‘लोन लो और घी पियो’, यह कहावत केवल जनता के लिए नहीं है, सरकार के लिए भी है. जापान के सस्ते लोन के चक्कर में भारत अपनी प्राथमिकताओं को भूल कर बुलेट ट्रेन चलाने में लग गया है. नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों के प्रभाव को देखते हुए लगता है कि झूठी शान के चक्कर में केंद्र सरकार ने बुलेट ट्रेन चलाने का फैसला ले लिया है. जापान जैसा बिजनैस समझदारी रखने वाला देश अपना नुकसान क्यों करेगा?
बुलेट ट्रेन चलाने की जल्दी में केंद्र सरकार ने प्रोजैक्ट की डिटेल्ड प्रोजैक्ट रिपोर्ट यानी डीपीआर के आने का इंतजार तक नहीं किया. जल्दबाजीभरे ऐसे फैसले देश के भविष्य पर असर डाल सकते हैं. जापान में मैग्नेटिक लेविटेशन से चलने वाली हाईस्पीड ट्रेन का युग आने वाला है. जिस समय भारत में 250 किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से ट्रेन चलेगी उस समय जापान 600 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से चलने वाली ट्रेन नई प्रणाली से चला रहा होगा, जिस में शोर काफी कम होगा.
जिस देश में रेल दुर्घटना में मरने वालों के बारे में उन का ऐसा भाग्य होना कहा व माना जाता हो वहां जर्जर रेल व्यवस्था की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है. रेल दुर्घटना का दर्द मुआवजा बंटने तक याद रहता है. इस के बाद नई दुर्घटना होने का इंतजार किया जाने लगता है.
देश में रेल की सब से अधिक जरूरत पैसेंजर रेलगाडि़यों की है. और यह किसी सरकार के एजेंडे में नहीं होती. याद नहीं आता कि कभी किसी सरकार ने नई पैसेंजर ट्रेन शुरू की हो और उस का जोरशोर से प्रचार किया हो. पैसेंजर ट्रेनों पर चलने वाले यात्रियों की ही तरह ऐक्सप्रैस ट्रेनों में लगने वाले जनरल कोच की तरफ रेलवे प्रशासन और सरकार का ध्यान नहीं जाता.
जनरल कोच यानी सामान्य डब्बे में यात्रा करना नरक का सफर करने जैसा होता है. जिन के पास पैसा अधिक है वे पूजापाठ के सहारे स्वर्ग का रास्ता पकड़ लेते हैं यानी सुविधाजनक डब्बों और ट्रेनों में सफर कर लेते हैं. जिन के पास गाय के दान जैसे उपाय करने की सामर्थ्य नहीं है वे नरक के सफर जैसे जनरल डब्बे में यात्रा करने को मजबूर होते हैं.
चढ़ावे की धार्मिक संस्कृति को बढ़ावा देने वालों की ही तरह सरकार भी ज्यादा पैसे ले कर सफर करने वालों के लिए सुविधा खोजती है. उन के लिए ही बुलेट टे्रन, शताब्दी ट्रेन और राजधानी ऐक्सप्रैस हैं. देश के बाकी यात्रीजर्जर रेल के हवाले हैं. पुजारी की तरह सरकार भी चढ़ावे के वजन को देख कर ही सुविधाओं का इंतजाम करती है.
मुफ्त में बुलेट ट्रेन
भारत और जापान के बीच हुए समझौते के बाद अब बुलेट ट्रेन की सवारी करने का सपना हर भारतीय देखने लगा है. सरकार 2022 में मुंबई से अहमदाबाद तक बुलेट ट्रेन चलाना शुरू कर देने का दावा व वादा कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में, ‘‘बुलेट ट्रेन का यह सफर महंगा नहीं, बल्कि मुफ्त है.’’ यह एक तरह का लौलीपौप है. प्रधानमंत्री ने 2019 के लोकसभा चुनावों के प्रचार यह लौलीपौप दिया था. बुलेट ट्रेन की परियोजना पर 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च होगा. इस का 80 फीसदी जापान देगा और 20 फीसदी खर्च भारत करेगा.
प्रधानमंत्री ने देश की जनता को बताया कि जापान ने भारत को मुफ्त में बैंकलोन दिया है. जापान ने भारत को 88 हजार करोड़ रुपया महज 0.1 प्रतिशत के ब्याज पर दिया है. इस को 50 वर्षों में चुकाना है. ऐसे में यह पूरी तरह से मुफ्त मिला है. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि बुलेट ट्रेन से केवल अमीरों को लाभ मिलेगा, यह धारणा गलत है.
