सांसों में समाई

सरगम की गुंजन

मदहोश थे हमतुम

प्यार की सुरभि

महकी थी तब

जिंदगी गुलशन में…

तुम्हारी गलबहियां

कोमल एहसास

शहदीले होंठों पर चुंबन

वे एहसासी यादें

सहेज कर रखे हूं

आज तन्हा जीवन में…

मीत मेरे

दूर हो जब से तुम

उतरा लगता है चांद का मुखड़ा

मुरझाई रहती है चांदनी

घर के छज्जे में…

    – राकेश माहेश्वरी ‘काल्पनिक’

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