वे जमाने लद गए जब बच्चों को सिर्फ बांझपन की वजह से ही गोद लिया जाता था. जो बच्चे गोद लिए जाते थे वे भी परिवार के ही किसी सदस्य के होते थे. धीरेधीरे इन नियमों में बदलाव हुआ है. अब दंपती बच्चों को अनाथाश्रम से भी गोद लेने लगे हैं. हां, इस दिशा में एक नया चलन शुरू हुआ है, वह है ‘सिंगल पेरैंटिंग’ का. अब कोई भी अविवाहित पुरुष या स्त्री भी बच्चा गोद ले सकता है.

आजकल दंपती समय की कमी और काम के भार के चलते भी बच्चा गोद ले रहे हैं. इस से एक ओर जहां बच्चा घर आने से असीम सुख मिलता है वहीं समय और खर्चा भी कम आता है. बिजनैस ओरिएंटेड दंपती आजकल यही राह अपना रहे हैं. लेकिन कई बार वे आधीअधूरी जानकारी के चलते गलत एजेंसियों के झांसे में फंस जाते हैं. बच्चा मिलना तो दूर ये एजेंसियां उन से अच्छाखासा पैसा वसूल कर फरार हो जाती हैं. कई बार तो चोरी या अगवा किए बच्चों को आप के हाथों सौंप दिया जाता है.

जब बच्चा गोद लेना हो, तो समय का तकाजा कहता है कि उतावलेपन को छोड़ कर समझदारी से काम लिया जाए. इस के कानूनी और भावनात्मक सभी पक्षों को ध्यान से परखना जरूरी है. एक छोटी सी गलती जिंदगी भर के लिए मुसीबत बन सकती है.

तैयार करें खुद को

सब से ज्यादा जरूरी बात यह है कि आप मानसिक तौर पर बच्चा गोद लेने के लिए पूरी तरह तैयार हों. आप के साथसाथ आप का परिवार भी इस बात के लिए सहमत हो. अगर पहले से ही आप के बच्चा है तो उसे भी इस के लिए तैयार करें. उसे इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार करें कि घर पर आने वाला नया सदस्य उस के प्यार को बांटने नहीं, बल्कि उसे और प्यार करने आ रहा है.

वर्ष 1985 में खुद के बच्चों वाले 44 परिवार, गोद लिए बच्चों वाले 45 परिवार और 44 ऐसे परिवार जिन में खुद के साथसाथ गोद लिए बच्चे भी रहते थे, पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि वह परिवार जहां सिर्फ गोद लिए बच्चे रहते हैं, उन परिवारों से ज्यादा खुश थे जहां अपने बच्चे के साथ गोद लिए बच्चे रहते हैं. इसलिए खुद को तैयार करना जरूरी हो जाता है ताकि भविष्य में किसी तरह के तनाव का सामना न करना पड़े. इस के बाद ही बच्चे को गोद लेने जैसा महत्त्वपूर्ण कदम उठाएं.

एजेंसी न हो फर्जी

अकसर कई लोग फर्जी एजेंसी बना कर चोरी या अगवा किए गए बच्चों को गोद दे देते हैं. ऐसे में आप को बाद में नुकसान उठाने के साथ ही साथ बच्चे को भी खोना पड़ सकता है. इस बात की जांच कर लें कि जिस एजेंसी से आप बच्चा गोद लेने की सोच रहे हैं वह लाइसैंसधारक है. सुप्रीम कोर्ट के वकील शिवेंद्र का कहना है कि 200 से ज्यादा एजेंसियां ऐसी हैं, जो बच्चे गोद देने का अधिकार रखती हैं.

कागजात रखें तैयार

जब भी एजेंसी से संपर्क करें, तो कागजात के बारे में पूरी जानकारी जरूर ले लें. इन्हें पहले से ही तैयार रखें, ताकि गोद लेने की प्रक्रिया के दौरान ज्यादा भागदौड़ न करनी पड़े :

द्य  बच्चा गोद लेने के लिए एजेंसी को पूरे परिवार के साथसाथ, अगर पहले से कोई बच्चा है, तो उस की भी फोटो देनी पड़ती है.

द्य फोटो के साथ आप के आयु प्रमाणपत्र की भी मांग की जाती है. इस से लाभ यह होता है कि आप के लिए सही आयु वर्ग का बच्चा चुना जा सकता है. अकसर अधिक आयु वाले अभिभावकों को बड़े बच्चे दिए जाते हैं. इस से अभिभावक और बच्चे दोनों को सुविधा होती है.

द्य  बच्चा गोद लेने के लिए आप के पास अपने स्थायी पते के साथ ही हाल में आप जहां निवास कर रहे हैं उस पते का प्रमाणपत्र भी मांगा जाता है.

द्य  बच्चा गोद लेने के पीछे बताए गए कारणों में मुख्य कारण अगर बांझपन है, तो इस के लिए भी प्रमाणपत्र देना पड़ता है. इस प्रमाणपत्र के तौर पर स्त्री या पुरुष जो भी इस के लिए जिम्मेदार हो, उसे अपनी मैडिकल रिपोर्ट जमा करानी होती है.

द्य  इस के अलावा बच्चा गोद लेने के इच्छुक लोगों को अपना स्वास्थ्य प्रमाणपत्र भी देना पड़ता है. इसी के साथ एचआईवी और हेपेटाइटिस बी के निरीक्षण वाली ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट भी देनी होती है. एक बात और जो ध्यान में रखना जरूरी है कि एचआईवी और हेपेटाइटिस बी की रिपोर्ट किसी विशेषज्ञ से लेनी जरूरी है.

