बेटाबहू अपनेअपने काम के लिए निकल जाते हैं. बच्चे स्कूल से दोपहर तक ही लौटते हैं और फिर वे ट्यूशन पढ़ने चले जाते हैं. शाम को पोते की गिटार क्लास होती है और पोती पेंटिंग क्लास में चली जाती है. जिस दिन दोनों की क्लास नहीं होती, दोनों पढ़ते हैं या फ्रैंड्स के पास चले जाते हैं. माया का दिन देखा जाए तो एक तरह से खाली ही बीतता है.

माया के पति को गुजरे 5 साल हो गए हैं. घर का काम करने के लिए नौकर है, इसलिए रसोई में उन्हें जाना नहीं पड़ता है. उन की बड़ी इच्छा होती है कि बेटाबहू और बच्चे उन के पास बैठें, उन से बातें करें लेकिन उन की अपनीअपनी व्यस्तताएं हैं. इस बात को माया अच्छी तरह से समझती हैं और इसीलिए वे किसी तरह की शिकायत भी नहीं करतीं.

वे जब बोर होती हैं तो पासपड़ोस में चली जाती हैं, पर उन की उम्र की अन्य महिलाएं भी पूरी तरह खाली हों, ऐसा अनिवार्य तो नहीं, इसलिए 10-15 मिनट से ज्यादा देर कहीं बैठ भी नहीं पाती हैं. हालांकि उन की उम्र की हर महिला अपने खालीपन को कुछ अलग ढंग से भरने के लिए आतुर रहती हैं.

60 वर्ष की हो रही हैं माया. अपने को स्वस्थ रखने के लिए वे सैर पर जाती हैं और व्यायाम भी करती हैं. एक बार बेटे से जब दिनभर बोर होने की बात कही तो वह हंस कर बोला, ‘मां, किसी क्लब की मैंबर बन जाओ. पार्टियों में जाओगी तो चार फ्रैंड्स बनेंगे, हो सकता है कुछ काम करने का विचार ही बन जाए.’

माया को बेटे की बात सही लगी. अचानक उन के मन में विचार आया कि क्यों न एक सास क्लब बनाया जाए. आखिर उम्र के इस पड़ाव तक पहुंचने के बाद अनुभवों का जो विशाल भंडार उन जैसी महिलाओं के पास जमा हो जाता है, उसे बांट कर आने वाली पीढ़ी के साथसाथ एकदूसरे को भी लाभ पहुंच सकता है.

वे अगले दिन ही पासपड़ोस की महिलाओं से मिलीं और सास क्लब के बारे में बातचीत की. सब ने खुशीखुशी प्रस्ताव को मान लिया और फिर तो अगले ही दिन सास क्लब की नींव पड़ गई. उस की पहली मीटिंग माया के घर पर ही हुई. उन्होंने पहले ही तय कर लिया था कि यह क्लब आम किट्टी पार्टी की तरह केवल खाने और कमेटी उठाने पर ही केंद्रित नहीं होगा, वे और भी बहुत सारे उपयोगी कामों को इस क्लब का हिस्सा बनाएंगी.

निकालें दिल का गुबार

माया ने तो सास क्लब बना कर अपनी बोरियत को दूर कर लिया और उन की तरह की दूसरी सासों को भी इस से बहुत फायदा पहुंचा. अगर आप भी एक सास हैं और अकेलापन महसूस करती हैं या घर की किचकिच, ब?हू के झगड़ों से परेशान हैं तो अपने महल्ले में एक सास क्लब बना लें. निसंदेह आप क्लब में जा कर बहू की वजह से होने वाली परेशानियों को तो बांट ही सकती हैं, साथ ही अन्य महिलाओं से उस विषय में बात कर कुछ समाधान भी ढूंढ़ सकती हैं.

घर में तो आप ऐसी बातें किसी से कर नहीं सकती हैं, क्योंकि घर वाले सुनेंगे नहीं उलटे नाहक विवाद और बढ़ जाएगा. इसलिए सास क्लब में आप बेहिचक हो कर अपने दिल का गुबार निकाल सकती हैं. बहू की बुराई भी खुल कर कर सकती हैं. बात करने से मन हलका हो जाता है और जब आप क्लब से वापस घर पहुंचेंगी तो आप का सारा रोष खत्म हो चुका होगा.

