कुंआरी सुबह हो जाएगी
दोशीजा रात ढल जाएगी
रुख से हटा दो परदा
मेरी तकदीर बदल जाएगी
कातिल नाजो अदाएं
लजीली शोख कटारी चितवन
रेशमी आंचल लहरा दो
रुत बसंती दहल जाएगी
तू इंतजार में अपने
पलट कर हाल तो देख ले मेरा
डाल दे निगाहे करम
शबनमी चाहत पिघल जाएगी
बर्फ सी चमक
शोलों की खूबसूरत लपक है तुझ में
सामने देख कर
तबीयत हर एक की मचल जाएगी
दहकते सुर्ख लबो रुखसार
कसमसाती यौवन कलियां
छू लिया जो तुम्हें तो
मेरी उंगली ही जल जाएगी
नखशिख सोया है
मीठा मादक प्रणय संगीत तुझ में
तेरी चूडि़यों में, पायलों में
सरगम सी बिछल जाएगी
उनींदी पलकें, कजरारी आंखें
संगमरमरी गोरी बांहें
मौत भी आ गई हो
तो बहाने बना कर टल जाएगी
तू न चाहे तो तुझे पा कर भी
कोई कभी पा नहीं सकता
तू जो चाहे तो??
हंसी उल्फत जन्नत तक उछल जाएगी
ये तेरा ही नरम तसव्वुर है
या तेरी बेशुमार तमन्नाएं
तेरी यादों की नदिया
इक रोज मुझे निगल जाएगी
यों निहारो न कनखियों से
मेरी आरजू बहल जाएगी
संभाल नहीं पाओगी
तन से ओढ़नी फिसल जाएगी.
– सुभाष चंद्र झा