हमारे देश में मुरगीपालन का सिलसिला बहुत पुराना है. इस काम में सहूलियत यह है कि 2-4 मुरगियों से ले कर सैकड़ों मुरगियों तक अपनी कूवत के मुताबिक पूंजी लगाई जा सकती है. खेती के साथ सहायक रोजगार के रूप में मुरगीपालन बहुत फायदेमंद है, बशर्ते उसे बेहतर तरीकों से किया जाए. ज्यादातर मुरगीपालक मुरगियों के आहार में खनिजों पर पूरा ध्यान नहीं देते. इस लापरवाही से अंडे कम बनते हैं, अंडों की परत कमजोर बनती है, चूजों की बढ़त रुक जाती है व मुरगियां बीमार हो कर मरने लगती हैं. इस से फायदे की जगह नुकसान होता है. लिहाजा माहिरों से हमेशा तालमेल बना कर रखें व उन से राय लेते रहें. कृषि विज्ञान केंद्र या रिसर्च स्टेशनों के वैज्ञानिकों की सलाह से मुरगियों के आहार में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीज, जस्ता, तांबा, नमक, सल्फर, आयरन, आयोडीन, कोबाल्ट, सेलेनियम व फ्लोरीन की सही मात्रा शामिल करें. अगर किसी मुरगी में बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो उसे तुरंत दूसरी मुरगियों से अलग कर दें.
मुरगीपालन का कारोबार करने के लिए मुरगेमुरगियों की नस्ल, उन के रहने की जगह, उन के दानापानी व बीमारियों से बचाव आदि का पुख्ता इंतजाम होना बेहद जरूरी है. तभी मुरगेमुरगियों से ज्यादा अंडे व उम्दा मीट मिल सकेगा. फिलहाल अंडा उत्पादन में भारत दुनिया भर में तीसरे व पोल्ट्री मीट के मामले में 5वें नंबर पर है. नई तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ने से मुरगीपालन के पुराने तरीके पीछे छूट गए हैं. देश में अंडों का उत्पादन साल 2011-12 में 66 बिलियन व साल 2012-13 में 69.73 बिलियन था. साल 2014 में पोल्ट्री की सालाना बढ़त दर 5 फीसदी रही और प्रति आदमी अंडों की उपलब्धता 57 व मुरगे के मांस यानी चिकन का उत्पादन 326 लाख टन आंका गया.
पोल्ट्री प्रोसेसिंग
मुरगीपालन से मिलने वाले अंडे व मांस जल्द इस्तेमाल करने लायक चीजें हैं. इन्हें ज्यादा दिनों तक रोक कर नहीं रखा जा सकता. वैसे भी अब जमाना हाईटेक डिजाइनर अंडों व पोल्ट्री मीट की प्रोसेसिंग का है, लेकिन ज्यादातर लोग अभी तक सिर्फ आमलेट, अंडे की भुजिया व एग करी पर ही अटके हैं. लिहाजा मुरगीपालन के कामधंधे में तकनीकी सुधार व तौरतरीकों में बदलाव करना लाजिम है, ताकि अंडे व मीट ज्यादा दिनों तक खाने लायक रहें. बरेली के इज्जतनगर इलाके में चल रहे केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, सीएआरआई के माहिरों ने अंडों से एल्बूमिन रिंग्स, एग रिंग्स, एग पेन केक, एग पैटीज, एग क्रस्ट पिज्जा, बटेर के अंडों का अचार, बेक्ड अंडा, एगरोल, भरवां लेपित अंडा, एग स्ट्रिप व एग मीट पैटीज बनाने की कामयाब तकनीकें निकाली हैं. किसान उन्हें अपना कर कामयाब करोबारी बन सकते हैं.
इस संस्थान ने पोल्ट्री मीट से मीट वैफर्स, मीट फिंगर चिप्स, चिकन स्टिक्स, मिक्स चिकन लोफ, चिकन सासेज, चिकन गिजार्ड सिरके का अचार, चिकन गिजार्ड सरसों के तेल का अचार, चिकन गिजार्ड स्नैक्स और कुक्ड चिकन रोल आदि बहुत सी ऐसी चीजें बनाने की तकनीकें निकाली हैं, जिन से पोल्ट्री उत्पादों की मियाद बढ़ जाती है. ज्यादातर मुरगीपालक नहीं जानते कि सीएआरआई के माहिरों ने लहसुन, दालचीनी व लौंग की मदद से मुरगे के मांस को 8-10 दिनों तक खाने लायक बनाए रखने की तकनीक निकाली है. उन्होंने पोल्ट्री मीट को ज्यादा मुलायम करने की नायाब तकनीक भी निकाली है. इस संस्थान के 5 पोल्ट्री उत्पादों को पेटेंट मिल चुका है.