इस प्रोजैक्ट का लाभ पूरे देश के रेल नैटवर्क को होगा. बुलेट ट्रेन के चलने से गरीब जनता को क्या लाभ मिलेगा, यह सरकार बताने को तैयार नहीं है. वह यह नहीं कह रही कि बुलेट ट्रेन के सफर से होने वाले लाभ से पैसेंजर ट्रेनों की हालत सुधारी जाएगी. आज देश को बडे़ पैमाने पर इस की जरूरत है कि आम लोगों के सफर को सुविधाजनक व सुरक्षित बनाया जाए.
प्रधानमंत्री ने बुलेट ट्रेन के भावी सफर से देश को तरक्की का फिर से सुनहरा सपना दिखाने का प्रयास किया है. प्रधानमंत्री ने कहा कि बुलेट ट्रेन से देश की घटती आर्थिक विकास दर बढ़ेगी, हाईस्पीड रेल प्रोजैक्ट्स से विकास में तेजी आएगी. प्रधानमंत्री ने अमेरिका और जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका में रेल आने और जापान में हाईस्पीड रेल आने से प्रगति का दौर शुरू हुआ. भारत में भी नैक्सट जैनरेशन ग्रोथ वहीं होगी जहां पर हाई स्पीड कौरिडोर होंगे. मुंबई से अहमदाबाद के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन से 500 किलोमीटर दूर बसे शहरों के लोग करीब आ जाएंगे. यह सफर 2 से 3 घंटे के बीच तय होगा. इस से लोगों का समय बचेगा, उन को सफर में कम खर्च करना होगा. इन शहरों के बीच का एरिया सिंगल इकोनौमिक जोन में बदल जाएगा. इस से हर तरह के बिजनैस को बढ़ावा भी मिलेगा.
प्रधानमंत्री ने भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर 15 अगस्त, 2022 को बुलेट ट्रेन के सफर को शुरू करने का लक्ष्य रखा है. 2022 में बुलेट ट्रेन में सफर करने का सपना देख रहे लोगों को यह पता नहीं है कि इस प्रोजैक्ट की डीपीआर अभी बनी नहीं है. यह रिपोर्ट 2018 तक पूरी तरह तैयार करने की बात हो रही है. बुलेट ट्रेन चलाने के लिए पैसा और टैक्नोलौजी जापान देगा. 88 हजार करोड़ रुपए के कर्ज के बदले भारत को केवल 90 हजार 500 करोड़ रुपए ब्याज सहित चुकाने होंगे. यह कर्ज बुलेट ट्रेन चलने के 15 वर्षों के बाद देना शुरू करना होगा.
देश की पहली बुलेट ट्रेन मुंबई से अहमदाबाद के बीच की 508 किलोमीटर की दूरी केवल 2 घंटे में तय करेगी. इस लाइन पर 12 स्टेशन बनाए जाएंगे. रेलवे ट्रैक का 7 किलोमीटर हिस्सा समुद्र से हो कर जाएगा. बाकी रास्ता एलिवेटेड होगा. इस का खाका जापान इंटरनैशनल कौर्पाेरेशन ने बनाया है.
ट्रेन केवल 4 स्टेशनों पर रुकेगी. मुंबई से अहमदाबाद के बीच दूसरे स्टेशन बांद्रा, कुर्ला कौंप्लैक्स, थाणे, विरार बोईसर, वापी बिलिमोरा, सूरत, भरूच, वड़ोदरा, आणंद, अहमदाबाद और साबरमती होंगे. मुंबई स्टेशन अंडरग्राउंड होगा. बाकी स्टेशन एलिवेटेड होंगे. यह पूरा रूट डबल लाइन का होगा. यह रूट महाराष्ट्र, गुजरात और दादरा नगर हवेली से हो कर गुजरेगा. महाराष्ट्र में 156 किलोमीटर, गुजरात में 351 किलोमीटर और दादरा नगर हवेली में 2 किलोमीटर होगा.
