एक तरफ अपनी सरकार के 6 माह पूरे होने पर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार जश्न मना रही है. हर मंत्री अपने अपने विभागों के कायाकल्प का गुणगान करने में मगन है. दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ में एक लड़की से गैंगरेप होता है. वह आरोपियों की जानकारी पुलिस को न दे सके इसके लिये गोली मार दी जाती है. मरने से बच गई युवती जब अपना दर्द बयान करती है तो पुलिस मामले को हल्का करने के लिये घटना में निजी दुश्मनी की वजह को ले आती है.

किसी भी सभ्य समाज पर इससे ‘बदनुमा दाग‘ क्या लग सकता है? हो सकता है कि प्रदेश में पहले भी ऐसी घटनाये घटती रही हों. यह कौन बतायेगा कि इस तरह की घटनाओं से समाज को कब मुक्ति मिलेगी? अस्पताल में अपना इलाज करा रही लड़की अपने चेहरे को देख कर अवसाद ग्रस्त हो जाती है. उसे लगता है कि पुलिस में भर्ती होकर समाज की सेवा करने का सपना अब पूरा नहीं होगा. वह परीक्षा देकर पास नहीं हो पायेगी. समाज की उपलब्धि पर कौन जवाब देगा?

मलिहाबाद में रहने वाली 19 साल की इस लड़की के दर्द को अनुभव कीजिये. तब आपको अहसास होगा अपनी नाकामी का. रात 8 बजे अपने घर से मात्र 100 मीटर दूरी से उसको 3 युवक जबरन उठा ले जाते हैं. यह लोग लड़की को झाडियों में ले जाते हैं. उसको बुरी तरह से मारपीट कर पहले पूरी तरह से बेदम कर देते हैं. इसके बाद उसको नशे का इंजेक्शन लगा देते हैं. नशे की हालत में बेहोश लड़की से बारीबारी से 3 युवक रेप करते हैं. नशा टूटने पर यह लड़की उन लोगों के नाम पुलिस को बता देगी इससे बचने के लिये इसे गोली मार दी जाती है. लड़की के चेहरे पर 21 छर्रे लगते हैं. गोली की आवाज सुनकर गांव के लोग आते हैं, लड़की को मेडिकल कालेज लाया जाता है. जब लड़की बेहोशी से बाहर आती है तो वह अपना दर्द बयान करती है.

गांव के लोगों को जहां लड़की मिलती है, उससे 50 मीटर दूर खून के धब्बे, लड़की की चप्पल और उसका दुपट्टा मिलता है. पुलिस ने आरोपियों को पकड़ लिया पर अब वह इस पूरी घटना को निजी दुश्मनी से जोड़ रही है. इससे वह यह साबित करना चाहती है कि अपराध बदले की भावना से किया गया है. बाकी प्रदेश में ऐसी कोई कानून व्यवस्था खराब नहीं है. हर घटना में ऐसा होता है.

वाराणसी में बीएचयू में जब लड़कियों ने छेड़छाड़ की परेशानी पर आवाज उठाई तो उसको राजनीतिक रंग देकर बात को मुख्य परेशानी से अलग कर दिया गया. जिसके कारण वहां हालात जस के तस हैं. निजी दुश्मनी में क्या कोई इतना घंमडी हो सकता है कि उस परिवार की लड़की के साथ ऐसा कदम उठा सके? अगर ऐसा साहस कोई कर सकता है तो केवल इसलिये क्योंकि उसकी आंखों के कानून का डर नहीं रह गया है.

मलिहाबाद में में सांसद और विधायक दोनों ही भाजपा से हैं. इत्तेफाक से दोनों पति पत्नी भी हैं. ऐसे में मलिहाबाद किसी जंगल का हिस्सा नहीं माना जा सकता. अस्पताल के बेड पर पड़ी लड़की अपने पिता से पूछती है ‘पापा मैं ठीक तो हो जांउगी ना’. बेटी का दर्द पिता कैसे सहन कर सकता है. क्या यही वह रास्ता है जिसके जरीये हम ‘औरत के सम्मान’ और ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ की बात करते हैं. सरकार भी जनता के पिता के समान होती है. दरिदंगी की  शिकार बेटी का अभागा पिता तो उसकी बात का जवाब नहीं दे सकता. आज जनता के पिता के रूप में ही अपनी बेटी समझ उसकी बात का जवाब दे दीजिये ‘महाराज’.

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