सवाल
मैं और मेरी गर्लफ्रैंड विवाह करना चाहते हैं. घर वाले राजी नहीं हैं. क्या हमें घरवालों की रजामंदी के बगैर विवाह कर लेना चाहिए?
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जवाब
आप दोनों अगर बालिग हैं और अपने पैरों पर खड़े हैं तो घर वाले आप दोनों के विवाह के लिए क्यों राजी नहीं हैं? क्या आप का मामला अंतर्जातीय विवाह का है? अगर आप दोनों बालिग हैं, अपने पैरों पर खड़े हैं, एकदूसरे को अच्छी तरह जानते व समझते हैं और लगता है कि एकदूसरे के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार सकते हैं, तो विवाह कर लें. पर ध्यान रहे, आगे चल कर कोई भी समस्या हुई तो आप दोनों ही उस के लिए जिम्मेदार होंगे. प्यार में बड़ा दम होता है, वह बहुत सी समस्याओं का हल खुद है लेकिन जमीनी समस्याओं का. पर शारीरिक आकर्षण कहीं विवाह बाद फीका न पड़ जाए, यह आशंका रहती है. इसलिए आप ऐसा न होने दें.
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धर्म, संस्कृति व जाति से परे अंतर्राष्ट्रीय विवाह
टैक्नोलौजी बूम के इस दौर में ग्लोबल विलेज में तबदील होती दुनिया में शादियां भी तेजी से ग्लोबल होती जा रही हैं. अब अंतर्धार्मिक, अंतर्जातीय, अंतर्सांस्कृतिक, अंतर्राष्ट्रीय हर तरह की जोडि़यां बन रही हैं. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 5 फरवरी, 2018 को एक मामले के फैसले में साफ कह दिया है कि 2 वयस्कों की शादी में किसी तीसरे का दखल गैरकानूनी है. हालांकि विश्व के अन्य देशों में ऐसे कानून पहले से ही लागू हैं.
यों तो अमेरिका में भारतीय वर्षों से बस रहे हैं पर 1990 के बाद आए टैक्नोलौजी बूम के बाद अमेरिका में काफी संख्या में भारतीय आने लगे हैं. पुराने बसे भारतीयों की पहली पसंद की बहू तो भारतीय लड़की ही होती थी. पर 1990 के बाद अमेरिका आने वालों में से कुछ ने यहीं शादी की है. इन्हें अपनी शादी से संबंधित कुछ समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है. विशेषकर जब वे दूसरे धर्म या समुदाय में शादी करना चाहते हैं.
मातापिता की मानसिकता
अमेरिका में बसे भारतीय मूल के मातापिता, जिन की शादियां दशकों पहले हो चुकी थीं, उन में अंतर्जातीय लवमैरिज विरले ही होती थीं. दूसरे धर्म में शादी तो दूर की बात है. उनकी अरेंज्ड मैरिज होती थीं और ज्यादातर सफल ही होती थीं. इन में से लाखों ने सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली और कुछ ने डायमंड जुबली भी मनाई होंगी. उनकी मानसिकता अभी भी वही है कि जब हम अरेंज्ड मैरिज निभा सकते हैं तो हमारे बच्चे क्यों नहीं.
उन्हें डर है कि समाज क्या कहेगा या यह परिवार पर एक कलंक सा है. उन्हें लगता है कि अगर कोई बेटा या बेटी लवमैरिज करती है तो बाकी और परिवार के छोटे बच्चों की शादी में मुश्किल होगी, वे अपने बच्चों से काफी उम्मीद लगाए रहते हैं. उन्हें यह भी डर रहता है कि इस तरह की शादी से उनकी आशाएं धूमिल हो जाएंगी.
उनकी समझ में नहीं आ रहा है या वे समझना ही नहीं चाहते कि जमाना काफी बदल गया है. पहले वे पत्नी पर जिस तरह का दबाव रखते थे, आजकल की पढ़ी लिखी, कमाऊ बहू उसे बरदाश्त नहीं करेगी. यहां तक कि खुद उनके बच्चे भी अब ज्यादा स्वतंत्र होना चाहते हैं और अपनी खुशी से ही जीवनसाथी चुनना चाहते हैं.
अगर मातापिता नहीं मानते तो वे बगावत पर उतर आते हैं. चूंकि वे वयस्क हैं, इसलिए वे उनकी इच्छा के विरुद्ध लवमैरिज कर लेते हैं और कानून इसे मान्यता देता है. इस से मातापिता और बच्चों सभी को मानसिक क्लेश होता है, इस में दो मत नहीं हैं.
