अपने राजनैतिक जीवन के कठिन दिन जैसे तैसे काट रहे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह इन दिनो वाकई ज्यादा परेशान हैं, इसकी वजहें कई हैं पर इनमें सबसे बड़ी यह है कि वे अपनी धार और पैनापन खोते जा रहे हैं. हालांकि बढ़ती उम्र के चलते यह स्वभाविक भी है. लेकिन उन्हे नज़दीक से जानने वाले इस बात पर भी हैरान हैं, कि आरएसएस के प्रति उनके तेवर पहले से सख्त और तार्किक नहीं रह गये हैं. अब दिग्विजय ने  ट्वीट कर प्रधानमंत्री पर ताना यह कसा है कि पार्टनर न हो तो मन की वात सार्वजनिक रूप से करना पड़ती है.

इस ताने के अपने मायने हैं कि नरेंद्र मोदी ने अपनी पत्नी जसोदा बेन को घोषित तौर पर छोड़ रखा है, लेकिन इस बात पर उम्मीद के मुताबिक बवाल नहीं मचता. पत्नी को छोड़ना कोई संगीन गुनाह भी नहीं है, बशर्ते पत्नी कोई गंभीर आरोप पति पर न लगाये. जसोदा बेन ने अभी तक तो पति की शान के खिलाफ कोई वात नहीं कही है, लेकिन दिग्विजय की मंशा यह है कि यह मामला तूल पकड़े, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी कांग्रेस मोदी को घेर नहीं पा रही है.

भाजपा खेमे ने दिग्विजय के इस तंज़ को नज़रंदाज़ कर देना ही बेहतर समझा, वजह इस पर दी गई कोई भी प्रतिक्रिया दिग्विजय की मंशा को पूरा करने वाली बात होती. यही वात दिग्विजय की घटती साख की वजह है कि अब लोग उनका अभिप्राय समझने लगे हैं, जबकि कामयाब राजनेता होने की पहली शर्त यह भी होती है कि आप के मन की वात पत्नी भी न समझ पाये, रही वात पत्नियों से मन की बात साझा करने कि तो हर समझदार पति पत्नी को मन की बताता कम है छुपाता ज्यादा है.

उधर भाजपा खेमे से आई तत्कालिक प्रतिक्रिया भी कम दिलचस्प नहीं थी कि पार्ट्नर इतने भी नहीं होने चहिये कि मन की बात सुनने में आपस मे झगडा करने लगें. जाहिर है इशारा दिग्विजय की नई पत्नी अमृता राय की तरफ़ था, यानि एक गम्भीर मसले को भाजपा फाग के हँसी मजाक मे समेटने मे कामयाब रही, लेकिन जोश जोश मे अगर कोई भाजपाई इस पर बोला, जिसकी उम्मीद कम ही है तो वह अपने नेता को ही परेशानी मे डालने वाली बात होगी. राजनीति मे व्यक्तिगत मामलों पर कटाक्ष करना नई वात नहीं, पर दिग्विजय के ट्वीट से यह बात तो उजागर हुई कि नरेंद्र मोदी को भगवान साबित करना आसान काम नहीं है. एक कमजोरी उनकी जिंदगी मे भी है जिसे दिग्विजय सरीखे धुर विरोधी जब तब उठाकर फ़साद खड़ा करने की कोशिशों से बाज नहीं आयेंगे.

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