जमींकंद को पहले छोटे पैमाने पर ही उगाया जाता था, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने लगातार खोज के बाद इस की कई उन्नतिशील प्रजातियां भी विकसित की हैं. अब इसे बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप से भी उगाया जाने लगा?है. जमींकंद की देशी प्रजातियों में कड़वापन व चरपरापन ज्यादा पाया जाता है, जबकि उन्नत प्रजातियों में चरपरापन व कड़वापन न के बराबर होता है. बाजार में जमींकंद की भारी मांग को देखते हुए इस की व्यावसायिक खेती बेहद लाभदायक साबित हो रही?है जमींकंद की खेती के लिए नमगरम व ठंडेसूखे दोनों मौसमों की जरूरत पड़ती है. इस से जमींकंद के पौधों व कंदों का सही तरीके से विकास होता है. बोआई के बाद जमींकंद के बीजों को अंकुरण के लिए ऊंचे तापमान की जरूरत होती है, जबकि पौधों की बढ़वार के लिए समान रूप से अच्छी बारिश जरूरी होती?है. कंदों के विकास के लिए ठंडे मौसम की जरूरत होती है

जमीन का चयन : जमींकंद की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सब से अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इस तरह की मिट्टी में कंदों की बढ़ोतरी तेजी से होती है. जमींकंद के लिए जमीन की जलधारण कूवत अच्छी होनी चाहिए. यह ध्यान रखना चाहिए कि चिकनी व रेतीली जमीन में जमींकंद की फसल न ली जाए, क्योंकि इस तरह की मिट्टी में कंदों का विकास रुक जाता है.

जमीकंद की रोपाई से पहले खेत की कल्टीवेटर या रोटावेटर से जुताई कर के उस में पाटा लगा देना चाहिए. अच्छी पैदावार के लिए बोआई के समय ही 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद को खेत में बिखेर कर मिला देना चाहिए.

प्रजातियों का चयन : जमींकंद की देशी प्रजाति तो हमेशा उगाई जाती रही है, लेकिन व्यावसायिक रूप से इस की 3 प्रजातियां अभी तक ज्यादा सही पाई गई हैं.

गजेंद्र 1?: यह जमींकंद की सर्वाधिक उत्पादन वाली प्रजाति मानी जाती है. इस प्रजाति में चरपरापन नहीं होता है, क्योंकि इस में कैल्शियम व आक्सैट की मात्रा कम पाई जाती है. इस से जीभ व गले में जलन नहीं होती है. यह प्रजाति खाने में सब से अच्छी होती है, इसलिए इस का बाजार भाव अन्य प्रजातियों के मुकाबले ज्यादा होता है. इस प्रजाति के गूदे का रंग हलका गुलाबी होता है. इस के खाली खेत में गेहूं की बोआई समय से की जा सकती है. इस प्रजाति की औसत उपज 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

संतरा गाची : इस प्रजाति के पौधों की बढ़वार तेजी से होती है. इस के कंदों में चरपरापन ज्यादा पाया जाता है. इस की औसत उपज 50-75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

कोववयूर : यह ज्यादा उपज देने वाली प्रजाति है. इस के पौधों की बढ़वार संतरा गाची की तरह ही होती है. इस की औसत उपज 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

उपरोक्त तीनों प्रजातियों की बोआई का सही समय उत्तर भारत में फरवरी से मार्च के दौरान व दक्षिण भारत में मई में होता है.

बोआई विधि : जमींकंद की बोआई के लिए पहले से तैयार किए गए खेत में 3-3 फुट की दूरी पर 30 सेंटीमीटर गहरा, लंबा व चौड़ा गड्ढा खोद लिया जाता है. इस प्रकार प्रति हेक्टेयर करीब 10 हजार गड्ढे तैयार हो जाते?हैं. खेत में तैयार छोटे कंदों जिन का औसत भार 250 ग्राम का होता है या बड़े कंदों के 500 ग्राम तक के टुकड़े काट कर खोदे गए गड्ढों में रोप देते हैं. रोपे गए स्थान पर पिरामिड के आकार में मिट्टी चढ़ा देते हैं और उसे घासफूस से ढक देते हैं ताकि खेत में से नमी न खत्म होने पाए. इस से कंदों में अंकुरण जल्दी होता?है.

बीज की मात्रा : बोआई के लिए 500 ग्राम तक के बीज (कंदों के टुकड़े) ठीक रहते हैं. इस प्रकार 1 हेक्टेयर खेत के लिए 50 क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है. गरमियों में मानसून से पहले 1 बार सिंचाई जरूरी होती है. कम बारिश की हालत में समयसमय पर सिंचाई करते रहना चाहिए. नमी बनाए रखने के लिए बोआई के बाद खेत में भूसी की परत, पुआल या सूखी पत्तियां बिछा देनी चाहिए.

खरपतवार : जमींकंद की फसल के साथ खरपतवार का उग आना आम बात है. ऐसे में पूरी फसल के दौरान 2-3 बार निराईगुड़ाई जरूर करनी चाहिए. पहली निराईगुड़ाई 40-60 दिनों बाद व दूसरी 80-90 दिनों बाद करनी चाहिए. हर गुड़ाई के बाद पौधों पर मिट्टी जरूर चढ़ाएं.

कीट : कृषि विज्ञान केंद्र बंजरिया (बस्ती) के डा. प्रेमशंकर के अनुसार जमींकंद की फसल में जुलाई से सितंबर महीनों के दौरान तंबाकू की सूंडी का प्रकोप देखा गया है. यह पत्तियों को खा कर हानि पहुंचाती है. इस की रोकथाम के लिए मेथेमिल लिक्विड दवा का छिड़काव करना चाहिए. इस के अलावा एंडोकार्ग दवा का छिड़काव भी कारगर होता है.

रोग : जमींकंद की फसल को 2 तरह के रोग नुकसान पहंचाते हैं. झुलसा रोग फाइटोफ्थोरा कोलोकेमी नामक फफूंद के कारण लगता?है. इस से जमींकंद की पत्तियां झुलस जाती हैं और तना गलने लगता है. इस के अलावा कंदों की बढ़वार भी रुक जाती है. दूसरा रोग पत्ती व कंद विगलन का होता है. इस से पत्तियां व कंद सड़ने लगते हैं. इन दोनों रोगों की रोकथाम के लिए सिक्सर नाम के रसायन की 300 ग्राम मात्रा को 200-300 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. दूसरी दवा क्यूरेट गोल्ड की

600 ग्राम मात्रा को 200-250 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए.

खुदाई : जमींकंद की फसल अक्तूबर महीने से खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. इसे हर हाल में नवंबर से दिसंबर तक खोद लेना चाहिए. खुदाई करते समय कंदों को कटने से बचाने पर पूरा ध्यान देना चाहिए. कंदों की खुदाई से 20 दिन पहले ही खेत की सिंचाई बंद कर देनी चाहिए.

उपज व लाभ : जमींकंद की उपज फसल की देखरेख व प्रजाति पर निर्भर करती है. अगर 500 ग्राम भार के बीजों की बोआई की गई है, तो प्रति हेक्टेयर 400 क्विंटल की उपज मिलती?है, जो 20-40 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेची जा सकती है. जमींकंद की खेती के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए डा. दिनेश कुमार यादव के मोबाइल नंबर 9451997620 पर संपर्क करें. फसलसुरक्षा के बारे में डा. प्रेमशंकर के मोबाइल नंबर 9935668097 पर संपर्क किया जा सकता है.

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