ज्यादातर मामलों में मातापिता भी आगे चल कर इन्हें स्वीकार कर लेते हैं. बच्चों की खुशी के लिए मातापिता शुरू से ही समझदारी दिखाएं तो रिश्तों में खटास की नौबत ही नहीं आएगी.
भावनात्मक लगाव में कमी
आधुनिकता और औद्दोगिकीकरण के युग में अभिभावक बच्चों को अपना ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं. इसलिए बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से उनके जुड़े होने में कमी आती है और बच्चे बड़े होकर अपने साथी में यह आत्मीयता ढूंढ़ते हैं और अमेरिका की तो बात ही कुछ और है.
जो युवा विदेश खासकर अमेरिका में बस गए हैं वे यहां के मुक्त और स्वच्छंद समाज में रहने के आदी हो गए हैं. इन के बच्चे तो बचपन से एलिमैंट्री स्कूल से लेकर कालेज की पढ़ाई और नौकरी तक अमेरिकी कल्चर में करते हैं. इन्हें अपनी पसंद में जाति, धर्म या नस्ल का कोई बंधन स्वीकार नहीं होता है.
देखा गया है कि अमेरिका में लगभग 28 से 30 प्रतिशत एशियन गैरएशियन से शादी करते हैं जिन में काफी भारतीय भी होते हैं.
मिक्स्ड मैरिज
अमेरिकी इंडियंस शिक्षा और कमाई दोनों मामलों में औसत अमेरिकी या किसी भी औसत एशियन (चीनी, जापानी, वियतनामी आबादी) से काफी ऊपर हैं. इसीलिए अगर इन्हें दूसरे धर्मों की लड़कियां पसंद करें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
अमेरिका में भारतीय मिक्स्ड मैरिज हो रही हैं. इन जोडि़यों को सामाजिक, धार्मिक, भावनात्मक और दार्शनिक वातावरण में सामंजस्य बिठाना होता है. शुरू में एडजस्ट करने की समस्या होती है और फिर उनके होने वाले बच्चे किस धर्म से जुड़ेंगे, इस की समस्या आती है.
एक ऐसा उदाहरण देखने को मिला जिसमें एक हिंदू लड़की मुसलिम लड़के से प्यार करती थी. दोनों काफी दिनों तक एक दूसरे से मिलते जुलते रहे थे और दोनों में प्यार भी था. पर जब शादी की बात आई तो लड़की पर लड़के के माता पिता द्वारा कई शर्तें थोपी गई थीं कि उसे मुसलिम धर्म अपनाना होगा. होने वाले बच्चों के मुसलिम नाम होंगे और उसे बुरका पहनना होगा, नौकरी छोड़ कर लड़के के साथ विदेश जाना होगा. बेचारी लड़की पर क्या गुजरी होगी, आप समझ सकते हैं. वह पूरी तरह टूट गई थी और काफी दिनों तक उसे डिप्रैशन में रहना पड़ा था. अंतर्धार्मिक प्रेम और शादी करने से पहले एक बार युवावर्ग को भी ठीक से सोचना चाहिए.
एक दूसरे मामले में एक हिंदू लड़के ने एक अफ्रीकी अमेरिकी से शादी की थी. लड़के के माता पिता को शुरू में काफी आपत्ति थी कि उनकी अगली पीढ़ी भी अमेरिका में ब्लैक अमेरिकी कहलाएगी और समाज उसे निम्न स्तर का मानेगा.
एक ऐसा भी उदाहरण है जहां एक दक्षिण भारतीय कट्टर हिंदू लड़के ने अपने मातापिता की अनुमति से ईसाई धर्म की अमेरिकी लड़की से शादी की. जब लोगों ने पूछा कि ऐसा क्यों किया तो लड़के के मातापिता ने कहा, ‘‘हमारे बच्चे का जन्म ही अमेरिका में हुआ था. शुरू से वह इसी संस्कृति में पला, तो हम उस से पुराने रीतिरिवाज की उम्मीद नहीं रखते हैं.
इतना ही नहीं, वे अपनी बहू से बहुत खुश हैं. उनके दोनों पोतों में एक का नाम हिंदू और एक का क्रिश्चियन है. परिवार में दोनों धर्मों के त्योहार मनाए जाते हैं.
अमेरिका में एक तरफ कुछ आप्रवासी भारतीय हिंदू भारतीय पत्नी को बेहतर चौइस मानते हैं. उनका कहना है कि भारतीय नारी कितनी भी पढ़ीलिखी और कमाऊ क्यों न हो,
वह पति के प्रति वफादार होती है और नौकरी करते हुए भी पारिवारिक जिम्मेदारियां बखूबी निभाती है. वहीं दूसरी तरफ, अमेरिका में जन्मी और पलीबढ़ी भारतीय मूल की लड़कियां अमेरिकी बौयफ्रैंड को बेहतर मानती हैं. उनका मानना है कि ज्यादातर भारतीय अभी भी पुरानी सोच वाले हैं जो पत्नी और बहू को दासी समझते हैं.