इतना ही नहीं, उर्मिला को तो सास क्लब जौइन करने का फायदा यह हुआ कि बहू को ले कर जो उन्होंने गलत धारणा बना रखी थी, वह दूर हो गई. उन्होंने जब दूसरी सासों के दुख सुने तो उन्हें लगा कि उन की बहू तो बहुत अच्छी है. बस, जबान की तीखी है, वरना सेवा तो खूब करती है. अगर वे ही उसे थोड़ा और प्यार से हैंडल करें तो बहू उन का सम्मान करने लगेगी. एक सास जब बहू पुराण खोल कर बैठती है तो कितनी अनकही बातें भी सामने आ जाती हैं और तब दूसरी सासों के अनुभवों से समाधान भी चुटकियों में मिल जाता है. जब समाधान मिल जाएगा तो घर झगड़े का क्षेत्र बनेगा ही नहीं. सास भी खुश और बहू भी खुश. यानी उम्रदराज महिलाओं को व्यवहारकुशल बनने के लिए सास क्लब एक बेहतरीन औप्शन हो सकता है.

कुछ क्रिएटिव करें

सास क्लब में आ कर आप अपनी योग्यताओं के अनुसार कुछ कोर्स भी आरंभ कर सकती हैं. सिलाईबुनाई, विभिन्न तरह के व्यंजन बनाना सिखाने के अतिरिक्त हो सकता है आप कभी जो पेंटिंग करती रही हों, वह हुनर भी सिखाना शुरू कर सकती हैं. इस तरह से आमदनी का जरिया भी निकल आएगा और बेकार की बातें भी दिमाग को परेशान नहीं करेंगी. थोड़ी देर अगर सास घर से बाहर रहेगी तो बहू भी सुकून महसूस करेगी. सारा दिन सास घर में रहे तो बहू असहज महसूस करती है और सास को भी लगता है कि वह बंधन में जकड़ी हुई है.

सास घर से बाहर निकलती है तो अकेलेपन की पीड़ा से बच जाती है और दूसरों के साथ हंसीमजाक के बीच एक स्फूर्ति उस में आ जाती है. अनुराधा की ही बात लें. 65 वर्ष की आयु में उन्हें लगने लगा कि अब उन की किसी को जरूरत नहीं है. पति, बच्चे, बहू, बेटियां, सब अपनी तरह से जी रहे हैं. वे करें तो क्या करें. सारा दिन टीवी देख कर वे उकता जाती थीं. एक जमाने में वे क्लेपौट बनाया करती थीं. बस, जब बाकी महिलाओं ने उन का उत्साह बढ़ाया और कहा कि वे क्ले, रंग आदि लाने में उन की मदद करेंगी तो वे पौट बनाने में जुट गईं.

आज स्थिति यह है कि सास क्लब उन की पौट प्रदर्शनी लगाता है. उस से हुई आमदनी का आधा हिस्सा वे क्लब को और बेहतर बनाने के लिए देती हैं. अनुराधा इस बात से खुश हैं कि बहू को ले कर जिस तनाव में वे रहती थीं वह तो खत्म हुआ ही है, साथ ही कुछ कर पाने की उमंग ने उन के अंदर गजब की ऊर्जा भी भर दी है.

जिएं अपनी मरजी से

ऐसी कितनी ही सास होती हैं जिन की केवल बेटियां होती हैं, बेटा है तो वह दूर कहीं शहर में रहता है. ऐसे में उन के लिए वक्त काटना सब से बड़ी समस्या होती है. वे अगर इसी तरह एक सास क्लब बना लें तो वे जीवन की कमी को भर सकती हैं. जरूरी नहीं कि क्लब में केवल बहुओं की बुराइयां की जाएं या कुछ काम आरंभ कर लिया जाए, बल्कि आप घूमने भी जा सकती हैं. ऐसे कई क्लब आजकल खुले हुए हैं जो

केवल महिलाओं के लिए हैं और विभिन्न टूर आयोजित करते हैं. सास क्लब बना कर आप भी कुछ ऐसे ट्रिप अरेंज कर सकती हैं. यकीन मानिए, अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ घरपरिवार की जिम्मेदारियों से कुछ समय के लिए मुक्त हो कर यों कहीं निकलने का मजा कुछ और ही होता है. नईनई जगहें देखने का अवसर आप को मिलता है और अपनी तरह से जीने की आजादी भी.

आप की उम्र हो गई है या अब आप सास, दादीनानी बन चुकी हैं तो इस का मतलब यह नहीं है कि आप जीना छोड़ दें. या बहुएं ही मान लें कि घूमनाफिरना अब सास को शोभा नहीं देता है. जीवन को सही और नए सिरे से जीने की कोई उम्र नहीं होती है. बस, जरूरत है एक पहल करने की. अपने घर को कुरुक्षेत्र बनाने से अच्छा है कि सास क्लब बना लें और नईनई बातें एक्सप्लोर करें.  

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