दोस्तो, ‘लूट इंडिया लूट’ रिऐलिटी शो के इतिहास में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है. आज तक हम टीवी पर केवल मनोरंजन प्रधान कार्यक्रम ही देखते थे. ज्ञान प्रधान प्रोग्राम नहीं. प्रश्नोत्तरी पर आधारित एकदो टुच्चे प्रोग्रामों को ज्ञान प्रधान नहीं कहा जा सकता. ज्ञान वह जो व्यावहारिक जीवन में हमारी सहायता करे. ‘लूट इंडिया लूट’ में आप को जानकारी मिलेगी कि देश को कितने सुंदर तरीके से लूटा जा सकता है. कितने प्रकार से लूटा जा सकता है. कौनकौन मिल कर लूट सकते हैं. जनता को मूर्ख बनाने के विभिन्न तरीकों पर भी हम प्रकाश डालेंगे. तो आइए, शुरू करते हैं लूट इंडिया लूट.
सब से पहले स्वागत करते हैं अपने जजों का. दर्शकों को बता दें कि हमारे इस प्रोग्राम के 3 जज हैं. पहले जज हैं श्रीमान धर्मानंद गोस्वामी. आप बुद्धिजीवी वर्ग के प्रतिनिधि हैं. इन के पास देश को लूटने के इतने तरीके हैं कि दर्शक दंग रह जाएंगे. घपला कला पर आप की किताबें पूरी दुनिया में इज्जत प्राप्त कर चुकी हैं. बैस्टसैलर रह चुके हैं. आजकल इन्होंने अपना विद्यालय खोल रखा है जिस में ये घपले के विभिन्न तरीकों से विद्यार्थियों को अवगत कराते हैं.
दूसरे जज हैं श्रीमान धर्मेश्वर ‘नौनिहाल’. घपले के क्षेत्र में आप का नाम बड़ी इज्जत से लिया जाता है. ‘घपलेश्वर’ जैसी उपाधि मिलने के बाद भी आप इस क्षेत्र में अपनेआप को नौनिहाल ही मानते हैं. राजनीति की बड़ीबड़ी हस्तियां भी, किसी घोटाले के पहले इन का नाम लेना नहीं भूलतीं. जुए के क्षेत्र में जो प्रतिष्ठा युधिष्ठिर को हासिल है वही इज्जत नौनिहालजी को घपले के क्षेत्र में हासिल है.
तीसरे जज हैं श्रीमान धर्मेंदु भूषण. इन्होंने प्रशासन के बड़ेबडे़ पदों पर रहते हुए इतने घपले किए कि इन का नाम गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकार्ड में आना चाहिए था. मगर बुक वालों के आलस्य के कारण देश इस से वंचित रह रहा है. बुद्धिजीवी, राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी 3 अलगअलग क्षेत्रों के कोहेनूर हमारे पास हैं. आइए, आप को ‘लूट इंडिया लूट’ के नियमों से परिचित करा दें. हमारे पास अलगअलग क्षेत्रों के प्रतिभागी हैं. सब अपनेअपने अनुभव बताएंगे और हमारे जज इस बात का निर्णय लेंगे कि सब से सुंदर तरीके से देश को कौन लूट रहा है. एक प्रतिभागी के लिए एक जज की टिप्पणी ली जाएगी. बाकी 2 केवल अंक देंगे. अंतिम 3 प्रतिभागियों का निर्णय जनता के वोटों से होगा. तो आइए, शुरू करते हैं आज तक का सब से बड़ा शो- ‘लूट इंडिया लूट’.
हम सब से पहले मंच पर आमंत्रित करते हैं शिक्षा से जुड़े एक ऐसे सज्जन को जो पेशे से शिक्षक हैं. हम देखते हैं कि उन के पास इंडिया को लूटने के कौनकौन से तरीके हैं. आप अपना अनुभव बताएं.
पहले प्रतिभागी ने बताया, ‘‘मैं सब से पहले इस बात का खंडन करना चाहता हूं कि मैं शिक्षा से जुड़ा हुआ हूं. नौकरी मिलने के बाद से आज तक मैं ने कोई किताब नहीं खोली और न ही किसी प्रकार से अपने मस्तिष्क को नई सोच से जोड़ने का प्रयत्न किया. हां, मैं यह स्वीकार करता हूं कि मैं शिक्षक हूं. यह नौकरी मैं ने अपनी मरजी से नहीं की. बेरोजगारी में यही मिली तो मैं क्या कर सकता हूं?
‘मैं हरसंभव कोशिश करता हूं कि इंडिया की लूट में मेरा भी एक छोटा सा हिस्सा हो, जिस प्रकार सागर सेतु बनाने में गिलहरी का था. मैं कभी समय पर कक्षा में नहीं जाता. 40 मिनट की कक्षा में मैं 5 मिनट विलंब से जाता हूं और 5 मिनट पहले निकल आता हूं. इस प्रकार प्रतिदिन 10 मिनट का समय लूट कर मैं अपने मन को संतुष्ट करता हूं. बालक मेरी कक्षा में ऐसे बैठते हैं मानो वे सोए हुए हों. चाहें तो सो भी सकते हैं. हां, मेरी अपनी संस्था है जो संकटापन्न बालकों की हर संभव सहायता करती है. नोट्स से ले कर गाइड तक हमारी संस्था मुहैया कराती है. इस से भी आगे बढ़ कर हम बालकों को परीक्षा में चिट तक मुहैया कराते हैं ताकि उन की नाव न डूबे.
‘‘इस के बाद भी यदि कोई कुलनाशक बच्चा नौका डुबोने पर आतुर हो ही जाता है तो हम उस की सिफारिश परीक्षक तक भी पहुंचाते हैं. सारसंक्षेप यह कि हमारी संस्था में आया हुआ बालक किसी भी ‘कीमत’ पर सफल हो ही जाता है. कीमत तो ऊंची होती है मगर बालक देश की सेवा के लिए तैयार हो जाता है. बस, एक मास्टर इस से ज्यादा क्या कर सकता है. हमारे पास कौन सा देश का खजाना है कि हम लूटेंगे. एक टुच्ची सी कोशिश है.’’ एक जोरदार तालियां हो जाएं हमारे गुरुजी के लिए. सचमुच, आप की कोशिश लाजवाब है. मानना पड़ेगा कि आप अपने अत्यल्प संसाधनों से ही देश को लूटने का हर संभव प्रयत्न करते हैं. कहते हैं, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. देखते हैं आप की हार होती है या जीत. हमारे जज क्या कहते हैं? मैं पूछना चाहता हूं श्रीमान धर्मानंद गोस्वामी जी से-
‘‘माट साब की कोशिश को हम सलाम करते हैं. हम वाकिफ हैं इन तरीकों से. आखिर हम पढ़लिख कर ही यहां तक पहुंचे हैं. हम आज जो भी हैं अपने गुरुजनों के कारण ही हैं. हमारा उन सब को प्रणाम जो इन सभी तरीकों को आजमाते रहे हैं. विद्यालयों में आज भी ऐसे बोरिंग शिक्षक मौजूद हैं जो बालकों पर अनावश्यक रूप से पढ़नेलिखने के लिए दबाव डालते हैं. यदि सारी ऊर्जा महज दोचार क्लास पास करने में ही लगा देगा तो आगे चल कर देश के लिए क्या करेगा? उन्हें तो केवल परीक्षा मेें शामिल होने के आधार पर ही उत्तीर्ण सर्टिफिकेट दे देना चाहिए. इस पर बुद्धिजीवियों का एक सम्मेलन हम बुलाने वाले हैं. मास्टरों की नाक की नकेल और कसनी चाहिए ताकि वे बच्चों को परेशान करना छोड़ें. इस माट साहब के लिए मैं स्टैंड हो जाता हूं. मेरी ओर से दस में दस.’’
हमारे अगले प्रतिभागी हैं व्यापार जगत से जुड़े बड़े भाई बकरीवाला. आप हर चीज बेचते हैं. आटादाल से ले कर नकली ड्राइविंग लाइसैंस तक. हमारा मंच आप का जोरदार स्वागत करता है. आप अपने अनुभव बताएं. ‘‘मैं क्या बताऊं. मेरी दुकान का नाम है ‘सुविधा’. हर प्रकार की सुविधा हम अपने ग्राहकों को देते हैं और जीवन को आसान बनाते हैं. हम ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत पर चलते हैं. चावल में कंकड़ और दाल में भूसी मिला कर हम देख चुके हैं. इस मेें अब पहले की तरह कमाई नहीं रही. रिटेलर के पास आढ़तिए ही मिला कर भेजते हैं. मिलावट भी एक सीमा से आगे नहीं बढ़ सकती. हम ने दामों के ऊपर नकली दाम की पर्ची चिपका कर भी देखा है. ग्राहक इतने जाग गए हैं कि परेशानी होने लगी है. हम ने कम तौलने के कई तरीके अपनाए. तराजू में ही इतनी वैज्ञानिक विधियां हम फिट कर देते हैं कि सामने वाला देख नहीं पाता.
