शेयर बाजार में गहरी डुबकी, ऊंची छलांग का खेल
दिसंबर के दूसरे पखवाडे़ के पहले सप्ताह के दौरान शेयर बाजार में अत्यधिक उतारचढ़ाव का माहौल रहा. बौम्बे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक जितनी गहरी डुबकी लगा रहा था उसी स्तर की ऊंचाई तक छलांग भी लगा रहा था.दिसंबर 17 को बाजार 538 अंक लुढ़का तो अगले दिन 417 अंक की ऊंची छलांग लगा गया. इस की वजह निवेशकों का भरोसा प्रभावित करने वाले आर्थिक कारक हैं लेकिन जिस ऊंचाई से बाजार गिरा और फिर जिस ऊंचाई पर चढ़ कर खड़ा हुआ उस से विशेषज्ञ भी असमंजस की स्थिति में हैं. वे यह अनुमान नहीं लगा पा रहे कि बाजार के आने वाले दिन किस तरह के रहेंगे. रुपया एक साल के निचले स्तर तक पहुंच चुका है हालांकि जिंस बाजार में कच्चे तेल के दाम 5 साल में सब से कम स्तर तक पहुंच चुके हैं और तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के तेल उत्पादन कम नहीं करने के फैसले से महंगाई की दर के और भी घटने के आसार होने के बावजूद बाजार में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है.
बाजार में गिरावट का सिलसिला पखवाड़े की शुरुआत से ही है और कई बार सूचकांक 28 हजार के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे आया है. दिसंबर मध्य तक सूचकांक में ज्यादातर गिरावट का रुख ही रहा है और सूचकांक लगातार कई सत्रों में गिरावट पर बंद हुआ है. बाजार में गिरावट के रुख की वजहों में डौलर के मुकाबले रूस की मुद्रा रूबल के दाम बढ़ने और नवंबर में व्यापार घाटे के 18 माह में सब से अधिक रहना शामिल है. वहीं, सूचकांक 17 दिसंबर को 16 माह में एक दिन की सर्वाधिक गिरावट के साथ बंद हुआ लेकिन निवेशकों का विश्वास ज्यादा देर तक नहीं डगमगाया और अगले ही सत्र में सूचकांक फिर लंबी छलांग लगा गया.
बीपीएम उद्योग का रुख छोटे शहरों की ओर
बिजनैस प्रोसैसिंग मैनेजमैंट यानी बीपीएम का जमाना है. बदले हुए औद्योगिक परिवेश में बीपीएम कंपनियां करोड़ोंअरबों का कारोबार कर रही हैं. यह उद्योग अब तक महानगरों तक सीमित है और इन का 90 प्रतिशत राजस्व दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, पुणे, हैदराबाद या बेंगलुरु जैसे महानगरों तक सीमित है. इन शहरों में बीपीएम कंपनियों का सालाना कारोबार करीब सवा लाख करोड़ रुपए का है. समय बदल रहा है और बीपीएम उद्योग ने समय के साथ बदलने का मन बना लिया है.बीपीएम उद्योग जानता है कि छोटे और मझोले शहरों का व्यावसायिक माहौल बदल रहा है. वहां प्रतिभाशाली और अपेक्षाकृत कम दाम पर मानव संसाधन मिल रहा है, मजदूरी कम और प्रतिभाएं ज्यादा हैं साथ ही, कम किराये पर ज्यादा जगह ले कर ज्यादा कारोबार किया जा सकता है. इसलिए अहमदाबाद, भुवनेश्वर, जयपुर, विशाखापत्तनम, कोयंबटूर, कोच्चि, इंदौर जैसे शहरों में कई कंपनियों ने अपने केंद्र खोल दिए हैं और ये सब केंद्र इन कंपनियों को ज्यादा मुनाफा दे रहे हैं.
इन कंपनियों में मानवसंसाधन की प्रतिभाएं छोटे और मझोले शहरों से आ कर काम कर रही हैं. बीपीएम कंपनियों में काम करने वाले 50 फीसदी कर्मचारी इन्हीं शहरों से हैं. उन में काम के प्रति समर्पण और अच्छा परिणाम देने की क्षमता को देख कर ही इन कंपनियों ने दूसरे और तीसरे शहरों का रुख करने की योजना बनाई है. यह योजना तेजी से जमीनी हकीकत में बदल रही है और अब एक के बाद दूसरी कंपनी महानगरों के छोटे शहरों की तरफ बढ़ रही है. यह सुखद स्थिति है. इस तरह महानगरों पर जनसंख्या का भार कम होना शुरू हो जाएगा. छोटे शहरों और कसबों से महानगरों की तरफ होने वाला पलायन रुक जाएगा और देश के सभी हिस्सों का समान रूप से विकास शुरू हो जाएगा. निश्चित रूप से यह तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भारत के लिए अच्छे संकेत है.
कालाधन परोसने वाले देशों में भारत का चौथा स्थान
कालेधन की वापसी पर राजनीतिक रंग चढ़ रहा है. कालाधन सत्ता की मलाई चाटने का अच्छा जरिया बन गया है, इसलिए यह राजनीति के केंद्र में आ गया है. विदेशों में कालाधन जमा करने वाले दुनिया के 4 प्रमुख देशों में भारत शामिल है. यह ठीक है कि चीन और रूस के बाद तीसरे स्थान पर खड़ा भारत इस बीच मैक्सिको के बीच में आने के कारण चौथे स्थान पर पहुंच गया है लेकिन यह आंकड़ा चौंकाने वाला है कि 2012 में विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों से जितना कालाधन विदेशों में जमा हुआ, उस का 10 फीसदी धन भारत का था. यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है.
वाशिंगटन स्थित ग्लोबल फाइनैंशियल इंटिग्रिटी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 2003 से 2012 के बीच हर साल 94.76 अरब डौलर अवैध रूप से विदेश भेजे गए. इस तरह से एक अनुमान के अनुसार विदेशी बैंकों में भारत के 28 लाख करोड़ रुपए हैं. उच्चतम न्यायालय के आदेश पर सरकार ने कालाधन का पता लगाने के लिए विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन किया है. एसआईटी अपने काम में आगे बढ़ रहा है और उस ने अब तक 4,479 करोड़ रुपए का पता लगाया है. उस ने कहा है कि यह पैसा जिनेवा में एचएसबीसी बैंक की शाखा में जमा है.
अब सरकार के समक्ष इस पैसे को वापस लाने की चुनौती है, जो बहुत कठिन है. बहरहाल यह बात चिंतनीय है क्योंकि हमारे करोड़ों लोगों के पास रहने के लिए छत नहीं है, लाखों लोग खाली पेट फुटपाथ पर सो रहे हैं. करोड़ों बच्चे गरीबी की वजह से स्कूल नहीं जा पाते हैं और लाखों लोग गरीबी से तंग आ कर आत्महत्या करते हैं. ऐसी स्थिति में यदि विदेश में कालाधन जमा करने वाले देशों में हमारे देश के लोग लिप्त हैं तो यह दुखद, अन्यायपूर्ण और अमानवीय स्थिति है.
उपभोक्ता अदालत में शिकायत
उपभोक्ता अदालत को ले कर सरकारी विज्ञापन ऐसी तसवीर पेश करते हैं कि कंपनियों ने धोखा किया नहीं कि उपभोक्ता अदालत उन्हें सबक सिखा देगी. विज्ञापनों से उपभोक्ता का भला हो या न हो लेकिन उस का मनोबल जरूर बढ़ता है. हर क्षेत्र को उपभोक्ता अदालत के दायरे में लाने का उपक्रम हो रहा है. दूरसंचार विभाग ने मोबाइल सेवा और मोबाइल फोन उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को उपभोक्ता कानून के दायरे में लाने की तैयारी शुरू कर दी है.
दूरसंचार नियामक यानी ट्राई हालांकि इस तरह की शिकायतें सुनता रहा है लेकिन वह बहुत प्रभावी साबित नहीं हुआ है और न ही उस के पास बहुत अधिक अधिकार हैं. वह निजी मामलों का समाधान करने में सक्षम नहीं है. यह ठीक है कि उपभोक्ता अदालत के पास बहुत अधिकार हैं लेकिन उपभोक्ता अदालत की प्रक्रिया उतनी सरल नहीं है जितनी उसे प्रचारित किया जाता है. इस अदालत के लिए शिकायत करने पर वकील की जरूरत होती है जबकि आम आदमी वकील और कोर्टकचहरी से बचता है. लेखक का अनुभव भी उपभोक्ताअदालत को ले कर ठीक नहीं है. मेरे 2008 के एक मामले में कर्जन रोड, दिल्ली स्थित उपभोक्ता अदालत का फैसला अब तक नहीं आया है.
वैबसाइट देख कर पाठक केस संख्या – सी 616/2008 देखें और निर्णय लें कि जिस अदालत से हर साल मात्र 8 हजार रुपए की लड़ाई नहीं जीती या हारी जा सकती या उस पर फैसला नहीं आता है तो ऐसी अदालतों की उपयोगिता पर सवाल स्वाभाविक हैं. बहरहाल, इस तरह का मामला अपवाद हो सकता है, ज्यादातर मामलों में उपभोक्ताओं को लाभ होता है. एक उदाहरण को ले कर किसी व्यवस्था को सही अथवा गलत नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इसे उदाहरण के रूप में पेश जरूर किया जा सकता है. उम्मीद है कि दूरसंचार उपकरणों के उपभोक्ता अदालत के दायरे में आने से उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा.