भारत में ऐतिहासिक पर्यटन के लिए कुछ शहर बहुत खास हैं. अच्छी बात यह है कि आगरा, फतेहपुर सीकरी, भरतपुर, जयपुर, अजमेर और उदयपुर एकसाथ घूमा जा सकता है. इसे भारत का हैरिटेज कौरिडोर भी कह सकते हैं. ये सभी शहर अपनी स्थापत्यकला का नमूना तो हैं ही, प्राकृतिक रूप से भी ये शहर बहुत संपन्न हैं. ये सभी शहर आवागमन के आधुनिक साधनों व सुखसुविधाओं से युक्त हैं. यहां खरीदारी के लिए अनेक बाजार हैं तो रहने के लिए होटलों की कमी नहीं है.

देश का यह हैरिटेज कौरिडोर ‘बजट टूरिज्म’ की तरह है. यहां हर किसी को अपने बजट में रह कर पर्यटन करने का अवसर मिल सकता है. हैरिटेज कौरिडोर के इन 6 शहरों आगरा, फतेहपुर सीकरी, भरतपु़र, जयपुर, अजमेर और उदयपुर का मौसम एकसा रहता है जिस से पर्यटकों को आबोहवा के साथ तालमेल बिठाना आसान रहता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब होने के कारण यहां तक पहुंचना भी आसान है.

दुनिया में मशहूर ताजनगरी आगरा

ताजनगरी आगरा उत्तर प्रदेश का एक बहुत ही खास पर्यटन स्थल है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो ताज के साथ फतेहपुर सीकरी और आगरा का किला भी जरूर देखें. ताजमहल आगरा ही नहीं, पूरे विश्व की सब से प्रसिद्ध जगह है. ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था. यह सफेद संगमरमर से बना हुआ है, इस को बनाने में 22 साल लगे.

ताजमहल को मुगलशैली के 4 बागों के साथ बनाया गया है. ताज का निर्माण फारसी वास्तुकार उस्ताद ईसा खां के निर्देशन में हुआ था. ताजमहल को आगरा किला से भी देखा जा सकता है. शाहजहां को जब औरंगजेब ने आगरा किला में कैद कर दिया था तो उस समय वह वहां से ही ताजमहल को निहारा करता था.

ताजमहल का मुख्यद्वार भी बहुत ही आकर्षक है. इस के ऊपर 22 छोटे गुंबद हैं. इन से ताजमहल के बनने में लगे समय का पता चलता है. ताजमहल को बनाने से पहले लाल बलुआ पत्थर का बड़ा चबूतरा बनाया गया था. इस के बाद सफेद संगमरमर से ताजमहल का निर्माण कराया गया. ताज की सुंदरता इस के ऊंचे गुंबद हैं. यह 60 फुट व्यास और 80 फुट ऊंचाई के बने हैं. इस के नीचे मुमताज महल की कब्र बनी हुई है, ताजमहल के बनाने में बहुमूल्य रत्नों और पत्थरों का प्रयोग किया गया था. सफेद संगमरमर से बने ताजमहल के पास मखमली घास का मैदान है. जहां गरमी की शाम का मजा लिया जा सकता है. इस के पीछे यमुना नदी बहती है. ताजमहल अपने अंदर बहुत सारी खूबियां समेटे हुए है. इस का एक हिस्सा गरमी में भी सर्दी की ठंडक का एहसास कराता है. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. ताजमहल के सामने बैठ कर पर्यटक फोटो खिंचवाना नहीं भूलते हैं.

आगरा का किला, ताजमहल की ही तरह अपने इतिहास के लिए पहचाना जाता है. यह किला विश्व धरोहर माना जाता है. इस को आगरा का लालकिला भी कहा जाता है. इस का निर्माण 1565 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा कराया गया था. इस के बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने इस का पुनर्निर्माण कराया.

