इस साल मौसम के बदले मिजाज ने सभी को चौंका कर रख दिया है. खेतीकिसानी के माहिरों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं, तो किसान एक तरह से सकते में हैं कि आखिरकार यह हो क्या रहा है. जाड़ों में पहले सी ठंडक क्यों नहीं है. किसानों की चिंता खुद को ले कर कम और फसलों को ले कर ज्यादा है, जिन्हें बोआई से ले कर कटाई तक एक तय तापमान और नमी की जरूरत रहती है. मौसम की गड़बड़ी से गेहूं सहित रबी की सभी फसलों का रकबा काफी घट गया है.

तापमान में बदलाव का आलम यह है कि जानकार और माहिर हैरान हैं और एकदम से किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे. इस के लिए लगातार दुनिया भर के मौसम को बदलने वाली वजहों की निगरानी की जरूरत है और वजह मिल भी जाए तो उस के बाद एक बड़ी जरूरत उस के मुताबिक खेतीकिसानी का कैलेंडर बनाने और उस पर अमल करने की होगी, जो आसान काम नहीं होगा.

केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय ने बीती 3 जनवरी को जो आंकड़े गेहूं की घटती पैदावार को ले कर जारी किए, वे वाकई चिंताजनक हैं और देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालने वाले हैं.

मंत्रालय के मुताबिक लगातार दूसरे साल सूखा पड़ने और जाड़े के मौसम में ठंडक न पड़ने से गेहूं की बोआई पिछड़ गई है. रबी के मौसम की सब से बड़ी फसल गेहूं की बोआई आमतौर पर अक्तूबर महीने में शुरू हो जाती है और नवंबर के आखिर तक चलती है.

लेकिन बीते साल के अक्तूबरनवंबर के महीनों में ठंडक पहले जैसी नहीं थी, इसलिए गेहूं की बोआई का रकबा बमुश्किल 271.46 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंच पाया, जबकि बीते सीजन में इसी वक्त तक 293.16 लाख हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बोआई हो चुकी थी यानी महज 1 साल में मौसम के बदलते मिजाज के चलते गेहूं की बोआई का रकबा 21.7 लाख हेक्टेयर कम हो गया.

इस आंकड़े का सीधा असर पैदावार और किसानों की माली हालत पर पड़ना तय है. अब देशभर में गेहूं की पैदावार 9 करोड़ टन का तयशुदा आंकड़ा छू पाएगी, इस में शक है. गौरतलब है कि साल 2014-15 में देश में गेहूं की पैदावार 889.5 लाख टन हुई थी. अगर मौसम के तेवर यही रहे तो इस साल गेहूं की पैदावार 850 लाख टन के आसपास सिमट जाने का अंदेशा है.

वक्त रहते अगर मौसम के बदलते मिजाज के मुताबिक खेतीकिसानी के तौरतरीके नहीं बदले गए, तो यह घाटा लगातार बढ़ना तय है.

जलवायु के लिहाज से देश के सभी सूबे गेहूं की खेती के लिए मुफीद हैं, पर सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की खेती सब से ज्यादा होती है. इस के बाद पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार का नंबर आता है. इन सभी सूबों में मौसम आमतौर पर एक सा रहता है. गेहूं की बोआई के वक्त ठंडक रहती है और कटाई के वक्त तक धीरेधीरे गरमी बढ़ जाती है.

यह गेहूं की फसल की खूबी है कि वह तापमान का उतारचढ़ाव बरदाश्त कर जाती है और किसान को निराश नहीं करती. इस का बीज 4-5 डिगरी सेल्सियस पर भी अंकुरित हो जाता है और 35 डिगरी सेल्सियस पर भी, लेकिन ज्यादा और अच्छे अंकुरण के लिए सही तापमान 20-25 डिगरी सेल्सियस है.

कम और ज्यादा तापमान पर अंकुरण कम होता है, जिस से पैदावार भी कम होती है. देश में गेहूं की प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 30 क्विंटल है, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि तापमान फसल की मांग और जरूरत के मुताबिक रहे. पिछले अक्तूबरनवंबर में तापमान औसत से ज्यादा रहा, इस से अंकुरण कम हुआ.

इसी तरह गेहूं की बेहतर बढ़वार के लिए सही तापमान 25 डिगरी  सेल्सियस माना जाता है. बोआई के समय तापमान कम हो और फसल की बढ़वार के साथ बढ़ता जाए तो नतीजा बेहतर होता है. मार्च के महीने में औसत तापमान 25 डिगरी  सेल्सियस होने से फसल समय पर और अच्छी पकती है. लेकिन जब दिसंबरजनवरी जैसे ठंडे महीनों में ही औसत तापमान 30 डिगरी सेल्सियस रहे जैसा कि इस साल हुआ, तो ज्यादा पैदावार की उम्मीद करना बेमानी है.

