नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा संसद में पेश पहले आम बजट में ऐसा कुछ नहीं है जिस से लगे कि देश में कुछ बदलाव आने वाला है. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने लंबे भाषण में तरहतरह के लुभावने वादे किए पर साफ लग रहा था कि उन वादों को पूरा करने में लंबा समय लगेगा और जब देश की नौकरशाही को उन प्रोजैक्टों में कोई रुचि न हो, केवल प्रोजैक्टों से मिलने वाले पैसे से हो तो वे कब पूरे होंगे, कहा नहीं जा सकता. इस प्रकार के वादे सभी वित्तमंत्री 60 साल से करते आए हैं. गनीमत यही है कि सरकार ने नए कर नहीं बढ़ाए, आम चीजों पर कम से कम. पर जब सरकार का खर्चा बढ़ रहा हो तो महंगाई कैसे रुकेगी, इस का फार्मूला पूरे बजट में न्यूक्लियर माइक्रोस्कोप से देखने पर भी न मिलेगा. पक्की बात है कि सरकार कर्ज लेगी और महंगाई बढ़ाएगी.

जो वर्ग नरेंद्र मोदी को इस उम्मीद से लाया था कि वे कांगे्रस से अलग क्रांतिकारी नीतियां लाएंगे जिन से उद्योग, व्यापार बढ़ेंगे, वह भी खुश नहीं है. उधर बजट के दिन शेयर बाजार भारी अंकों से गिरा पर फिर संभला पर अंत में कम पर ही बंद हुआ. यानी निवेशकों को भी बजट में ऐसा कुछ नहीं दिखा कि वे रात को पटाखे जला कर उस का स्वागत करते. भारत जैसे बड़े देश में कुछ करना आसान नहीं, यह मानी बात है पर यह तो पहले ही सोचना चाहिए था जब चुनावों के दौरान बड़ेबड़े वादे किए जा रहे थे. देश का संपन्न, धर्मभीरु वर्ग सोच रहा था कि ‘सुखी भव:’ के नारों की तरह देश का कल्याण स्वत: हो जाएगा अगर सही व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना दिया जाए. उन्हें लगता था कि सही मंदिरों में पूजा करने से धन बरसता है तो सही को नोट और वोट देने से भी संपन्नता आ जाएगी. यह बजट दर्शाता है कि इस में ऐसा कुछ नहीं है जो आश्वासनों से ज्यादा हो.

नरेंद्र मोदी ने न तो सरकार का भारी- भरकम ढांचा हलका करने का वादा किया है और न ही नेहरूवादी समाजवादी ढांचे को खत्म करने का साहस दिखाया है.  कुछ सरकारी कंपनियों के शेयर बाजार में बेचने से काम नहीं चल सकता क्योंकि उस से आम जनता को लाभ नहीं होता. आयकर में निचली स्लैब पर छूट देना कोई क्रांतिकारी कदम नहीं है. यह तो जैसेजैसे रुपए की कीमत घट रही है, हर वित्तमंत्री करता आया है. लोग आयकर बचाने की कोशिश न करें, ऐसा कोई कदम वित्तमंत्री ने उठाया ही नहीं क्योंकि लगता है अब भाजपा सरकार भी कांगे्रसी सरकारों जैसे सारे सुखों को भोगना चाहती है, और उन्हें आम जनता पर न्योछावर नहीं करना चाहती.

शर्तिया कद बढ़ाओ, मर्दानगी लाओ, संतान पैदा करो जैसे नारों से जीत कर आई भाजपा सरकार के पहले बजट ने जो दवा दी है वह केवल कड़वी, बेमतलब के चूर्ण की गोली पर चाशनी की परत है, हर बार की तरह. नई सरकार जानती है कि उसे शासन से मतलब है, पैसा वसूलने से मतलब है, अपने हमदर्दों में बांटने से मतलब है, आम लोगों या देश की सरकार से नहीं. यह  भाजपा की नीयत की खराबी नहीं, शासन की कुरसी का असर है. जो उस पर बैठता है वह पिछले वाले की तरह ही काम करता है.

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