आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ की दूरी 14 सौ किलोमीटर के करीब है. हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला प्रधानमंत्री की लखनऊ यात्रा पर भारी पडा. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का मैच आखिरी ‘स्लाग ओवर’ में चल रहा है. विधानसभा चुनाव के 4 साल बीत चुके हैं अब आखिरी साल चल रहा है. इस साल के अंत तक ही चुनाव की घोषणा होनी है .हर दल ने अपने अपने हिसाब से चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं.

भारतीय जनता पार्टी के लिये यह चुनाव इसलिये भी खास है क्योकि यहां से प्रधनमंत्री और गृहमंत्री सहित 73 सांसद जीत कर लोकसभा पहुंचे थे. 2014 से 2017 के बीच 3 साल के फासले में लोकसभा चुनाव के परिणाम कसौटी पर होगे. बिहार चुनाव में भाजपा के ‘सवर्णवाद’ की हवा निकलने के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा नये समीकरण तलाश रही है. वह पिछडी जातियों के साथ दलित समीकरण को भी बनाने में लगी है.

लखनऊ यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लखनऊ में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लेने आये तो हैदराबाद के दलित छात्र रोहित की खुदकुशी पर रोष प्रगट करते अम्बेडकर विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘मोदी मुर्दाबाद’ और ‘मोदी वापस जाओं’ जैसे नारे लगाने शुरू कर दिये. इनमें अम्बेडकर विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडल विजेता छात्र रामकरन और अमरेद्र आचार्य जैसे छात्र भी शरीक थे. प्रधानमंत्री को इस तरह के विरोध की आशंका पहले से थी. अपने भाषण में नरेन्द्र मोदी ने रोहित की मौत पर 2 बार मौन रह कर भावुकता पूर्वक अपनी संवेदना प्रगट की. प्रधानमंत्री ने रोहित को मां भारती का लाल बताया. यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के कामों को अम्बेडकर के सपनों से जोडने की कोशिश करते कहा कि अमेरिका में पढने के बाद भी अम्बेडकर ने भारत में काम करने का संकल्प लिया था. मोदी ने लखनऊ यात्रा में काल्विन ताल्लुकेदार कालेज में ई-रिक्शा बांटने का कार्यक्रम भी रखा था. यहां भी गरीबों से चारपाई पर आमने सामने बैठ कर बात की. इसके बाद प्रधनमंत्री मोदी अम्बेडकर महासभा के आफिस गये जहां डाक्टर भीमराव अम्बेडकर के अस्थिकलश पर पुष्प चढाये.

लखनऊ में अपने 4 घंटे के कार्यक्रम में प्रधनमंत्री मोदी ने 3 कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. सभी जगह दलित और अम्बेडकरवाद से अपनी सरकार के कामों को जोडने का प्रयास किया. प्रधानमंत्री ने वैसे तो अपने पूरे दौरे में किसी तरह की चुनावी बात नहीं की पर कुछ न कहते हुये भी पार्टी के दलित एजेंडें को तय कर दिया. भाजपा के थिंक्स टैंक अब पार्टी के अम्बेडकरवाद की चर्चा से चुनावी तैयारी शुरू करना चाह रहे है. वैसे तो भाजपा और उसके संगठन सामाजिक समरसता और दलित उत्थान का बेहद समर्थन करते है पर उनकी कथनी और करनी का फर्क सामने दिखता है. विद्यालयों को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है वहां पर जिस तरह की जाति और धर्म की जकडन है हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित की खुदकुशी ने उसे उजागर कर दिया है. अगर यही मायनों में देश और समाज का भला करना है तो राजनीति को जाति और धर्म के वोट बैंक से बाहर निकल कर काम करना होगा. सही मायनों में तभी बाबा साहब का सपना सकार हो सकेगा.

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