‘‘हम इनाम और लौटरी का तरीका भी अपनाते हैं. भांतिभांति के औफर देते हैं. फटी और पुरानी साडि़यों को इन्हीं औफर में निकाल देते हैं. नाना प्रकार के विज्ञापनों के माध्यम से हम ग्राहकों के दिमाग का दरवाजा बंद करते हैं. यदि एक विज्ञापन में हम ने 1 लाख रुपए खर्च भी कर दिए तो क्या, उस से 5 लाख लोग बेवकूफ बन जाते हैं. 4 लाख रुपए का फायदा, यदि 1 रुपए का ही लाभ लें.
‘‘मेरा दावा है कि कोई बेवकूफ होता नहीं, बनाया जाता है. यदि संचार माध्यमों का उचित उपयोग किया जाए तो एक ही ब्रैंड हम 6 महीने बाद आउटडेटेड घोषित कर देते हैं ताकि फिर से एक बार उसी आदमी को मूर्ख बनाया जा सके जिसे पिछली बार बनाया गया था. हम मूली से ले कर मोबाइल तक बेचते हैं. चाहें तो ताड़ी से ले कर ताजमहल तक बेच दें. इन सब बातों का अर्थ यह नहीं कि हमारी देशभक्ति किसी से कमजोर है. हम स्थानीय थाने से ले कर केंद्र के नेताओं तक को उचित लाभ देते हैं. पार्टियों को चंदा देते हैं. नेता से ले कर अभिनेता तक की सेवा करते हैं. बस, इतना ही, और क्या कर सकते हैं? हम गरीब आदमी हैं. 100-200 करोड़ का घोटाला करने की हमारी हैसियत नहीं है. धन्यवाद.’’
एक जोरदार तालियां हो जाएं हमारे महान बड़े भाई बकरीवाला के लिए. अब हम मंच पर आमंत्रित करते हैं मीडिया से जुड़े प्रतिभागी को जो सदैव जनता के लिए लड़ते हैं लेकिन ‘लूट इंडिया लूट’ में उन का भी एक मजबूत हिस्सा है. आइए, सुनते हैं उन की कहानी, उन्हीं की जुबानी. स्वागत है. आइए. हमारे अगले प्रतिभागी मंच पर आएं, इस के पूर्व नियमों के मुताबिक हम अपने जज श्री धर्मेंदु जी से कमैंट चाहेंगे. ‘‘पूंजीपति वर्ग के तो हम सदा से ही कायल हैं. हम उन के हैं और वे हमारे हैं. हम चंदन हैं वे पानी हैं. उन के द्वारा प्रदत्त राशि ही रिटायरमैंट के बाद हमारे काम आती है, वरना सरकार हमारे पास छोड़ती ही क्या है. आयकर के नाम पर जो पास में रहता है उसे ले जाती है. उन्होंने अपने ज्ञान का जो एक छोटा सा हिस्सा जनहित में जारी किया है, वह सराहनीय है. अब हम अगले प्रतिभागी को सुनें.’’
‘‘मैं ‘सनसनी’ चैनल का संवाददाता हूं. हमारा काम है जनता को सदैव सनसनाए रखना और खुद को टीआरपी के खजूर पर चढ़ाना. जनता को सनसनाने के लिए कई बार तो हमें घटनाओं को जन्म तक देना पड़ता है. ‘‘एक बार एक आदमी ने आत्मदाह की घोषणा की. हम समय से पहले जा कर कैमरा वगैरा लगा कर लैस हो गए. सही समय पर वह आदमी आया. उस ने हमारी आंखों के सामने अपने बदन पर घासलेट डाली. हाथ में माचिस ली और जलाई. हम एकएक घटना को कैमरे में कैद कर रहे थे. उस ने आग लगा ली और चिल्लाने लगा. हम लाइव टैलीकास्ट करने लगे. हम चाहते तो उसे आत्मदाह करने से रोक सकते थे. उस के हाथ से घासलेट ले कर उसे पुलिस के हवाले कर सकते थे लेकिन उस से न्यूज तो नहीं बनती न. हमारा भुगतान तो टीआरपी के आधार पर ही होता है. उस संवाददाता की बड़ी इज्जत होती है जो सब से ज्यादा उत्तेजना पैदा करता है.
