गरमी से भरपूर अप्रैल का महीना भी खेती किसानी के लिहाज से अन्य महीनों की तरह ही खास होता है. अप्रैलफूल से शुरू होने वाले इस महीने के मूर्ख बनाने वाले मकसद में ज्यादा किसानों की दिलचस्पी नहीं होती, मगर इस महीने का बैसाखी का त्योहार उन के लिए खास होता है. वैसे भी कुछ ही अरसा पहले आई होली को भी वे इतनी जल्दी नहीं भूलते और उसी नशे में अपने कामों में जुटे रहते हैं.

जश्न और मौजमजे से हट कर अप्रैल में रबी की तमाम फसलों की कटाई चालू हो जाती है और जायद की फसलें खेतों में शबाब पर पहुंच रही होती हैं. पेश है एक ब्योरा अप्रैल के दौरान होने वाले खेती से जुड़े खासखास कामों का :

* शुरुआत रोटी की फसल यानी गेहूं से करें तो अप्रैल तक गेहूं की फसल पक कर तैयार हो चुकी होती है. ऐसे में अप्रैल में गेहूं की कटाई का काम ही सब से ज्यादा जरूरी माना जा सकता है. गेहूं की कटाई खत्म करने के बाद जो सुकून किसानों को मिलता है, वह अनोखा होता है.

* बात गेहूं की कटाई पर ही नहीं थम जाती. गेहूं की फसल को बाकायदा सुखा कर उस की गहाई करना भी बेहद अहम होता है.

* आमतौर पर अपने गेहूं को किसान जल्दी से जल्दी बेच कर पैसे खड़े करने में यकीन करते हैं. सरकार भी बड़े पैमाने पर गेहूं की खरीद करती है. मगर दाम कम होने या किसी दूसरी वजह से गेहूं को फौरन न बेच कर उस का भंडारण करना पड़े तो उस के लिए नवीनतम तकनीक को अपनाना चाहिए.

* एक जमाने में भले ही चने की इज्जत नहीं थी और उसे नौकरचाकरों व गरीबों का अन्न माना जाता था, मगर अब चने के दिन फिर चुके हैं और उस की हैसियत किसी सुपर स्टार अनाज जैसी है. यह स्टार अनाज भी अप्रैल तक पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाता है, लिहाजा इस की कटाई भी फटाफट निबटा लेनी चाहिए. आजकल कमाई के लिहाज से चने की फसल का गेहूं से कहीं ज्यादा रुतबा है.

*  चने की समय से बोई गई फसल तो अप्रैल में कटाई लायक हो जाती है, पर देरी से बोई गई फसल काटने लायक होने में कुछ और वक्त लगता है. अप्रैल के आसपास इस में दाने तो पड़ने लगते हैं, मगर कटाई की नौबत अगले महीने तक आती है.

* चने की देरी से बोई जाने वाली फसल की कटाई तो देरी से ही होगी, लेकिन इस की देखभाल में कोताही न बरतें. इस दौरान इस में फलीछेदक कीट के हमले का डर रहता है. अगर ऐसा अंदेशा लगे तो कृषि वैज्ञानिकों से राय ले कर मुनासिब दवा का इस्तेमाल करें.

* वैसे तो आजकल मौसम का कोई दीनईमान नहीं रह गया है यानी कभी भी जाड़ा, गरमी या बरसात का नजारा देखने को मिल सकता है, लेकिन मोटे तौर पर अप्रैल में बारिश नहीं होती है. अकसर अप्रैल के दौरान खेत सूखने लगते हैं, ऐसी हालत में गन्ने के खेतों में सिंचाई करते रहना चाहिए.

* सिंचाई के अलावा अपने गन्ने के खेत में सही तरीके से निराईगुड़ाई करें और खरपतवारों के प्रति सजग रहें, क्योंकि खरपतवार गन्ने की खुराक में हिस्सा बंटा लेते हैं.

* गन्ने के खेत की निराईगुड़ाई से पहले खेत में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद व कंपोस्ट खाद डालें. केंचुआ खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. खाद डालने के बाद कायदे से निराईगुड़ाई करने से तमाम किस्म की खादें खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाती हैं. इस से मिट्टी की पानी सोखने की कूवत में खासा इजाफा होता है. नतीजतन गन्ने ज्यादा बेहतर और रसीले होते हैं और उपज में भी इजाफा होता है.

* अप्रैल के दौरान ही बैसाखी की मूंग बोने का भी माकूल समय होता है. बोआई का यह काम मध्य अप्रैल तक निबटा लेना मुनासिब होता है.

* पिछले महीने बोई गई मूंग की भी खोजखबर लेते रहना चाहिए. आमतौर पर इस दौरान इसे सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है. अगर मूंग के खेत सूखे होते नजर आएं तो बगैर वक्त बरबाद किए सिंचाई करें.

