तकरीबन पूरे देश में राज्य सरकारों ने संपत्तियों की खरीद पर सर्कल रेट सा प्रावधान बना रखा है. इस के तहत रजिस्ट्रार के कार्यालय में खरीदी गई संपत्ति के कागजात को पुख्ता कराने के लिए जो फीस दी जाती है, वह खरीद की कीमत या सर्कल रेट, जो भी अधिक हो, पर ही हो सकती है. अगर संपत्ति 50 लाख रुपये की खरीदी गई है और सर्कल रेट के हिसाब से उस की कीमत 80 लाख रुपये है, तो स्टैंप ड्यूटी 80 लाख रुपये पर ही देनी होगी. आयकर विभाग भी यही पूछेगा कि 80 लाख रुपये कहां से आए. बेचने वाले को 80 लाख रुपये की आय का हिसाब देना होगा.
रजिस्ट्रेशन कानून का मूल ध्येय सुप्रीम कोर्ट के सूरज लैंप इंडस्ट्रीज के मामले में इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है :
रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 इस आशय से बनाया गया था कि अचल संपत्तियों के लेनदेन में अनुशासन हो, वे सही हों, इस बारे में जानकारी सार्वजनिक रहे और लेनदेन के कागजों में बेईमानी व धोखेबाजी न होने पाए. इससे पंजीकरण अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किए गए समस्त दस्तावेजों के सत्य होने की गारंटी हो जाती है और खरीदारों को व्यर्थ के विवादों में नहीं पड़ना पड़ता.
सर्कल रेट के जरिये राज्य सरकारों ने संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन को पैसा उगाहने का रास्ता बना लिया. उन्होंने संपत्तियों के न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने शुरू कर दिए और उन के रजिस्ट्रेशन का मामला गौण हो गया और यह काम छिपे तौर पर टैक्स एकत्र करना हो गया है.
यह गलत है और जनता से धोखा है. कोई कानून जिस मकसद से बने, उसी के लिए उस का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. यह बात दूसरी है कि हमारे विधायक और सांसद इतना समय व शक्ति नहीं लगाते कि जनता पर लागू होने वाले कानूनों के सही-गलत होने की वे गहराई से जांच करें और आमतौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के इशारे पर इस तरह के कानून मिनटों में पारित कर दिए जाते हैं.
पंजीकरण केवल यह देखने के लिए है कि संपत्ति का हस्तांतरण सही ढंग से हो रहा है और उस की खरीदफरोख्त के दस्तावेज आम जनता को देखने के लिए उपलब्ध हैं. सर्कल रेटों का इस्तेमाल करके स्टैंप ड्यूटी को राजस्व का हिस्सा बनाने का हक नहीं दिया जा सकता.
कानूनों का गलत इस्तेमाल कर हेराफेरी करने की आदत ही देश में भ्रष्टाचार की जड़ है. हर अफसर जानता है कि किसी भी कानून को किसी भी तरह तोड़मरोड़ कर इस्तेमाल करने का हक उसके पास है, क्योंकि सरकार स्वयं यही कर रही है.