ट्रेन की अधिकतम स्पीड 350 किलोमीटर प्रतिघंटे होगी. ट्रेन सभी12 स्टेशनों पर रुकेगी तो 3 घंटे का समय लगेगा. अगर 4 स्टेशनों पर ट्रेन रुकेगी तो 2 घंटे का समय लगेगा. जापान भारत को टैक्नोलौजी ट्रांसफर करेगा. इस प्रोजैक्ट के तहत जरूरी सामान भारत में बनाने के लिए उद्योग को बढ़ावा दिया जाएगा. इस के संचालन के लिए 4 कौर्पोरेशन बनाए जाएंगे. ये चारों ट्रैक, सिविल रोलिंग, स्टौक इलैक्ट्रिकल और सांइस ऐंड टैक्नोलौजी संभालेंगे. जापान बुलेट ट्रेन के संचालन में सब से भरोसेमंद देश है. जापानबुलेट ट्रेन चलाने की ट्रेनिंग भी देगा. बुलेट ट्रेन प्रोजैक्ट के लिए वड़ोदरा में हाईस्पीड रेल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट स्थापित किया जाएगा. इस में 4 हजार लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी.
मजबूत होगा राजनीतिक सफर
भारत में ट्रेन का प्रयोग सफर करने के अलावा राजनीति में भी होता है. यही वजह है कि ट्रेन की उपयोगिता से अधिक इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इस से क्या राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है.
मैट्रो ट्रेन से ले कर बुलेट ट्रेन तक इस का जरिया बनती रहती हैं. नेता अपने राजनीतिक सफर को ट्रेन की लोकलुभावनी घोषणाओं से पूरा करना चाहते हैं. सस्ता और मुफ्त का लौलीपौप दे कर नरेंद्र मोदी ने 2014 का लोकसभा चुनाव जीता था. महंगाई रोकने, रोजगार बढ़ाने और कालेधन से हर किसी के खाते में 15 लाख रुपया जमा होने जैसे वादे चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी और उन की भाजपा ने किया था.
3 साल सरकार चलाने के दौरान जनता के किसी वादे पर केंद्र की मोदी सरकार खरी नहीं उतरी है. बड़े जोरशोर और वादों के साथ केंद्र सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था. परेशान जनता से कहा गया कि 50 दिन कष्टकारी हैं, इस के बाद हर कष्ट कट जाएगा.
50 दिनों का कष्ट सहने के बाद भी सरकार यह बताने की हालत में नहीं है कि नोटबंदी का क्या लाभ हुआ? नोटबंदी के बाद अब जनता को यह पता चल रहा है कि देश की जीडीपी में 2 प्रतिशत की गिरावट आई है. नोटबंदी और बाद में उलझावभरे जीएसटी बिल ने कारोबार को बुरी तरह से प्रभावित किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब मुफ्त बुलेट ट्रेन का सपना दिखा रहे है.
प्रधानमंत्री इस बात को समझ चुके हैं कि यह देश मुफ्त के नाम पर हमेशा झांसे में फंस जाता है. ऐसे में वे अब मुफ्त में बुलेट ट्रेन का सपना बेचने की कोशिश में है. इस के जरिए वे गुजरात के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव को ठीक करना चाहते हैं.
3 नहीं, 60 साल का चाहिए हिसाब
मोदी सरकार अपने से पहली सरकार से उस के 60 साल का हिसाब मांग रही है पर अपने 3 साल का हिसाब देने को तैयार नहीं है. आमतौर पर सरकार जनता में गरीब और कमजोर वर्ग के लिए काम करती है. मोदी सरकार के बुलेट ट्रेन चलाने से गरीब जनता का क्या भला होगा, समझ नहीं आता.
यह बात ठीक है कि जापान बुलेट ट्रेन चलाने के लिए सस्ती ब्याजदर पर लोन दे रहा है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने जब गुजरात प्रदेश के अहमदाबाद में देश की पहली बुलेट ट्रेन की आधारशिला रखी तो उस को ले कर पूरे देश में अलगअलग तरह के विचार सामने आने लगे.
आज के दौर में सब से ताकतवर सोशल मीडिया में भी इस को अलग तरह से देखा गया. एक मजाकिया मैसेज में कहा गया, ‘जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को अभी तक नहीं पता कि उन का इस्तेमाल बुलेट ट्रेन के लिए नहीं, गुजरात चुनाव के लिए हो रहा है.’ इस मजाकिया मैसेज के भीतर भारतीय व्यवस्था का सच छिपा हुआ है. भारत में रेल को चुनावप्रचार का सब से बड़ा माध्यम माना जाता है. रेल मंत्री के इलाके के लिए सब से अधिक ट्रेन की सुविधा पहुंचाने का प्रयास होता रहा है. कुछ ट्रेनों को उन स्टेशनों पर रोकने के लिए बाद में आदेश हुए जहां के नेता या सांसद रेल मंत्रालय में पावरफुल होते थे. अंगरेजों ने भारत में रेलमार्ग की शुरुआत की थी, उन का मकसद अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत करना था. बाद में इस को जनता की सुविधाओं के हिसाब से आगे बढ़ाया गया. पैसेंजर ट्रेन की कल्पना इस की मिसाल है.