* गेहूंचना, दालचावल वगैरह इनसानों के लिए जरूरी होते हैं, तो जानवरों यानी मवेशियों को भी हमेशा चारे की दरकार रहती है. मवेशियों के चारे के लिए अप्रैल में बाजरा, मक्का व लोबिया वगैरह की बोआई की जा सकती है.

* 2 महीने पहले बोई गई चारे की फसलों को नाइट्रोजन की खुराक मुहैया कराएं. इस के लिए खेत में यूरिया खाद का इस्तेमाल करें और खेत में नमी बराबर बरकरार रखें.

* सूरजमुखी की फसल में अप्रैल तक फूल आने लगते हैं. इस दौरान खेत की निराईगुड़ाई करना बेहद जरूरी होता है. निराईगुड़ाई करने से फूलों की तादाद व क्वालिटी पर काफी असर पड़ता है.

* सूरजमुखी के खेत अगर सूख रहे हों, तो फौरन सिंचाई करें. पौधों की बढ़वार में कोई कसर नजर आए, तो यूरिया खाद का छिड़काव करें.

* अप्रैल के पहले हफ्ते के दौरान तुरई की नर्सरी डालें, ताकि सही वक्त पर पौध तैयार हो सकें. पिछले महीनों के दौरान डाली गई नर्सरी की पौध तैयार हो चुकी होगी, लिहाजा रोपाई का काम निबटाएं. रोपाई 50×100 सेंटीमीटर के फासले पर करें. रोपाई के बाद हलकी सिंचाई जरूर करें.

* अप्रैल में अरवी की अगेती किस्मों की बोआई का काम निबटा दें, ताकि समय पर फसल हाथ आ सके.

* अप्रैल में फूलगोभी की बीज वाली फसल कटाई लायक हो जाती है, लिहाजा इस की कटाई का काम खत्म करें. काटने के बाद फसल को सुखा कर बीज निकालें. बीजों को बाकायदा पैक कर के उन का भंडारण करें.

* साल की शुरुआत में नर्सरी में तैयार किए गए लौकी व करेले के पौधों की रोपाई करें. लौकी के पौधों की रोपाई 2×1 मीटर दूरी पर और करेले के पौधों की रोपाई 150×60 सेंटीमीटर के फासले पर करें.

* पिछले महीने रोपी गई बैगन की क्यारियों में निराईगुड़ाई करें. नमी कम लगे तो सिंचाई भी जरूर करें. बेहतर फसल के लिए यूरिया खाद का इस्तेमाल करें.

* अप्रैल तक गाजर व मूली की बीज वाली फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है, लिहाजा उस की कटाई करें. फिर फसल को सुखा कर बीज निकालें. बीजों को सही तरीके से सुखा कर पैक करें और फिर भंडारण करें.

* शिमला मिर्च के खेतों में निराईगुड़ाई कर के जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. नाइट्रोजन की कमी दूर करने के लिए यूरिया खाद का इस्तेमाल करें. इस से फसल उम्दा होगी.

* इसी महीने अदरक की बोआई का काम भी निबटाएं. बोआई के लिए करीब 20 ग्राम वजन के कंदों का इस्तेमाल करें. अदरक की बोआई 30-40 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ें बना कर करें. 2 कंदों के बीच करीब 20 सेंटीमीटर का फासला रखें.

* अप्रैल के दौरान ही लहसुन की फसल की खुदाई का काम भी निबटाएं. खोदने के बाद फसल को 3 दिनों के लिए खेत में ही छोड़ दें. चौथे दिन फसल को छायादार जगह पर रखें और ठीक से सुखाएं. पूरी तरह सूखने के बाद ही लहसुन का भंडारण करें.

* आमखोर लोग अप्रैल से ही आमों की बाट जोहने लगते हैं. अपने आम के बागों की सिंचाई करें, ताकि नमी कायम रहे. पेड़ों पर बीमारियों या कीड़ों के लक्षण दिखाई दें तो फौरन कृषि वैज्ञानिक की राय से बचाव का इंतजाम करें.

* अपने अमरूद के बागों  की भी सफाई करें और जरूरत के हिसाब  से निराईगुड़ाई व सिंचाई करें. कीटबीमारियों के हमले नजर आएं तो उन का भी इलाज करें.

* ठंड का दौर थमने से मवेशियों को बेहद राहत मिलती है, मगर उन के प्रति लापरवाही न बरतें. कोई भी मौसम पशुओं को अपनी चपेट में ले सकता है, लिहाजा मौका निकाल कर माहिर डाक्टर से अपने मवेशियों की जांच कराएं.

* पशुओं का डाक्टर कोई दवा वगैरह बताए, तो उस के इस्तेमाल में लापरवाही न बरतें. पशुओं को जरूरी टीके वगैरह लगवाने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए.

* भारीभरकम मवेशियों के साथसाथ छोटेमोटे मुरगामुरगी व चूजों का भी पूरा खयाल रखना लाजिम है, लिहाजा पशुओं के डाक्टर से उन की भी जांच कराएं.

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