ऐन चुनाव से 2 माह पहले दिल्ली में भावी मुख्यमंत्री के सवाल को उठा कर भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा ने अपने अनुशासन की पोलपट्टी खोल दी है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल महीनों से अपनेआप को नरेंद्र मोदी की तर्ज पर मुख्यमंत्री घोषित कर रहे थे कि संघ की ओर से पूर्व अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन  आ खड़े हुए और दोनों का घमासान कांगे्रसभाजपा जैसा हो गया.

अब नेता का नाम तय हो गया पर यह साफ हो गया है कि ‘साफसुथरी पार्टी’ कितनी साफ है. भाजपा को आमतौर पर मध्यवर्ग के वोट मिलते हैं और यही मध्यवर्ग आजकल सरकारी कामकाज से नाराज हो कर अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ का समर्थक बन रहा है और निश्चित है कि यह वर्ग कांग्रेस को कम, भाजपा को ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा. ऐसे में चुनावों से कुछ ही सप्ताह पहले विजय गोयल के नेतृत्व पर सवाल उठा कर भाजपा के नेताओं ने अपने दिमागी दिवालिएपन की कलई खोल दी. यह सवाल असल में चुनावों के बाद उठाया जाना चाहिए था अगर पार्टी को पर्याप्त बहुमत मिलता.

दिल्ली का चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है क्योंकि यहां से केवल 7 सांसद चुने जाते हैं लेकिन यदि नरेंद्र मोदी का प्रभाव दिल्ली की राज्य इकाई पर भी नहीं है तो साफ है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बावजूद भाजपा की प्रदेश इकाइयों में आपसी फूट और खींचतान जारी है.

वैसे, यह बात नई नहीं है. जैसे राम का नाम लेने वाली भारतीय जनता पार्टी के आराध्य राम को भी ऐन सिंहासन पर बैठने वाले दिन अयोध्या की महल की राजनीति के कारण राजपाट न मिल कर वनवास मिला, रामलीला को बारबार दोहराना तो भाजपा का धर्म वैसे ही है.

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