सनी देओल अब एक इमेज में बंध चुका है. उस का ढाई किलो का मुक्का मशहूर हो चुका है. भले ही दर्शकों का एक खास वर्ग उस के ऐक्शन दृश्यों व मुक्कों पर चीयर करे परंतु उस से किसी नई चीज की उम्मीद करना बेकार है.
सनी देओल की यह फिल्म 1990 में आई ‘घायल’ की सीक्वल है. फिल्म देख कर लगा कि अगर सनी देओल ‘घायल’ को घायल ही रहने देता तो अच्छा था, उस का सीक्वल न बनाता. ‘घायल’ में अमरीश पुरी की खलनायकी को दर्शक आज भी नहीं भूले होंगे.
इस फिल्म की कहानी पिछली फिल्म ‘घायल’ से आगे बढ़ती है, जहां से फिल्म खत्म हुई थी. बलवंत राय (अमरीश पुरी) की हत्या में सजा भुगत चुका अजय मेहरा (सनी देओल) अब समाज सुधार का काम करता है. उस का एक संगठन है ‘सत्यकाम’. एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी डिसूजा (ओम पुरी) और एक डाक्टर रिया (सोहा अली खान) अब उस के संगठन से जुड़े हैं. ये तीनों मिल कर सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने में लगे हैं और लोगों को न्याय दिलाते हैं.
शहर के एक बड़े बिजनैसमैन राज बंसल (नरेंद्र झा) का बिगड़ैल बेटा कबीर (अभिलाष कुमार) अजय के दोस्त एसीपी डिसूजा को गोली मार देता है, क्योंकि उस ने राज के खिलाफ आरटीआई लगाई थी. 4 किशोर इस घटना का वीडियो बना लेते हैं. चारों वह वीडियो अजय को देना चाहते हैं. यह बात राज को पता चल जाती है. उस वीडियो को हासिल करने के लिए वह पूरे शहर की नाकाबंदी कर देता है. पूरे सरकारी तंत्र को ताकीद कर देता है कि वह वीडियो अपलोड न होने पाए.
वीडियो अजय तक पहुंच जाता है. अब अजय और राज में युद्ध छिड़ जाता है. राज अजय की बेटी को अपने पास बंधक बना कर रखता है. अंतत: अजय अकेला ही राज का चौपर हथिया कर उस के महलनुमा मकान पर धावा बोलता है और उस के बहुत से आदमियों को मार डालता है. पुलिस राज, मंत्री और उस के गुरगों को अरैस्ट कर लेती है. अजय अपनी बेटी को ले कर घर आता है.
फिल्म का निर्देशन का भार सनी देओल ने खुद उठाया है. उस ने 80-90 के दशक से चले आ रहे फार्मूलों को इस फिल्म में भरपूर प्रयोग किया है. मध्यांतर से पहले यह फिल्म उम्मीद जगाती है कि सनी देओल सरकारी तंत्र में फैल भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कुछ नया करेगा परंतु कुछ ही देर में अजय के किरदार ने तेजी से ऐक्शन करने शुरू कर दिए तो लगा भैया, यह भी परंपरागत ऐक्शन पैक्ड ड्रामा है.
फिल्म में जिस उद्योगपति राज बंसल की बात कही गई है वह अंबानी सरीखा लगता है जो अपने दम पर अजय को देखते ही गोली मारने का आदेश तक निकलवाता है. देश के सुरक्षा सचिव तक को हड़काता है. उस के आदमियों की पूरी फौज है जो पलभर में हर बात की जानकारी जुटा लेते हैं. राज को घर बैठे ही पता चल जाता है कि शहर में कहां, कब, कौन आ जा रहा है और पलक झपकते ही उस के आदमी वहां पहुंच जाते हैं. क्लाइमैक्स में मुंबई में समुद्र किनारे बने जिस मकान को राज का बताया गया है, वह अंबानी का ही है.
अभिनय की दृष्टि से सनी देओल इस फिल्म में पहले भाग की अपेक्षा कमजोर ही साबित हुआ है. फिल्म में सोहा अली क्या कर रही है, उस का तो काम ही नहीं था. राज की भूमिका में नरेंद्र झा का काम अच्छा है. निर्देशक ने फिल्म में बहुतकुछ अविश्वसनीय भर दिया है. फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. छायांकन अच्छा है. ऐक्शन दृश्य भी अच्छे हैं.