यह बहुत अफसोस की बात है कि बिहार में किसानों को फायदा पहुंचाने और उन की वाहवाही बटोरने के लिए ‘किसान’ नाम से बनाई गई ज्यादातर योजनाएं अफसरों की लापरवाही की शिकार हो कर रह गई हैं. सरकार ने किसानों का भरोसा जीतने के लिए राज्य में ‘किसान’ नाम से कई योजनाओं की शुरुआत तो कर डाली, पर ज्यादातर आधीअधूरी हालत में हैं और कई तो फाइलों से बाहर ही नहीं निकल सकी हैं. सब से ज्यादा बुरी हालत किसान पाठशाला योजना की है. अफसरों की लापरवाही और जैसेतैसे काम निबटाने की सोच ने किसान पाठशालाओं का मकसद ही बिगाड़ कर रख दिया?है. किसान पाठशालाओं को खेत में चलाना है, पर अफसर गांव के बरामदों में ही पाठशाला लगा कर किसानों को चलता कर देते हैं.
जहानाबाद जिले के नेवारी गांव के किसान संजय मिश्रा बताते हैं कि कृषि महकमे के अफसर और कृषि वैज्ञानिक खेतों में पहुंच कर किसानों को खेती के नए तरीकों और तकनीकों की जानकारी नहीं देते हैं. वे किसानों को दफ्तर या जिला कृषि कार्यालय में बुला कर भाषण पिला देते हैं, पर किसानों के पल्ले कुछ नहीं पड़ता है. जब किसान बाद में किसी समस्या को ले कर अफसरों के पास जाते हैं, तो या तो वे मिलते नहीं हैं या फिर डांटडपट कर भगा देते हैं.
पटना के संपतचक गांव के किसान श्याम साहनी बताते हैं कि खेतों में प्रैक्टिकल कराने के बजाय अफसर गांव के बरामदों में ही थ्योरी पढ़ा कर काम निबटा रहे हैं. गौरतलब है कि किसान पाठशाला का नारा है, ‘कर के सीखो और देख कर यकीन करो’. इस के बाद भी अफसर सिर्फ किताबी पढ़ाई करवा कर अपना काम आसान कर रहे हैं और सरकार की योजना पर पानी फेर रहे हैं.
एक किसान पाठशाला के आयोजन पर सरकार 29 हजार रुपए खर्च करती है, पर इस से किसानों को जरा भी फायदा नहीं हो पा रहा है. किसान पाठशाला का आयोजन समूह बना कर खेतों में ही किया जाना चाहिए और इस में कम से कम 25किसानों का होना जरूरी है. किसान पाठशाला योजना के तहत किसानों को बीज प्रबंधन, बीज उपचार, उर्वरक प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण, कटाई, खेती की नई तकनीकों और मशीनों की जानकारी, फसलों की मार्केटिंग और मशीनों के इस्तेमाल आदि की जानकारी खेतों में ही देनी है.
किसान क्रेडिट कार्ड योजना की भी हालत बदतर ही है. यह योजना सही तरीके से जमीन पर नहीं उतर पा रही है, जिस से किसानों को इस का फायदा नहीं मिल पा रहा है. इस में सब से बड़ी बाधा बैंकों की उदासीनता और टालमटोल वाला रवैया है. इसी वजह से किसानों के क्रेडिट कार्ड नहीं बन पा रहे हैं, जिस से वे इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. गौरतलब है कि किसानों को गांवों के साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की गई थी, पर इस योजना के फेल होने से किसान साहूकारों के चंगुल में फंसने के लिए मजबूर हैं. पटना से सटे नौबतपुर गांव के किसान मनोज पंडित कहते हैं कि पिछले साल बारिश की वजह से उन की प्याज की फसल बरबाद हो गई और उस के बाद आलू की फसल को झुलसा रोग ने चौपट कर दिया.
अब उन के पास खेती करने के लिए पैसे नहीं हैं. उन्होंने केसीसी बनवा कर लोन लेने के लिए पिछले 4 महीने में कई बार बैंकों के चक्कर लगाए, पर आज तक उन का केसीसी नहीं बन सका है. जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो मन मार कर उन्हें साहूकार से ही कर्ज लेना पड़ा. बिहटा के किसान चुनचुन राय कहते हैं कि पिछले 2 सालों से वे किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने की कोशिश कर रहे हैं, पर बैंक उन की मांग पर जरा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं. जिन किसानों के केसीसी बने हुए हैं, उन को 5 लाख रुपए तक लोन देने का प्रावधान है, पर बैंक उन्हें 50 हजार रुपए देने में भी आनाकानी करते हैं. ऐसी हालत में किसान क्रेडिट कार्ड योजना पानी मांगती नजर आने लगी है.
किसान शिकायतपेटी योजना भी दम तोड़ रही है. अकसर किसानों की यह शिकायत होती है कि अफसर उन की सुनते नहीं हैं या उन्हें डांटफटकार कर भगा देते हैं या किसी काम के एवज में घूस मांगते हैं या बेवजह दफ्तरों के चक्कर लगवाते हैं. इस दर्द से पीडि़त किसानों के लिए सरकार ने किसान शिकायतपेटी योजना बनाई है. किसानों की शिकायतों की लंबी होती लिस्ट को देखते हुए बिहार सरकार ने यह फरमान जारी किया कि अगर अफसरों ने किसानों को परेशान किया हो तो किसानों की शिकायत पर उन पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी और शिकायत करने वाले किसानों के नाम और पते गुप्त रखे जाएंगे. हर प्रखंड में आयोजित होने वाले कृषि कार्यक्रमों के दौरान वहां किसान शिकायतपेटी भी रखी जाएगी. कार्यक्रम खत्म होने के बाद शिकायतपेटी को जिलाधीशों के सामने ही खोला जाएगा. हर शिकायत की जांच की जाएगी और शिकायत के सही पाए जाने पर अफसर के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी. किसानों को भ्रष्टाचार से नजात दिलाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया था, लेकिन अब किसानों की एक नई शिकायत है कि किसी भी सरकारी कृषि कार्यक्रम में शिकायतपेटी रखी ही नहीं जाती है.