‘‘यह तो परदे की बात हो गई. कई बार तो ‘लक्ष्मी’ परदे के पीछे भी खूब मिलती है. कभीकभी किसी संवाददाता को किसी नेता या उद्योगपति या दूसरे किसी बड़े आदमी का कोई राज मालूम हो जाता है. सुबूत भी हाथ लग जाते हैं. हम आसानी से ब्लैकमेल कर के माल बनाते हैं. ऐसा अकसर नहीं होता. अकसर हमें भूतनी सांपनी, सूअरी से ले कर बाबा भूतनाथ तक के समाचार प्रस्तुत करने होते हैं. जनता जब तक मुंहबाए हमारे समाचार को नहीं देखती तब तक हमें मजा ही नहीं आता. ‘‘आप ने सुना ही होगा कि सरेआम एक औरत के कपड़े उतारने का समाचार दिया गया था. बाद में पता नहीं कैसे यह बात सामने आ गई कि वह औरत और कपड़े उतारने वाले दोनों हमारे ही लोग थे. क्या करें, करना पड़ता है. इतनी कड़ी प्रतियोगिता है कि आदमी को टीआरपी बढ़ाने के लिए सारे हथकंडे अपनाने पड़ते हैं. चैनल को उसी मुताबिक विज्ञापन मिलते हैं. अब इस से ज्यादा हम क्या योगदान दे सकते हैं? हम राष्ट्रीय स्तर का घोटाला तो कर नहीं सकते. आशा है जजेज हमारी मजबूरी समझेंगे. धन्यवाद, जयहिंद.’’
दर्शको, जोरदार तालियां हो जाएं हमारे संवाददाता प्रतिभागी के लिए. आखिर जनता के लिए ही इतना जोखिम उठाते हैं. अब एक कमैंट हो जाए श्री धर्मेश्वर जी का. आखिर मीडिया और राजनीति का चोलीदामन का साथ है.
‘‘हां, चोलीदामन वाली बात आप ने ठीक कही. मीडिया हमारी ताकत है. जनता की आंख है. इन की एक खासीयत और है जो शायद संकोचवश इन्होंने नहीं कही. ये लोग सरकार सापेक्ष होते हैं. जिस दल की सरकार होती है उसी के अनुरूप ढल जाते हैं. वरना तो केवल सनसनी पैदा करने के लिए तिल को खींच कर ताड़ बना देंगे. रस्सी को सांप सिद्ध करने में जितनी महारत इन्हें हासिल है उतनी किसी भी वर्ग को नहीं. सोने में सुगंध यह कि इन की दुनिया में सभी पढ़ेलिखे ही होते हैं मगर लूटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते. हम इन्हें सलाम करते हैं.’’ आइए, हम जोरदार तालियों से स्वागत करें अपने अगले प्रतिभागी का जो एक ‘बाबा’ हैं. प्रवचन वगैरा कर के समाज को उत्थान के मार्ग पर लिए जा रहे हैं. मैं तो समझता हूं कि आज तक यदि प्रलय नहीं हुई तो इन बाबाओं के कारण ही. आइए, बाबा, आप का स्वागत है. ‘लूट इंडिया लूट’ में अपने योगदान का बखान करें.
‘‘बच्चो!’’
‘‘बाबा, यहां बच्चा कोई नहीं है.’’
‘‘हमारे लिए तो सभी बच्चे हैं. केवल हमीं सयाने हैं. तो बच्चो, यह संसार पाप का घर है. इसे स्वच्छ करने में हमारी भूमिका तो ईश्वर ने उसी दिन तय कर दी जिस दिन हम ने संन्यास ग्रहण किया. क्यों किया, यह बताने का यह मंच नहीं है. नाना प्रकार के पापों और पापियों से समाज को बचाने के लिए हम प्रवचन करते हैं. उन्हें सुन कर लोग खूब लाभ उठाते हैं. थोड़ा सा लाभ हम भी उठा लेते हैं. ‘‘आप देख ही रहे हैं, हमारे बदन पर यह रेशमी कुरता और हजार रुपए की धोती. यह अंगरखा हम ने खासतौर पर दुबई से मंगाया है. मनुष्य के शरीर में आत्मारूपी भगवान रहते हैं, इसलिए इसे सजाना पड़ता है. हम छप्पन भोग जरूर खाते हैं लेकिन अपने लिए नहीं, उसी भगवान के लिए जो शरीर में निवास कर रहे हैं. हम मखमली गद्दे पर जरूर सोते हैं लेकिन उसी गौड के लिए.
