इराक और सीरिया के  एक हिस्से पर बना स्वतंत्र राष्ट्र आईएसआईएस या इसलामिक राज्य दुनिया में हैवानियत का दूसरा नाम बन गया है. हर नया दिन उस की नृशंसता की रोंगटे खड़े कर देने वाली नई कहानी ले कर आता है. कभीकभी तो लगता है कि वह क्रूरता की सारी हदें पार करता जा रहा है. तालिबान, अलकायदा, बोको हरम, अलशहाबा आदि इसलामी आतंकी संगठनों की क्रूरता और जुल्म की मिसालें शायद काफी नहीं थीं, इसलिए आतंकवादी चरम क्रूरता की नई मिसाल ले कर आए हैं- आईएसआईएस या इसलामिक राज्य. इस आतंकी संगठन की क्रूरता इराक और सीरिया तक ही सीमित थी लेकिन अब वह उसे अंतर्राष्ट्रीय बना रहा है.

यमन में 2 मसजिदों पर आत्मघाती हमले कर आईएस ने 140 लोगों की हत्या की और 269 लोगों को जख्मी किया. इस से एक दिन पहले उस ने ट्यूनीशिया में 20 विदेशियों की हत्या की. विख्यात लेखक वी एस नायपाल ने हाल ही में लिखा है, ‘‘आईएस नया नाजी राज्य बनता जा रहा है. इसे खत्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिलजुल कर कोशिश की जानी चाहिए,’’ कहना न होगा कि कई सुपर पावर कहलाने वाले देशों का गठबंधन इस तरह की नाकाम कोशिश कर चुका है.  आईएस की हैवानियतभरी हरकतों की मुसलिम जगत में तीखी आलोचना हो रही है. कुछ अरसे पहले दुनिया के 126 मुसलिम धर्मशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों ने खलीफा बगदादी को खुली चिट्ठी लिख कर इसलामिक राज्य की करतूतों की कड़ी निंदा की है. इस से पहले मिस्र की एक प्रमुख मसजिद के इमाम भी इसलामिक राज्य को मुसलिम विरोधी बता चुके हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि इसलामिक राज्य गैर इसलामिक है. ओबामा इस आंदोलन को ले कर वही बात बोल रहे हैं जो राजनीतिक तौर पर सुविधाजनक हो. इस संगठन की सोच और रणनीति को न समझ पाने के कारण ही तमाम देश मिल कर भी इस संगठन का बाल बांका नहीं कर पाए, नतीजतन वह फलताफूलता जा रहा है. लेकिन पिछले कुछ समय से पश्चिमी देशों में उस का गंभीरता से अध्ययन हो रहा है. आखिरकार, दुनियाभर के देशों से लाखों लड़ाकों को आकर्षित करने वाले आईएस या इसलामिक राज्य संगठन में कोई तो बात है जो दुनियाभर के दर्जनों देशों के लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर वहां खिंचे चले जा रहे हैं.

शुद्ध इसलाम और धर्मद्रोह

आईएस द्वारा जारी वीडियो उस की पत्रिका ‘दबिक’ और अन्य प्रचार साहित्य को पढ़ने पर एक बात उभर कर आती है कि वह शुद्ध इसलाम या इसलाम के मूलरूप पर विश्वास करता है. उस का मानना है कि इसलाम के 1400 साल पहले की पहली पीढ़ी यानी मोहम्मद और उन के साथियों की सोच और तरीके ही शुद्ध इसलाम हैं. इस में किसी तरह का संशोधन करने का मतलब है कि आप इसलाम के मूलरूप की शुद्धता पर विश्वास नहीं करते. यह धर्मद्रोह है और धर्मद्रोह की इसलाम में एक ही सजा है-मौत. अपने इस नजरिए के कारण आईएस लोकतंत्र, समाजवाद, फासीवाद आदि आधुनिक विचारधाराओं को नकारता है. उस का मानना है कि इसलाम की पहली पीढ़ी ने जो व्यवस्थाएं स्थापित कीं वे ईश्वरीय हैं जबकि अन्य व्यवस्थाएं  मानवनिर्मित हैं. वह इन मानवनिर्मित व्यवस्थाओं को पूरी तरह से नकारता है. यही वजह है कि वह उन इसलामवादी दलों को भी गुनाहगार मानता है जो चुनाव में हिस्सा लेते हैं. आईएस केवल ईश्वरीय व्यवस्था यानी शुद्ध मोहम्मदी इसलाम में विश्वास करता है, जिस के 2 स्तंभ हैं, खिलाफत और ईश्वरीय कानून शरीया. इन्हें वह ठीक उस तरह लागू करना चाहता है, जैसे मोहम्मद और उन के साथियों ने अपने समय में लागू किया था.