जनवरी के महीने में जब बाली में दाना पड़ रहा होता है तब गेहूं की फसल को ज्यादा ठंडक की जरूरत होती है, जो हर साल पड़ती भी थी. लेकिन इस साल हैरतअंगेज तरीके से दिसंबर का महीना गरम रहा, जिस का फर्क गेहूं की फसल पर देखने में आया. कहीं दाने बराबर नहीं पड़े, तो कहीं फसल पीली पड़ कर मुरझा गई. कहीं रोग और कीटों ने अपना असर दिखाया, तो कहीं फसल बढ़ी ही नहीं. अंदाजा है कि इस से प्रति हेक्टेयर 5 क्विंटल का नुकसान हुआ.

अगर यही हाल रहा तो फरवरी में पारा 25 डिगरी सेल्सियस से ऊपर ही रहेगा, जो गेहूं को जल्द पकाएगा. नतीजा यह होगा कि दाना छोटा व घटिया होगा और फसल इसी महीने में पक कर पीली पड़ जाएगी.

और भी हैं वजहें

बात अकेले तापमान में उतारचढ़ाव की नहीं है, बल्कि इस से जुड़ी और भी वजहें हैं जिन के चलते गेहूं की पैदावार पर बुरा असर पड़ रहा है. इस साल बारिश भी औसत से कम हुई और गरमी ज्यादा रही, जिस से जमीन में नमी की कमी रही. नतीजा यह हुआ कि असिंचित इलाकों में किसानों ने जैसेतैसे गेहूं बोने की तसल्ली कर ली.

रहीसही कसर बारिश ने पूरी कर दी, जो इस साल ढंग से हुई ही नहीं. बढ़वार के वक्त अगर एक बार भी हलकी बारिश हो जाए तो गेहूं की फसल अच्छी तरह बढ़ती है और उस में दाने भी खूब पड़ते हैं. इस साल गेहूं की फसल वही किसान ले पा रहे हैं, जिन के पास सिंचाई के साधन हैं और हर कोई जानता है कि ऐसे किसानों की तादाद 25 फीसदी भी नहीं है.

मौसम के बदलाव से गेहूं पर रोगों व कीटों का हमला भी ज्यादा होता है. गंजबासौदा के एग्रीकल्चर कालेज के प्रोफेसर आशीष श्रीवास्तव बताते हैं कि गेहूं को सब से ज्यादा नुकसान रस्ट यानी रतुआ बीमारी पहुंचाती है, जिस की रोकथाम के तमाम उपायों के बाद भी पैदावार में 10 फीसदी तक गिरावट आती है.

आशीष  बताते हैं कि जैसे कमजोर आदमी को बीमारियां जल्द अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं, वैसे ही गेहूं की फसल पर तापमान का असर पड़ रहा है. हर फसल एक तय तापमान पर बढ़ती और पकती है. इस में 5-6 डिगरी सेल्सियस का अंतर ज्यादा असर नहीं डालता, लेकिन इस से कम या ज्यादा अंतर होने पर बीमारियां और कीड़े ज्यादा असर दिखाते हैं. कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल फसल की लागत बढ़ाता है. इस के बाद भी परेशानी खत्म होना पक्का नहीं होता.

यानी दिक्कत कम पैदावार की ही नहीं, बल्कि फसल की बढ़ती लागत की भी है. सिंचाई, खाद और कीटनाशक वगैरह सभी ज्यादा तादाद में किसानों को बढ़ते तापमान के चलते फसलों को देने पड़ रहे हैं.

क्या करें किसान

घटतेबढ़ते तापमान पर किसानों का कोई जोर नहीं चलता. ऐसे कारगर तरीके भी कोई नहीं बता सकता, जिन से वे इस मार और घाटे को कम कर सकें.

सीहोर के एक खेती के माहिर डीएम राठौर की मानें तो यह ठीक है कि खेतीकिसानी मौसम के हाथ में है, लेकिन गेहूं की फसल के लिए किसान कुछ एहतियात बरतें तो घाटा कुछ कम किया जा सकता है. ये उपाय हैं :

* गेहूं की फसल में सिंचाई ज्यादा और कम वक्त के अंतर से करें. 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहने से गरमी का असर कम किया जा सकता है.

* निराई के बाद खरपतवारों को फेकें नहीं, बल्कि उन्हें खेत में ही बिछा दें जिस से नमी भाप बन कर कम से कम मात्रा में उड़े.

* ज्यादा तापमान के दिनों (25 डिगरी सेल्सियस से ज्यादा) में 2 फीसदी यूरिया का घोल खेत में डालें. इस से खेती की बढ़वार रुकेगी नहीं.

* खेतों में कृषिक्रियाएं जरूरत के मुताबिक ही करें और खाद भी उचित मात्रा में ही डालें.

* अगर अगले साल अच्छी फसल लेनी है, तो बारिश के बाद कम जुताई करें ताकि खेत में नमी बनी रहे. जुताई के तुरंत बाद बोआई करें, जिस से नमी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके.

* देर से बोई जाने वाली किस्मों का इस्तेमाल करें. गेहूं की ऐसी खास किस्में हैं

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