आगरा किला में संगमरमर और नक्काशी का महीन काम दिखाई देता है. इस किले में जहांगीर महल, दीवाने खास, दीवाने आम और शीशमहल देखने वाली जगहें हैं. यह किला अर्द्धचंद्राकार आकृति में बना है. इस की दीवार सीधे यमुना नदी तक जाती है. आगरा का किला 2.4 किलोमीटर परिधि तक फैला हुआ है. सुरक्षा के लिहाज से किले की दीवारों को मजबूत बनाया गया है. इस के किनारे गहरी खाई और गड्ढे बनाए गए थे.

फतेहपुर सीकरी आगरा से 35 किलोमीटर दूर बसा है. इस का निर्माण अकबर ने कराया था. यहां पर सलीम चिश्ती की दरगाह है. इस कारण अकबर ने अपनी राजधानी आगरा से हटा कर फतेहपुर सीकरी कर ली थी. यहां पर कई इमारतें बनी हैं जो मुगलकाल की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं.

फतेहपुर सीकरी में पानी की कमी के कारण अकबर को अपनी राजधानी वापस आगरा लानी पड़ी थी. फतेहपुर सीकरी के गेट को बुलंद दरवाजा कहते हैं. कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा बिना नींव के बनाया गया है.

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भरतपुर

भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर होने के साथसाथ देश का सब से प्रसिद्ध पक्षी उद्यान भी है. 29 वर्ग किलोमीटर में फैला यह उद्यान पक्षीप्रेमियों के लिए बेजोड़ है. विश्व धरोहर सूची में शामिल इस स्थान पर प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है. भरतपुर शहर की स्थापना जाट शासक राजा सूरजमल ने की थी. अपने समय में यह जाटों का गढ़ हुआ करता था. यहां के मंदिर, महल व किले जाटों के कलाकौशल की गवाही देते हैं. भारत में यह एक हैरिटेज शहर के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. यहां बर्ड सैंचुरी देखने दुनियाभर से लोग आते हैं. राष्ट्रीय उद्यान के अलावा भी देखने के लिए यहां अनेक स्थान हैं.

भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान केवलादेव घना के नाम से भी जाना जाता है. घना नाम घने वनों की ओर संकेत करता है जो एक समय इस उद्यान को घेरे हुए था. यहां करीब 375 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं जिन में यहां रहने वाले और प्रवासी पक्षी शामिल हैं. यहां भारत के अन्य भागों से तो पक्षी आते ही हैं, साथ ही यूरोप, साइबेरिया, चीन, तिब्बत आदि जगहों से भी प्रवासी पक्षी आते हैं. पक्षियों के अलावा सांभर, चीतल, नीलगाय आदि पशु भी यहां पाए जाते हैं. भरतपुर का लोहागढ़ किला एक हैरिटेज दर्शनीय स्थल है. महाराजा सूरजमल ने यहां एक अभेद्य किले की परिकल्पना की थी जिस की शर्त यह थी कि पैसा कम लगे और मजबूती में वह बेमिसाल हो.

फलस्वरूप किले के दोनों तरफ मजबूत दरवाजे हैं जिन पर लोहे की नुकीली सलाखें लगाई गई हैं. उस समय तोपों और बारूद का काफी ज्यादा प्रचलन था, जिस से किलों की मजबूत से मजबूत दीवारों को आसानी से ढहाया जा सकता था, इसलिए पहले किले की चौड़ीचौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंचीऊंची प्राचीरें बनाई गईं. अब इन पर तोप के गोलों का असर न हो, इस के लिए इन दीवारों के चारों ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गई. नीचे सैकड़ों फुट गहरी और चौड़ी खाई बना कर उस में पानी भरा गया, जिस से दुश्मन द्वारा तोपों के गोले दीवारों पर दागने के बाद मिट्टी में धंस कर दम तोड़ दें. अगर वे नीचे की ओर प्रहार करें तो पानी में शांत हो जाएं. और पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नहीं, असंभव था.

मुश्किल वक्त में किले के दरवाजों को बंद कर के सैनिक सिर्फ पक्की दीवारों के पीछे और दरवाजों पर मोरचा ले कर किले को आसानी से अभेद्य बना लेते थे. इस किले में लेशमात्र भी लोहा नहीं लगा  और अपनी अभेद्यता के बल पर यह लोहागढ़ कहलाया. इस ने समयसमय पर दुश्मनों के दांत खट्टे किए और अपना लोहा मनवाने में शत्रु को मजबूर किया.

