का संकोच ल्ल आज जिस का सिक्का चल रहा है, जरूरी नहीं कि कल भी वही सेवा या सामान बिके. इसलिए स्टार्टअप को नए बदलावों और चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए.

धीमी शुरुआत ल्ल स्टार्टअप की सुस्त शुरुआत सारी मेहनत पर पानी फेर सकती है. जोरदार प्रचार और कड़ी प्रतिस्पर्धा ही जीत की कुंजी है.

कम पूंजी ल्ल जितने धन की जरूरत है, अगर उस से काफी कम पैसा ले कर स्टार्टअप शुरू किया जा रहा है, तो सफलता मिलने में काफी कठिनाई आ सकती है.

ज्यादा पैसा ल्ल इसी तरह वैंचर कैपिटलिस्ट या बैंक से जरूरत से ज्यादा कर्ज लेना भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है, क्योंकि दोनों ही अपनी पूंजी, पर अधिक ब्याज लेने या ज्यादा कमाई करने से नहीं चूकेंगे.

खुद मेहनत से बचना ल्ल अगर शुरुआत से ही यह मान लिया गया कि आप स्टार्टअप के मालिक हैं, तो ऐसे स्टार्टअप को बचाए रखना नामुमकिन हो जाता है.

ग्राहकों को न पहचान पाना ल्ल अगर किसी स्टार्टअप को यही नहीं मालूम कि उस के सामान व सेवाओं के ग्राहक कौन व कहां हैं, तो ऐसा स्टार्टअप खड़ा नहीं हो सकता.

कहां से लें मदद

केंद्र और राज्य सरकारें देश में स्टार्टअप के लिए बेहतर माहौल बना रही हैं, इसलिए अगर कोई युवा बेहतरीन विचार के साथ सरकारी संगठनों या निजी कंपनियों के पास सलाह और पूंजी की मांग करने जाता है, तो उसे वहां से पूरी मदद मिल सकती है. फिर भी अन्य कंपनियों की तरह स्टार्टअप को कुछ बुनियादी तैयारियां अवश्य कर लेनी चाहिए. जैसे, उसे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी अथवा सोल प्रोपराइटरशिप के तहत अपने स्टार्टअप का पंजीरकण कराना होगा.

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