आम बजट के बाद शेयर बाजार में तेजी
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 28 फरवरी को लोकसभा में वर्ष 2015-16 का आम बजट पेश करने के मद्देनजर बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक में तेजी का जो रुख बना वह लगातार जारी है. बजट में ढांचागत सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी व्यवस्था को लागू किए जाने के प्रस्ताव से बाजार को एक तरह से पंख लग गए हैं. निवेशकों में उत्साह है.
अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने की संभावना जताई है. वित्त मंत्री ने
2015-16 के वित्त वर्ष में विकास दर 7.4 फीसदी और अगले वित्त वर्ष में इस के 8.03 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद जताई है. शेयर बाजार में इस अनुमान के कारण अच्छा उछाल आ रहा है. मार्च के पहले सप्ताह में 30 शेयरों वाले नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी का सूचकांक पहली बार 9 हजार अंक के पार पहुंचा है. बीएसई का सूचकांक पहली बार 30 हजार अंक से आगे निकला है हालांकि बाद में गिर गया. आर्थिक विशेषज्ञों को उम्मीद है कि वह जल्द ही 30 हजार अंक के पार पहुंच जाएगा. इस बार बजट शनिवार को पेश किया गया, छुट्टी का दिन होने के बावजूद शेयर बाजार खुला रहा. बजट के दिन सूचकांक 128 अंक की तेजी के साथ बंद हुआ. बाजार के लिए इसे बेहद सकारात्मक संकेत माना जा रहा है.
?अक्षय ऊर्जा की ‘अक्षय’ उम्मीद पर परमाणु बिजली भारी
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को सरकार ने अपनी प्राथमिकता में शामिल कर लिया है. इस दिशा में सरकार के प्रयास को देखते हुए देश को वैश्विक नेतृत्व की जिम्मेदारी संभालने की बात भी की जाने लगी है. सरकार दावा कर रही है कि इस क्षेत्र में वह जो कदम उठा रही है, दुनिया के किसी देश ने अभी वहां तक नहीं सोचा है. खुद सरकार के वरिष्ठ मंत्री कह रहे हैं कि प्रकृति के इस स्वच्छ ऊर्जा भंडार का पूरा इस्तेमाल करने के लिए प्रौद्योगिकी का भरपूर प्रयोग नहीं हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15-17 फरवरी तक दिल्ली में अक्षय ऊर्जा पर आयोजित पहले वैश्विक निवेशक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि दुनिया के 50 देशों को प्रकृति ने सूर्य की रोशनी का असीम भंडार बख्शा है और हम सब को एक समूह बना कर सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए मिल कर शोध व अनुसंधान करने चाहिए.
ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल उस सम्मेलन की सफलता से अत्यधिक उत्साहित दिखे. उन्होंने कहा कि सरकार गैरपरंपरागत ऊर्जा उत्पादन का अपना लक्ष्य बढ़ा रही है. उस दौरान दुनिया के 27 बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में सरकार को 5 लाख करोड़ रुपए के निवेश करने की प्रतिबद्घता का पत्र भी सौंपा. सरकार का इस से उत्साहित होना स्वाभाविक है.
स्वच्छ ऊर्जा को जब इतना महत्त्व दिया जा रहा है तो उसी समय सरकार परमाणु ऊर्जा जैसी घातक परियोजनाओं के लिए दुनिया के समक्ष किसलिए गिड़गिड़ा रही है. उस की इस कवायद को देख कर लगता है कि नवीकरणीय ऊर्जा की संभावना पर उसे भरोसा नहीं है. शायद उसे लगता है कि यह देश की ऊर्जा जरूरत पूरी नहीं कर पाएगा. यदि स्थिति असमंजस की है तो ढोल पीटने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.
निशुल्क इंटरनैट, फायदा ग्राहक का
मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों ने जब इनकमिंग कौल्स पर शुल्क लेना बंद किया था तो मोबाइल सेवा लेने वालों की संख्या में एकाएक तेजी आ गई थी. बाजार में ग्राहक बढ़े तो सेवाप्रदाता कंपनियों की संख्या में इजाफा होने लगा. इस से ग्राहक बढ़ाने की मोबाइल कंपनियों में होड़ शुरू हो गई. इसी बीच, ग्राहक संख्या के आधार पर आगे निकलने के लिए प्रतिस्पर्धा चरम पर पहुंची तो अचानक कुछ कंपनियों ने टैरिफ यानी कौल्स दर घटा दी. उपभोक्ता उसी कंपनी की तरफ भागने लगे तो फिर दूसरी कंपनी ने भी वही रास्ता अपना लिया और इस स्पर्धा के कारण आज हमें मामूली दर पर प्रति कौल प्रति सैकंड की सुविधा मिल रही है.
