ऐप्स के खतरे

आजकल स्मार्टफोन्स पर तरहतरह के ऐप्स प्रकट हो रहे हैं. इन में से एक ब्लडप्रैशर नापने का दावा करता है. अलबत्ता हाल में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि ब्लडप्रैशर नापने के ये ऐप्स अनजांचे हैं, त्रुटिपूर्ण परिणाम देते हैं और खतरनाक हो सकते हैं. मैसाचुसेट्स स्थित कैम्ब्रिज हैल्थकेयर एलायंस के चिकित्सक डा. निलय कुमार और उन की टीम ने 107 ऐसे ऐप्स का विश्लेषण किया जो उच्च रक्तचाप के लिए बनाए गए हैं. ये सारे गूगल प्ले स्टोर तथा एप्पल आई ट्यून्स से डाउनलोड किए जा सकते हैं. शोधकर्ताओं को 7 एंड्रौएड ऐप्स मिले जिन में दावा किया गया था कि आप को सिर्फ इतना करना है कि अपनी उंगलियों को फोन के स्क्रीन या कैमरे पर दबा कर रखें और वह आप का ब्लडप्रैशर बता देगा. शोधकर्ताओं के मुताबिक, ये दावे बोगस हैं. डा. निलय कुमार व उन की टीम को यह देख कर हैरत हुई कि स्मार्टफोन आधारित ब्लडप्रैशर मापी ऐप्स अत्यंत लोकप्रिय हो चले हैं. इन्हें कम से कम 24 लाख बार डाउनलोड किया गया है. डा. निलय को यह स्पष्ट नहीं था कि यह टैक्नोलौजी ठीकठीक किस तरह काम करती है. शायद फोन का कैमरा उंगली की नब्ज को पढ़ता होगा. मगर वे इतना जानते हैं कि यह टैक्नोलौजी अभी अनुसंधान व विकास के चरण में है और उपयोग के लिए तैयार नहीं है. बहुत संभावना इस बात की है कि यह आप को गलत ब्लडप्रैशर बताएगी और आप बेकार में परेशान होते रहेंगे. उस से भी ज्यादा परेशानी तो तब हो सकती है जब यह अनपरखी टैक्नोलौजी आप को बताती रहेगी कि सबकुछ ठीकठाक है जबकि हो सकता है कि आप को डाक्टरी मदद की जरूरत हो. जर्नल औफ दी अमेरिकन सोसायटी औफ हाइपरटैंशन में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि आज काफी सारे लोग अपने मैडिकल आंकड़े प्राप्त करने के लिए मोबाइल ऐप्स का उपयोग कर रहे हैं. कम से कम 72 प्रतिशत ऐप्स, व्यक्ति को अपनी मैडिकल जानकारी हासिल करने की गुंजाइश प्रदान करते हैं. कई ऐप्स में तो यहां तक व्यवस्था है कि यह जानकारी सीधे आप के डाक्टर के पास पहुंच जाएगी. इस के अलावा कुछ ऐप्स में दवा लेने वगैरह की याद दिलाने की व्यवस्था भी है. मगर इन ऐप्स में मात्र 2.8 प्रतिशत का विकास ही किसी स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा किया गया है. यूएस खाद्य व औषधि प्रशासन ने ब्लडप्रैशर नापने के एक भी ऐप्स को अनुमति नहीं दी है. लिहाजा, अध्ययन का निष्कर्ष है कि ये ऐप्स मरीजों की सुरक्षा संबंधी चिंता को बढ़ा रहे हैं.

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कार्बन मापी उपग्रह

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का कार्बन मापी उपग्रह कई हिचकोले खाने के बाद अब सही ढंग से काम कर आंकड़े भेजने लगा है. और्बिटिंग कार्बन औब्जर्वेटरी-2 (ओसीओ-2) नामक यह उपग्रह पिछले वर्ष जुलाई में प्रक्षेपित किया गया था और यह धरती के चक्कर लगाते हुए अलगअलग स्थानों पर वातावरण में कार्बन डाईऔक्साइड की मात्रा का आकलन करेगा. शुरुआत में पता चला था कि इस में डिजाइन संबंधी कुछ त्रुटियां हैं जो किसी वजह से अनदेखी रह गई थीं. इस का मुख्य यंत्र 3 वर्णक्रममापी है जो किसी स्थान पर धरती की सतह से टकरा कर लौटने वाली धूप का मापन करता है. जब इस यंत्र को चालू किया गया तो इस से प्राप्त आंकड़ों में कुछ दिक्कतें थीं. वजह यह थी कि डिजाइन की एक त्रुटि के चलते इस यंत्र में कम धूप पहुंचती थी. उपग्रह को थोड़ा झुका कर इस त्रुटि की मरम्मत करने के बाद अब यह ठीक तरह से काम करने लगा है. ओसीओ-2 वातावरण में कार्बन डाईऔक्साइड का सतत मापन करेगा. गौरतलब है कि कार्बन डाईऔक्साइड एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो धरती का तापमान बढ़ने के लिए जिम्मेदार है. ओसीओ-2 से प्राप्त आंकड़ों से यह समझने में मदद मिलेगी कि इंसानी क्रियाकलाप और कुदरती तंत्र किस तरह से कार्बन डाईऔक्साइड की मात्रा को प्रभावित कर रहे हैं. अभी नासा के वैज्ञानिक ओसीओ-2 से प्राप्त आंकड़ों का मूल्यांकन कर रहे हैं और शीघ्र ही ये आंकड़े सार्वजनिक कर दिए जाएंगे. बहरहाल, पहलीपहली वैश्विक तसवीरों से पता चलता है कि कार्बन डाईऔक्साइड का सर्वोच्च मान उत्तरी आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और पूर्वी ब्राजील के वातावरण में है. ओसीओ-2 टीम की राय है कि अफ्रीका के ऊपर कार्बन डाईऔक्साइड का उच्च स्तर घास के मैदानों और जंगलों के जलने की वजह से हो सकता है जबकि उत्तरी अमेरिका, यूरोप और चीन के वातावरण में उच्च कार्बन डाईऔक्साइड स्तर इंसानी क्रियाकलापों की वजह से है, जिस में बिजलीघरों में जीवाश्म ईंधन का दहन शामिल है. गौरतलब है कि ऐसे इंसानी क्रियाकलापों की वजह से वातावरण में प्रति वर्ष 40 अरब टन कार्बन डाईऔक्साइड छोड़ी जाती है. ओसीओ-2 से प्राप्त आंकड़ों से यह अनुमान लगाने में मदद मिलेगी कि कुदरती तंत्रों की सीमा कब समाप्त हो जाएगी या हो चुकी है. 

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