पुनर्जन्म का गणित
2014 के लोकसभा चुनावों में रेल की सुरक्षित यात्रा को ले कर बडे़बडे़ दावे किए गए. भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावप्रचार में इस बात का वादा किया कि ट्रेन की सुरक्षित यात्रा उस का सब से बड़ा संकल्प है. ट्रेन की सुरक्षित यात्रा के लिए जरूरी पैसे के इंतजाम के लिए प्लेटफौर्म टिकट से ले कर यात्री टिकट, रेलभाड़ा तो बढ़ाया ही गया, कई ऐसे छिपे उपाय भी किए गए जिन का बोझ यात्री को उठाना पड़ा. जैसे, पहले प्लेटफौर्म टिकट का समय अधिक था और दाम कम था. केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्लेटफौर्म टिकट के दाम बढे़ और समय घट गया.
वेटिंग टिकट को ले कर भी ऐसे बदलाव किए गए जिन का बोझ यात्रियों की जेब पर पड़ा. रेलवे अपने सुरक्षा फंड को बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रयोग कर रहा है. इस के बाद भी रेल दुर्घटनाओं में कमी नहीं हो पा रही है. सालदरसाल रेल दुर्घटनाओं में इजाफा होता जा रहा है. रेलवे में होने वाली दुर्घटनाओं में विभाग की लापरवाही के साथ सरकारी योजना की नाकामी साफ दिखने लगी है.
रेल दुर्घटनाओं पर कुछ दिनों तक बहुत सारा गुस्सा और क्षोभ व्यक्त होता है. मुआवजे का बंटवारा होतेहोते इस बात को लोग भूल जाते हैं. यात्री की मौत को उस के कर्मों का फल मान कर लोग चुप हो जाते हैं. मरने वाले की तथाकथित आत्मा की शांति के लिए तरहतरह के आयोजन किए जाते हैं. मरने के बाद स्वर्ग में जगह मिले, वहां कोई कष्ट न हो और पुनर्जन्म अच्छा हो, इस के लिए पिंडदान, तेरहवीं जैसे आयोजन हो जाते हैं. यात्री और बाकी लोग मरने वाले की तेरहवीं तक भी घटना को याद नहीं रखते हैं. सरकार को यह पता है कि देश में मरने वाले को दुघर्टना से नहीं, पूर्वजन्म के किए गए पापों से जोड़ा जाता है. यही वजह है कि रेलवे दुर्घटना में रेल विभाग और सरकार की जिम्मेदारी तय नहीं होती. मरने वाले के भाग्य में ही मरना लिखा था, ऐसा मान लिया जाता है.
जर्जर रेल व्यवस्था
यातायात की व्यवस्था में भारतीय ट्रेन का दुनिया में सब से बड़ा स्थान है. भारत दुनिया का ऐसा सब से बड़ा देश है जहां का प्राकृतिक और आर्थिक दोनों की तरह के हालात ट्रेन व्यवस्था के लिए सब से अधिक अनुकूल हैं. यही वजह है कि भारत ट्रेन यातायात और परिवहन दोनों के लिए सब से अधिक सुविधाजनक है. यहां अलगअलग जरूरतों के हिसाब से ट्रेनों को तैयार किया गया था. इन को पैसेंजर ट्रेन, ऐक्सप्रैस ट्रेन और मालगाडि़यों की श्रेणी में रखा जाता है. आज के दौर में ट्रेनों को पैसेंजर की जरूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि राजनीतिक जरूरत के हिसाब से चलाया जाता है. जिस नेता के जिम्मे ट्रेन मंत्रालय होता है, उस के चुनाव क्षेत्र के लिए अलग जरूरत बन जाती है.