विवाहित अगर बच्चा गोद ले रहे हों, तो उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट देना होगा.

अगर आप तलाकशुदा हैं और

बच्चा गोद लेना चाहते हैं, तो भी आप को अपने तलाक के कागजात देने जरूरी होंगे.

बच्चे को गोद लेने के इच्छुक व्यक्ति से उस की चलअचल संपत्ति का स्टेटमैंट भी मांगा जाता है.

आप बच्चे की जिम्मेदारी उठाने लायक हैं, यह साबित करने के लिए आप को आय प्रमाणपत्र भी देना होता है.

एंप्लायमैंट लैटर के साथ वर्तमान में मिल रही तनख्वाह की पे स्लिप देनी पड़ सकती है.

अगर आप अपना बिजनैस करते हैं, तो आप से आईटी सर्टिफिकेट मांगा जाएगा.

साक्षात्कार लिया जाएगा

ये सारे कागजात जमा कराने के बाद भी आप को बच्चा गोद मिल जाएगा यह जरूरी नहीं है. कागज पूरे होने के बाद आप का साक्षात्कार लिया जाएगा. दरअसल, जो भी एजेंसी बच्चा गोद देती है, वह अपनी ओर से हर संभव प्रयास करती है कि बच्चा किन्हीं सुरक्षित हाथों में ही जाए. इसलिए वह संभावित अभिभावकों के साक्षात्कार लेती है.

इस के बाद ही वह यह फैसला लेती है कि इच्छुक व्यक्ति को बच्चा गोद देना चाहिए या नहीं. यह साक्षात्कार कई बार सिर्फ संभावित अभिभावक का या

फिर उस के पूरे परिवार का भी हो सकता है. यह निर्णय पूरी तरह से एजेंसी पर निर्भर करता है कि वह पूरे परिवार का साक्षात्कार एकसाथ लेती है या फिर एकएक सदस्य को बुला कर लेती है. इसी के साथ ही अगर एजेंसी चाहे तो वह परिवार के सदस्यों के अलावा उन के दोस्तों का भी साक्षात्कार ले सकती है.

इन सब पड़ावों के बाद जब एजेंसी पूरी तरह से संतुष्ट हो जाती है तो वह सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर इच्छुक अभिभावकों के लिए बच्चे का चयन करती है. अभिभावक एजेंसी पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाल सकते कि उन्हें बच्चे को खुद चुनने दिया जाए. बच्चे का चुनाव पूरी तरह से एजेंसी के हाथों में ही होता है.

पहली मुलाकात

इस के बाद वह पल आता है जिस के लिए आप ने इतनी मेहनत की यानी अभिभावक को बच्चे से मिलाया जाता है. यह वह पल है, जब बच्चा अपने भावी अभिभावकों से पहली बार मिलता है. इसी दौरान अभिभावक को बच्चे के सभी स्वास्थ्य प्रमाणपत्र भी दे दिए जाते हैं. अगर अभिभावक अपनी संतुष्टि के लिए बच्चे का अपने डाक्टर से चैकअप करवाना चाहते हैं तो वे इस के लिए उसे अपने साथ ले जाने का हक रखते हैं.

और बच्चा हो गया आप का

इन प्रक्रियाओं के बाद इच्छुक व्यक्ति को बच्चा गोद लेने के लिए कोर्ट में एक अर्जी देनी पड़ती है. भारतीय कानून के हिंदू अडौप्शन ऐंड मेंटेनैंस एक्ट, 1956 के तहत सिर्फ हिंदू ही बच्चा गोद ले सकते थे, लेकिन अब दूसरे धर्म के लोग भी गार्जियन ऐंड वार्ड एक्ट, 1890 के तहत अर्जी दे कर बच्चा गोद ले सकते हैं. साल 2000 से ईसाइयों को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल गया है.

एजेंसी का फौलोअप

इन सब परेशानियों का सामना करने के बाद अंत में आप के परिवार को एक नया और प्यारा सदस्य तो मिल गया, लेकिन एजेंसी की जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं होती. जब बच्चा अपने घर पहुंच जाता है, तो एजेंसी के लोग निरंतर उस से मिलने आते रहते हैं. इस से एक तो एजेंसी को बच्चे की पूरी जानकारी रहती है, दूसरा बच्चा भी सहज महसूस करता है.

एजेंसी तो अपनी पूरी तसल्ली कर लेती है, लेकिन बच्चा गोद लेते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी होता है. इन्फैंट बेबी सिर्फ 25 से 39 वर्ष तक की उम्र के दंपती को दिए जाते हैं. इस से अधिक आयु के बच्चे 40 से 46 उम्र के व्यक्ति को गोद दिए जाते हैं. जिन अभिभावकों के पास पहले से ही 2 बच्चे होते हैं उन्हें किसी एक अभिभावक की जिम्मेदारी पर बच्चा दिया जाता है. अगर आप शादीशुदा हैं तो शादी के कम से कम 2 साल पूरे होने के बाद ही बच्चा गोद ले सकते हैं.

गोद लेने के बाद बच्चे का मूल जन्म प्रमाणपत्र लेना न भूलें. अगर बच्चा मांबाप से गोद ले रहे हैं, तो इस बात का भी खयाल रखें कि पहले वाले मांबाप के पेरैंटल राइट खत्म करवाने के बाद ही बच्चे को गोद लें. अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप कानून के जानकार से मदद लेना न भूलें.

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