लोहागढ़ किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था. किले के चारों ओर गहरी खाई है जो इसे सुरक्षा प्रदान करती है. लोहागढ़ किला इस क्षेत्र के अन्य किलों के समान वैभवशाली नहीं है लेकिन इस की ताकत और भव्यता अद्भुत है.

किले के अंदर महत्त्वपूर्ण स्थान हैं किशोरी महल, महल खास, मोती महल और कोठी खास. सूरजमल ने मुगलों और अंगरेजों पर अपनी जीत की याद में किले के अंदर जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज बनवाए. वहां अष्टधातु से निर्मित एक द्वार भी है जिस पर हाथियों के विशाल चित्र बने हुए हैं.

आसपास के दर्शनीय स्थल

भरतपुर से 34 किलोमीटर उत्तर में डीग नामक बागों का खूबसूरत नगर है, इसे डीग कहते हैं. शहर के मुख्य आकर्षणों में मनमोहक उद्यान, सुंदर फौआरा और भव्य जलमहल शामिल हैं. यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. डीग के राजमहलों में निर्मित गोपाल भवन का निर्माण वर्ष 1780 में किया गया था. खूबसूरत बगीचों से सजे इस भवन से गोपाल सागर का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है. भवन के दोनों ओर 2 छोटी इमारतें हैं, जिन्हें सावन भवन और भादो भवन के नाम से जाना जाता है.

भरतपुर के आसपास घूमना तब तक अधूरा है जब तक डीग किला नहीं देख लिया जाता. राजा सूरजमल ने इस किले का निर्माण कुछ ऊंचाई पर करवाया था. किले का मुख्य आकर्षण यहां की घड़ी मीनार है, जहां से न केवल पूरे महल को देखा जा सकता है बल्कि नीचे शहर का नजारा भी लिया जा सकता है. इस के ऊपर एक बंदूक रखी है जो आगरा किले से यहां लाई गई थी. ऊंची दीवारों और द्वारों से घिरे इस किले के अब अवशेष मात्र ही देखे जा सकते हैं.

भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान एशिया में पक्षियों के समूह प्रजातियों वाले सर्वश्रेष्ठ उद्यान के तौर पर प्रसिद्ध है. भरतपुर की गरम जलवायु में सर्दी बिताने के लिए हर वर्ष साइबेरिया के दुर्लभ सारस आते हैं. एक समय में भरतपुर के राजकुंवरों का शाही शिकारगाह रहा यह उद्यान विश्व के उत्तम पक्षी विहारों में से एक है जिस में पानी वाले पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियों की भरमार है.

गरम तापमान में सर्दी बिताने अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत से प्रवासी चिडि़यों की मोहक किस्में और साइबेरिया से भूरे पैरों वाले हंस और चीन से धारीदार सिर वाले हंस जुलाईअगस्त में यहां आते हैं और अक्तूबरनवंबर तक उन का यहां प्रवास काल रहता है. उद्यान के चारों ओर जलकौओं, स्पूनबिल, लकलक बगलों, जलसिंह इबिस और भूरे बगलों के समूह देखे जा सकते हैं.

देश का सब से बड़ा हैरिटेज शहर जयपुर

 

 

जयपुर, जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान की राजधानी है. इस शहर की स्थापना 1728 में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी. जयपुर अपनी समृद्धि, भवन निर्माण परंपरा, सरस संस्कृति और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है. यह शहर तीनों ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है. जयपुर शहर की पहचान यहां के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहां के स्थापत्य की खूबी है.

1876 में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंगलैंड की महारानी एलिजाबेथ, प्रिंस औफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था. तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी यानी पिंक सिटी पड़ा है. राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा. जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल का हिस्सा भी है. इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं. भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है.

शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है. इस में प्रवेश के लिए 7 दरवाजे हैं. शहर में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान है. पुराने शहर के उत्तरपश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है. इस के अलावा यहां मध्य भाग में सवाई जयसिंह द्वारा बनवाई गई वैधशाला और जंतरमंतर भी हैं. 17वीं शताब्दी में जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी. ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत, एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी.

जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह को तब मीलों के दायरे में फैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिए आमेर छोटा लगने लगा और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई.

जयपुर में खरीदारी

जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौंदर्य को देखने के लिए कुछ खास नजर चाहिए, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पलभर में इस का सौंदर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है.

जयपुर के दर्शनीय स्थलों में जंतरमंतर, हवा महल, सिटी पैलेस, बीएम बिड़ला तारामंडल, आमेर का किला, जयगढ़ दुर्ग आदि शामिल हैं. जयपुर के रौनकभरे बाजारों में दुकानें रंगबिरंगे सामानों से सजी रहती हैं, जिन में हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त व वनस्पति रंगों से बने वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान, राजस्थानी चित्रकला के नमूने, नागरामोजरी जूतियां, ब्लू पौटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफेद संगमरमर की मूर्तियां आदि सामान दिख जाते हैं. प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एमआई रोड के साथ लगे बाजार हैं.

स्थापत्यकला में अनूठा है अजमेर

अजमेर अरावली पर्वत श्रेणी की तारागढ़ पहाड़ी की ढाल पर स्थित है. यह नगर 7वीं शताब्दी में अजयराज सिंह नामक एक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था. इस नगर का मूल नाम ‘अजयमेरू’ था. अजमेर में मेघवंशी, जाट, गुर्जर, रावत, ब्राह्मण, गर्ग, भील व जैन समुदाय का बहुमत है.

नगर के उत्तर में अनासागर तथा कुछ आगे वायसागर नामक कृत्रिम झीलें हैं. यहां फकीर मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा प्रसिद्ध है. अढ़ाई दिन का झोंपड़ा एक ऐतिहासिक इमारत है, जिस में कुल 40 स्तंभ हैं और सब में नएनए प्रकार की नक्काशी है. कोई भी 2 स्तंभ नक्काशी में समान नहीं हैं. तारागढ़ पहाड़ी की चोटी पर एक दुर्ग भी है. यहां पर नमक का व्यापार होता है जो सांभर झील से लाया जाता है. यहां खाद्य, वस्त्र तथा रेलवे के कारखाने हैं. तेल तैयार करना भी यहां का एक प्रमुख व्यापार है.

तारागढ़ और हैप्पी वैली अजमेर की सब से ज्यादा घूमने वाली जगहें हैं. यह भारत का पहला पहाड़ी दुर्ग माना जाता है. इस के अनूठे सामरिक स्थापत्य और पहाड़ी की दुर्गमता को देख कर विशप हैबर ने लिखा कि थोड़ी सी यूरोपियन तकनीक के सहारे इसे विश्व का दूसरा जिब्राल्टर बनाया जा सकता था.

80 एकड़ क्षेत्र में फैले इस किले का आरंभिक नाम अजयमेरू दुर्ग था जिस का निर्माण 7वीं सदी में अजयपाल चौहान ने आरंभ किया था. यह समुद्रतल से 2,885 फुट और मैदानी सतह से 1,300 फुट ऊंचाई पर है. यह दुर्ग अपनी नींव से 900 फुट ऊंचा है. केवल दक्षिण भाग को छोड़ कर यह किला दुर्गम रहा है. चूंकि यह बीटली पहाड़ी पर बना है इसलिए इसे गढ़ बीटली भी कहते हैं. वर्ष 1506 में चित्तौड़ के राणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया और अपनी पत्नी तारा के नाम पर इस का नामकरण तारागढ़ कर दिया.

दुर्ग तक जाने के लिए पहले एक ही चट्टानी रास्ता था जो दुर्गम और जोखिमभरा था. बाद में अंगरेजों ने 2 अन्य मार्ग बनवाए. एक दक्षिण में नसीराबाद से जाने वाले सैनिकों के लिए और दूसरा अंदरकोट वाला रास्ता.