आज भारत में ट्रेन का विशाल नैटवर्क है. करीब 1 लाख 15 हजार किलोमीटर लंबे रेलमार्ग पर साढे़ 7 हजार से अधिक रेलवेस्टेशन बने हुए हैं. अलगअलग जरूरतों और हालात के हिसाब से रेलमार्ग की चौड़ाई अलगअलग है. भारत में 3 तरह के गेज वाली पटरियां हैं. इन में चौड़ी गेज यानी बड़ी लाइन, मीटर गेज यानी छोटी लाइन और पतली गेज बहुत छोटी संकरी जगहों के लिए बनी हैं, जिस में पहाड़ी इलाके आते हैं. अब रेलवे अपनी ट्रेन संचालन व्यवस्था को सही करने के लिए एकजैसी गेज की लाइनें तैयार करने के काम में लगा है. अभी चालू पटरियों के आधे हिस्से को ही विद्युतीकरण में बदला जा सका है. हाल के कुछ वर्षों में केवल वाहवाही के नाम पर रेल को ले कर लोकलुभावनी घोषणाएं की गई हैं. रेल के क्षेत्र में जरूरत के हिसाब से काम नहीं किए जा रहे.
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के खतौली स्टेशन पर उत्कल ऐक्सप्रैस ट्रेन पटरी से उतर गई. घटना का जो कारण सामने आया उस से पता चला कि उस जगह की पटरी टूटी हुई थी. टूटी हुई पटरी को सही करने के लिए लोहे को काट कर रख दिया गया था पर उस को वैल्ंिडग मशीन से जोड़ा नहीं गया था. उत्कल ऐक्सप्रैस हादसे के साथ 5 वर्षों में करीब 586 रेल हादसे हो चुके हैं. इन में से आधे हादसे ट्रेन के पटरी से उतरने के चलते हुए. नवंबर 2014 से अगस्त 2017 तक 20 रेल हादसे हुए हैं.
सुधार की पहल नहीं
रेल हादसों के बाद रेलवे अपनी कमी को परखने और उस को सुधारने का दावा करता है. इस के लिए समिति का गठन किया जाता है. 2012 में रेल मंत्रालय ने भारतीय रेल के सुरक्षा मानकों की जांच और सुधार का सुझाव देने के लिए अनिल काकोदकर समिति का गठन किया.
समिति ने रेल सुरक्षा प्राधिकरण के निर्माण सहित 106 सुझाव दिए. इन में से 68 सुझाव रेल मंत्रालय ने माने और 19 सुझाव पूरी तरह से खारिज कर दिए. रेलवे ने सुझाव मान तो लिए पर उन पर अमल नहीं किया. समिति ने कहा था कि 2017 तक सभी लैवल क्रौसिंग को खत्म किया जाए. इस पर 50 हजार करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान था. 20 हजार करोड़ रुपए सुरक्षा संबंधी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करने का सुझाव दिया गया था.
समिति ने अपनी टैक्निकल जांच में यह पाया था कि अगर रेल का सिग्नल सिस्टम एडवांस हो जाए तो बहुत सारी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है. इस के लिए 20 हजार करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान लगाया गया था. यह सिस्टम
19 हजार किलोमीटर लंबे ट्रैक पर लगना था. 10 हजार करोड़ रुपए सफर के लिए तैयार किए जाने वाले सुरक्षित एलएचबी कोच को तैयार करने पर लगाने की सिफारिश की गई थी. ज्यादातर ट्रेनों में अभी भी पुरानी तरह से बने कोच ही लगाए जाते हैं. उत्कल ऐक्सप्रैस में पुरानी तरह से बने आईसीएफ डब्बे लगे थे. इस में बोगी के ऊपर डब्बा रखा होता है. ऐसे में जब ट्रेन पटरी से उतरती है तो ये डब्बे बोगी से पूरी तरह से अलग हो जाते हैं. इन में डब्बे के पहियों समेत निचला हिस्सा अलग हो जाता है. इस से डब्बे के पलटने का खतरा रहता है. अनिल काकोदकर समिति ने इन डब्बों को बदलने का सुझाव दिया था.
सुरक्षा का ध्यान नहीं
रेलवे के पास सुरक्षा उपकरणों की भारी कमी है. रेल पटरियों के आसपास अवैध कब्जे हैं, जिन से भी पटरियों की सुरक्षा को बड़ा खतरा होता है. सामान्यतौर पर पटरियों को काटने की तमाम घटनाएं होती रहती हैं. इन की वजह से ट्रेन के पटरी से उतरने का खतरा बढ़ जाता है. इस से जानमाल का भारी नुकसान होता है. रेलवे में पटरी की खराबी का पता चलने या सिग्नल के फेल होने की सूचना ट्रेन के ड्राइवर तक देना बहुत मुश्किल काम होता है.
