केला बहुत ही पौष्टिक फल है, जो ज्यादातर सभी लोगों को बहुत पसंद आता है. न्यूट्रीशन वैल्यू के पैमाने पर भी केला 100 फीसदी खरा उतरता है. केले में काफी मात्रा में विटामिन, पोषक तत्त्व होते हैं, जैसे विटामिन ए, बी 12, बी 6, सी, डी, आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीशियम, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, शुगर आदि काफी इफरात से मौजूद होते हैं, जो केले की डिमांड को बहुत बढ़ाते हैं. इस से केले की पूरे साल अच्छी मांग बनी रहती है. लेकिन इस ज्यादा मांग का किसानों को तभी फायदा होगा, जब वे उम्दा क्वालिटी के ज्यादा से ज्यादा केले पैदा करेंगे.
केले की फसल से ज्यादा पैदावार लेने और उम्दा क्वालिटी का केला हासिल करने के लिए जरूरी है कि केले की खेती के हर तकनीकी पहलू को समय पर सही तरीके से अपनाया जाए. जिस खेत में केले की खेती करनी हो, उस खेत की उपजाऊ ताकत यानी उस खेत में जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा मौजूद होनी चाहिए. खेत की पानी को सोखने की क्षमता भी ज्यादा होनी चाहिए, जिस से बारिश का पानी ज्यादा समय तक खेत में खड़ा न रह सके. खेत से बारिश व सिंचाई का फालतू पानी निकालने का माकूल इंतजाम होना चाहिए. खेत से फालतू पानी निकालने के लिए खेत को लेजर लैंड लेवलर से एकसार करा लेना काफी फायदेमंद साबित होता है. केले के खेती वाले खेत की पीएच वैल्यू 6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए. खेत की उपजाऊ ताकत और पीएच वैल्यू को जानने के लिए किसान अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र या जिला कृषि विभाग में संपर्क करें.
खेत की मिट्टी की जांच की सुविधा इन विभागों में मुफ्त या बहुत ही कम फीस पर उपलब्ध है और सभी किसान इस सुविधा का पूरा फायदा उठाएं तो बहुत बेहतर होगा. केला गरम आबोहवा में पैदा होने वाला फल है, इस की खेती के लिए 30-40 डिगरी सेल्सियस वाले इलाके ज्यादा मुफीद माने गए हैं. गरमी के मौसम यानी मईजून के महीनों में तेज गरम हवा से पौधों को बचाने के लिए माकूल इंतजाम रखना जरूरी होता है. तेज गरम हवा केले के लिए बहुत ही नुकसानदायक होती है. अपने इलाके की आबोहवा और खेत की उपजाऊ ताकत के आधार पर उम्दा किस्म के केले की बोआई करनी चाहिए. केले की उम्दा किस्में हरी छाल, बसराई ड्वार्फ, ग्रेंड नेन वगैरह हैं. हरी छाल किस्म के पौधे 200-260 सेंटीमीटर लंबे होते हैं. इस किस्म पर बड़े आकार के केले लगते हैं. बसराई ड्वार्फ किस्म के पौधे छोटे और इस किस्म पर लगने वाले केले थोड़े मुड़े होते हैं, ग्रेंड नेन किस्म यानी टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार पौधे 300 सेंटीमीटर से ज्यादा लंबे होते हैं. इस किस्म के केले मुड़े हुए होते हैं. टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे की फसल तकरीबन 1 साल में तैयार हो जाती है. खेत की तैयारी के समय 50 सेंटीमीटर गहरा, 50 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोद लें और बरसात का मौसम शुरू होने से पहले यानी जून के महीन में इन खोदे गए गड्ढों में 8.15 किलोग्राम नाडेप कंपोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, 250-300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट वगैरह डाल कर मिट्टी भर दें और समय पर पहले से खोदे गए गड्ढों में केले की पौध लगा देनी चाहिए. हमेशा सेहतमंद पौधों का चुनाव करना चाहिए. खराब और बेमेल पौधों को रोपाई के समय ही हटा दें.
केला ज्यादा पानी की मांग करने वाली फसल है. पानी की बचत और कम पानी में ज्यादा रकबे की सिंचाई करने के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाएं और फसल पर मल्चिंग का इस्तेमाल कर पानी को धूप और हवा द्वारा उड़ने से बचाएं, ताकि पौधा पूरे पानी का इस्तेमाल कर सके. केले की फसल को ज्यादा खाद की जरूरत होती है, इसलिए खाद की खुराक मिट्टी की जांच के बाद ही तय करें. पानी की बचत के लिए जब बरसात का मौसम खत्म होता है यानी अक्तूबर के महीने में पौधे के चारों तरफ गन्ने की सूखी पत्तियां या पुआल वगैरह की 10-15 सेंटीमीटर परत बिछा दें. पौधों पर फूल यानी फल लगना शुरू हो जाए, तो पौधों को गिरने से बचाने के लिए उन्हें सहारा देने की जरूरत होती है. सहारा देने के लिए बांस के डंडों से सहारा देना चाहिए. घार में लग रहे केले की लंबाई और उस की क्वालिटी बढ़ाने के लिए नर फूल काटना जरूरी होता है. जून महीने में लगाए गए केले के पौधों में अगले साल मई महीने में फूल निकलना शुरू होता है. पौधे पर फूल दिखाई देने के 30 दिन बाद पूरी घार पर केले बनने लगते हैं.
घार में केला तैयार होने में तकरीबन 100-140 दिन का समय लगता है. टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों में 8-9 महीने बाद फूल आना शुरू होता है और तकरीबन एक साल यानी 12 महीने में फसल तैयार हो जाती है, इसलिए समय को बचाने के लिए और जल्दी आमदनी लेने के लिए टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे को ही लगाएं. केले की फसल पर बीमारी और कीड़ों का भी हमला होता है. केले की फसल को भी बीमारी और कीड़ों से बचाना जरूरी होता है, ताकि उम्दा क्वालिटी का ज्यादा केला मिल सके. केले की फसल पर लीफ स्पौट, बंची टौप, अंथोचिनोज, हार्ट रौट बीमारियों का हमला होता है. खड़ी फसल में जैसे ही कोई बीमारी वाला पौधा दिखाई दे, तो फौरन उसे उखाड़ कर जला दें और फसल पर कृषि विशेषज्ञ की सलाह के मुताबिक फौरन कारगर बीमारीनाशक दवा का छिड़काव करें. केले की फसल में बीटल कीट का हमला देखा गया है. फसल को कीट से बचाने के लिए केले की साफसुथरी खेती करें. बीटल कीट की रोकथाम के लिए समय पर इंडोसल्फान या किसी दूसरे कारगर कीटनाशी दवा का छिड़काव करें.