‘‘आदरणीय न्यायाधीश मंडली से आग्रह है कि हमारी तकनीक पर ध्यान दें. हम ऐश करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि आत्मारूपी परमात्मा खुश रहें. हमारे दर्शनों के लिए 5 हजार रुपए दानपेटी में डालने पड़ते हैं. मंदिर, जो हमेशा निर्माणाधीन ही रहते हैं, के लिए दानस्वरूप एकदो हजार रुपए डालना तो आम बात है. हमारे प्रभु सोने के सिंहासन पर विराजते हैं. सोने के मुकुट पहनते हैं. चांदी का चंवर डोलाना पड़ता है. यही कारण है कि हमारे भक्त हमें सोने, चांदी की भेंट दिया करते हैं. हम अपने भक्तों को निराश नहीं करते. उन्हें हर वह खुशी देते हैं जो इस भौतिक शरीर को चाहिए. हम उन्हें परमशांति और आनंद देते हैं. हम 2 भक्तों का संगम भी करा देते हैं ताकि वे परम आनंद को प्राप्त कर सकें. हमारा तो एक ही उद्देश्य है- सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया. हरिओम तत्सत् हरिओम तत्सत्. जय हो समाज और संसार की.’’
जय हो बाबा, जय हो. आप महान ही नहीं, अद्भुत भी हैं. मैं प्रार्थना करता हूं अपने जज श्री धर्मेश्वर नौनिहाल से कि बाबा के परफौर्मेंस पर दो शब्द कहें.
‘‘हम तो बाबा के चेले हैं. इन्हीं बाबा के नहीं, जितने भी बाबा और बापू हो रहे हैं, हम सब के चेले हैं. ज्ञान की जो गंगा इन लोगों ने बहाई है उस में पता नहीं कितने गांव और शहर बह गए. इन की तकनीक अनोखी है. एक हजार लोगों को एक ही टोटका बताते हैं. उस में से 10 पर भी यदि लग गया तो अगली बार उसे मीडिया के सामने कर देंगे. कभीकभी तो इन के भक्त प्रायोजित भी होते हैं. वे मीडिया के सामने कहते हैं कि कैंसर ठीक हो गया. डायबिटीज ठीक हो गई. सुनने वाले अगली बार मिलने आ जाएंगे. यह जो मैनेजमैंट का कमाल है वह अनुकरणीय है. इन को आयकर नहीं देना पड़ता.
जितने प्रकार के सुख भगवान ने बनाए हैं, सब इन लोगों के लिए ही हैं. जनता भी जान देती है. मजे तो हम भी करते हैं लेकिन हमारी छवि खराब हो जाती है. इन की सदा जय हो. अब तो बाबा लोग राजनीति में भी आ रहे हैं. खुद के पास करोड़ों की संपत्ति है लेकिन कालेधन के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं. जय हो प्रभु. जय हो.’’ हमारे आखिरी प्रतिभागी हैं एक एनजीओ के डायरैक्टर जो आज लाखों में खेल रहे हैं जबकि कल तक उन के पास मात्र एक साइकिल थी और वह भी पुरानी. आखिर उन्होंने समाज की सेवा कर के कैसे इतना माल बना लिया. उन्हीं से सुनते हैं. ‘लूट इंडिया लूट’ के इस आखिरी प्रतिभागी के लिए जोरदार तालियां.
