हम लोग 4 घंटे का थकाऊ सफर पूरा कर के चीन के सिचुआन प्रांत के दूरदराज के गांव यांग्सी आ पहुंचे थे. चौंकाने वाली बात यह थी कि हमारा स्वागत बच्चों ने किया. हमारा मन भावुक हो उठा. बच्चों के चेहरों पर फैली मुसकराहट बता रही थी कि वे हम से मिल कर खुश थे.
‘‘क्या कोई बड़ा बुजुर्ग हम से मिलने नहीं आएगा?’’ मैं ने अपने गाइड शिजुआओ ली से पूछा. वह मेरी बात सुन कर हंस दिया. एक क्षण बच्चों की ओर देख कर बोला, ‘‘महाशय, यहां आप की और मेरी तरह 5 साढ़े 5 फुट का कोई नहीं है, यही वे लोग हैं जिन्हें आप देखने आए हैं.’’
मैं उस की बात सुन कर एक क्षण को स्तब्ध रह गया. कभी उन बुजुर्ग बच्चों को देखता था और कभी ली को. तभी ली ने एक बच्चे को गोद में उठाया और मुझ से ‘हैलो’ करने को कहा. उस बच्चे ने चीनी भाषा में मेरा अभिवादन किया. ये लोग चीनी भाषा के अलावा कोई दूसरी भाषा नहीं जानते. उस बच्चे का नाम मित्सु था जिस की उम्र 37 वर्ष थी.
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मित्सु की उम्र 37 वर्ष थी. तब ली ने मुझे एक बार फिर चौंकाया, ‘‘वे जो 2 बच्चे आप खेलते देख रहे हैं वे जुड़वां हैं और 8-8 साल के हैं. मित्सु उन के पिता हैं.’’ मुझे इतनी हैरानी हुई कि मैं कुछ बोल नहीं पाया. मेरा मुंह खुला का खुला रह गया.
मैं ने ली से उन के बौनेपन के बारे में विस्तार से बताने को कहा. ली ने कहा, ‘‘बताया जाता है कि 1920 के आसपास 5 से 7 वर्ष की आयु के बच्चे किसी रहस्यमय बीमारी की चपेट में आ गए. उस बीमारी का असर सीधे हड्डियों पर हो रहा था जिस से बच्चों का विकास रुक गया. हां, मानसिक और बौद्धिक विकास पर उस बीमारी का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला.’’
वैज्ञानिकों ने उस क्षेत्र के पानी, मिट्टी और अनाज का गहन अध्ययन किया लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा. कुछ समय पूर्व एक जरमन लेखक हार्टविग हौसडौर्फ इन लोगों पर शोध करने यहां आया था. उस ने अपने शोधपत्र में लिखा था, ‘‘सिचुआन प्रांत में 120 बौने पाए गए, जिन में सब से ऊंचे बौने की ऊंचाई 3 फुट 10 इंच थी. यह घटना नवंबर 1995 की है. सब से छोटे कद के बौने की ऊंचाई 2 फुट 1 इंच थी. यह आश्चर्यजनक है.’’
चीन के मानवजाति विज्ञानी यह रहस्य आज तक नहीं जान पाए हैं कि शारीरिक विकास रुकने का क्या कारण था. बहरहाल, एक शोध के अनुसार, मिट्टी में पारे के तत्त्व पाए गए थे जिस के कारण हड्डियों का विकास रुकने लगा. परिणामस्वरूप शरीर का संपूर्ण विकास ही रुक गया. बौनों के इस गांव का नाम है बयान कारा उला, जो एक पर्वतशृंखला के बीच बसा हुआ है. यह वह जगह है जहां क्ंवगहाई और सिचुआन प्रांतों की सीमाएं मिलती हैं.
जिस स्थान पर बयान कारा उला स्थित है उसी के पास एक नदी बहती है-डिले, जिसे इस गांव की जीवनरेखा कहा जा सकता है. चीन के लोग इन यांग्सी बौनों को ‘मशरूम पीपल’ भी कहते हैं. इन लोगों ने अपने मनोरंजन के लिए खास व्यवस्था कर रखी है. इन के लिए एक ‘ड्वार्फ थीम पार्क’ का निर्माण भी किया गया है जहां ये लोग नाचतेगाते हैं, नाटकों का मंचन करते हैं और खास बैठकें करते हैं.