पहली पीढ़ी के इसलाम की बात केवल इसलामी राज्य ही नहीं तालिबान, बोको हरम आदि कई संगठन भी मानते हैं. बोको हरम के नेता शेकू ने कहा था कि वे नाइजीरिया में चुनाव नहीं होने देंगे क्योंकि वे जनता द्वारा जनता की और जनता के लिए बताए जाने वाले लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते बल्कि ईश्वर की, ईश्वर द्वारा चलाई जाने वाली सरकार में विश्वास करते हैं. वे हर तरह की आधुनिक व्यवस्था के खिलाफ हैं. बोको हरम का मानना है कि पश्चिमी शिक्षा वर्जित है. हाल ही में जानीमानी अमेरिकी पत्रिका ‘एटलांटिक’ में अमेरिकी प्रोफैसर ग्राहम वुड का इसलामिक राज्य पर लिखा लेख बौद्धिक हलकों में चर्चा का केंद्र रहा. इस में वे कहते हैं कि इस में मध्यपूर्व और यूरोप के बहुत से मनोविक्षिप्त और दुस्साहसी लोग शामिल हो गए हैं लेकिन इस के ज्यादातर अनुयायी इसलाम के गहन अध्ययन पर आधारित भाष्यों को मानते हैं. इसलामिक राज्य द्वारा किए गए हर फैसले और कानून में वे पैगंबर के तौरतरीकों को अपनाते हैं. यानी मोहम्मद की भविष्यवाणियों और उदाहरणों का पूरी तरह से पालन करते हैं. मसलन, आईएस की औनलाइन पत्रिका का नाम दबिक है. दबिक वह जगह है जिस के बारे में मोहम्मद ने भविष्यवाणी की थी कि इसलाम की सेनाओं का रोम की सेनाओं से आखिरी युद्ध होगा.

ग्राहम वुड कहते हैं कि असल में अगर हम इसलामिक स्टेट जैसी प्रवृत्ति से लड़ना चाहते हैं तो इस के बौद्धिक विकास को समझना होगा. इसलाम में तकफीर यानी बहिष्कार की अवधारणा है जिस के तहत एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को धर्मद्रोही कह कर गैर मुसलिम करार दे सकता है. हर वह मुसलिम धर्मद्रोही भी है जो इसलाम में संशोधन करता है. कुरान या मोहम्मद के कथनों  को नकारना पूरी तरह से धर्मद्रोह माना जाता है लेकिन  इसलामिक राज्य ने कई और मुद्दों पर भी मुसलमानों को इसलाम से बाहर निकालना शुरू कर दिया है. इस में शराब, ड्रग बेचना, पश्चिमी कपड़े पहनना, दाढ़ी बनाना, चुनाव में वोट देना और मुसलिमों को धर्मद्र्रोही कहने में आलस बरतना आदि बातें शामिल हैं. इस आधार पर शिया और ज्यादातर अरब धर्मद्र्रोह के निष्कर्ष पर खरे उतरते हैं. शिया होने का मतलब है इसलाम में संशोधन करना और आईएस के अनुसार, कुरान में कुछ नया जोड़ने का मतलब है उस की पूर्णता को नकारना. शियाओं में जो इमामों की कब्र की पूजा करने और अपने को कोड़े मारने की परंपरा है उस की कुरान या मोहम्मद के व्यवहार में कोई मिसाल नहीं मिलती. इसलिए धर्मद्रोही होने के कारण करोड़ों शियाओं की हत्या की जा सकती है. यही बात सूफियों पर भी लागू होती है.

इसी तरह मुसलिम देशों के प्रमुख भी धर्मद्र्रोही हैं जिन्होंने दिव्य माने जाने वाले इसलामी कानून शरीया के बावजूद मनुष्यनिर्मित कानून बनाया और उसे लागू किया. इस तरह इसलामिक राज्य या आईएस इस विश्व को शुद्ध करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या करने के लिए प्रतिबद्ध है. उस के नजरिए से जो भी मूल इसलाम में संशोधन करता है वह धर्मद्रोही है, इसलिए हत्या ही उस का दंड है. इसलिए इसलामिक राज्य 1-2 हत्याएं लगातार और सामूहिक हत्याकांड हर कुछ हफ्तों में करता रहता है. कथित मुसलिम धर्मद्रोही ही ज्यादातर उन के शिकार बनते हैं.