ऐसे में अगर रेलवे को अत्याधुनिक बनाया जाए तो हादसे कम हो सकते हैं. कई बार एक ही लाइन पर 2 ट्रेनों के आ जाने से भी बडे़ हादसे हो जाते हैं. अगर रेलवे के ट्रेन सिस्टम को ठीककर लिया जाए तो दुर्घटनाएं कम हो सकती हैं.
रेलवे पुलों को ठीक करना, लैवल क्रौसिंग को पूरी तरह से खत्म करना और ट्रेन प्रोटैक्शन स्टाफ को बेहतर ट्रेनिंग देना भी बहुत जरूरी हो गया है. 20 नवंबर, 2016 को इंदौर-पटना ऐक्सप्रैस कानपुर के पास पटरी से उतर गई थी. यह सब से भीषण ट्रेन दुर्घटना थी. इस में 150 से अधिक लोग मारे गए और इतने ही लोग घायल हुए थे.
दुर्घटना का कारण रेल की पटरी में दरार का होना था. अगर इस तरह की कमी का पता समय से चल जाए तो हादसे रोके जा सकते हैं. परेशानी की बात यह है कि ट्रेन के हादसों के बाद कुछ रेलवे अफसरों और कर्मचारियों को सजा के तौर पर इधर से उधर कर दिया जाता है. कुछ दिनों के बाद हादसों को भूल कर लापरवाही भरा काम शुरू हो जाता है. अगर कानपुर के हादसे से सबक लिया गया होता तो उत्कल ऐक्सप्रैस ट्रेन का हादसा नहीं होता. दोनों ही मामलों में रेल की पटरी की खराबी के कारण हादसे हुए थे. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए.
सही किया जाए बुनियादी ढांचा
रेलवे के जानकारों का कहना है कि हर तरह के सुधार के लिए जरूरी है कि रेलवे का बुनियादी ढांचा सही किया जाए. ट्रेन के पटरी से उतरने के कई कारण होते हैं. कई बार पटरी पर सामने की ओर से कोई अवरोध होने से ट्रेन पटरी से उतर जाती है. कई बार ऐसा होता है कि कोई मवेशी या बड़ा जानवर पटरी पर आ जाता है जिस के कारण ट्रेन पटरी से उतर जाती है. इंजन का कोई हिस्सा या पार्ट अगर गिर जाए और उस पर ट्रेन चढ़ जाए तो इस हालत में भी ट्रेन पटरी से उतर जाती है.
सब से अधिक बार पटरी के टूटे होने से ट्रेन पटरी से उतरती है. कई बार यह होता है कि इंजन के निकल जाने के बाद पटरी के बीच का गैप बढ़ जाता है तब उस के पीछे के डब्बे पटरी से उतर जाते हैं. कई इलाकों में शरारती तत्त्वों द्वारा पटरी की तोड़फोड़ की जाती है और समय रहते स्टेशन को इस की सूचना नहीं मिलती, जिस के कारण भी ट्रेन पटरी से उतर जाती है.
रेलवे विभाग के जानकार लोगों का कहना है कि बुलेट टे्रन के लिए पटरी बिछाने का काम बेहद खर्चीला है. ऐसे में अगर पहले से चल रही पटरियों को ठीक किया जाता तो जनता को ज्यादा राहत मिलती. बुलेट ट्रेन से कुछ लोगों को ही सुविधा मिल सकती है. अगर पहले से चल रही ट्रेनों की स्पीड को बढ़ाया जाता, ट्रेनों में होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जाता और नई पटरियों को बनाया जाता तो यह जनता के लिए ज्यादा फायदेमंद होता और जो जरूरी भी है. हमारे देश में रेल से सफर करने वालों के लिए ट्रेन से सस्ता और सुलभ कोई दूसरा रास्ता नहीं है. बस के मुकाबले ट्रेन का सफर कहीं अधिक सस्ता पड़ता है. जरूरत इस बात की है कि ट्रेन की स्पीड बढ़ा दी जाए और समय पर रेलगाडि़यां चलने लगें.