एक और अमेरिकी भारतीय हिंदू लड़की, जिसका पति अमेरिकी क्रिश्चियन है, भी अपने पति से बहुत खुश है. उस ने हिंदू और क्रिश्चियन दोनों रीतियों से शादी है. उस के बच्चों के हिंदू नाम हैं. उस का पति भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म का बहुत आदर करता है. वह भी अमेरिकन सोसाइटी की उतनी ही इज्जत करती है.
नई पीढ़ी के कुछ भारतीय बच्चों से जब पूछा कि आप के मातापिता को जब गैरभारतीय बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड पसंद नहीं हैं तो आप क्यों नहीं कोई भारतीय साथी चुनते हो तो उनका निर्भीक उत्तर था, ‘‘उन्होंने अपनी खुशी और कैरियर के लिए देश क्यों छोड़ दिया था. भारतीय संस्कृति की इतनी चिंता थी, तो हमें भी वहीं पैदा किया होता. अब जब हमारी खुशी का मौका आया तब वे दखल दे रहे हैं. आप उन्हें समझाएं, हमें नहीं.’’
समानता की सोच
अमेरिका में रहने वाली मैरी कोल्स बताती है कि उस का हैंडसम, ब्राइट और दिलफेंक भाई स्टीव एक बंगाली युवती शेफाली से शादी कर रहा है जो कालेज में उस की जूनियर थी.
दोनों की एक फोटो दिखाते हुए मैरी ने बताया कि कैसे पुराना परिचय दोस्ती में बदला, फिर डेटिंग शुरू हुई और सालभर के भीतर ही मंगनी के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.
मैरी ने बताया, स्टूडैंट वीजा के बाद 2 वर्षों के वर्क वीजा पर नौकरी करते हुए अमेरिकी नागरिक से शादी करके ओ ग्रीनकार्ड मिल जाएगा तो वापस भारत नहीं लौटना पड़ेगा. उच्चशिक्षा के लिए अमेरिका आने वाले बहुत से युवा ऐसा करने के बाद कालांतर में अमेरिकी नागरिक बन जाते हैं.
शेफाली के निर्णय के पीछे उस के जो भी निजी कारण रहे हों, अमेरिका में भारतीय मूल के अधिकांश परिवारों की बेटियां भी अमेरिकी वर चुनती हैं अपवाद की बात अलग. लेकिन पुरुषप्रधान आम भारतीय परिवारों की गृहिणी को ही गृहस्थी का अधिक बोझ उठाते देख कर शिक्षित और प्रोफैशनल रूप से महत्त्वाकांक्षी बेटी को अमेरिकी या अमेरिकी मानसिकता वाले युवक में वांछित जीवनसाथी दिखता है. ऐसा जीवनसाथी जो घर के हर छोटेबड़े काम में स्वेच्छा से बराबर का साझेदार होगा.
स्थायित्व की संभावना
विदेशों में बसने वाले भारतीय युवाओं को लगता है कि विदेशी पत्नी होने से वहां के समाज में उन्हें और उनकी संतान को प्रतिष्ठा मिलेगी.
फूड साइंटिस्ट डा. त्रिवेणी शुक्ला और उनकी पत्नी गिरिजा अमेरिका में अपने दशकों पुराने प्रवास के दौरान पूर्वी और पश्चिमी संस्कारों में सुंदर सामंजस्य स्थापित करते रहे.
अन्य भारतीय परिवारों की तरह शुक्ला दंपती की अपने बच्चों से भी यही उम्मीद थी. उनकी दोनों बेटियों और पुत्र ने अमेरिकी जीवनसाथी चुने तो मित्रों और स्वजनों में भारी आलोचना स्वाभाविक थी.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद बड़ी बेटी रेखा ने सोच रखा था कि वह अपनी शैक्षिक और प्रोफैशनल महत्त्वाकांक्षा को विवाह जैसे अहम निर्णय पर हावी नहीं होने देगी. आज 2 दशकों बाद शुक्ला परिवार के शुभचिंतक इस विवाह को आदर्श मानते हैं.
पौलिसी राइटर रेणु शुक्ला और फाइनैंस डायरैक्टर एरिक जरेट््स्की अमेरिकी मुख्यधारा की 2 उच्छवल तरंगें मिल कर सशक्त प्रवाह बनीं.
उत्तर प्रदेशीय ब्राह्मण परिवार में जन्मी और पलीबढ़ी सुकन्या के संस्कार %
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