पिंटू बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. उस के मांबाप ने उस को ले कर बड़ेबड़े सपने देखे थे. बेटा इंजीनियर बनेगा. परिवार और गांव का नाम रोशन करेगा. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि पिंटू के भाई की हत्या कर दी गई. भाई की हत्या की खबर सुन कर वह घर आया. क्रियाकर्म होने के बाद पिंटू वापस बेंगलुरु नहीं जाने की जिद करने लगा. घर वालों ने उसे समझायाबुझाया लेकिन वह पढ़ाई करने के लिए जाने को तैयार ही नहीं हुआ. वह बस यही रट लगाता रहा कि उसे अपने बड़े भाई की हत्या का बदला लेना है.

इंजीनियर बनने का सपना देखने वाला पिंटू बदले की आग में जलने लगा और फिर एक दिन उस ने अपने भाई के हत्यारे की हत्या कर डाली. हत्या के आरोप में उसे जेल हो गई. पिंटू बताता है कि जेल में रहने के दौरान उस की जानपहचान कई अपराधियों से हुई. उसे लगा कि अब वह जेल से छूट ही नहीं पाएगा और उस की जिंदगी जेल में ही गुजर जाएगी. क्योंकि उस के पिता बब्बन सिंह ने गुस्से में कह दिया था कि वे उस का केस नहीं लड़ेंगे और न ही जमानत की कोशिश करेंगे. अपनी जिंदगी और कैरियर के बरबाद होने का दर्द अब पिंटू को महसूस हो रहा है. वह कहता है कि अगर वह कानून पर भरोसा कर अपने भाई के हत्यारे को सजा दिलाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा देता तो कुछ और ही नतीजा होता. हत्यारे को सजा होती और उस की जिंदगी चौपट न होती.

पिंटू ने बताया कि जेल में अपराधियों से दोस्ती होने के साथ कई तरह के अपराधों की प्लानिंग होने लगी. उस ने छोटेछोटे अपराधियों का गैंग बना लिया. छोटीमोटी लूट, चोरी, डकैती आदि के मामलों के अपराधी जेल के अंदरबाहर होते रहते हैं. पिंटू बचपन से ही पढ़ाई में अच्छा था और उस की अंगरेजी बहुत अच्छी थी, इस वजह से जेल में बंद कैदी उस की काफी इज्जत करते थे और उस की बातों को सुनते थे. जेल में ही अपराधियों का गिरोह बना कर उस ने अपहरण और रंगदारी वसूली का काम चालू कर दिया. हत्या के साथसाथ अब उस के माथे पर बड़ीबड़ी कंपनियों से रंगदारी वसूलने के आरोप भी लग चुके हैं.

पिंटू के पिता ने भले ही गुस्से में उसे जेल से छुड़ाने की कोशिश न करने की धमकी दी हो पर समय के साथ उन का दिल पसीजा और उन्होंने उस का केस लड़ने के लिए वकील कर लिया. पिछले 4 सालों से पुलिस थाना, कचहरी और वकील के घर के चक्कर लगा कर थक चुके 65 साल के बब्बन बताते हैं कि अगर पिंटू उन की बात मान कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु लौट जाता तो उन के बुढ़ापे को थाना और कचहरी के जंजाल में नहीं फंसना पड़ता. एक बेटे की तो हत्या हो गई और दूसरे ने जीतेजी मौत से भी बदतर जिंदगी चुन ली.

जेल में बंद पिंटू जो कुछ भी झेल रहा है वह उस के बुरे कामों का नतीजा है, लेकिन पिंटू के बूढ़े पिता और घरपरिवार वाले अपने गांव, रिश्तेदारों व दोस्तों के सामने रोज जिल्लत व अपमान झेल रहे हैं. पिंटू का छोटा भाई संटू कहता है कि गांव में उस का रहना दूभर हो गया है. जहां भी जाओ, लोग फब्तियां कसते हैं, क्रिमिनल का भाई कहते हैं. पिताजी की जिंदगी का एक ही मकसद रह गया है, पिंटू का केस लड़ना. हर डेट को वे कचहरी में हाजिरी लगाते हैं. वहां उन की पिंटू से भेंट हो जाती है. वे बेटे को दिलासा देते हैं, समझाते हैं पर उन सब का पिंटू पर कोई असर नहीं होता है. जेल में वह ठाट से रह कर अपराध को अंजाम दे रहा है. उसी को अब उस ने अपना जीवन मान लिया है.