कुरान में जो युद्ध के नियम बताए गए और इसलामिक राज का जो वर्णन है उस का इसलामिक राज्य के लड़ाके पूरी ईमानदारी और श्रद्धा से पालन कर रहे हैं. इन में से बहुत सी बातें ऐसी हैं जिन के बारे में आधुनिक मुसलमान मानते हैं कि यह उन के धर्म का अपरिहार्य अंग नहीं है. गुलामी, सूली चढ़ाना, सिर कलम करना आदि मध्ययुगीन बातें हैं जिन्हें इसलामी राज्य के लड़ाके थोक के भाव में आज के जमाने में ले आए हैं. कुरान में साफतौर पर इसलाम के शत्रुओं के लिए सूली पर चढ़ाना एकमात्र दंड बताया गया है. ईसाइयों के लिए जजिया और इसलाम के वर्चस्व को स्वीकार करने का प्रावधान किया गया है. ये नियम मोहम्मद ने लागू किए हैं. इसलामिक राज्य के नेता, जो मोहम्मद का अनुसरण करना अपना कर्तव्य मानते हैं, ने इन दंडों को फिर लागू किया. इसलाम की पहली पीढ़ी ने जो भी किया वह ईश्वरीय था, यह मान कर लकीर का फकीर बन कर उस समय की हर चीज को आईएस लागू कर रहा है. उस ने गुलामी को पुनर्जीवित किया तो कुछ लोगों ने विरोध जताया लेकिन इसलामिक राज्य ने कोई अफसोस जताए बगैर गुलामी और सूली पर चढ़ाना जारी रखा. पत्रिका  दबिक में तो गुलामी की पुनर्स्थापना पर एक पूरा लेख लिखा है. इस लेख में लिखा गया था, ‘यजदी महिलाओं और बच्चों को शरीया के मुताबिक सीरिया में भाग लेने वाले लड़ाकों के बीच बांट दिया गया है. काफिरों के परिवारों को गुलाम बना कर उन की महिलाओं को रखैल बनाना शरीया का स्थापित हिस्सा है. अगर कोई कुरान की इन आयतों और मोहम्मद की बातों को नकारेगा या उन का मजाक उड़ाएगा तो इसलाम का द्रोही होगा.’

शरीया कानून

बाकी इसलामी संगठनों और इसलामी राज्य संगठन में एक बहुत बड़ा फर्क यह है कि उस ने  ब्रिटेन से भी ज्यादा क्षेत्रफल वाला स्वतंत्र देश स्थापित कर लिया है. खिलाफत की स्थापना के लिए यह जरूरी है. इस कारण दुनियाभर की खिलाफत की स्थापना चाहने वालों को बगदादी द्वारा अपने को खलीफा घोषित करने पर खुशी हुई. पिछली खिलाफत आटोमन साम्राज्य थी जो 16वीं शताब्दी में अपनी कीर्ति के शिखर पर पहुंची. 1924 में तुर्की के तानाशाह कमाल अता तुर्क ने उसे खत्म कर दिया. इसलामी राज्य के समर्थक उसे वैध खिलाफत नहीं मानते क्योंकि उस ने पूरी तरह से शरीया कानून लागू नहीं किया था जिस में गुलामी, पत्थर मार कर हत्या करना और शरीर के अंग काटना आदि भी शामिल है. बगदादी ने मोसुल में दिए अपने भाषण में खिलाफत के महत्त्व पर प्रकाश डाला था. उस ने कहा कि संस्था ने पिछले 1 हजार साल से कोई काम नहीं किया. खलीफा का एक दायित्व शरीया को लागू करना है. इसलामी राज्य के कुछ समर्थक मानते हैं कि अब तक शरीया को आधेअधूरे तरीके से लागू किया गया, जैसे सऊदी अरब में सिर कलम कर दिया जाता है और चोर के हाथ काट दिए जाते हैं. इस तरह से अपराध कानून लागू किया जाता है लेकिन शरीया के सामाजिक व आर्थिक न्याय को लागू नहीं किया जाता. शरीया, उन के अनुसार, एक पूरा पैकेज है. उसे पूरा लागू न करने से उस के प्रति नफरत फैलती है. खलीफा का दूसरा काम है हमलावर के खिलाफ जिहाद शुरू करना. इस का मतलब है गैरमुसलिमों द्वारा शासित देशों में जिहाद को फैलाना. खिलाफत का विस्तार करना खलीफा का कर्तव्य है.

इस तरह इसलामी राज्य के समर्थक लोगों को इसलाम की 1400 साल पुरानी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां  ईश्वरीय कानून शरीया पूरी तरह से लागू होगा. एक इसलामी राज्य के समर्थक का बयान अखबार में छपा था कि ईश्वरीय कानून यानी शरीया में जीने का अपना आनंद है. इसी आनंद का आस्वाद लेने के लिए दुनिया के कई देशों के लाखों मुसलमान वहां पहुंच रहे हैं. यह बात अलग है कि बाकी लोग इसलामी राज्य की करतूतों को हैवानियत मानते हैं. यह भी अलग बात है कि इसलामिक राज्य के मुखिया आधुनिक तकनीक का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं. यदि वे 1400 साल पहले जाना चाहते हैं तो उन्हें बंदूकें, गाडि़यां, टैंक, टैलीफोन, वायरलैस, कंप्यूटर, पैट्रोल, प्लास्टिक, दवाएं यानी हर चीज जो 1400 साल पहले नहीं थी, छोड़नी चाहिए. घोड़ों और भेड़ों के बल पर इसलामिक राज्य 2 दिन चल कर चलाएं तो. इस मामले में दूसरे धर्मों में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो 2000, 2500 या उस से पुराने धर्म को उसी रूप में थोपने की कोशिश करते हैं पर कौपीकिताबों, वीडियो, आधुनिक हथियारों, तकनीक के बल पर.

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