कचरा भी बेकार न हो
आमदनी बढ़ाने के लिए पोल्ट्री में बचे हुए कचरे का भी बेहतर इस्तेमाल करना जरूरी है. मसलन पंख छोड़ कर पोल्ट्री मीट के बचे हुए हिस्सों से कुत्तों के लिए उम्दा आहार बनाया जा सकता है. सीएआरआई, बरेली के माहिरों ने इस का उम्दा तरीका खोजा है, ताकि कचरे को भी कीमती बना कर कमाया जा सके. इसी तरह मुरगेमुरगियों की बीट सड़ा कर खाद के तौर पर खेती में काम आ सकती है. इसे बेच कर भी पैसे कमाए जा सकते हैं. देश के कुल अंडा उत्पादन का करीब 30 फीसदी हिस्सा पिछड़े हुए ग्रामीण इलाकों से आता है. यदि छोटे व कमजोर मुरगीपालकों को पोल्ट्री प्रोसेसिंग की सुधरी व किफायती तकनीक सिखा कर उन्हें सहूलियतें दी जाएं, तो उस से अंडा उत्पादों की क्वालिटी बढ़ेगी. साथ ही छोटे किसानों की आमदनी व गांवों में रोजगार के मौकों में भी इजाफा होगा.
हाईटेक अंडे
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली की हाईटेक लेयर्स फार्म्स कंपनी ने बिना बदबू के ब्राउन व 4 तरह के सफेद अंडे 30 व 10 की पैकिंग में बाजार में उतारे हैं. चाइल्ड ग्रो बच्चों की बढ़त के लिए, स्ट्रांग बोन स्वाइनफलू से बचाव व हड्डियों की मजबूती के लिए, हाईटेक प्लस विटामिनों व खनिजों की कमी पूरी करने के लिए और हैपी हार्ट कोलेस्ट्राल घटाने व दिल के मरीजों के लिए है. इन अंडों की पैकिंग पर उत्पादन की तारीख व खाने की मियाद छपी रहती है. ये अंडे बर्डफ्लू, एंटीबायोटिक हारमोंस, सेलमोनेला व कोलिफोर्म बैक्टीरिया आदि से बेअसर बताए जाते हैं.
‘संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे’ का नारा बुलंद कर के अंडों की मांग व खपत बढ़ाने वाली नेशनल एग कोर्डीनेशन कमेटी, एनईसीसी दुनिया भर में मुरगीपालकों का सब से बड़ा संगठन है. मुरगीपालकों को अंडों की वाजिब कीमत दिलाने के मकसद से यह संस्था साल 1982 में बनी थी. आज 25 हजार से भी ज्यादा मुरगीपालक इस संस्था के मेंबर बन चुके हैं.
सरकारी इंतजाम
पोल्ट्री को बढ़ावा दे कर सालाना 200 अंडे लेने के मकसद से चंडीगढ़, भुवनेश्वर, मुंबई व हैस्सरघट्टा में केंद्र सरकार के 4 संगठन काम कर रहे हैं. वहां किसानों को तकनीकी जानकारी, ट्रेनिंग व चूजे दिए जाते हैं. गुड़गांव में केंद्रीय कुक्कट कार्य निष्पादन परीक्षण केंद्र, सीपीपीटीसी है, जो अंडे व मीट देने वाली किस्मों की जांचपरख करता है. इस के अलावा मिल्क बूथों की तरह जल्द ही देश भर में अंडा बिक्री की आटोमैटिक मशीनें भी लगेंगी. साल 2009-10 से गांवों में घरेलू मुरगीपालन बढ़ाने की स्कीम चल रही है. इस में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वालों को मुरगीपालन के लिए माली इमदाद दी जाती है. खेती मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक साल 2013-14 में 1.16 लाख मुरगीपालकों को 40 करोड़ रुपए दिए गए. इस स्कीम के तहत 31 मार्च, 2014 तक 6 लाख 13 हजार मुरगीपालकों की मदद की जा चुकी है. कुक्कुट उद्यम पूंजी कोष, पीवीसीएफ की स्कीम साल 2011-12 से चल रही है. इस में पोल्ट्री कारोबार की कूवत बढ़ाने व तकनीकी अपनाने के लिए छूट पर पूंजी मुहैया कराई जाती है. इस की मदद से लोग पोल्ट्री फार्म चालू कर सकते हैं या मुरगीदाना बनाने का कारखाना लगा सकते हैं. इस स्कीम की मदद से मुरगीपालन से जुड़े और भी तमाम काम किए जा सकते हैं.
