अरविंद केजरीवाल का नाम सामने आते ही हमारे सामने एक ऐसे अक्खड़ मुख्यमंत्री की छवि उभर कर आती है जिसे सब से पंगा लेने की मानो आदत सी हो गई?है. फिर चाहे वह केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार हो या दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग, दिल्ली पुलिस हो या फिर सीबीआई. आजकल दिल्ली के ये ‘आम मुख्यमंत्री’ एक और बात को ले कर सुर्खियों में बने हुए हैं और वह है दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए उन की एक ऐसी पहल, जो पहली नजर में अनोखी और बचकानी लग रही है.

दरअसल, दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने साल 2015 के आखिर में एक फैसला लिया कि 1 जनवरी, 2016 से 15 जनवरी, 2016 तक दिल्ली की सड़कों पर विषम तारीख के दिन विषम नंबर की कारें और सम तारीख के दिन सम नंबर की कारें ही दौड़ेंगी. इस के लिए कुछ नियमकानून बनाए गए और कुछ को छूट भी दी गई. अदालत ने भी अरविंद केजरीवाल के इस फैसले की सराहना की और यह भी जानना चाहा कि औरतों को कार चलाने व दोपहिया वाहनों को इस नियम में छूट क्यों दी गई?

यह पत्रिका आप के हाथों में आने तक 1 से 15 जनवरी की यह समयावधि बीत चुकी होगी और इस फैसले का जो असर होना होगा, वह हो चुका होगा. पर इस बात से यह सवाल जरूर उठता है कि अरविंद केजरीवाल ने यह कठोर कदम क्यों उठाया? जब उन की सरकार बनी थी तब दिल्ली को मुफ्त बिजली व पानी देने के उन के वादे को लोगों ने वोट बटोरने का जरिया बताया था, लेकिन यह फैसला तो कहीं से ऐसा नहीं लगता कि उन के जेहन में दिल्ली की जनता के वोट हैं. उलटे, यह तो जनता से बैर मोल लेने जैसा है.

बदलाव की जरूरत

लेकिन अगर ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो अब वक्त आ गया कि लोग फैसला कर लें कि उन्हें प्रगति चाहिए या प्रदूषण? दिल्ली सरकार की यह योजना अगर कारगर साबित होगी तो इस में सब से बड़ा योगदान जनता का ही रहेगा, क्योंकि राजधानी में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा बढ़ गया है. इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने भी माना है कि राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की वजह से रोजाना 80 लोगों की जानें चली जाती हैं. शायद यही वजह है कि दिल्ली सरकार ने समविषम नंबर के आधार पर वाहनों को चलाने की यह योजना बनाई है.

यह दुख की बात है कि दिल्ली भी दुनिया के प्रदूषित शहरों के मामले में चीन के शहर बीजिंग से टक्कर ले रही है, बल्कि दिसंबर 2015 में तो इस ने प्रदूषण के मामले में बीजिंग को मात भी दे दी थी. वास्तव में वायु प्रदूषण का मतलब है हवा में धूल और कार्बन के महीन कणों तथा नुकसान पहुंचाने वाली गैसों का एक सीमा से अधिक हो जाना. नाइट्रोजन डाईऔक्साइड, सल्फर डाईऔक्साइड और कार्बन मोनोऔक्साइड की मात्रा तथा हवा में घुले वे महीन सूक्ष्म कण जो नंगी आंखों से नहीं दिखते, उन्हें पीएम 2.5 कहते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए मापदंड से इन का अधिक हो जाना ही वास्तव में वायु प्रदूषण जांचने की मुख्य कसौटी है.

भयावह आंकड़े

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, इन कणों की मात्रा हवा में 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. हवा में अगर इन की मात्रा 100 माइक्रोग्राम हो जाए तो ऐसी हवा प्रदूषित कही जाएगी और अगर यह 300 माइक्रोग्राम तक चली जाए तो फिर कम से कम बच्चों, बूढ़ों, दमे के मरीजों व बीमारों को तो घरों के भीतर ही रहना चाहिए.

