मेरे पति रसोई के काम में एकदम अनाड़ी हैं. एक बार घर में एक आयोजन था. सारा खाना तैयार हो चुका था पर हलवे के लिए सूजी भूनते समय मुझे अचानक चक्कर आ गया. मैं ने अधभुनी सूजी छोड़, गैस बंद कर दी और कमरे में आ गई. पति से कहा, ‘मेरी तबीयत खराब हो गई है, आप सिर्फ हलवा बना दीजिए.’ मैं ने उन्हें तरीका समझा दिया. थोड़ी देर बाद रसोई में गई तो हलवे की शक्ल कुछ अजीब थी, देखने में कच्चाकच्चा लग रहा था. पति से पूछा तो पता चला, उन्होंने गैस जलाई ही नहीं थी. उलटा मुझ से उलझ पड़े कि तुम्हें बताना चाहिए था कि गैस भी जलानी है.’’

प्रीति अग्रवाल, टैगोर गार्डन (न.दि.)

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शादी के तुरंत बाद मैं और मेरे पति ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे. मैं उदास थी. एक परिवार से बिछड़ने का गम तो था ही, साथ ही पति भी थोड़े गंभीर स्वभाव के थे. कुछ देर बाद इन्होंने 2 कप चाय खरीदी, परंतु इन के पास खुल्ले पैसे नहीं थे. मैं ने अपनी चाय नीचे रखी और अपने बैग से पैसे निकाल कर दे दिए. इस दौरान ये मेरी चाय पीने लगे. मैं ने कहा, ‘‘यह क्या, आप ने मेरी चाय पी ली. यह तो जूठी थी.’’

तब मेरे पति ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘वही तो मैं सोचूं, चाय इतनी मीठी क्यों है?’’ पति के मुंह से इतनी मीठी बातें सुन कर मेरी उदासी काफूर हो गई और मैं रोमांचित हो गई.

सुधा विजय, मदनगीर (न.दि.)

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मेरे पति भुलक्कड़ किस्म के हैं. किसी का जन्मदिन, शादी की सालगिरह वगैरह कुछ याद नहीं रहता. मेरा जन्मदिन आया. पति को हमेशा की तरह याद नहीं था. औफिस जाते समय मैं ने ही याद दिलाया और हिदायत दी कि शाम को कुछ तो लाना मेरे लिए.

‘‘अच्छा बाबा, ले आऊंगा,’’ कहते हुए ये चले गए.

जब शाम को लौट कर आए तो मैं ने दरवाजे से ही पूछा, ‘‘पहले बताओ कुछ लाए हो?’’ वे बोले, ‘‘हां भई, लाया हूं. बाबा, दरवाजा तो खोलो.’’

मैं ने खुशीखुशी दरवाजा खोला, उन्हें पानी ला कर दिया और उन के पास ही खड़ी हो गई. आहिस्ता से उन्होंने अपना ब्रीफकेस खोला, उस में से 2 थैले निकाले और बोले, ‘‘देखो मैडम, आलूप्याज हैं, जल्दी से गरमगरम पकौड़े बनाओ. चटपटे पकौड़े बनाना, मजे से खा कर तुम्हारा जन्मदिन मनाएंगे.’’

आशा भटनागर, कल्याण (महा.)

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