बैंकों से कर्ज ले कर मौज उड़ाना या उन पैसों को अनापशनाप उद्योगों व व्यापारों में लगाना हमारे देश में एक खेल है. जहां करोड़ों लोग अपनी गाढ़ी कमाई ऐसे बैंकों और फाइनैंस कंपनियों के हवाले कर देते हैं जो उसे हड़प कर डकार भी नहीं लेते, वहीं हजारों ऐसे शातिर भी हैं जो बैंकों को चूना लगाते हैं. इस में शक नहीं है कि बैंकों से कर्ज ले कर बरबाद करने वालों में ज्यादातर वे हैं जिन्होंने रिश्वत दे कर कर्ज प्राप्त किया था. वे सोचते हैं कि उद्योगधंधे तो रिश्वतखोरी और हेरफेर से चलते हैं. उन्हें कर्ज लिए पैसे को सही ढंग से इस्तेमाल करना आता ही नहीं.

बैंकों ने कर्ज न लौटाने वालों को शर्मिंदा करने के लिए अब उन के फोटो अखबारों में प्रकाशित कराने शुरू कर दिए हैं और इस पर सवाल उठ खड़े हुए हैं कि यह इजाजत उन्हें कानून से मिली है या नहीं. आमतौर पर वकीलों का मानना है कि जब तक अदालत का आदेश न हो इस प्रकार का विज्ञापन, जो कर्ज पाने वाले की मानहानि करे, प्रकाशित करना गलत है. 1-2 मामलों में अदालतों ने बैंकों को ऐसा करने से रोका भी है.

कर्ज लौटाना हर कर्जदार का फर्ज है. देश में 20 साल पहले चले कर्ज मेलों ने लोगों के मन में भर दिया था कि कर्ज लौटाना जरूरी नहीं. लाखों किसानों के कर्ज माफकिए गए हैं. लाखों को कर्ज लौटाने पर ब्याज में भारी छूट दी गई है. इस से माहौल बना है कि कर्ज ले कर घी पीने का सिद्धांत आज भी चल रहा है.

कर्ज लेने वाला पैसा ढंग से और संभल कर खर्च करे, यह जरूरी है. अगर उसे मालूम हो कि कर्ज लेने के बाद उसे न लौटाने पर अदालतों में वर्षों लगेंगे तो वह कर्ज के पैसे के बारे में कभी सतर्क नहीं होगा. इसलिए कर्ज न लौटा पाने वालों को शर्मिंदा करना गलत नहीं है.

अगर आज का कानून आड़े आएगा तो भी यह बात न रुकेगी क्योंकि कर्ज देते समय ही लंबी शर्तों में बैंक यह भी लिखवा लेंगे कि कर्ज न लौटा पाने की स्थिति में वे ऐसे विज्ञापन प्रकाशित करा सकते हैं और तब मानहानि का कानून लागू नहीं हो पाएगा. कर्ज लेते समय कर्जदार की हिम्मत कभी न होगी कि वह इस शर्त पर आपत्ति करे. कर्ज ले कर गाडि़यों और भव्य मकानों में मौज मनाने वालों की दुनिया में कमी नहीं है.

 

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