उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर होती है. गौरतलब है कि पूरे देश के 18 राज्यों में गन्ने की खेती होती है, लेकिन इन सब में गन्ने का जितना रकबा है, उस का करीब आधा हिस्सा अकेले उत्तर प्रदेश में आता है. इस लिहाज से गन्ने की खेती में उत्तर प्रदेश को काफी अहम माना जाता है.
उत्तर प्रदेश में 44 जिलों में बसे 40 लाख किसान 30 हजार करोड़ रुपए कीमत का गन्ना उगाते हैं. साल 2014-15 में 22,600 करोड़ रुपए का गन्ना उत्तर प्रदेश की 124 चीनीमिलों ने व बाकी कोल्हू क्रैशरों ने खरीदा था. लेकिन गन्ना एक नकदी फसल होने के बावजूद गन्ने की खेती करने वाले ज्यादातर किसान बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं.
19 जनवरी, 2016 को उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2015-16 के लिए गन्ने के राज्य परामर्शी मूल्य एसएपी का एलान किया. इस साल चीनीमिलें मध्य देर से पकने वाली जनरल वैरायटी का गन्ना 280 रुपए प्रति क्विंटल, जल्द पकने वाली अरली वैरायटी का गन्ना 290 रुपए प्रति क्विंटल व कम चीनी परते वाली किस्मों का गन्ना 275 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदेंगी.
कोई इजाफा नहीं
हैरतअंगेज बात यह है कि अब से पहले साल 2013-14 व साल 2014-15 में भी प्रति क्विंटल गन्ना खरीद की यही दरें थीं. अगले साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं, इसलिए गन्ना किसानों को इस साल गन्ने की कीमतों में खासी बढ़ोतरी की उम्मीद थी. लेकिन अफसोस कि तीसरे साल भी गन्ने की कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, जबकि गेहूं व धान की कीमतें लगातार 50 से 100 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़ी हैं.
चीनीमिलों को गन्ना खरीद कर व शीरा बिक्री में छूट, चीनी के प्रवेश कर में छूट, सहकारी गन्ना समितियों के विकास कमीशन में छूट व बगैर ब्याज के कर्ज की सौगात समेत 35 रुपए प्रति क्विंटल तक की मदद का वादा किया गया है. साथ ही चीनीमिलों को गन्ने की कीमत भी 2 किस्तों में अदा करने की सहूलियत दी गई है. लिहाजा किसानों को 230 रुपए प्रति क्विंटल की दर से पहले भुगतान मिलेगा व बाकी रकम की दूसरी किस्त सीजन के 3 महीने बाद मिलेगी.
जोर का झटका
जिला हापुड़ में पड़ने वाले गांव बहादुरगढ़ के किसान अमरपाल का कहना है कि खाद, बीज, दवा, मशीनों व जमीन आदि की कीमतें व मजदूरी की दरें लगातार बढ़ने से प्रति हेक्टेयर गन्ने की लागत बढ़ रही है. लिहाजा गन्ने की कीमत 350 रुपए प्रति क्विंटल से कम होना नाकाफी व गलत है, लेकिन सरकार चीनीमिलों के दबाव में लगती है.
चीनीमिलों पर सरकार की मेहरबानी और गन्नाकिसानों से ज्यादती की वजह से गन्नाकिसानों का नाराज होना जायज है. साल दर साल गन्ने के अरबों रुपए चीनीमिलों पर बकाया पड़े रहते हैं. सरकारी अफसर बकाएदार चीनीमिलों पर सख्त कार्यवाही करने की जगह सिर्फ रस्म अदायगी करते हैं. इस तरह नुकसान सिर्फ किसानों का होता है.
गन्ने के रेट तय होने से पहले चीनीमिलों के मालिक पूरा जोर लगाते हैं कि गन्ने की कीमतों में इजाफा न हो, क्योंकि खुले बाजार में चीनी की कीमतें कम हैं. हालांकि बीते 4 महीने में चीनी की थोक कीमतें 2400 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ कर 3300 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गई हैं. इस के अलावा डबल रिफाइंड चीनी 55 रुपए व ट्रिपल रिफाइंड सुगरक्यूब्स बाजार में 100 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिक रहे हैं.
ताकतवरों की जीत
चीनीमिलों के मालिक अपने रसूख, रईसी व ऊंची पहुंच के कारण अपना पक्ष सरकार के सामने रख कर राहत पाने व अपने हक में फैसला कराने में कामयाब हो जाते हैं. फिलहाल देश भर में 488 चीनीमिलें चल रही हैं. इन में 168 महाराष्ट्र में व 124 उत्तर प्रदेश में चल रही हैं. आने वाले वक्त में इन चीनीमिलों को गन्ने की कमी झेलनी पड़ सकती है.
बीते 2 सालों से उत्तर प्रदेश की चीनीमिलें सीजन में खरीदे गए गन्ने की कीमत का भुगतान किसानों को 2 किस्तों में कर रही हैं. साल 2013-14 में पहली किस्त 260 रुपए तय की गई थी. साल 2014-15 में इसे घटा कर 240 रुपए किया गया व इस साल 2015-16 में और घटा कर 230 रुपए कर दिया गया है. इस से किसानों की जेब इस साल और हलकी रहेगी.