अभी भारत में जो रेल पटरियां हैं उन की सुरक्षा पर रेलवे पूरी तरह से सफल नहीं है. भारतीय रेलवे के पास बुनियादी ढांचे को सही करने के लिए फंड हो, इस का प्रयास हो. रेलवे के पास सुविधा न होने के कारण माल की ढुलाई के लिए लोग दूसरे साधनों पर निर्भर होने लगे हैं जिस से रेल को नुकसान हो रहा है. इसी तरह से रेल के समय पर न चलने से लोग हवाईयात्रा को अधिक उपयोगी समझने लगे हैं. सुविधाजनक बससेवा ने भी रेल के लाभ को कम कर दिया है. रेल के सफर को सुविधाजनक मानने के बाद भी लोग आज दूसरे साधनों की ओर रुख करने लगे हैं.
बुलेट ट्रेन बनाम हाईस्पीड ट्रेन
बुलेट ट्रेन कई देशों में सफेद हाथी बन चुकी है. भारत में बुलेट ट्रेन एक सफल प्रयास होगा, इस में कई तरह के संशय हैं. जापान ने भारत को जो लोन दिया है वह देखने में अभी सस्ता लग रहा है पर इस में कई ऐसे पेंच होंगे जिन का लाभ भारत से अधिक जापान को होगा. एक बड़ी योजना के चक्कर में भारत बडे़ लोन के जाल में फंस रहा है. जापान बहुत चतुर देश है. वह अपने नुकसान का कोई काम नहीं करेगा. यह साफ है कि भारत कम ब्याज के चक्कर में बड़ी महत्त्वाकांक्षी योजना के जाल में उलझ गया है. यह लोन इतना सरल नहीं है जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मान रहे हैं. रेल के जानकार लोगों का मानना है कि भारत में राजधानी ऐक्सप्रैस 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से चलती है. इस को सुधार कर के अगर 200 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार तक ले जाएं तो बुलेट ट्रेन की जरूरत खत्म हो जाएगी. साथ ही, रेल का ज्यादा विकास हो सकेगा.
भारत के बड़े शहरों के बीच हवाई सफर का रास्ता पहले से खुला हुआ है. इस को और सुगम बनाया जा सकता है. मुंबई और अहमदाबाद के बीच हवाईयात्रा का विकल्प पहले से खुला है. जिस से 70 मिनट में इस सफर को तय किया जा सकता है. बुलेट ट्रेन के टिकट और हवाई जहाज के टिकट में कोई खास अंतर नहीं होगा.
जानकार लोगों का कहना है कि जापान ने अपनी कंपनी के सर्वे और अनुमान के आधार पर भारत के सामने ऐसे आंकडे़ रखे हैं जिन से भारत को बुलेट ट्रेन, विकास का मार्ग लगने लगी है. जापान ने भारत के रेल विभाग के कुछ अधिकारियों को अपने आंकड़ों के शीशे में उतार लिया है. ये अफसर बुलेट ट्रेन की योजना को देश के लिए एक अवसर मानने लगे हैं. ऐसे अफसर कहते हैं कि अगर इस योजना पर अभी काम नहीं किया गया तो देश तरक्की की राह में पीछे रह जाएगा. ऐसे अफसर तर्क देते हैं कि अगर हाईस्पीड ट्रैक सही तरह से काम करने लगे तो हमारे देश कीतरक्की के लिए संसाधन खुद जुटने लगेंगे.
सब से आगे जापान
बुलेट ट्रेन के संचालन में जापान सब से आगे है. जिस समय भारत 200 किलोमीटर या इस के आसपास की स्पीड वाली बुलेट ट्रेन का सफर शुरू कर रहा होगा उस समय जापान 600 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से चलने वाली ट्रेन शुरू कर रहा होगा. जापान में इस का ट्रायल 15 अप्रैल, 2015 को हो गया है. 2027 तक इस को चलाने की योजना है. यह आधुनिक चुंबकीय प्रणाली मैग्नेटिक लेविटेशन से चलेगी. इस में बिजली से चार्ज किए गए चुंबक ट्रेन को पटरी से 4 इंच ऊपर रखेंगे. इस से शोर कम और स्पीड अधिक मिलती है. बुलेट ट्रेन के संचालन में जापान के बाद चीन का नंबर आता है. चीन में विश्व की सब से तेज स्पीड से चलने वाली ट्रेन है. यह 431 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से चलती है. चीन में 22 हजार किलोमीटर लंबा रूट इस के लिए बना है. इटली और स्पेन दूसरे प्रमुख देश हैं जहां पर हाईस्पीड ट्रेनें चलती हैं.