किले के भीतर बड़ा झालरा और कचहरी वाला भवन, ये मूल अवशेष चौहान काल के बताए जाते हैं. पानी के स्रोत के रूप में वहां नाना साहब का झालरा, इब्राहिम का झालरा, गोल झालरा आदि अभी भी देखे जा सकते हैं.

अजमेर स्थित अनासागर भारत की सुंदरतम 10 झीलों में शामिल है. 1135-1140 में अजमेर के चौहान राजा अर्णाराज ने इस का निर्माण कराया. पहले यहां मैदान था और उस मैदान में मुसलिम सेना के साथ चौहानों का जोरदार युद्घ हुआ. अर्णाराज की सेना विजेता रही. फिर यहां झील बनवाई गई. पूरब दिशा में 20 फुट चौड़ा और 1,012 फुट लंबा बांध बनवाया गया. यह बांध 2 छोटी पहाडि़यों के बीच बनवाया गया और चंद्रभागा नदी के पानी को रोक कर उसे झील का रूप दे दिया गया.

झीलों का शहर उदयपुर

बनास नदी पर नागदा के दक्षिणपश्चिम में उपजाऊ परिपत्र गिर्वा घाटी में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने 1559 में उदयपुर को स्थापित किया था. इसे मेवाड़ राज्य की नई राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था. इस क्षेत्र ने पहले से ही मेवाड़ की राजधानी के रूप में कार्य किया था, जो तब एक संपन्न व्यापारिक शहर था. महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने इस शहर की खोज के बाद इस झील का विस्तार कराया था. झील में 2 द्वीप हैं और दोनों पर महल बने हुए हैं. एक है जग निवास जो अब लेक पैलेस होटल बन चुका है और दूसरा है जग मंदिर. दोनों ही महल राजस्थानी शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण हैं. बोट द्वारा जा कर इन्हें देखा जा सकता है.

जग निवास द्वीप पिछोला झील पर बने द्वीप पैलेस में से एक महल है जो अब एक सुविधाजनक होटल का रूप ले चुका है. कोर्टयार्ड, कमल के तालाब और आम के पेड़ों की छांव में बना स्विमिंगपूल मौजमस्ती करने वालों के लिए आदर्श स्थान है. यहां आएं और रहने तथा खाने का आनंद लें, किंतु आप इस के भीतरी हिस्सों में नहीं जा सकते.

जग मंदिर पिछोला झील पर बना एक अन्य द्वीप पैलेस है. यह महल महाराजा करण सिंह द्वारा बनवाया गया था, किंतु महाराजा जगत सिंह ने इस का विस्तार कराया. महल से बहुत शानदार दृश्य दिखाई देते हैं. इस गोल्डन महल की सुंदरता दुर्लभ और भव्य है. सिटी पैलेस उदयपुर के जीवन का अभिन्न अंग है. यह राजस्थान का सब से बड़ा महल है. इस महल का निर्माण शहर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने करवाया था. उन के बाद आने वाले राजाओं ने इस में विस्तार कार्य किए. महल में जाने के लिए उत्तरी ओर से बड़ीपोल और त्रिपोलिया द्वार से प्रवेश किया जा सकता है.

शिल्पग्राम में गोवा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के पारंपरिक घरों को दिखाया गया है. यहां इन राज्यों के शास्त्रीय संगीत और नृत्य भी प्रदर्शित किए जाते हैं.

उदयपुर शहर के दक्षिण में अरावली पर्वतमाला के एक पहाड़ की चोटी पर इस महल का निर्माण महाराजा सज्जन सिंह ने करवाया था. यहां गरमी में भी अच्छी ठंडी हवा चलती है. सज्जनगढ़ से उदयपुर शहर और इस की झीलों का सुंदर नजारा दिखता है. पहाड़ की तलहटी में अभयारण्य है. सायंकाल में यह महल रोशनी से जगमगा उठता है, जो देखने में बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है.

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