किसानों पर मार
बीते साल 2014-15 में केंद्र सरकार ने किसानों की बेहाली कम करने की गरज से गन्नाकीमत के बकाया भुगतान के लिए 2200 करोड़ रुपए की माली इमदाद दी थी. इस तरह सहूलियतों के बादल चीनीमिलों पर तो खूब खुल कर बरस रहे हैं, लेकिन गन्ना उगाने वाले किसान अपनी उपज की लागत निकालने के लिए भी तरस रहे हैं.
15 जनवरी 2016 तक अकेले मेरठ मंडल की चीनीमिलों पर ही पिछले गन्ना पेराई सीजन के करीब 2 हजार करोड़ रुपए व इस सीजन के 8 हजार करोड़ रुपए बकाया चल रहे थे. कानून के हिसाब से चीनीमिलों को गन्ना खरीदने के 14 दिनों बाद किसानों को कीमत की अदायगी कर देनी चाहिए, लेकिन अपवाद छोड़ कर ज्यादातर चीनीमिलें इस नियम का पालन नहीं करतीं. यह गन्नाकिसानों के साथ सरासर ज्यादती है.
चीनीमिलों को 14 दिनों के बाद होने वाले लेट पेमेंट पर 15 फीसदी की दर से किसानों को ब्याज देना चाहिए, लेकिन चीनीमिलें सूद देना तो दूर किसानों को उन की उपज की कीमत का मूल भी वक्त पर पूरा नहीं देतीं. यह मनमानी सरकारी कायदेकानून व हाईकोट के आदेशों की खुली अनदेखी व किसानों के लिए परेशानी की वजह है
उत्तर प्रदेश गन्नाशोध परिषद, शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों ने गन्ने की लागत इस साल 282 रुपए 14 पैसे प्रति क्विंटल आंकी है, जबकि किसान 330 रुपए प्रति क्विंटल लागत आने का दावा कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने तो अपने संगठन का दावा भी खारिज करते हुए गन्ने की कीमत पिछले साल जितनी ही रख दी है. इस से गन्नाकिसानों को बेहद नाराजगी है.
घटा गन्ना
मजबूर किसान गन्ने की फसल से मुंह मोड़ रहे हैं. गन्नामहकमे के मुताबिक अकेले उत्तर प्रदेश में पिछले 4 सालों में गन्ने का रकबा
3 लाख 72 हजार हेक्टेयर घटा है. साल 2013 से 2015 के दौरान गन्ने की पैदावार में 105 लाख टन की कमी आई है. यदि यही हाल रहा तो जल्द ही गन्ना खेतों से गायब हो जाएगा और तब तेलों व दालों की तरह चीनी के लिए भी मजबूरन दूसरे मुल्कों का मुंह ताकना पड़ेगा.
किसानों की मांग है कि खेती की उपज के रेट तय करने के फार्मूले गुपचुप रखने की बजाय सरकार को सब के सामने उजागर करने चाहिए. खेती की असल लागत का खयाल रखा जाना चाहिए व कृषि मूल्य लागत आयोग में आम किसानों की नुमाइंदगी बढ़नी चाहिए. साथ ही उन की मांगों पर गौर किया जाना चाहिए. चीनीमिलों की तरह गन्ना किसानों को भी बगैर ब्याज के कर्ज मिलना चाहिए.
माली मुश्किलों में फंसे चीनी उद्योग को बचाने के लिए रंगराजन कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक काम किया जा रहा है, लेकिन गन्नाकिसानों का खयाल रखना भी जरूरी है.
उपाय
बेशक गन्नाकिसान परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन कोई मसला ऐसा नहीं होता जिस का हल न हो. ऐसे में सोचसमझ कर सूझबूझ से कदम उठाने की जरूरत है. लेकिन सवाल यह है कि गन्ना छोड़ कर किसान कौन सी फसल उगाएं, क्योंकि आलू आदि सब्जियों के दाम गिरने से बागबानी में भी घाटा हो रहा है.
माहिरों के मुताबिक किसान जल्दी पकने व ज्यादा पैदावार देने वाली गन्ने की नई किस्में उगाएं और गन्ने की औसत उपज बढ़ाएं. वे ट्रैंच विधि से गन्ना बोएं ताकि 40 फीसदी तक ज्यादा पैदावार हो. कम जमीन में ज्यादा गन्ना उगाना जरूरी है. गन्ने के साथ मटर, सरसों, चारा, मसूर, उड़द, गेहूं, प्याज, लहसुन, मसालों व फूलों आदि दूसरी फसलों की इंटरक्रापिंग कर के भी किसान प्रति हेक्टेयर ज्यादा आमदनी हासिल कर सकते हैं.
इस के अलावा प्रोसेसिंग भी गन्ने से ज्यादा कमाई का जरीया बन सकती है. मसलन किसान गन्ने का रस पका कर परंपरागत तरीके से गुड़ व शक्कर बनाते हैं. सदियों पुराने इस तरीके में सुधार करना जरूरी है. भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने रसायनरहित उम्दा गुड़ के क्यूब्स, शक्कर पाउडर व बोतलबंद गुड़ सीरप बनाने की तकनीक निकाली है. उसे अपना कर किसान पैक्ड व बेहतर गुड़ बनाने की इकाई लगा कर ज्यादा कमा सकते हैं और अपनी मेहनत की कमाई को चीनीमिलों में लुटने से बचा सकते हैं.