केंद्र सरकार के खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने मीट व पोल्ट्री उद्योग को बढ़ावा देने के लिए साल 2009 में राष्ट्रीय मांस एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड, एनएमपीपीबी बनाया था. यह बोर्ड मीट व पोल्ट्री कारोबारियों की कई तरह से मदद करता है, ताकि प्रसंस्करण के काम में तकनीकी सुधार हो और देश में ऐसे उम्दा क्वालिटी के मीट व पोल्ट्री उत्पाद बनें, जिन्हें दूसरे मुल्कों को निर्यात भी किया जा सके. राष्ट्रीय मांस एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड, मीट व पोल्ट्री के कारोबार में लगे लोगों को सफाई व बेहतर पैकेजिंग आदि के नए तौरतरीके सिखाने के लिए ट्रेनिंग व सलाह देता है, ताकि पोल्ट्री उद्योग में बदलाव आ सके.
पोल्ट्री को बढ़ावा
उत्तर प्रदेश में मुरगीपालन को बढ़ावा देने के मकसद से पशुपालन महकमा कई तरह की स्कीमें चला रहा है, मसलन कारोबारी लेयर्स, ब्रायलर पैरेंट व हैचरी फार्म खोलने की योजना. सघन कुक्कुट विकास योजना, कुक्कुट प्रशिक्षण योजना और आहार परीक्षण व रोग निदान की प्रयोगशाला भी पशुपालन महकमे की स्कीमों में शामिल हैं. पशुपालन महकमा लोगों को ट्रेनिंग दिलाने के साथसाथ कर्ज भी मुहैया कराता है. इस के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीण इलाकों में घूमघूम कर बीमार मुरगियों का इलाज करने के लिए मोबाइल वैनें भी चला रखी हैं, ताकि इस काम में लगे किसानों व उद्यमियों को दिक्कत न हो. जरूरत सिर्फ जानकारी होने व फायदा उठाने की है.
हैचरी
किसान मशीनों की मदद से गैस की गरमी के जरीए अंडों से चूजे निकालने का काम भी कर सकते हैं. लेकिन इस के लिए ट्रेनिंग लेना जरूरी है. हैचरी के काम में तय तापमान पर साफसुथरे अंडे करीने से गरमाहट में रखे जाते हैं. अनउपजाऊ अंडों को छांट कर निकाला जाता है व निकले हुए चूजों को संभाला जाता है. पोल्ट्री का दायरा दिनोंदिन बढ़ रहा है. मुरगी के अलावा बतख, ईमू, बटेर, तीतर व कई दूसरे देशीविदेशी पंछी भी पाले जा रहे हैं. किसानों को पहले इन के बारे में पूरी जानकारी हासिल करनी चाहिए. इस के बाद ट्रेनिंग भी जरूर लेनी चाहिए. पोल्ट्री फार्म के लिए किसान बैंकों से कर्ज ले सकते हैं. आपस में मिल कर स्वयं सहायता समूह या कोआपरेटिव सोसायटी भी बना सकते हैं. किसान राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड या राष्ट्रीय वाटरशेड विकास स्कीम से भी फायदा उठा सकते हैं. मुरगीपालन के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए किसान अपने ब्लाक, जिले के लघु उद्योग, ग्रामोद्योग व पशुपालन महकमे से संपर्क कर सकते हैं. मुरगीपालन से जुड़ी नई से नई बातें जानने के लिए नीचे दिए तों पर भी संपर्क किया जा सकता है :
* निदेशक, केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, सीएआरआई, इज्जत नगर, बरेली : 243122 (उत्तर प्रदेश)
* सचिव, राष्ट्रीय मांस एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड, एनएमपीपीबी, 7/6 एएमडीए बिल्डिंग, सीरी फोर्ट, अगस्त क्रांति मार्ग, नई दिल्ली : 110049