यह वक्त के साथ हुई तरक्की का ही नतीजा है कि बीते जमाने में फसल की बोआई के लिए रुकावट व आफत बनने वाला सरसों का कचरा अब किसानों के लिए फायदे का सौदा बन रहा है. तकनीक के सहारे कचरे से प्रदूषण रहित कोयला बना कर किसानों ने कचरे का सही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. सरसों के कचरे के दाम हर साल बढ़ने से किसानों का मुनाफा भी लगातार बढ़ रहा है. किसान कोयले के लिए कचरे की गिट्टियां बन कर बेच रहे हैं. कई जगह किसान इस कचरे को ईंटभट्टों व प्लाईवुड फैक्टरियों को भी भेज रहे हैं. इस से किसानों को अच्छे दाम मिल रहे हैं. सरसों के कचरे का निस्तारण  यानी डिसपोजल (इस्तेमाल) कर के कमाई करने की दिशा में टोंक जिले की निवाई तहसील के भगवानपुरा गांव के किसान शिवराम जाट ने इलाके में सब से पहले पहल की. उन्होंने फरीदाबाद से कचरे की गिट्टियां बनाने की 16 लाख रुपए की मशीनें खरीदीं. ये मशीनें आज आसपास के इलाके के गांवों के रहने वाले किसानों की तकदीर संवार रही हैं. यह मशीन प्रतिघंटा 8 क्विंटल कचरे का निबटेरा कर के गिट्टियां बनाती है.

सरसों के कचरे से बनने वाले कोयले को प्रदूषण रहित माना गया है. इसी वजह से इस की मांग तेजी से बढ़ रही है. माहिरों का कहना है कि सरसों के कचरे से बनने वाली गिट्टियों में मोनो आक्साइड पाया जाता?है. इस कारण इस के कोयले से निकलने वाला धुआं प्रदूषणरहित होता है. किसानों को सरसों के कचरे से अच्छा मुनाफा मिलने के साथसाथ प्रदूषणरहित कचरा क्षेत्र के किसानों के लिए कमाई की नई राह खोल रहा है. गौरतलब है कि सरसों की फसल लेने के बाद आगे की फसल की बोआई को ले कर किसान समय पर खेत खाली नहीं कर पाते थे. ऐसे में किसानों के लिए परेशानी और खर्च दोनों बढ़ जाता था. इतना ही नहीं कचरा प्रबंधन की व्यवस्था नहीं होने से पहले किसान सरसों की फसल के कचरे को फेंकते या जलाते थे. इस से वायु प्रदूषण होता था और पैसा भी खर्च होता था. लेकिन अब किसान इस कचरे को बेच कर न केवल कमाई कर रहे हैं, बल्कि आबोहवा को भी साफ रख रहे हैं.

कचरा डिसपोजल प्लांट लगने के बाद किसानों के दिन बदल गए हैं. अब तो हाल यह है कि सरसों की फसल निकालने के समय ही कचरा खरीदने वाले कारोबारियों की लाइन लग जाती है. 3 से 4 सौ रुपए प्रति क्विंटल के भाव से ये कचरा हाथोंहाथ बिक जाता है. कहना गलत नहीं होगा कि किसानों को आम के आम गुठलियों के भी दाम मिल रहे हैं. सरसों से मिली उपज के साथसाथ कचरे के भी मिल रहे अच्छे दामों ने किसानों की तकदीर ही संवार दी है. भगवानपुरा में कचरा निस्तारण (डिसपोजल) प्लांट व मशीन लगाने से पहले कचरे के भाव 50 रुपए प्रति क्विंटल थे, जो अब 3 सौ से 4 सौ रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं. वहीं गिट्टियां बनने के बाद इस के भाव 6 सौ से 7 सौ रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच जाते हैं. बड़े कारोबारियों तक पहुंचने पर इस के भाव और भी ऊंचे हो जाते हैं. कचरा इस्तेमाल करने व कचरे से अच्छा मुनाफा कमाने की यह तकनीक किसानों के फायदे की सब से बढि़या तकनीक है. मगर अफसोस की बात यह है कि यह प्लांट बड़े किसान या करोबारी ही लगा सकते हैं. मशीनें महंगी होने से छोटे किसान इन्हें खरीद नहीं सकते. अगर सरकार प्लांट लगाने पर सब्सिडी की व्यवस्था करे तो किसानों को व्यापारियों के हाथों लुटना नहीं पड़ेगा.

सरकार वैसे तो उद्योगों, कारखानों व मिलों वगैरह को चलाने के लिए खूब सब्सिडी दे रही है, लेकिन किसानों के लिए फायदेमंद इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कोई रुचि नहीं दिखा रही. किसानों का कहना है कि अगर सरकार मदद करे तो हर गांव में कचरा डिसपोजल के प्लांट लग सकते हैं, जिस से किसानों की कमाई तो बढ़ेगी ही साथ आबोहवा भी साफसुथरी होगी.

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