और मैं अवतरित हो गया इस धरती पर. मांबाप का अकेला बेटा, 2 बहनों का इकलौता भाई, घर का नूर, खानदान का चिराग, नाममात्र की जायदाद का वारिस व वंश वृद्धि का बायस. ‘‘तुझे पैदा करने के लिए मैं ने क्याक्या जतन किए, तुझे क्या मालूम है? मैं चाहती थी कि मेरी गोद में भी मेरा बेटा खेले, खानदान का नाम रोशन करने वाला, मेरा सिर ऊंचा करने वाला. बेटी पैदा होने पर वह गुरूर नहीं महसूस होता है जो बेटा पैदा होने पर होता है. क्याक्या नहीं किया हम ने तेरे पैदा होने पर, सोहर गवाए, लड्डू बंटवाए, पूरे गांव को खाना खिलाया. आखिर अब मैं भी एक बेटे वाली मां जो थी,’’ मां कहतीं. मैं कुलबुला कर रह जाता, ‘‘स्वार्थी कहीं की. मुझे मालूम है, मां मुझे क्यों पैदा करना चाहती थीं ताकि मैं बड़ा हो कर उन का सहारा जो बनूंगा. कितने बेवकूफ हैं मेरे मांबाप. बेटा पैदा करने के साथ उस के लिए एक अच्छी नौकरी भी तो पैदा करनी चाहिए थी. अब भुगतो. जब तक नौकरी नहीं मिलती तब तक इस सहारे को सहारा दो.’’
मुझे बचपन से ही मांबाप तैयार कर रहे थे अपने बुढ़ापे के लिए, ‘हाय मेरा बचपन,’ मैं और मेरी बहनें टीवी देखते रहते. मां आवाज लगातीं, ‘बबलू, चलो पढ़ने बैठो.’ मैं ठुनकता, ‘नहीं मां, मुझे अभी टीवी देखना है.’ लेकिन वे मुझे जबरदस्ती उठा देतीं, ‘नहीं, पहले पढ़ाई. टीवी तो बाद में भी देखा जा सकता है.’ मैं बहनों की तरफ देख कर कहता, ‘पर मां, ये भी तो देख रही हैं, इन्हें क्यों नहीं पढ़ने बैठातीं?’
मां बेरुखी से कहतीं, ‘इन्हें कौन सा पढ़लिख कर कलैक्टर बनना है. कलैक्टर तो तू बनेगा, मेरा राजा बेटा.’ मैं बहनों को ईर्ष्या से देखता हुआ, मन मार कर पढ़ने बैठता. मैं सोचता ‘काश मैं भी लड़की होता.’ मेरे मांबाप के सपनों की तलवार हर समय मेरे सिर पर लटकी रहती, ‘तुम्हें बड़ा हो कर यह बनना है, वह बनना है.’ मेरा पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लगता था. मैं बड़ी हसरत से अपनी बहनों को इधरउधर डोलते, आसपास की लड़कियों के साथ गपशप करते, फोन पर फ्रैंड्स के साथ गपें मारते, टीवी देखते, हंसीमजाक करते देखता रहता था. मन हुआ तो पढ़ा नहीं तो कोई बात नहीं. उन को कहने वाला कोई नहीं था. पर मैं, मैं तो बेटा था न, मुझे तो पढ़ना था, पढ़लिख कर नौकरी के लिए घिसटना था. अच्छी नौकरी पानी थी. तो मैं झूलता रहता घर, कालेज, ट्यूशन और होमवर्क के बीच. जैसेतैसे मेरी पढ़ाई पूरी हुई. अब नौकरी की तलाश. जितना मैं नौकरी पाने की कोशिश करता उतना वह मुझ से दूर छिटकती, किसी मगरूर प्रेमिका की तरह. मेरे पिता मेरे नौकरी पाने के प्रयासों को समझते नहीं, उलटा मेरे घर में घुसते ही शुरू हो जाते. ‘आ गए साहबजादे मटरगश्ती कर के, कभी सोचा भी है कि किस तरह दिनरात खूनपसीना एक कर के अपना पेट काटकाट कर तुम्हें पढ़ायालिखाया है. अब तुम्हारा फर्ज बनता है कि इस बुढ़ापे में हमें सहारा दो.’
मैं मन ही मन उबल पड़ता, ‘मैं ने कहा था कि मुझे पढ़ाओलिखाओ. मुझ पर खर्च करो. पढ़लिख कर, पढ़पढ़ कर मेरा दिमाग खराब हो गया, वह दिखाई नहीं देता. मुझे पढ़ाने के बजाय ‘थ्री-पी’ यानी कि पहुंच, पहचान और पैसे का जुगाड़ किया होता, तो आज कहीं का कहीं पहुंच जाता.’ मरी बहनें भी मेरे कमा न पाने पर मेरी योग्यता पर प्रश्नचिह्न टांगें खड़ी रहतीं. उन्हें देखदेख कर मेरा और जी जलता रहता, ‘क्या आराम की जिंदगी है. न पढ़नेलिखने की चिंता न नौकरी की. जितना है उस में शादी तो हो ही जाएगी. कोई न कोई तो मिल ही जाएगा. एक मैं हूं, न नौकरी मिलती है न छोकरी. कहीं सारी जिंदगी कुंआरा ही न रहना पड़े. इस के लिए भी मेरे मांबाप मुझे ही दोषी ठहराते रहते.’
‘कहीं छोटीमोटी जौब कर ली होती तो यह नौबत नहीं आती.’ ‘आप ने भी क्लर्की के बजाय कलैक्टरी कर ली होती तो यह नौबत न आती.’ मेरे पिता यह सुन कर बिसुरने लगते. नालायक व बदतमीज औलाद पाने पर खुद को कोसने लगते. गिनाने लगते कि यह वही औलाद है जिस को पाने के लिए उन्होंने इतने पापड़ बेले. मैं कहता, ‘तो मुझे पा लिया न, अब और क्या चाहिए, आखिर देने वाले की भी तो कुछ सीमाएं होती हैं. आप को बेटा चाहिए था, मिल गया. आप ने यह थोड़ी ही कहा था कि कमाऊ बेटा चाहिए.’ मेरी बहनें सब से निर्लिप्त टीवी देखती रहतीं या आंगन में खड़ी पड़ोसिन की बेटी के साथ गपशप करती रहतीं. किसी बात की चिंता नहीं, शादी की भी नहीं, वह भी उन के मांबाप की है. उन का तो काम है कि मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में. तौबा, क्या मेरी जिंदगी है, बेटा बन कर क्या मिला मुझे? पढ़ाई का बोझ, नौकरी का टैंशन, छोकरी का गम. काश, इस से तो अच्छा कि मैं लड़की होता. कम से कम अपनी मरजी से तो कुछ कर पाता. पेंटिंग, ड्रैस डिजाइनिंग, कुकिंग, डांस, सिंगिंग, जो मुझे पढ़ना होता पढ़ता. नहीं तो छोड़ देता. जबरदस्ती डाक्टरी, इंजीनियरिंग, एमबीए में नहीं घिसटना पड़ता. लड़की होता तो मैं भी अपनी लाइफ ऐंजौय कर पाता. शादी से पहले भी शादी के बाद भी. न कमाने का झंझट. न नालायक, नकारा, कामचोर जैसे शब्दों से नवाजा जाता. जिस ने भी मुझे बनाया वह इस बार मेरी अर्जी पर ध्यान दे, इस जनम में भले मेरे बाप की सुन ली पर अब मेरी ही सुनियो और अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो…