महिला किसानों में जागरूकता जरूरी
महिलाओं की खेती में भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है. गांवों में ज्यादातर खेती महिला किसानों के जिम्मे होती है. आज खेती पर जलवायु परिवर्तन का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है. समय पर बरसात न होने से गेहूं और धान सहित हर फसल की पैदावार प्रभावित हो रही है. ऐसे में जरूरी है कि महिला किसानों को भी ऐसे बदलाव की जानकारी हो. प्रचारप्रसार के जरीए ही महिला किसानों को जागरूक किया जा सकता है. गांव में रहने वाले ज्यादातर कमजोर और गरीब परिवारों के लोग कम रकबे की खेती करते हैं. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सब से अधिक इन पर पड़ता है. बड़े किसान इस से कम प्रभावित होते हैं, पर छोटे किसान इस से ज्यादा प्रभावित होते हैं. ऐसे में जरूरी है कि उन्हें खेती पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उस से बचाव कीजानकारी दी जाए. लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप ने 2 दिवसीय एक राज्य स्तरीय ‘महिला किसान संवाद’ का आयोजन किया. इस का उद्घाटन कृषि राज्यमंत्री राधे श्याम सिंह ने किया.
राधे श्याम सिंह ने कहा कि आज आवश्यकता है महिला किसानों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को बड़े पैमाने पर प्रसारित करने की. महिला किसानों द्वारा की जा रही गतिविधियों को बड़े पैमाने पर पहचान दिलाने की भी जरूरत है. छोटी जोत की महिला किसानों द्वारा किए गए सफल प्रयोगों की जानकारी को बड़े स्तर पर ले जाना चाहिए. इस आयोजन में जमीनी स्तर पर जुड़ी महिला किसानों, कृषि क्षेत्र व आजीविका से जुड़े स्वैच्छिक संगठनों, शोधकर्ताओं व कृषि क्षेत्र से जुड़े तमाम अधिकारियों ने हिस्सा लिया.
बीज और खाद का सही इस्तेमाल
कृषि राज्यमंत्री राधे श्याम सिंह ने कहा कि महिला किसानों के जलवायु के मुताबिक कृषि के परंपरागत ज्ञान, बीज चयन, संरक्षण व जैविक खाद विधियों को कृषि प्रसार सेवाओं के तहत जोड़ा जाए. उन्हें जलवायु परिवर्तन नापने केयंत्रों का ज्ञान दिया जाए व उन्हें चलाने में उन का सहयोग लिया जाए. यह काम हर पंचायत में पक्केतौर पर हो. महिलाओं को जलवायु परिवर्तन व उस के जीवन और सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी देने के साथ ही जलवायु परिवर्तन से निबटने के तरीकों के विषय में जानकारी दी जाए. महिला किसानों की खातिर मौसमबदलाव के जोखिम से निबटने के लिए बीमा, फसल बीमा, कृषि दुर्घटना बीमा और पशु बीमा का लाभ तय हो. महिला किसानों को किसान की प्रचलित परिभाषाओं के दायरे में लाया जाए, ताकि जलवायु अनुकूलन कृषि को बढ़ावा मिले और देश की खाद्य सुरक्षा व आर्थिक सुरक्षा में उन का योगदान तय हो सके.
छोटी जोत पर ज्यादा ध्यान की जरूरत
डा शीराज वजीह (अध्यक्ष, गोरखपुर, एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप) ने कार्यशाला का मकसद बताते हुए कहा कि कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन से जुड़े कामों में महिला किसानों की अहमियत पर चर्चा की गई. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के कारण खराब हालात पैदा हो रहे हैं. यहां पर लगभग 80 फीसदी आबादी की आजीविका का जरीया आज भी छोटी जोत की खेती या खेतिहर मजदूरी है. इस में भी करीब 93 फीसदी काम महिला किसानों द्वारा किए जाते हैं. रोपाई व बोआई से ले कर भंडारण तक के सभी कामों में महिला किसानों का योगदान होता है.
महिला किसानों ने बताया अच्छी फसल का राज
रामरती देवी साड़े कलां, मेहदावल, संत कबीरनगर से आई थीं. उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचने के लिए उन्होंने खाली पड़ी बेकार जमीन की खुदाई करा कर तालाब तैयार कराया. उस में मछलीपालन किया और ऊपर मुरगीपालन भी किया. मेड़ों पर केले व दूसरे पेड़ लगाए. मुरगियों की बीट को वे मछलियों के भोजन के रूप में इस्तेमाल करती हैं. तालाब के पोषक पानी से वे खेतों की सिंचाई करती हैं. उर्मिला देवी मेदिनीपुर, घुघली, महाराजगंज से आई थीं. उन्होंने बताया कि उन की खेती बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में है. मौसम की खराबी की वजह से वे भिंडी, करेला व बंडा वगैरह की मिश्रित खेती करती हैं. उन्हें 8500 रुपए लागत के मुकाबले सिर्फ भिंडी से 67 हजार रुपए की आमदनी 5 महीने में हुई. उसी जमीन में बोड़ा, सरपुतिया, करेला व बंडा की खेती से 8500 रुपए की लागत के मुकाबले 73450 रुपए की आमदनी हुई.
संतरी देवी कुशीनगर से आई थीं. उन्होंने बताया कि उन की खेती बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में है. मौसम की गड़बड़ी की वजह से खेती की लागत में लगातार इजाफा हो रहा है, पर उस हिसाब से फायदा नहीं हो रहा है. आखिरकार साल 2013 के खरीफ में उन्होंने छोटे पैमाने पर टांगुन, मंडुआ व सांवा की खेती शुरू की. इन मोटे अनाजों की खेती में लागत कम लगती है और फसल में रोग व कीड़ों का प्रकोप भी नहीं रहता. ऐसा करने के बाद उन्हें अच्छी पैदावार हासिल हुई. कार्यशाला में प्रदेश के तमाम जिलों से करीब 3सौ महिला किसानों के साथ तमाम कृषि विशेषज्ञों ने भाग लिया. एके विश्नोई, डा. वीके तोमर, नवीन राय, प्रशांत अंचल, केके सिंह, विजय पांडेय, डा. बीसी श्रीवास्तव व डा. अरविंद खरे जैसे खेती के माहिरों ने भी इस बात पर जोर दिया कि महिला किसानों को भी जलवायु परिवर्तन और दूसरे मसलों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए.