सोशल मीडिया पर बढ़ती महंगाई के बाबत नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को पानी पी पी कर कोस रहे 95 फीसदी लोगों को पता ही नहीं चला कि जिस प्लेटफार्म टिकट को वे 2 रुपये से दस रुपये का हुआ बता रहे हैं वह अब, कुछ दिनों के लिए ही सही 20 रुपये का कर दिया गया है. व्यापार और कारोबार की भाषा में कहें तो नवरात्रि के साथ ही त्योहारी सीजन शुरू हो चुका है. आम लोगों की जेब कुतरने के लिए बाजार में बम्पर छूट की बहार छाई हुई है. सौ रुपये की चीज डेढ़ सौ की बताकर सवा सौ में बेची जा रही है ग्राहक पच्चीस रुपये की छद्म बचत पर खुश हो रहा है और व्यापारी उसकी शास्वत मूर्खता पर हंसते अपना गल्ला भर रहा है.

त्योहारी सीजन से पैसा बनाने में सरकार भी पीछे नहीं रही है उसने प्लेटफार्म टिकट के दाम दोगुने कर दिये हैं, बहाना सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण का लिया है. यानि सरकार यह मान रही है कि प्लेटफार्म टिकट की दर बढ़ा देने से अनावश्यक भीड़ नहीं होगी तो उसकी नादानी मासूमियत या चालाकी कुछ भी कह लें पर हंसी आना स्वाभाविक है. बात कंडोम महंगा कर देने से जनसंख्या नियंत्रण का दावा करने सरीखी हास्यास्पद है. बीते दिनों हुये रेल हादसों ने रेल सुरक्षा की पोल खोल कर रख दी है ये हादसे भीड़ की वजह से नहीं बल्कि रेलवे के मुलाजिमों की लापरवाही और अंग्रेजों के जमाने की रेल पटरियों की वजह से हुये थे.

अब होगा यह कि त्योहारों पर बेटिकट चलने वालों में से जो कुछ ईमानदारी बरतते दस रुपये का प्लेटफार्म टिकट खरीदने की सोच भी रहे होंगे वे सोचने की भी जहमत अब नहीं उठाएंगे हां टिकट चेकरों की जरूर चांदी हो आएगी जो सौ दौ सौ की घूस लेकर प्लेटफार्म टिकट विहीनों को बाइज्जत बाहर जाने देंगे. सरकार ने यह सोचने की जरूरत नहीं समझी कि प्लेटफार्म टिकट वे लोग खरीदते हैं जो किसी को लेने या छोड़ने स्टेशन जाते हैं. अशक्तों, महिलाओं और बुजुर्गों को बैठालने उतारने वाले तो मजबूरी में बीस रुपये सरकार को कोसते हुये देंगे जबकि ऐसे लोगों से तो पैसा लेना ही नहीं चाहिए लेकिन बीस रुपये की मार से बचने जुगाडु भारतीय या तो बिना प्लेटफार्म टिकट लिए प्लेटफार्म पर जाएंगे या फिर ट्रेन आने तक बाहर खड़े रहेंगे और ज्यादा समझदार लोग पेसिंजर ट्रेन का नजदीकी स्टेशन का टिकट खरीदकर मूंछों पर ताव देते नजर आएंगे.

त्योहारों पर उमड़ती भीड़ इस बेतुके फैसले से काबू करने की बात सोचना ही सरकार की पैसा कमाऊ मानसिकता को उजागर करती है. आम लोग रोजमराई आइटमों के बढ़ते दामों से त्रस्त हो चुके हैं. इस पर भी कोई मंत्री यह कहे कि बाइक और कार चलाने वालों की जेब में देने लायक पैसा है, तो सरकार कम हफ्ता वसूलने वाली मवाली गैंग ज्यादा लगती है.

अब तो इंतजार उस दिन का है जब बस अड्डों, स्टेशनों और चौराहों के अलावा एटीएम और बैंको के बाहर सरकारी मुलाजिमों की तैनाती इस बाबत होगी कि वे लोगों को पकड़ कर उनका पैसा छीन कर खजाने में जमा करें. उनका गुनाह यह है कि उनके पास पैसा है. इधर गरीबों की चिंता में दुबलाई जा रही सरकार अपने खर्चे कम नहीं कर रही उल्टे लोगों की मेहनत की कमाई पर तरह तरह से डाका डाल रही है बीस रुपये का प्लेटफार्म टिकट इसकी बेहतर मिसाल है. अगले साल मुमकिन है त्योहारी सीजन में किराया ही दोगुना कर दिया जाये. फिर बाकई लोग अष्टमी, नवमी की पूजा और दीवाली मनाने घर नहीं जाएंगे जब सारा पैसा किराए की शक्ल में सरकार झटक लेगी तो मिठाई आतिशवाजी और नए कपड़े व उपहार बगैरह पांचवी क्लास के निबंध की बातें हो जाएंगी. इसके बाद भी जो ट्रेन से घर जाये तो तय है वह बेईमानी से पैसा कमाता है और उसके पास जरूर काला धन हो सकता है. ऐसे लोगों के यहां इनकम टैक्स के छापे पड़ सकते हैं.

लोग अगर विरोध करेंगे जिसकी उम्मीद कम ही है तो उनसे कहा जाएगा जाओ पहले उस कांग्रेस का विरोध करो जिसने साठ साल देश को लूटा हमें तो अभी तीन साल ही हुये हैं.

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