विश्वभर में ड्वार्फिज्म (बौनेपन) पर होने वाले शोधकार्यों से पता चलता है कि बौने सिर्फ चीन या जापान में ही नहीं, विश्व के अन्य देशों में भी पाए जाते हैं. ब्रिटेन में तो बौनों की पूरी फुटबौल टीम है. भारत में भी बौनों की कमी नहीं है. सर्कस एक ऐसा व्यवसाय है जिस में बौनों की अनिवार्यता होती है. दुनिया में कहीं भी, कोई भी सर्कस ऐसा नहीं जिस में बौने कलाकार नहीं हैं. वास्तव में बच्चों के मनोरंजन के लिए बौने कलाकारों का होना अनिवार्यता होती है. यह बात अलग है कि अब सर्कस जैसा महंगा व्यवसाय लुप्तप्राय होने के कगार पर है. यों भी, सर्कस में इस्तेमाल किए जाने वाले जानवरों पर प्रतिबंध के चलते सर्कस व्यवसाय डूब रहा है.
प्रश्न उठता है कि सर्कस के बंद हो जाने पर अन्य (सामान्य) लोगों को तो कहीं न कहीं जीवनयापन योग्य कामधंधा मिल भी जाएगा लेकिन बौने लोगों (जो अमूमन जोकर का काम करते हैं) को कौन काम पर रखेगा? इसलिए सरकार को इन लोगों के सहायतार्थ सोचना चाहिए. सिचुआन प्रांत में बौनों के 18 गांव हैं और 3 प्रजातियां हैं. ये सभी लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और महामहिम जांग्चेन रिन्पोचे के प्रति समर्पित हैं.
बौनों का रहस्य चाहे जो भी हो, इतना तय है कि सामान्य व्यक्ति और उन के बीच किसी न किसी ऐसे तत्त्व की कमी अवश्य होती है जो उन की शारीरिक वृद्धि को एक स्थान पर ला कर रोक देती है. एक उल्लिखित जानकारी के अनुसार विश्वभर के वैज्ञानिक इस रहस्य से परदा नहीं उठा पाए हैं कि आखिर बौनापन होता क्यों है. बौनापन वंशानुगत होता हो, ऐसा भी आवश्यक नहीं है.
भोपाल की जीनत बी
113 वर्ष की जीनत बी शायद विश्व की सर्वाधिक आयु की बौनी महिला हैं (कद पौने 3 फुट). उन के विवाह न करने के कारण उन की कोई संतान नहीं है. भारत में ही भोपाल की रहने वाली जीनत बी को अपना बचपन और वह समय अच्छी तरह याद है जब ब्रिटिशर्स भारत पर राज करते थे. जीनत बी ने बताया, ‘‘मेरी उम्र इतनी है कि मैं ने भोपाल शहर को अपनी आंखों के सामने बसते देखा है. एक समय यहां सिर्फ जंगल ही जंगल हुआ करता था. मुझे आज भी याद है वह दिन जब अंगरेजों ने शहर में पहली बार डबलरोटी (ब्रैड) का प्रचलन शुरू किया था.’’
जीनत बी की देखभाल करने वाले सज्जन अबरार मुहम्मद खान दुखी मन से बताते हैं, ‘‘शर्म की बात है कि हमारे देश की सरकार जीनत की तरह के अन्य बौनों की तरफ कोई तवज्जुह नहीं देती, कोई सहूलियत नहीं देती बल्कि उन्हें प्रदर्शनी की वस्तुमात्र बना छोड़ा है.’’ जीनत बी, अबरार खान के घर में पिछले 30 सालों से रह रही हैं. अबरार खान उन्हें मां का दरजा और इज्जत देते हैं और उन की हर जरूरत का ध्यान रखते हैं. जीनत बी बताती हैं कि उन की मनपसंद चीज पान है. वे खाने के बिना रह सकती हैं, पान के बिना नहीं.