बच्चों में धैर्य की कमी

आज बच्चों की तुनकमिजाजी आम होती जा रही है. जरा सा उन के मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो उन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचता है. कोई लड़की प्यार में धोखा खा कर गले में दुपट्टा बांध कर पंखे से लटक जाती है तो कोई लड़का इम्तिहान में कम नंबर लाने की वजह से पिता से डांट खाने के बाद किसी पुल से नदी में छलांग लगा देता है. मांबाप ने प्रेमिका से विवाह की मंजूरी नहीं दी तो कोई अपार्टमैंट की छत से कूद कर जान दे देता है तो कोई लड़का महंगे मोबाइल फोन को पाने के लिए अपने ही दोस्त की जान ले लेता है. किसी बच्चे को अपने साथी का ज्यादा नंबरों से पास होने पर इतना गुस्सा आता है कि उसे मार कर अपने रास्ते से ही हटा डालता है.

इस तरह की ढेरों वारदातें हमारे आसपास घटित हो रही हैं. खेलने और पढ़ने की उम्र में बातबेबात किसी की जान लेने व खुदकुशी करने की वारदातें इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि हर परिवार भय के माहौल में जीने लगा है. पता नहीं कब किस बात पर उन का बच्चा कोई गलत कदम उठा ले. मासूमों में आखिर इतना गुस्सा कैसे बढ़ गया है कि वे जान लेने या जान देने में जरा भी नहीं हिचकते?

आज के दौर में हम तकनीकी तौर पर भले ही मजबूत हो गए हैं पर बरदाश्त करने और धैर्य रखने की ताकत काफी कम होती जा रही है. समाजविज्ञानी अजय मिश्रा कहते हैं कि आसानी से किसी चीज को हासिल करने, जरा सा विरोध व डांट को प्रेस्टिज इश्यू बना लेने और समझौता करने की मानसिकता में कमी आने की वजह से ही मासूम गुस्सैल और अपराधी बनते जा रहे हैं. कोई भी गलत कदम उठने पर बदनामी के डर से युवा खुदकुशी जैसा आत्मघाती कदम उठा लेते हैं, लेकिन खुदकुशी करने वाले यह सोचतेसमझते नहीं हैं कि खुद को मिटा कर वे क्या पा लेते हैं? खुदकुशी न तो किसी परेशानी का हल है और न ही यह हिम्मत वालों का काम है. यह तो साफसाफ कमजोरों की और गैरकानूनी हरकत है.

हर बड़ेछोटे शहर में खुदकुशी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इस के पीछे की सब से बड़ी वजह क्या है? कोई इसे कच्ची उम्र की वजह बताता है तो कोई तेजी से बदलती जीवनशैली को. कोई बच्चों के प्रति उन के गार्जियन्स की लापरवाही और उपेक्षा को दोष देता है तो कोई बच्चों में हर चीज को तुरतफुरत पाने के उतावलेपन को जिम्मेदार ठहराता है और कोईकोई तो परिवार के लोगों के बीच बढ़ती संवादहीनता को खुदकुशी की बड़ी वजह करार देता है.

मगध विश्वविद्यालय के प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद का मानना है कि खुदकुशी करने से पहले अगर आदमी जरा सा सोचे कि खुदकुशी किसी भी समस्या का हल नहीं है. समस्या से लड़ कर ही उस का हल ढूंढ़ा जा सकता है, न कि उस से भाग कर. खुदकुशी करने वाले अपने परिवार वालों के लिए कई मुसीबतें और समस्याएं ही छोड़ जाते हैं.

पिछले साल 25 अक्तूबर को पटना के चित्रगुप्त नगर इलाके में 21 साल की लड़की आर्या की खुदकुशी के बाद उस के परिवार वाले पुलिस, अदालत, वकीलों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. आर्या के मां और पिता दोनों नौकरी करते हैं और अब वे काम से छुट्टी ले कर थानाकचहरी के चक्कर लगा रहे हैं. रिश्तेदारों और पड़ोसियों की तिरछी नजरों को और फब्तियों को अलग ही झेल रहे हैं. रिटायर्ड पुलिस अफसर आर के सिंह कहते हैं कि बच्चों और गार्जियन्स के बीच तालमेल की कमी से न बच्चे अपने मांबाप से खुल कर बातें कर पाते हैं न ही मांबाप के पास बच्चों की दिक्कतों को सुनने व समझने की फुरसत है. ऐसे हालात में बच्चे सही और गलत के बारे में सोचे बगैर ही कोई फैसला ले लेते हैं.

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