2015 की शुरुआत में पहले 3 हफ्ते दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में प्रदूषण की औसत रीडिंग 473 पीएम-2.5 थी, जबकि बीजिंग में तब यह 227 थी. लेकिन नवंबरदिसंबर 2015 में तो कई बार दिल्ली में प्रदूषण की मात्रा 500 माइक्रोग्राम की सीमा भी पार कर गई. यहां तक कि दीवाली के आसपास तो एक दिन रिकौर्ड 755 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक आंकड़ा पहुंच चुका है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की निर्धारित प्रदूषण मात्रा से 3 हजार प्रतिशत ज्यादा है.

एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक, हवा की गुणवत्ता में यदि सुधार कर लिया जाए तो भारत और चीन प्रति वर्ष 14 लाख लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचा सकते हैं. हालांकि सरकार ने हाल में संपन्न पेरिस जलवायु सम्मेलन में साल 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 33-35 फीसदी तक की कमी का फैसला लिया है और यह तय किया है कि साल 2030 तक होने वाले कुल बिजली उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा कार्बन रहित ईंधन से होगा. लेकिन व्यवहार में इस का होना इसलिए मुश्किल लगता है क्योंकि देश में पहले ही बेरोजगारी की दर काफी ज्यादा बढ़ी हुई है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें ईंधन में कोयले के इस्तेमाल की मौजूदा मात्रा को 40 प्रतिशत तक कम करना होगा. इस से बड़ी तादाद में उद्योगधंधे प्रभावित होंगे, जो शायद हम बरदाश्त न कर सकें.

तरक्की बनाम प्रदूषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में कहा है कि पर्यावरण के लिए हम अपनी प्रतिबद्धता को हर हाल में पूरा करेंगे. मगर सवाल है-क्या हम व्यक्तिगत स्तर पर इस के लिए अपनी तथाकथित प्रगति की कुरबानी देने को तैयार हैं? क्योंकि दो काम एकसाथ नहीं हो सकते कि पर्यावरण की अपनी चिंता को भी हम दूर कर लें और हमारी प्रगति भी बाधित न हो.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ऊर्जा के लिए हमें आसमान की ओर देखना होगा. उन्होंने सस्ती सौर ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए देश में साल 2022 तक 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य भी रखा है. यह भी उम्मीद है कि साल 2016 तक तकरीबन 12 गीगावाट की क्षमता स्थापित हो जाएगी, जो मौजूदा क्षमता से 3 गुना अधिक है. फिर भी इस सब के लिए हमें अपनी कुछ ख्वाहिशों की कुरबानी तो देनी ही पड़ेगी. दरअसल उत्सर्जन के मामले में हम साल 2005 के स्तर पर तभी पहुंच पाएंगे जब अगले 15 सालों में किसी भी निर्माण के लिए हम 33 फीसदी कम ऊर्जा का उपयोग करें. ज्यादा साफ शब्दों में यह कोयले की खपत को 40 फीसदी तक घटाने की चुनौती है.

बीमारियों को आमंत्रण

लेकिन शायद ही ऐसा हो पाए, क्योंकि एनवायरमैंट परफौर्मेंस इंडैक्स यानी ईपीआई में 178 देशों के बीच भारत का स्थान 155वां है. चीन, पाकिस्तान, नेपाल तक हम से बेहतर हैं. लैंसेट ग्लोबल हैल्थ बर्डन 2013 के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए छठा सब से घातक कारण बन चुका है, जो हर वर्ष 6 लाख, 20 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले लेता है. पीएम 2.5 कणों की सांद्रता के सालाना औसत के मामले में दिल्ली सब से आगे रहने वाला शहर बन चुका है. देश में सांस और फेफड़े संबंधी बीमारियों के कारण होने वाली मौतों की दर दुनिया में सब से ज्यादा है. देश में सब से ज्यादा दिल्ली की हवा तो खराब है ही, लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं है कि देश के दूसरे शहरों की स्थिति बहुत अच्छी है.

साल 2015 में जारी एक अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली के अलावा देश के 140 शहर रहने के लायक नहीं हैं. इन में पटना, कानपुर, लुधियाना से ले कर हावड़ा और जमशेदपुर तक शामिल हैं. अगर दिल्ली को लें तो पिछले 2 सालों में यहां वायु प्रदूषण में 44 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है तो वाहनों की संख्या में साढ़े 4 लाख की बढ़ोतरी हुई है. आज दिल्ली में 86 लाख से ज्यादा वाहन रजिस्टर्ड हैं, साथ ही एनसीआर में पंजीकृत लाखों वाहनों में से बड़े पैमाने पर हर रोज यहां आते हैं. रोजाना 50 हजार से 1 लाख ट्रक भी शहर से हो कर गुजरते हैं, जबकि साल 1970 में दिल्ली में महज 8 लाख वाहन थे. बाकी जगहों की गाडि़यां भी अपेक्षाकृत तब यहां कम आती थीं, जबकि अब हालत यह है कि रोजाना 1,400 से ज्यादा गाडि़यां ट्रैफिक में शामिल हो रही हैं.

दिल्ली और एनसीआर में हो रहा भवन निर्माण और पड़ोसी इलाकों में जलाया जाने वाला एग्रीकल्चरल वैस्ट तथा राजस्थान की रेगिस्तानी रेत के चलते, हार्वर्ड इंटरनैशनल रिव्यू के मुताबिक, 5 में हर 2 दिल्लीवासी सांस की बीमारी से ग्रस्त हैं. अस्थमा से जितने लोग भारत में मरते हैं उतने समूचे संसार में कहीं नहीं मरते. दिल्ली की हवा को जीने लायक तभी बनाया जा सकता है जब यहां के कुल वाहनों में से 80 फीसदी कम किए जाएं, मगर क्या यह संभव है? दिल्ली की आबोहवा आदर्श स्थिति में 10 से 12 लाख और संवहनीय (सस्टनेबल) स्थिति में 15 से 16 लाख वाहन ही झेल सकती है.

सवाल है कि दिल्ली समेत दुनिया को प्रदूषण की मार से कैसे बचाया जा सकता है? इस का एक ही तरीका है कि हम सब लोगों को इस के लिए बड़ी से बड़ी कीमत देने के लिए तैयार होना होगा. अपनी लाइफस्टाइल को कुदरत के नजदीक लाना होगा. दिखावे को त्यागना होगा और लगातार अपने को सजग नागरिक बनाना होगा.

खुद करें पहल

आज अकेले दिल्ली शहर में 3,96,000 परिवार ऐसे हैं जहां औसतन 4 वाहन हैं. अगर एक से ज्यादा वाहन वाले परिवारों की गिनती करें तो ये 11 लाख से ज्यादा हैं. अगर इसी तरह घरों में लगे एअरकंडीशनर को देखें तो वे भी एकएक घर में कईकई लगे हैं. अगर हमें साफ हवा चाहिए तो इस दिखावे को ‘बायबाय’ करना होगा, वरना चेतना के नाम पर हम इस भयावह समस्या की रट भी लगाए रखेंगे और प्रदूषण की मार से मरते भी रहेंगे. बात अगर अरविंद केजरीवाल के फैसले की करें तो उन्होंने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है. उन्होंने साफ शब्दों में बता दिया कि अगर प्रदूषण के दानव से 2-2 हाथ करने हैं तो जनता को भी यह बीड़ा उठाना होगा. उन्होंने इस योजना के लिए ‘गंगा सफाई अभियान’ की तरह, करोड़ोंअरबों का सरकारी खजाना नहीं खोला है, बल्कि जनता से अपील की है कि वह प्रदूषण के खतरनाक इरादों को समझे और अपने विवेक से उचित निर्णय ले.

अरविंद केजरीवाल को इस के लिए शाबाशी भी मिलनी चाहिए, क्योंकि ऐसे बहुत कम नेता होते हैं जो अपने फायदे को ताक पर रख कर सही माने में जनता के भले की सोचते हैं. हो भी क्यों न, यह हमारे और आने वाली पीढि़यों की जिंदगी का सवाल है.

‘‘मैं मानता हूं कि इस से आप को परेशानी होगी, मगर दिल्ली की हवा प्रदूषण के कारण जहरीली होती जा रही है. यह हम सब की सेहत के लिए घातक है, खासकर बच्चों के लिए तो बहुत ही घातक है. आइए, हम सब मिल कर एक कोशिश करते हैं दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने की. मैं भी आप की तरह इस नियम का पालन करूंगा.’’

–अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली सरकार

– साथ में राजेश कुमार

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