हिंदी सिनेमा जगत में दादा मुनि के नाम से मशहूर एक्टर अशोक कुमार का फिल्म इंड्रस्टी में दिया योगदान आखिर कौन भुला सकता है. 50 और 60 के दशक में अशोक कुमार का फिल्मों में सिगार फूंकते और मुस्कुराते हुए शख्स का किरदार दर्शकों के लिए जैसे फिल्मों का एक जाना पहचाना और अपनापन वाला सहज चरित्र हो गया था.
अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर में एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था. सभी जानते हैं कि अशोक कुमार पहले एक्टर नहीं बनना चाहते थे. लेकिन क्या आप जानते हैं अशोक कुमार एक लेबोरेट्री में लैब असिस्टेंट का काम करते थे. नहीं जानते तो कोई बात नहीं चलिए आज हम बताते हैं.
एक्टर बनने से पहले अशोक कुमार ने साइंस में ग्रेजुएशन की थी और वो न्यू थिएटर मे बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट काम करते थे. न्यू थिएटर मे लेबोरेट्री असिस्टेंट का काम करते-करते ही अशोक कुमार को अचानक अपनी पहली फिल्म का औफर मिला था.
सभी जानते हैं कि अशोक कुमार का फिल्मी दुनिया में कदम रखना भी इत्तेफाक था. सन् 1936 में बौम्बे टौकीज स्टूडियो की फिल्म ‘जीवन नैया’ के नायक नज्म उल हसन अचानक बीमार पड़ गए थे तब स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर अब करें तो क्या करें.
तब हिमांशु राय की नजर लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उन्होंने अशोक कुमार को फिल्म में लीड रोल औफर किया. अशोक कुमार ने हिमांशु राय का ये औफर एक्सेप्ट कर लिया और यही से अशोक कुमार का फिल्मी करियर शुरू हुआ था.
झलक पाने के लिए उठा दिया घूंघट
सहज, स्वभाविक अभिनय के साथ पर्दे पर उतरे अशोक कुमार को लोगों ने पलकों पर बिठा लिया. उनकी लोकप्रियता का आलम यूं था कि उनकी एक झलक पाने को राज कपूर की पत्नी ने अपना घूंघट हटा लिया था. हुआ यूं कि जब राज कपूर की शादी के दौरान किसी ने कहा कि अशोक कुमार आए हैं तो राज कपूर की पत्नी ने यह सुनते ही अपना घूंघट उन्हें देखने के लिए हटा दिया. इससे राज कपूर अपनी पत्नी से कई दिनों तक गुस्सा भी रहे थे.
हिन्दी फिल्मों के शुरुआती दौर में जब अभिनय शैली में पारसी थियेटर का प्रभाव था, उस दौर में अशोक कुमार ऐसे नायक के रूप में सामने आए जिन्होंने अभिनय में सहजता और स्वाभाविकता पर जोर दिया और स्टारडम को नया रूप देते हुए कई सामाजिक एवं मनोरंजक फिल्मों से सिनेप्रेमियों का मन मोह लिया. अशोक कुमार ने अपने दौर की विभिन्न नायिकाओं के अलावा बाद की पीढ़ी की नायिकाओं के साथ भी काम किया. नायक की भूमिका के बाद दादा मुनि बाद में चरित्र भूमिकाओं में आने लगे. इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने बेहतरीन अभिनय किया और दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब रहे.
दादामुनि का निधन 10 दिसंबर 2001 को 90 वर्ष की आयु में हुआ था. 1999 में उन्हें हिंदी फिल्मों में योगदान के लिए भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.