स्मृतियों ने साथ न छोड़ा
मनबसियों ने साथ न छोड़ा
धुंधले हुए चित्र बचपन के
कौन सुनाए परीकथाएं
ऐसी नींद नहीं आती अब
जिन में फिर वो सपने आएं
पर सपनों में जो आती थीं
उन परियों ने साथ न छोड़ा
जीवन की आपाधापी में
जाने कितने साथी छूटे
जग में मनभावन उपवन के
छूटे कितने ही गुलबूटे
जिन की गंध बसी थी मन में
उन कलियों ने साथ न छोड़ा
यायावर हम निपट अकेले
रह पाए किस घर के हो के
चौखट ऐसी कोई नहीं थी
कर मनुहार हमें जो रोके
पर हम साथ जहां चलते थे
उन गलियों ने साथ न छोड़ा.
– आलोक यादव
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