इधर, पोर्टेबिलिटी की सुविधा भी शुरू हो गई है और रोमिंगफ्री जैसी सेवाएं ग्राहक ले रहे हैं. आने वाले वक्त में पूरे देश में पोर्टेबिलिटी के कारण नंबर बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इन सुविधाओं के कारण हर हाथ तक मोबाइल पहुंच गया है.
इधर, रिलायंस कम्युनिकेशंस ने फेसबुक के साथ मिल कर ग्राहकों को निशुल्क इंटरनैट की सुविधा देने की घोषणा की है. इस से सेवाप्रदाता कंपनियों में खलबली मच गई है. इन कंपनियों में भी प्रतिस्पर्धा का भाव बढ़ गया है और कई कंपनियों ने अपनी सेवा की समीक्षा शुरू कर दी है. समीक्षा के बाद कुछ कंपनियां अपनी सेवाओं की दरें घटा सकती हैं अथवा निशुल्क भी कर सकती हैं. इस से इंटरनैट क्षेत्र में क्रांति आने की संभावना है. प्रतिस्पर्धा में फायदा ग्राहक का ही होता है. इस बहाने उसे अच्छी और सस्ती सेवा मिल जाती है. इस में देखना यह है कि ग्राहक की जेब पर डाका डालने वाली कंपनियां कैसेकैसे जाल बुन कर ग्राहक को लूटने के छिपे रास्ते निकालती हैं.
कोयला ब्लौक आवंटन में पारदर्शिता का सवाल
देश में बिजली की आपूर्ति निर्बाध बनाए रखने के लिए सरकार कोयला उत्पादन को निर्विघ्न जारी रखने की कोशिश में है. कोयले में राजनेताओं तथा उद्योगपतियों के हाथ लगातार काले हुए हैं और इसे धोने के लिए नीलामी में पारदर्शिता जैसे जुमलों का सहारा ले कर कोयला उत्पादन जारी रखने की कोशिश है. नीलामी प्रक्रिया मार्च तक पूरी की जानी है. उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष सितंबर में 218 में से 214 कोयला ब्लौकों के आवंटन में धांधली होने की वजह से उन्हें रद्द कर दिया था और 31 मार्च तक फिर से इन ब्लौकों को आवंटित करने को कहा था. इस के तहत सरकार ने 103 ब्लौकों की आवंटन प्रक्रिया शुरू की. इन की औनलाइन नीलामी की प्रक्रिया जारी है. रद्द किए गए सभी ब्लौक 1993 से 2010 के बीच आवंटित हुए हैं.
नीलामी साफसुथरी हो, इस के लिए मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव को नोडल अधिकारी बनाया गया. औनलाइन आवेदन मंगाए और औनलाइन ही नीलामी हो रही है. सरकार दावा कर रही है कि नीलामी पारदर्शी तरीके से जारी है. लेकिन मुश्किल यह है कि इस काम के लिए संसद में विधेयक पारित करा कर कानून अभी नहीं बना है. अध्यादेश के जरिए इतना बड़ा काम किया जा रहा है.
विदित हो कि 10 माह की यह सरकार कोयले पर 2 अध्यादेश ला चुकी है. पहला अध्यादेश जारी करने के बाद विधेयक लाई लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में बहुमत के अभाव में उसे पारित नहीं करा सकी. इसलिए सत्र के समाप्त होने के महज कुछ दिन बाद सरकार ने फिर से अध्यादेश ला कर उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. सरकार भले ही उस प्रक्रि या को जारी रखने को अपनी जीत बताए लेकिन संवैधानिक तरीके से अध्यादेश के बल पर इस तरह के काम कराने की परंपरा स्वस्थ नहीं कही जा सकती है.
यह ठीक है कि प्रक्रिया शुरू करने के लिए अध्यादेश एक निश्चित अवधि तक का विकल्प है लेकिन एक पूरा सत्र निकल गया और अध्यादेश को कानून नहीं बनाया जा सका तो यह सरकार की विफलता है. सरकार विपक्ष को भरोसे में ले कर राज्यसभा में विधेयक पारित कराए और इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाए तब ही कह सकते हैं कि वह पारदर्शिता की कसौटी पर चल रही है.