नहीं बचा सके तुम लाज
अपनी द्रौपदी की
चाहिए आज कितने भीम
पैदा हो गए हैं दुशासन बहुत
द्रौपदी
तुम को तो फिर भी
मिल गया था दुशासन की
छाती का लहू
केश धोने को
आज की द्रौपदियां
विवश हैं रोने को
गर होती तुम आज तो
कोई अर्जुन तुम्हारे लिए
गांडीव नहीं उठाता
नहीं बची अब चेतना
इंद्र के गुनाहों पर
बना दी गई हैं पत्थर की
अहल्याएं कई
आज के रावण के
केवल दस शीश नहीं हैं
वे खड़े हैं
हर गलीनुक्कड़ पर
तुम आज किसी अवतार की
राह मत जोहो
तुम समेट अपनी शक्ति
करो कोशिश पुरजोर
यह जग जंग का
मैदान है
तुम डट जाओ इस पर
कोई आंधी नहीं बुझा सकेगी
तुम्हारी हिम्मत के दीप को
कोई पराजय नहीं बदल
पाएगी तुम्हारी जीत को.
– अनु
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