‘‘मैं एनजीओ चलाता हूं. 10 साल पहले हम ने एक एनजीओ बनाया – ‘सेवक’. समाज की सेवा के लिए नहीं, दरअसल मेरा नाम ही सेवक है, सेवक राम. तो साहब, सेवा का एक भी मौका हम छोड़ते नहीं हैं. चाहे वह बाढ़ के समय हो या सूखे के समय. आग लगे या भूकंप आए. हम तत्पर रहते हैं सेवा के लिए. हमारी सांठगांठ काफी ऊपर तक है. राहत बांटने का ठेका हमें ही मिलता है. राहत हम बांटते भी हैं. नीचे से ले कर ऊपर तक सभी को राहत पहुंचाते हैं. लगेहाथ आम आदमी को भी राहत मिल जाती है. फटेपुराने कंबल और रजाइयां हम नियमित रूप से राहत शिविरों मेें देते हैं. यह बात अलग है कि जितनी इंपौर्टेड सामग्री है वह बड़े लोगों की सेवा में जाती है. आखिर उन्हीं की कृपा से हमें चैक मिलते हैं. यह एक सिस्टम है, सब को सब का खयाल रखना पड़ता है. ‘‘तो जनाब, भारत में न तो बाढ़ की कमी है न सूखे की. सरकार तो जनहित के लिए सदैव तत्पर रहती ही है. हम ने इन हालात में यदि दो पैसे जोड़ लिए तो कौन सी बड़ी कला हो गई. हम जितना 10 साल में जोड़ पाए उतना तो जज साहब एक साल में जोड़ लेते हैं. उन्हें मौका अधिक मिलता है. वरना, कला और कौशल में हम उन से कम नहीं हैं.’’
खैर, आप जजों पर कमैंट नहीं कर सकते. यह नियमों के विपरीत है. हम जानते हैं कि हमारे माननीय जज आप के बारे में क्या राय रखते हैं. हम टिप्पणी लेते हैं श्रीमान धर्मेश्वरजी से. आप राजनीति से जुड़े हैं. नाना प्रकार के घोटालों के जनक भी हैं और निर्णायक भी. तो घपलेश्वर जी…
‘‘यह गर्व की बात है कि आप के कार्यक्रम में समाज के सभी क्षेत्रों से जुड़े लोग आए. सब ने अपनी कला और कौशल का बखान किया. जहां तक बात है डायरैक्टर साहब की, तो हम इन की कला और समर्पण के कायल हैं. एनजीओ खोलते ही घपलों के चांस नहीं मिलने लगते. उस के लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है. अर्जुन की तरह केवल जो अपने लक्ष्य अर्थात धन पर ही निगाह लगा कर रखेगा, उसे ही कालांतर में इस प्रकार के चांस मिलते हैं. हो सकता है कि एकलव्य की तरह कोई आप को गुरु न मिले और यदि मिले भी तो आप का ही अंगूठा काटने के लिए तैयार मिले. आप को अपने प्रयासों से ही घोटालों के स्वर्ग तक सदेह पहुंचना पड़ता है. हम डायरैक्टर साहब की इज्जत करते हैं और आग्रह करते हैं कि हम से एकांत में मिलें.’’दर्शको, शो का समय समाप्त हो रहा है. आप को हम अगले सप्ताह के एपिसोड में बताएंगे कि कौन है ‘लूट इंडिया लूट’ का विजेता. आखिर हमें भी तो यह रिऐलिटी शो चलाना है जिन में रिऐलिटी नाम की चीज कुछ होती नहीं है. लिखी हुई स्क्रिप्ट पर सारा नाटक होता है.
चाहे वह 2 जजों के बीच की लड़ाई हो या अचानक किसी हस्ती का पहुंचना. किसी प्रतिभागी के मांबाप को लाना या उन के पसंदीदा कलाकार को सैट तक लाना. यह पहले से ही तय होता है ताकि अधिक से अधिक विज्ञापन मिल सकें. सारा खेल विज्ञापनों का ही है. सारा देश विज्ञापनों पर ही चल रहा है. सरकार अपने पक्ष में विज्ञापन दे रही है. विपक्ष उस के खिलाफ विज्ञापन दे रहा है. समाजसेवा का डंका पीटने वाले अपने पक्ष में विज्ञापन दे रहे हैं. जो जितना बड़ा प्रबंधक होगा वह उतना अधिक चमकेगा. आप चाहें तो हमारे इस प्रोग्राम में हिस्सा ले सकते हैं. ले सकते क्या हैं, लेते ही हैं. हर आदमी इस प्रोग्राम का प्रतिभागी है. चाहे वह थोड़ा लूटता हो या ज्यादा. बेशक आप की प्रसिद्धि नहीं हुई. खैर, आप चाहें तो हमारे प्रतिभागियों के लिए मैसेज कर सकते हैं. हमारी लाइन हमेशा खुली ही रहती हैं.